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लाल क्रांति का सपना पाले माओवादियों की नजरों में अब इंसान तो क्या, भगवान भी खटकने लगे हैं? धुर नक्सल प्रभावित इलाके दंतेवाड़ा की ढोलकल पहाड़ी पर स्थित 1,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन गणेश जी की मूर्ति को जिस तरह खंडित किया गया और प्रांरभिक जांच में जो संकेत मिले हैं, उनके मुताबिक जेहन में यही बड़ा सवाल उभरा है। हालांकि सरकार ने इसे अज्ञात तत्वों की हरकत करार दिया है, लेकिन बस्तर क्षेत्र के आईजी एस.आर. कल्लूरी ने साफ कहा कि यह हरकत नक्सलियों की है ताकि उनके ठिकानों पर किसी की नजर न पड़े। दंतेवाड़ा जिले के पुलिस अधीक्षक कमललोचन कश्यप ने कहा कि फरसपाल थाना क्षेत्र के अंतर्गत ढोलकल पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा समुद्र तल से 2,994 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, जिसे 1,000 फुट उंची दुर्गम पहाड़ी से गिराकर खंंडित कर दिया गया है। कश्यप ने बताया कि 26 जनवरी को गांव के कुछ लोग पहाड़ी पर गए थे तब उन्होंने देखा कि प्रतिमा अपनी जगह पर नहीं है। इसके बाद उन्होंने इसकी सूचना पुलिस को दी। यह प्रतिमा पुलिस को पहाड़ी के नीचे खंडित अवस्था में प्राप्त हुई।
ज्ञातव्य है कि जिस ढोलकल पहाड़ी पर यह प्रतिमा स्थित थी, उसका सिरा समुद्र तल से लगभग 3,000 फुट की ऊंचाई पर है। इस मूर्ति को संभवत: बस्तर के छिंदक नागवंशी राजाओं ने 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच में स्थापित करवाया था। यह प्रतिमा संभवत: साम्राज्य और जनता की रक्षा के लिए स्थापित की गई थी। उन्होंने कहा कि यह समूचा इलाका नक्सल प्रभावित है और यहां लोगों की बढ़ती आवाजाही से वे परेशान हो गए थे। उन्हें अपना अस्तित्व खतरे में दिखने लगा था और उनके छिपने के ठिकाने घटते जा रहे थे, इसलिए इस कृत्य को अंजाम दिया गया ।
उनके इस बयान की पुष्टि स्थानीय वनवासियों ने भी की है। उन्होंने बताया कि नक्सलियों के लिए बेहद सुरक्षित माने जाने वाले इस इलाके में दर्शनार्थियों, पर्यटकों एवं शासन-प्रशासन सहित गांव वालों की बढ़ती आवाजाही से स्थानीय लोगों को रोजगार के साधन सुलभ होने लगे थे। एक युवा ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक महीने पहले आठ-दस नक्सली उनके घर पर आ धमके थे तथा मंदिर तक पहुंचने वाले रास्ते को पेड़ काटकर बंद कर दिया था, लेकिन प्रतिदिन के आवागमन की समस्या को देखते हुए हमने उस रास्ते को साफ कर दिया था।
वनवासियों ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम और श्रीगणेश के बीच इसी क्षेत्र में द्वंद्व युद्ध हुआ था। युद्ध में अपने फरसे से गणेश जी के एक दांत को काट दिया था, फलस्वरूप वे एकदंत कहलाए। इसी कारण पहाड़ी के नीचे के क्षेत्र का नाम 'फरसपाल' पड़ा। पहाड़ी से गिरने से प्रतिमा कई टुकड़ों में हो गई थी। इन टुकड़ों को केमिकल से जोड़कर पुन: उसे स्थापित कर दी गई है। सरकार ने आशुतोष मिश्र और पुरातत्वविद् डॉ. अरुण कुमार शर्मा के साथ दो सदस्यीय जांच टीम गठित की है, जो इस मामले की जांच कर रही है। डॉ. शर्मा कहते हैं कि ऐसी कई प्रतिमाएं छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में खराब हो रही हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग के पास उनके रखरखाव की कोई योजना या बजट नहीं है। खंडित गणेश प्रतिमा के सामने ही दूसरे सिरे पर सूर्यदेव की प्रतिमा भी स्थित है।
वैसे नक्सलियों की इस कार्रवाई से स्थानीय लोग गुस्से में हैं। उप सरपंच मेडका हरकाम ने कहा, ''प्रतिमा हमारी आस्था का केंद्र थी। कड़ी मेहनत के बाद लोग इस पहाड़ी पर पहुंचते थे तथा गणेश चतुर्थी पर पूजा किया करते थे। नक्सलियों ने हमारी आस्था पर चोट कर ठीक नहीं किया है।'' इस घटना से लोगों में गुस्सा है और उनका गुस्सा तब ही शांत होगा जब इसके दोषियों को सजा मिलेगी। -अनिल द्विवेदी
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