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अपनी बात : ये चमक और ये सबक

by
Feb 20, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Feb 2017 12:49:22

लोहा तो सब पहले से मानते ही थे, अब तो यह साख सोने-सी निखर आई है। 15 फरवरी, 2017 को भारत ने आधे घंटे में उस असंभव को संभव कर दिखाया जिसका सपना आज भी बड़े-बड़े देशों के लिए दूर की कौड़ी है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा 30 मिनट में सात देशों के सौ से भी ज्यादा उपग्रह कक्षा में स्थापित करना क्या कोई छोटी बात है? इस सफलता को यूं आंकिए कि रूस जैसी महाशक्ति के केवल दो वर्ष पूर्व स्थापित कीर्तिमान को करीब तिहरे अंतर से पार किया गया। निश्चित ही उपलब्धि बड़ी है किन्तु इसरो की इस सफलता को सिर्फ कीर्तिमान की कसौटी पर नहीं रखा जा सकता। यहां, अपनी प्रक्षेपण योग्यता को परखने, साबित करने और लगातार बेहतर करते जाने की चुनौती इतनी प्रबल रही कि बड़े से बड़े रिकॉर्ड भी लंबे सफर के बीच आने वाले पड़ावों से ज्यादा महत्व नहीं रखते।

जर्मनी के एकीकरण और राममंदिर आंदोलन का उफान देखने से वंचित नई पीढ़ी के लिए यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा खुद को चुनौती देने और सफलता की इन मुस्कानों के पीछे अपमान से पैदा तड़प का भी बड़ा हाथ है। आज तालियां बज रही हैं किन्तु करीब दो दशक पूर्व महाशक्तियों से अपमान मिला था।

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए पोकरण में परमाणु परीक्षण उसकी आवश्यकता से जुड़ा और प्रभुसत्ता के अंतर्गत लिया गया निर्णय था। किन्तु भारत पर लांछित करने वाले वैश्विक प्रतिबंध थोप दिए गए। अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोगात्मक रूप से बढ़ने की सहमति के साथ जो क्रायोजेनिक तकनीक भारत को दी जानी थी उससे हाथ खींच लिए गए। अमेरिका के दबाव में रूस पीछे हट गया…तब शुरू हुई यह यात्रा। तमिलनाडु के महेंद्रगिरी पर भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक अनवरत शोध-साधना में जुटे रहे। अत्यल्प संसाधनों के साथ अतिप्रबल जनाकांक्षाओं को पूरा करने का अनूठा अभियान।

मन में कुछ पंक्तियां कौंधती हैं। संभवत: ऐसा ही कोई संकल्प मंत्र इस राष्ट्र के मन में तब गूंजा था 'न हो साथ कोई, अकेले बढ़ो तुम, सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी, सदा जो जगाए बिना ही जगा है,अंधेरा उसे देखकर ही भगा है। वही बीज पनपा, पनपना जिसे था, घुना क्या किसी के उगाए उगा है। अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम, प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी।' आज भारतीय मेधा का सूर्य चमक रहा है। लेकिन बात अधूरी रह जाएगी यदि उन घुने हुए बीजों का जिक्र न हो जिन्हें उगाने, हरियाने की कोशिशें सबने कीं लेकिन परिणाम शून्य रहा। भारत वैश्विक उपेक्षा और प्रतिबंधों के बाद भी आज इस सम्मानजनक सोपान तक आया है। पाकिस्तान चीन-अमेरिका की लगातार पुचकार और भारी आर्थिक अनुदानों के बावजूद कहां है?

भारत को रोकने, थामने, अलगाने वाले लगभग सभी देश या तो सिमटते गए हैं या भारत के साथ आते गए हैं। किन्तु इस सफर में पाकिस्तान तब कहां खड़ा था और आज कहां खड़ा है?

सोचिए, दिल्ली यमुना किनारे 'विश्व संस्कृति महोत्सव' की साक्षी बनती है और लाहौर-सिंध में फितूरी हमलावर दरगाह और बाजारों में दर्जनों जिंदगियां लील जाते हैं! तब भी भारत से परमाणु खतरे की पाकिस्तानी डुगडुगी दुनिया भर में बजाई गई थी। आज भी पाकिस्तान का सैन्य तंत्र और मीडिया उन्हीं 'झूठे अंदेशों' को दुनिया के सामने भुनाने में जुटा है।

भारत शोध और विकास की डगर पर बढ़ता गया पाकिस्तान आशंकाओं और षड्यंत्रों की अपनी ही रची भूलभुलैया में भटकता रहा।

इस सप्ताह जहां विश्व समुदाय को हर्ष और गर्व पहुंचाने वाली इसरो की उपलब्धि ने समाचारों में जगह बनाई है, वहीं पाकिस्तान की ओर से 2,000 के भारतीय नोट की नकल (17 में से 11 सुरक्षा मानकों की नकल के साथ) के अंदेशे और एक और आत्मघाती बम धमाके की खबर मीडिया में तैर रही है।  यही अंतर है। भूगोल एक होने भर से सोच और लीक एक नहीं हो सकती। नींव में से अपने पुरखों, अपने इतिहास, ज्ञान परंपरा और विश्वबंधुत्व के अनमोल पत्थरों को निकाल फेंकेंगे तो और क्या होगा? पाकिस्तान को उसकी 'हिन्दू विरासत' से काटने वालों ने क्या इस पूरे देश को कबाइली पत्थरयुग में नहीं ला पटका?

खैर, सिंध धमाके में जान गंवाने वालों के प्रति संवेदना व्यक्त करते यही कहना ठीक होगा- लीक ठीक हो, तो सब ठीक होता है।  आसमान से पैसे भी बरसते हैं, आफत भी। पाकिस्तान के लिए यह भारत से, अपने पुरखों से, सीखने का समय है।

 

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