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जयपुर साहित्य उत्सव में इस बार संस्कृत, पुराण, रामायण, वीर हनुमान भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर भी बहुत ही सार्थक चर्चा हुई। एक विदेशी विद्वान ने तो यहां तक कहा कि हनुमान को ही पूरी दुनिया में पूजा जाता है। कुछ विद्वानों ने भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने पर भी जोर दिया
डॉ. ईश्वर बैरागी
जयपुर में संपन्न अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव पिछले वषार्ें की भांति इस बार भी सुर्खियों में रहा। उत्सव में देश-विदेश के ख्यातिनाम लेखकों और बुद्धिजीवियों ने भारतीय विचार के साथ ही अन्य विचारों पर मंथन किया। उत्सव में संस्कृत भाषा पर पांच सत्र हुए। हनुमान और पुराणों पर चर्चा हुई। शिक्षा का भारतीयकरण, महाभारत और रामायण को विद्यालयों में पढ़ाने जैसे मुद्दे भी उठे। देश में समान नागरिक संहिता और इस्लामिक कट्टरवाद जैसे विषयों पर भी वक्ताओं ने बेबाकी से अपनी राय रखी। पूरे साहित्य उत्सव का एक केन्द्र-बिन्दु हिन्दू विचार भी रहा।
पांच दिन तक चलने वाले साहित्य के महाकुंभ में इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवेश को लेकर साहित्य प्रेमियों में जबरदस्त उत्साह दिखा। साहित्य के मंच से संघ ने पहली बार अपनी मान्यताओं को रखा और श्रोताओं के तमाम प्रश्नों का खुलकर जवाब दिया। ये वही प्रश्न थे, जिनको लेकर संघ विरोधी हमेशा से ही भ्रांतियां फैलाते आए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ खुले मंच पर चर्चा की। दोनों ने हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, सहिष्णुता, असहिष्णुता, वर्ण व्यवस्था, धर्म, भारतीय शिक्षा पद्धति, समान नागरिक संहिता, आरक्षण जैसे विषयों पर संघ का मत रखा। साथ ही केरल जैसे राज्य में कम्युनिस्ट आतंक पर भी अपनी बात रखी। जाने-माने लेखक और उपन्यासकार नरेंद्र कोहली ने आलोचकों के उन्हें लेखक नहीं मानने पर यहां तक कहना पड़ा कि अगर मैं कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता लेता तो आज सबसे बड़ा उपन्यासकार होता लेकिन मैंने सदस्यता नहीं ली। लेखक होने के लिए कोई पंथी होना जरूरी नहीं। आलोचकों ने मेरी साहित्यिक हत्या का प्रयास किया, लेकिन मेरे पाठकों को नहीं रोक सके।
शिक्षा के भारतीयकरण पर चर्चा
साहित्य के मंच से देश में शिक्षा का भारतीयकरण और विद्यालयों में रामायण और महाभारत पढ़ाने की बात पुरजोर ढंग से उठी। श्री दत्तात्रेय होसबाले और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने शिक्षा के भारतीयकरण की बात कही।
श्री होसबाले ने कहा कि देश में वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारत का विकृत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। यह सब नेहरू युग से चल रहा है। वास्तव में भारत में पढ़ाए जाने वाले इतिहास और शिक्षा प्रणाली में बदलाव की महती आवश्यकता है। शिक्षा मानव निर्माण और चरित्र निर्माण करने वाली होनी चाहिए। धर्म को कक्षाओं से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए। शिक्षा भारतीय मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। जो इतिहास पढ़ाया जा रहा है उससे भारत की युवा पीढ़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना विशिष्ट स्थान नहीं बना सकती। इतिहास एवं शिक्षा प्रणाली में बदलाव की मांग केवल संघ ही नहीं, आजादी के बाद से कई लोगों ने की है। इसके लिए कई आयोग बने हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली हमारे राष्ट्र की मान्यताओं और हमारे इतिहास के अनुरूप होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने शिक्षा एवं मीडिया में अपना दबदबा बनाए रखा और दूसरे लोगों को अपना पक्ष नहीं रखने दिया। स्कूली छात्रों को आर्य आक्रमण का सिद्धांत पढ़ाया जा रहा है, जबकि इस बात को कई विद्वान गहन शोधों के बाद सिद्ध कर चुके हैं कि आर्य भारत के ही थे।
उत्सव में कांग्रेस नेता शशि थरूर का वैचारिक घुमाव देखने को मिला। उन्होंने विद्यालयों में बच्चों को रामायण और महाभारत पढ़ाने की बात कही। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल से चली आ रही शिक्षा के साथ बच्चों को भारतीय संस्कृति और साहित्य की शिक्षा भी देनी होगी। अंग्रेजों ने शिक्षा के माध्यम से हमारे दिमाग पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन हमें अपनी पुरातन सभ्यता को नहीं भूलनी चाहिए। ब्रिटिश लोगों ने अपने फायदे के लिए भारत का उपयोग किया और उनका ध्यान समाज को संस्कारित करने की बजाय पैसा बनाने में ज्यादा रहा। ईस्ट इंडिया कंपनी को पता था कि भारत को गुलाम बनाने का सबसे अच्छा तरीका इसके व्यापार पर नियंत्रण करना है। भारत कपड़े का सबसे बड़ा निर्यातक था। कंपनी ने मुर्शिदाबाद और ढाका की मिलें बर्बाद कर और बुनकरों के कोष में कटौती कर उसकी हालत ऐसी कर दी कि वे इंग्लैंड से कपड़े मंगाने लगे।
समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता पर श्री दत्तात्रेय होसबाले ने अपना पक्ष रखा। वहीं एक अन्य सत्र में बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इसे मुस्लिम महिलाओं के लिए जरूरी बताया।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के अनुसार लागू होनी चाहिए। अलग-अलग मत-पंथों की कुछ बातों का सम्मान करते हुए नागरिक संहिता की अधिकांश बड़ी बातों को सामान्य रूप में लागू किया जाना चाहिए। नीति निर्देशक तत्वों को लागू करना केंद्र सरकार का काम है। अगर देश की जनता के मन में है तो इस दिशा में प्रयास होने चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है। अगर केंद्र इन निर्देशों को लागू करता है तो समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर संघ भी सरकार का सहयोग करेगा। तस्लीमा नसरीन ने कहा कि मुसलमान नहीं चाहते कि वे समान नागरिक संहिता का हिस्सा बनें, लेकिन महिलाओं के हक के लिए इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है।
संस्कृत, पुराण और हनुमान
साहित्योत्सव में नामी अर्थशास्त्री और लेखक विवेक देब्रॉय, प्रोफेसर पुष्पेश पंत और भारत पर अध्ययन करने वाले जिम मेलिंसन ने पुराणों पर चर्चा की। जिम ने 'पुराण' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि पुराण का सामान्य अर्थ पुराना और साहित्यिक अर्थ पुराना इतिहास है। उन्होंने पुराणों की कई श्रेणियां और पांच लक्षण भी बताए।
अर्थशास्त्री विवेक देब्रॉय ने कहा कि हम रोजमर्रा के कायोंर् में कई ऐसे काम कर रहे हैं जो पुराणों से ही लिए गए हैं और जिनके बारे में हम जानते भी नहीं हैं। रोज घरों में पढ़ा जाने वाला चंडी पुराण मार्कण्डेय पुराण का ही भाग है। अंतिम संस्कार की प्रथा गरुड़ पुराण से ली गई है।
