विदेश नीति - दोस्ती की बुनियाद होगी मजबूत
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विदेश नीति – दोस्ती की बुनियाद होगी मजबूत

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Feb 6, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Feb 2017 15:34:45

भारत-अमेरिका संबंध अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद किस डगर चलेंगे, इस पर नजर डालने पर संभावना यही दिखती है कि ये और मजबूत ही होंगे। उम्मीद है कि यह रिश्ता हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सशक्त और व्यापक उपस्थिति दर्ज कराने में  उसकी मदद करने की अमेरिका की वर्षों की संजोई इच्छा के सहारे तेजी से आगे बढ़ेगा। व्हाइट हाउस और ट्रंप प्रशासन के विभिन्न खेमों से उभरते शुुरुआती संकेतों से साफ दिखता है कि रक्षा और अर्थव्यवस्था इस रणनीतिक संबंध के दो स्तंभ होंगे। जलवायु परिवर्तन का मसला जो पिछले राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक था, वाशिंगटन डीसी की नई सरकार के दौरान अब ठंडे बस्ते में जा सकता है।  
     20 जनवरी को अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद विभिन्न कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करने में व्यस्त ट्रंप को उनके समर्थक वादे का पक्का इंसान मानते हैं। भारत-अमेरिका संबंधों की बात पर उनके समर्थक तुरंत 1 अक्तूबर, 2015 को  न्यू जर्सी के मेडिसन हॉल में रैली के दौरान दिए उनके वादे की ओर इशारा करते हैं कि भारत को व्हाइट हाउस में उनके रूप में सबसे अच्छा दोस्त मिल जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के पांच शीर्ष नेताओं में से एक हैं जिनसे ट्रंप ने फोन पर बात की है। प्रतीकात्मक या संदर्भों के तौर पर यह बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि ट्रंप ने अमेरिका के कई अन्य सहयोगी देशों और प्रमुख वैश्विक शक्तियों से पहले मोदी से बात करने का फैसला किया, जिनके आर्थिक सुधारों और नौकरशाही के पुनर्गठन के कदम की न्यूजर्सी रैली में उन्होंने दिल खोलकर प्रशंसा की थी।
मोदी और ट्रंप की फोन पर बातचीत ने माहौल का रुख तय कर दिया है। दोनों नेताओं  के व्यक्तित्व और कार्यशैली को देखते हुए उम्मीद है कि वे संबंधों को व्यावहारिक रखते हुए आपसी संवाद पर ज्यादा निर्भर करेंगे, जो पहले कभी नहीं हुआ और इस तरह दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच दोस्ती के नए आयाम विकसित होंगे। व्हाइट हाउस के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने इस तथ्य पर जोर दिया था कि दुनिया भर में चुनौतियों का समाधान करने की राह में अमेरिका भारत को एक सच्चा दोस्त और भागीदार मानता है। दोनों ने अर्थव्यवस्था और रक्षा जैसे व्यापक क्षेत्रों में अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के अनुकूल अवसरों पर चर्चा की,  मोदी और ट्रंप ने दक्षिण और मध्य एशिया क्षेत्र में सुरक्षा पर भी बातचीत की।
राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने यह संकल्प लिया है कि अमेरिका और भारत आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे। ट्रंप ने मोदी को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया है। अभी तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अधिकारियों के अनुसार इन गर्मियों की शुरुआत के दौरान कोई तारीख तय होने की संभावना है।
इधर व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव शॉन स्पाइसर ने बताया कि दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत बने रहेंगे और ये मौजूदा स्थिति से  आगे ही बढ़ेंगे। जानकार सूत्रों का कहना है कि व्हाइट हाउस से जुड़े कुछ वरिष्ठ अधिकारी बुश के जमाने में भी भारत-अमेरिका रिश्तों पर काम कर रहे थे और आज नई दिल्ली के साथ संबंध जोड़ने की भरपूर वकालत कर रहे हैं।
