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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही विकास और काम की बात करते हों, लेकिन हकीकत में यूपी की तस्वीर इसके उलट है। राज्य में बुनियादी ढांचा खस्ताहाल है। बिजली नहीं है और स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं। पूरा सूबा भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की चपेट में है। वहीं, मोदी सरकार ने बजट में गांव, गरीब और किसानों के साथ देश में बुनियादी ढांचे पर जोर दिया है
मुजफ्फरनगर और शामली में हुए दंगों पर सर्वोच्च न्यायालय ने 26 मार्च 2014 को अपने फैसले में लिखा-'प्रारंभिक चरण पर लापरवाही बरतने के कारण हम प्रथम दृष्टया राज्य सरकार को दंगे के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। '
सरकार ने भी माना
यूपी में कानून व्यवस्था की दशा बिगड़ी हुई है और पुलिस न केवल अपराध रोकने बल्कि जांच एवं अभियोजन में भी असफल है।
– पैरा 22 में सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में अतिरिक्त एडवोकेट जनरल की स्वीकारोक्ति
3 गुना ज्यादा केस हुए राज्य में 2014 और 2015 के बीच बलात्कार के
1035 दंगे हुए अखिलेश सरकार के कार्यकाल में
प्रतिनिधि
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का नारा है- काम बोलता है। इसके पीछे मकसद शायद यही रहा होगा कि समाजवादी पार्टी सरकार ने विकास के जो भी कार्य किए हैं, उन्हें भुनाया जाए। लेकिन जब इस 'विकास' की पड़ताल करेंगे तो आपको घपले-घोटाले, गुंडई और अन्य अपराध ही मिलेंगे। इसके अलावा, राज्य में बिजली, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं की हालत भी खस्ता है। बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं। अलबत्ता इतना विकास जरूर हुआ है कि सस्ते पोस्टरों और बैनरों की जगह बड़े-बड़े विज्ञापन पटों ने ले ली है जो हर कोने में टंगे दिख जाएंगे।
प्रदेश में जहां कहीं भी 'विकास' हुआ है, वैसा 'विकास' अमेठी-रायबरेली जैसे इलाकों में दशकों से होता आ रहा है। ऐसे विकास की पहली शर्त होती है कि मतदाताओं को पता नहीं चलने दिया जाए कि विकास किस चिडि़या का नाम है। विकास कहां और किस रूप में हुआ है, ऐसे फिजूल सवालों को पूछने की इजाजत नहीं है। विकास की पहली जरूरत है बिजली, पानी, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं। सामाजिक खुशहाली, रहन-सहन के स्तर में सुधार, वंचित वर्गों को रोजगार की गारंटी, सुरक्षा, उद्योग-धंधे आदि-इत्यादि।
प्रदेश में विकास की कहानी ही उलटी है। हकीकत में कल-कारखाने बंद हो रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार तो दूर, यहां खेती का दायरा भी सिमटता जा रहा है। गांवों में बेरोजगारों की बाढ़ सी आ गई है।
खुद समाजवादी पार्टी के नेता ही विकास के दावों की तस्दीक नहीं करते। लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यालय के बाहर खड़े एक नेता से जब प्रदेश के विकास के बारे में पूछा तो उनका शरारत भरा जवाब था, ''लो जी। आपको विकास ही दिखाई नहीं दे रहा।'' नेताजी को इस बात का भी मलाल था कि उनका संभावित टिकट काट कर एक खास परिवार को दे दिया गया है। इसके बदले में उन्हें 'कुछ और' देने का वादा किया गया है। विकास पर उनकी समझ कुछ इसी तरह की उलझन भरी थी।
एक अन्य नेता से विकास का पैमाना समझना चाहा, तो उन्होंने जवाब देने से ही इनकार कर दिया। ऊपर से राज्य में बंद होते उद्योगों के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया। हालांकि वे अपनी बात पर अड़े रहे कि विकास हुआ है। गांवों, कस्बों और शहरों में भी आम लोग समाजवादी 'विकास' की बात नहीं करते। अलबत्ता वे बुनियादी सुविधाओं की कमी पर जरूर बोलते हैं। कुछ शहरों को छोड़ दिया जाए तो राज्य के कई जिले अब भी बिजली, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी और बुनियादी सेवाओं के लिए तरस रहे हैं। उदाहरण के लिए, सूबे में 20 फीसदी लोग बेघर हैं, जबकि महाराष्ट्र में ऐसे लोगों की तादाद 12 फीसदी, राजस्थान में 10 फीसदी है तो मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा आठ फीसदी है। बिजली और स्वास्थ्य के मामले में तो उत्तर प्रदेश सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में शुमार है। उधर, भाजपा ने चुनाव में बहस का रुख ही मोड़ दिया है। वह मोदी सरकार के बजट और विकास योजनाओं के जरिये प्रदेश में विकास को मुद्दा बना रही है। इस पर अखिलेश यादव बार-बार कहते हैं, ''विकास तो हमने किया है। हमने लैपटॉप बांटे। मोदी सरकार ने कितने लैपटॉप बांटे?'' समाजवादी पार्टी के लिए विकास की परिभाषा यह है। नोएडा में कुछ जानकारों से जब लैपटॉप वितरण आधारित विकास की बात की तो दूसरा ही चेहरा सामने आया।
'काम बोलता है' विज्ञापन झूठ और आधे सच का पुलिंदा है। उनके हानिकारक काम वाकई बोल रहे थे। उन्हें छुपाने के लिए परिवार में झगड़े का लंबा नाटक किया। उस पार्टी से गठबंधन को मजबूर हो गए, जिससे उनके वैचारिक पितृ पुरुष डॉ. राम मनोहर लोहिया, उनका दल और परिवार संघर्ष करते रहे। —ईश्वर शरण, शास्त्रीनगर कॉलोनी, मेरठ