देब्रॉय ने कहा कि एक भाषा के तौर पर संस्कृत अब काफी लोकप्रिय हो रही है और लोग इसके इस्तेमाल और अहमियत के बारे में समझने लगे हैं। 35 साल की उम्र में संस्कृत पढ़ना शुरू किया और फिर उसमें दिलचस्पी बढ़ती गई। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे कम उम्र में ही संस्कृत पढ़ना शुरू कर दें।
पुष्पेश पंत ने पुराणों के बारे आम धारणा की बात करते हुए बताया कि आम जन में इतिहास और मिथकों की सीमा खत्म हो जाती है, और वे हर चीज को पुराण मान लेते हैं।
साहित्योत्सव में हनुमान के वास्तविक स्वरूप को लेकर भी मंथन हुआ। हनुमान पर 16 साल तक शोध और उसके बाद रामचरितमानस का अनुवाद कर रहे विदेशी लेखक फिलिप ए लुटजेंडर्फ ने कहा कि हनुमान को ही पूरी दुनिया में पूजा जाता है। उन्होंने हनुमान पर 'द क्रोनोलिसिस ऑफ हनुमान' पुस्तक भी लिखी है। इस सत्र में संन्यासी शुभा विलास, फिलिप और अर्शिया सत्तार ने हनुमान पर चर्चा की।
साहित्य प्रेमियों ने लगाई डुबकी
उत्सव में लोग साहित्य की अलग-अलग विधाओं से रूबरू हुए। उत्सव की शुरुआत गुलजार के मधुर गीतों से हुई। दुनिया को अपना मुरीद बना चुके जाने-माने साहित्यकार आकर्षण का केंद्र रहे, उन्होंने पुस्तकों के बारे मंच से खुलकर चर्चा की। इतिहास के पन्ने पलटे और भविष्य में होने वाले खतरों से भी आगाह किया। साहित्य और सिनेमा को लेकर भी चर्चाएं चलीं। ज्वलंत मुद्दों पर बहस भी साहित्य उत्सव में दिखी। महाकुंभ में गोता लगाने वाले साहित्य प्रेमियों को एक बार फिर साहित्य की ताजगी का एहसास हुआ।
अभिनेता ऋषि कपूर अपने अंदाज में नेहरू-गांधी परिवार को लेकर सवाल उठाए। सहित्य की महफिल में मंच से ऐसे बोल भी बोले गए जो कुछ लोगों को कड़वे लगे। आरक्षण, रामायण, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, जातिवाद, वामपंथ, आतंकवाद, स्त्री विमर्श जैसे कई विषयों पर लेखकों ने अपना नजरिया स्पष्ट किया। महोत्सव ऐसा मनमोहक स्थान बना कि जहां नई पीढ़ी ने सेल्फी के जरिए खूब लुफ्त उठाया। नोटबंदी और अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे भी छाए रहे। स्त्री विमर्श के दौरान समाज में नारी की स्थिति से लेकर सुरक्षा तक अलग-अलग शख्सियतों ने अपनी राय रखी। तस्लीमा नसरीन और सईद नकवी ने इस्लामिक कट्टरवादियों को आड़े हाथों लिया।
वामपंथियों ने शिक्षा एवं मीडिया में अपना दबदबा बनाए रखा और दूसरे लोगों को अपना पक्ष नहीं रखने दिया। स्कूली छात्रों को आर्य आक्रमण का सिद्धांत पढ़ाया जा रहा है, जबकि इस बात को कई विद्वान गहन शोधों के बाद सिद्ध कर चुके हैं कि आर्य भारत के ही थे। -दत्तात्रेय होसबाले, सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
ब्रिटिश काल से चली आ रही शिक्षा के साथ बच्चों को भारतीय संस्कृति और साहित्य की शिक्षा भी देनी होगी। अंग्रेजों ने शिक्षा के माध्यम से हमारे दिमाग पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन हमें अपनी पुरातन सभ्यता को नहीं भूलनी चाहिए। ब्रिटिश लोगों ने अपने फायदे के लिए भारत का उपयोग किया और उनका ध्यान समाज को संस्कारित करने की बजाय पैसा बनाने में ज्यादा रहा।
– शशि थरूर, कांग्रेसी नेता
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