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विविध – 'आजीवन करते रहे हिंदू समाज के संगठन का कार्य'

by
Feb 13, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Feb 2017 15:53:48

भारतरत्न महामना पं़ मदन मोहन मालवीय जी की तपोस्थली काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के 101 वर्ष पूर्ण होने पर परंपरागत रूप से इस वर्ष भी वसंत पंचमी के अवसर पर विश्वविद्यालय के स्वयंसेवकों ने अनुशासनबद्ध होकर नवीन गणवेश में शताब्दी पथसंचलन किया। इस दौरान स्थान-स्थान पर नगरवासियों द्वारा स्वयंसेवकों पर पुष्पवर्षा की गई थी। पथसंचलन भारत कला भवन, मधुवन मार्ग से होते हुए सिंहद्वार, संत रविदास द्वार, ट्रामा सेंटर होते हुए विश्वविद्यालय स्थापना स्थल पर पहुंचा और वंदेमातरम् के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप मंे लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं रा.स्व.संघ के क्षेत्र संघचालक प्रो़ देवेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित थे। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि महामना के रोम-रोम में हिंदुत्व समाया था। महामना ने 20 अप्रैल,1929 को नागपुर जाकर संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार से मिलकर संघ कार्य को आशीर्वाद दिया था। डॉ. हेडगेवार ने महामना से जन की अपेक्षा की थी। महाराष्ट्र से बाहर संघ की पहली शाखा काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लगी। संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य गुरुजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ही स्वयंसेवक बने। संघ संस्थापक पू़ डॉ. हेडगेवार सन् 1937 में काशी आए थे और घोष के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पथसंचलन निकला था।
उन्होंने कहा कि मालवीय जी स्वयं में राजनेता, अधिवक्ता, देशभक्त व कुशल संगठक थे। महामना की इच्छा थी कि हिंदू समाज संगठित हो, इस दृष्टि से देश में चलने वाले बहुविधि प्रयत्नों को उन्होंने सदैव प्रेरणा, सहयोग और अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से संस्कार भारती के सह संगठन मंत्री श्री अमीरचन्द्र, जिला संघचालक डॉ. शुकदेव सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित रहे।     -वाराणसी (विसंकें)

'समाज को एक करने वाला तत्व अपनत्व'

गत दिनों नई दिल्ली के रामकृष्ण मिशन में सामाजिक समरसता मंच, दिल्ली द्वारा महिला समरसता सम्मलेन-2017 का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री मधु भाई कुलकर्णी एवं कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत के सह-संघचालक श्री आलोक कुमार उपस्थित थे।
इस दौरान श्री मधुभाई कुलकर्णी ने कहा कि जन्म से कोई भी मनुष्य ऊंच अथवा नीच नहीं होता। हम सब अपनी मातृभूमि भारत माता की संतान हैं। चाहें वह राम, कृष्ण, रहीम या कबीर हों। क्योंकि सभी के अन्दर आत्मा है। हमें आज अपने अन्दर अपनत्व के भाव जगाने की जरूरत है। समाज को एक करने वाला तत्व अपनत्व ही है और भारत का तत्व ज्ञान सबको एक करता है। जब समाज एक होता है तभी समरस समाज का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि समाज में समरसता लाने के लिए सबसे बड़ा गुण स्नेह और प्रेम होता है,जो समाज में सिर्फ मातृशक्ति के पास पाया जाता है। आज के समाज में एक-दूसरे के बीच इसकी अहम जरूरत है क्योंकि स्नेह ही वह कुंजी है जो समाज को हरेक प्रकार के भेदों से अलग कर के सभी को एक कर सकती है। और जब समाज एक होता है तभी उसका सवांर्गींण विकास होता है और समाज के सवांर्गींण विकास से ही देश का विकास होता है। विकास से मतलब सिर्फ आर्थिक उन्नति, शिक्षा, मकान से ही नहीं है। इसके साथ-साथ समाज में एकता, आस्था, अखंडता, अपनत्व, आदर्श की स्थापना भी है, तभी जाकर समाज से गरीबी, छुआछूत, अंधकार, ईर्ष्या दूर होती है और वह समाज समरस समाज बनता है। भारत में समरस समाज बनाने के लिए हमें परिवार और समाज से इन चारों को दूर करना पड़ेगा। इस मौके पर मुख्य अतिथि लता गौतम ने कहा कि सिर्फ नारी को पूजने से समाज में समरसता नहीं आती।
समाज को समरस बनाने के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने पड़ते हैं। क्योंकि नारी ही परिवार में समाज की नींव रखती है और हर नींव रखने के पीछे एक आदर्श पुरुष का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान होता है,चाहे वह पिता,भाई, पति या बेटे के रूप में क्यों न हो। सम्मलेन के अंत में सभी को अध्यक्षीय धन्यवाद् देते हुए श्री आलोक कुमार ने कहा कि समाज में आज भी विषमता विद्यमान है, जिसे खत्म करने के लिए शिक्षा को रोजगारपरक बनाना होगा। दूसरी ओर हमें समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा देना होगा। मैं मानता हूं कि जबतक समाज में विषमता है, तब तक समाज के उन सभी वंचित वगोंर् के लिए आरक्षण होना चाहिए, जो आज भी मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके हैं। सिर्फ आरक्षण से ही समाज में समरसता नहीं आएगी। समाज को इसके लिए संस्कार, विचार, शिक्षा, कार्य कुशलता, रोजगार आदि तत्वों पर भी मेहनत करनी होगी।                        -इंविसंके, नई दिल्ली     

 'संतानों को जोड़ें संस्कार भारती से'

संस्कार भारती, बाड़मेर ने गत दिनों संस्था के 35 वर्ष पूर्ण होने पर  स्थानीय चारभुजा मन्दिर के पास, आजाद चौक में स्थापना दिवस मनाया। इस अवसर पर संस्कार भारती के जिला अध्यक्ष रतन लाल अवस्थी  एवं मुख्य अतिथि के रूप में समाजसेवी श्री मोहन लाल मेहता उपस्थित रहे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री अवस्थी ने कहा कि हर मनुष्य में कला होती है, आवश्यकता है उसे निखारने की। संस्कार भारती ऐसा मंच उपलब्ध कराती है, जहां कला को निखारा जाता है। उन्होंने  लोगों से अनुरोध किया कि वे अपनी संतानों को संस्कार भारती से जोड़ें। जिला महामंत्री श्री चन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि भाऊराव देवरस और राजमाता विजियाराजे सिंधिया की उपस्थिति में 11 जनवरी,1981 को लखनऊ  में संस्कार भारती की स्थापना की गई थी तो वहीं बाड़मेर में वर्ष 1994 में शाखा का गठन किया गया था। भारत विकास परिषद् के सचिव किशोर कुमार शर्मा ने बताया कि यह वही आजाद चौक है, जहां 1947 में प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री गोवर्धन सिंह ने कहा कि संस्कार भारती कलाकारों के लिये उचित मंच है। वे स्वयं भी संस्कार भारती के मंच से ही राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में पहुंचे थे।
कार्यक्रम में छोटे बालक-बालिकाओं द्वारा स्वतंत्रता समर के योद्धा शहीद भगत सिंह, लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती आदि की वेशभूषा में रंगारंग एवं आकर्षक प्रस्तुतियां दी गईं।     – प्रतिनिधि
 

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