अखिलेश सरकार के कुकर्मों की सूची लंबी है। 58 महीनों के इनके शासन में यूपी ने 1035 दंगे झेले।
— राकेश कुमार, गुदड़ी बाजार, मेरठ
मुजफफरनगर-शामली दंगे के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने अखिलेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया। 2013 में जब हजारों दंगा विस्थापित तंबुओं में ठंड से ठिठुर रहे थे तब वे सैफई महोत्सव में फिल्मी सितारों के नाच देख रहे थे। यह सरकार वापस आई तो गुंडे खुलेआम राज करेंगे।-संदीप पहल, आरटीआई कार्यकर्ता
सपा सरकार चीनी मिलों से किसानों के 22 हजार करोड़ रुपये नहीं दिला पाई। अखिलेश के शासनकाल में किसानों की आत्महत्या के मामले 45 फीसदी बढ़े।
—आर्येन्द्र, बागपत के किसान
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बाद देश में बिजली की सबसे ज्यादा जरूरत उत्तर प्रदेश को है। लेकिन 2014 तक राज्य के 10,856 गांवों में बिजली पहुंची ही नहीं थी। सूबे में करीब 12.5 फीसदी बिजली की कमी है। मनरेगा के पैमानों पर भी उत्तर प्रदेश खरा नहीं उतरता। देश में सबसे अधिक युवा उत्तर प्रदेश में ही हैं, लेकिन उनके सामने बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। चुनावी मुकाबला यहीं है। मोदी सरकार ने संकल्प योजना के तहत तीन करोड़ युवाओं को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। साथ ही, अगले पांच वर्षों में किसानों की आय भी दोगुनी करने का लक्ष्य है। लेकिन अखिलेश इसका सामना करने की बजाय इस मुद्दे को लैपटॉप और गठबंधन की तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रदेश में आवास की कमी है और मोदी सरकार ने बजट में पीएम आवास योजना के तहत 2019 तक एक करोड़ घर बनाने का वादा किया है। बेरोजगारी को ध्यान में रखते हुए बजट को युवाओं पर फोकस किया गया है। प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्र खोलने की बात कही गई है। प्रदेश के गांव ही नहीं, शहर भी बिजली की कमी से बदहाल हैं। मोदी सरकार ने 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का वादा किया है। बजट में मनरेगा की राशि 38,500 करोड़ से बढ़ाकर 48,000 करोड़ रुपये की गई है। साथ ही, बजट में किसानों, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन पर जोर दिया गया है। कृषि ऋण के लिए 10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 396,135 करोड़ और राजमागोंर् के लिए 64,000 करोड़ रुपये का प्रावधान कर विकास का संकेत दिया है।
लेकिन सपा के चुनाव अभियान का पूरा जोर इस बात पर है कि ये बातें चुनावी मुद्दा न बन पाएं। बसपा की रणनीति भी यही है, बस तरीका अलग है। उनकी कोशिश यही रहती है कि बहस जातिगत पहचान और उसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाले जातिगत टकराव के मसलों तक ही केन्द्रित रहे। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुदृा है। लोग नोटबंदी के पक्ष में खुलकर बोलते नजर आए। वे इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी मुहिम के हिस्से के तौर पर देखते हैं। सूबे में 'ट्रांसफर-पोस्टिंग' एक उद्योग के तौर पर विकसित हुआ है और नेतागीरी की आड़ में दलाली करने की कोशिशें करते रहना मुख्य धंधे के तौर पर पनपा है। संसद में नोटबंदी के फैसले को सही ठहराते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो जवाब दिया था, उससे अधिकांश लोग सहमत नजर आए।
चुनाव में कानून व्यवस्था भी एक प्रमुख मुदृा है। राज्य में पिछले साल 15 मार्च, 2016 से 18 अगस्त, 2016 के बीच बलात्कार के एक हजार से अधिक मामले दर्ज किए गए। यह जानकारी खुद अखिलेश सरकार ने विधानसभा में भाजपा सदस्य सतीश महाना के एक सवाल के जवाब में दी थी। उत्तर प्रदेश राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2014 और 2015 के बीच बलात्कार के तीन गुना ज्यादा कांड हुए। 2015 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा 8,358 मामले और हत्या के 4,732 मामले दर्ज किए गए। देश के 53 बड़े शहरों में होने वाले जघन्य अपराधों के आंकड़ों में एनसीआरबी ने यूपी के जिन सात शहरों को शामिल किया है, उनमें लखनऊ और आगरा में सर्वाधिक अपराध हुए। 2015 में लखनऊ में सबसे अधिक 118 हत्याएं हुईं। 2014 में यह आंकड़ा 109 था। वहीं 92 हत्याओं के साथ मेरठ दूसरे और 74 हत्याओं के साथ आगरा तीसरे नंबर पर रहा। बाकी कसर प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों और हिंसा ने पूरी कर दी।
पश्चिमी यूपी का बुलंदशहर तो जैसे अपराध का गढ़ बन गया है। पिछले साल 29 जुलाई को बुलंदशहर में एक परिवार के साथ लूटपाट तथा महिलाओं और बच्चियों से गैंगरेप ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। चुनाव से ठीक पहले खुर्जा सीट के आरएलडी उम्मीदवार मनोज कुमार गौतम के भाई और उसके दोस्त की हत्या कर दी गई। अखिलेश विकास के आधार पर वोट मांग रहे हैं और हर मंच से डायल 100 शुरू करने की बात कर रहे हैं, लेकिन मुद्दा तो खराब कानून-व्यवस्था ही है। (साथ में मेरठ से अजय मित्तल)
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