चीन, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर पर नजर रखते हुए ट्रंप प्रशासन के भारत के साथ रक्षा संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद जताई जा रही है। हैरानी नहीं होगी अगर आगामी महीनों में शुरुआती रक्षा सौदों की खरीद में आधुनिक खोजी ड्रोन शामिल हों जो 24 घंटे उड़ सकते हैं और आकाश से जमीन पर मौजूद फुटबॉल जितने आकार की चीजों की तस्वीरें खींच सकते हैं। अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि सैन्य रूप से मजबूत लोकतांत्रिक भारत अमेरिका के राष्ट्रीय हित में है। पिछले ओबामा प्रशासन के अधिकारियों ने इसे रणनीतिक हितों का मेल कहा था, हालांकि, मोदी सरकार की ओर से उच्च तकनीक के रक्षा सामान की मांग को पूरा करने में उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं जताई थी। ट्रंप प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह बहुपक्षीय समझौतों के खिलाफ है, उसने इस सप्ताह ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के 12 सदस्य देशों को पत्र लिखा है कि वह व्यापार समझौते से खुद को अलग कर रहा है।
अमेरिका अब कथित तौर पर ब्रिटेन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता करना चाहता है। जानकार सूत्रों का कहना है कि अमेरिका और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा चुका है। ट्रंप प्रशासन एक और द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए भारत से पेशकश करेगा। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि यह किस आकार और रूप में सामने आएगा। इतना लेकिन आने वाले समय में दोनों के बीच जैसे-जैसे द्विपक्षीय व्यापार का सिलसिला आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे चंद प्रमुख मुद्दों पर मतभेदों के उभरने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता, जिनमें सबसे ऊपर है एच-1बी वीसा, सौर, कृषि और सामाजिक सुरक्षा। पर ऐसा भी नहीं होगा कि ये मुद्दे संबंधों में दरार डालें।  
ट्रंप प्रशासन में कई लोगों का मानना है कि एच-1बी वीसा दशकों पुराना मुद्दा है और उस पर फिर से विचार करके उसमें बदलाव की जरूरत है। गौरतलब है कि नई वीसा व्यवस्था में सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति को आकर्षित करने में सक्षम होना चाहिए जो किसी भी आकार या रूप में सिर्फ भारतीय प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को ही मदद पहुंचाएगा।  
अमेरिकी ईसाई मिशनरियों और पांथिक संगठनों के भारत मंे किए जा रहे काम ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिकी संबंधों में टकराव की वजह बन सकते हैं। इंवांजेलिकल समूहों ने इस मोर्चे पर मोदी सरकार पर दबाव डालने के लिए व्हाइट हाउस और रिपब्लिकन सांसदों को पहले से ही संकेत देना शुरू कर दिया है। इन समूहों ने, जो ट्रंप के चुनाव अभियान को भरपूर समर्थन देने वालों में से एक हैं, आरोप लगाया है कि भारत में भूमि और आयकर नियमों का अमल और प्रवर्तन मुख्य रूप से यहां काम करे रहे ईसाई संगठनों को निशाना बनाने के लिए है।
 जलवायु परिवर्तन
ओबामा प्रशासन के तहत भारत-अमेरिका संबंधों के प्रमुख स्तंभों में से एक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के ट्रंप सरकार के दौरान उभर रहे द्विपक्षीय संबंधों में हाशिए पर पड़े रहने की संभावना है। मोदी और ओबामा, दोनों ने पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए अपना कीमती समय और ऊर्जा खर्च की है। अपने वक्तव्य में ओबामा ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते की सफलता का श्रेय मोदी को दिया था। पर राष्ट्रपति ट्रंप के लिए यह मुद्दा खास अहमियत नहीं रखता और संभव है कि यह चर्चा में कहीं पीछे चला जाए।
अभी ट्रंप को व्हाइट हाउस में प्रवेश किए चंद दिन ही हुए हैं, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट के संबंध में उनका रुख क्या होगा। ओबामा प्रशासन मुख्य रूप से चीनी प्रतिरोध की वजह से एनएसजी के मोर्चे पर अपने प्रयास में विफल रहा, लेकिन उनके कार्यकाल में सुरक्षा परिषद में सुधार के रास्ते में अमेरिका की कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखी थी। ट्रंप खुद संयुक्त राष्ट्र के कामकाज की आलोचना करते रहे हैं और उन्होंने इसमें सुधार की जरूरत की ओर इशारा भी किया है।
ट्रंप के कुछ आलोचकों का मानना है कि उनके कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों का ढांचा मूलत: लेन-देन जैसा रहने वाला है। जबकि उनके समर्थकों का तर्क है कि यह एक कारोबार की तरह रहेगा जिसके केंद्र में  होेगा समयबद्ध तरीके से लक्ष्य निर्धारण और उसकी उपलब्धि के अनुसार परिणाम। इतिहासकार निश्चित रूप से आज से दस साल बाद ट्रंप सरकार के दौरान बनने  वाले संबंधों का विश्लेषण करेंगे, पर सभी शुरुआती संकेत भारत-अमेरिका संबंधों के एक नए सकारात्मक चरण की ओर इशारा करहे हैं। -न्यूयॉर्क से विशेष प्रतिनिधि

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