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25 दिसंबर, 2016
आवरण कथा 'योगी योद्धा' में गुरु गोबिंद सिंह जी के बलिदान और संघर्ष की अनूठी गाथा प्रस्तुत की गई है। ऐसे लेख समाज को न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि इतिहास से परिचित कराते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी के शौर्य और पराक्रम को पढ़कर मन गदगद हो जाता है। नमन है ऐसे मां भारती के पुत्र को जिसने हिंदुओं के मान के आगे कभी अपना सिर नहीं झुकाया बल्कि उलटे अपमान करने वालों के सिर धड़ से अलग कर दिए।
—सौरभ मालवीय, विकासपुरी (नई दिल्ली)
ङ्म दशम् गुरु गोबिंद सिंह जी के त्यागमय जीवन को समर्पित पाञ्चजन्य का यह अंक समस्त हिंदू समाज और देशवासियों के लिए प्रेरणादायी है। श्री गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना करके हिंदू समाज को कर्मवीर बनाया और समाज और राष्ट्रहित के लिए सर्व समर्पण करना सिखाया। वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह का मूलमंत्र देकर उन्होंने सिक्ख सेना में शौर्य, साहस, वीरता और पराक्रम का बीज बोया। गुरु गोबिंद
सिंह एक ऐसे महापुरुष थे जो जीवनभर हिंदूधर्म की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे। ऐसे वीर महापुरुषों की याद से ही मन हर्षित हो जाता है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म आक्रांताओं से कैसे लड़ा जाए, उसके लिए न केवल गुरु गोबिंद सिंह को पढ़ना चाहिए बल्कि उनके बताए मार्गों का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने समाज को एक नई दिशा और ऊर्जा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाज में बंधुत्व की भावना का विकास कैसे हो, इसके लिए वे सतत प्रत्यत्नशील रहे। उनके बताए आदर्श मानव समाज के लिए लाभकारी हैं जिन पर चलकर वह अपना ही जीवन नहीं सुधार सकता बल्कि समस्त प्राणी जगत और समाज का जीवन सुधार सकता है।
—दीपा ठाकुर, भोपाल (म.प्र.)
ङ्म गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व अद्वितीय है। खालसा पंथ की स्थापना कर उन्होंने सिक्ख समाज को जगाया उसी का परिणाम है कि आज हिंदू सुरक्षित है। उनके जैसा नायक पूरी दुनिया में दूसरा कहीं और दिखाई नहीं देता। अपने समाज को कैसे जगाया जाता है और उसके मन में कैसे वीरता की भावना जगाई जाती है, इसे गुरु गोबिंद सिंह जी से सीखा जा सकता है।
—अनूप पंत, देहरादून (उत्तराखंड)
ङ्म कभी न डरने वाले और किसी भी परिस्थिति में डटकर मोर्चा लेने वाले का नाम गुरु गोबिंद सिंह है। उनका नाम लेते ही नसों में खून का संचार हो जाता है। उन्होंने हर आततायी का उसी की भाषा में जवाब दिया और अपने समाज की रक्षा की। उनका दिया संदेश-सवा लाख ते एक लड़ाऊं, चिडि़यों से मैं बाज तोड़ाऊं, तब मैं गुरु गोबिंद सिंह कहाऊं, आज भी हिंदू समाज के लिए किसी मंत्र से कम नहीं है।
—श्रीनिवास राठौर, मंदसौर (म.प्र.)
अद्वितीय विभूति
लेख 'राष्ट्र ही जिनके लिए देव था (25 दिसंबर, 2016)' अच्छा लगा। सार्वजनिक जीवन में शुचिता और आचरण की पवित्रता का अगर इतिहास लिखा जाए तो नानाजी देशमुख का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होगा। उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं उससे आज भी प्रेरणा मिलती है। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जो आन्दोलन चला उसमें सक्रियरूप से भाग लेकर नानाजी के इसे जन-जन तक पहुंचाया। समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहे। ऐसे कर्मयोगी को शत-शत नमन।
—रंजना सेठाना, बड़वाह (म.प्र.)
सफल राजनेता
रपट 'कौन भरेगा शून्य' में जयललिता के संघर्षपूर्ण जीवन को पढ़ा जा सकता है। तमिल राजनीति में अम्मा का कद और उनके चाहने वाले समर्थक शायद ही किसी और के हों। उन्हें एक सफल राजनेता के तौर पर याद किया जाता रहेगा। अपनी बेवाक छवि और निर्णायक व्यक्तित्व से उन्होंने कभी भी समझौता
नहीं किया।
—हरिओम जोशी, भिंड (म.प्र.)
शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियां अपार
लेख 'प्राण देकर की शिक्षा की रक्षा (25 दिसंबर, 2016)' प्रेरणादायी है। कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गोपालचंद्र सेन जैसे व्यक्तित्व बहुत ही कम होते हैं, जिन्होंने शिक्षा की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। समाज को उनके बारे में जानना चाहिए और सीखना चाहिए। हालांकि भारतीय समाज में शिक्षकों की छवि बदल रही है। 20वीं सदी में प्रेमचंद्र, शरत चंद्र, बंकिमचंद्र, रविंद्र नाथ टैगोर आदि ने अपनी रचनाओं में शिक्षकों को बहुत ही सकारात्मक रूप में चित्रित किया है। पहले के शिक्षक कर्मठ और निष्ठावान होने के साथ ही भावी पीढ़ी को मूल्यवान संदेश देते थे जिससे हमारे शाश्वत मूल्यों, न्याय, समानता, भाईचारा और सामाजिक सद्भाव को बेहतर बनाये रखने की प्रेरणा मिलती थी। लेकिन आज की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से व्यावसायिक रूप ले चुकी है। जल्द ही सरकार और समाज को मिलकर इसका हल ढूंढना होगा।
—रामप्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
राजनीतिक ड्रामे का कब होगा अंत?
रपट 'अखिलेश चेहरा या मोहरा' से स्पष्ट है कि समाजवादी सरकार की यह आपसी लड़ाई प्रदेश की जनता को बरगलाने के लिए हो रही है। इस लड़ाई से राज्य की जनता का ध्यान बंट गया है और चुनाव के समय वह जिस विकास के मुदद्े पर सपा और उसके नेताओं से सवाल पूछने वाली थी अब सवाल गर्त में समा गए हैं। असल में मुलायम सिंह राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं वे अखिलेश के चेहरे को इतना निष्पक्ष और बड़ा बना देना चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता उसे ही पसंद करे और उनके बिछाए हुए जाल में फंस जाए। चुनाव के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर यह लड़ाई ऐसे ही जारी रहेगा या फिर महज एक ड्रामा बनाकर राज्य की जनता को पागल बनाना बाप-बेटे का उद्देश्य था।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म अखिलेश और मुलायम सिंह बखूबी जानते हैं कि इस बार का चुनाव विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर होने वाला है। जनता पहले की तुलना में काफी जागरूक हो चुकी है। पांच साल में उन्होंने प्रदेश का विकास क्या किया है, राज्य की जनता जानती है। रही भ्रष्टाचार की बात तो घर में ही भ्रष्टाचारियों की एक फौज जमा है, बाहर की बात तो दीगर। पूरे पांच साल कई मंत्रियों ने जमकर भ्रष्टाचार और लूट-घसोट करने का काम किया है। खनन से लेकर सरकारी नौकरियों तक में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। ऐसे में पिता-पुत्र जानते हैं कि कोई नया पैंतरा ही उनके नाव को पार लगा सकता है और प्रदेश की भोली-भाली जनता को कुनबे की लड़ाई में उलझाया जा सकता है।
—सीमा वर्मा, गया (बिहार)
राष्ट्र सेवा की ओर बढ़ते कदम
'90 बरस राष्ट्र सेवा के (11 दिसंबर, 2016)' संग्रहणीय अंक में राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की यात्रा को बड़े ही अच्छी तरह से गूंथा गया है। डॉ. हेडगेवार द्वारा रोपा गया बिरवा आज इतना विशाल हो गया है उसकी छांव में समस्त हिंदू समाज अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है। संघ से जुड़ने में आज के समय लोगों को गर्व की अनुभूति होती है। इस अनुभूति का प्रमुख कारण राष्ट्र
सेवा है। संघ रात-दिन राष्ट्र सेवा में तल्लीन रहने वाला संगठन है। पूरे विश्व में
शायद ही और कोई संगठन पूरे विश्व में जो स्वयंसेवकों की संख्या के साथ राष्ट्र सेवा में लगा हुआ हो।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)
ङ्म 90 बरस की यात्रा के बाद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ युवा है। हाल ही में युवाओं का संघ से अत्यधिक जुड़ाव हुआ है और जो इसके विरोधी थे, या किसी न किसी कारण से पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे उन्होंने भी शाखा में आकर इसे समझने का प्रयास किया है। उसका परिणाम यह हुआ है कि जो विरोधी थे उनके मन में परिवर्तन आया है और उनका नजरिया बदला है। इसलिए जो भी संघ के विरोधी हैं, उन्हें एक बार संघ में आकर यहां की कार्यपद्धति को समझना होगा और उन्हें अगर अच्छा नहीं लगता है तो वह बाहर जाने के लिए
स्वतंत्र हैं।
—दीपक कश्यप, चंडीगढ़ (हरियाणा)
ङ्म संघ सामाजिक समस्याओं के लिए शुरू से ही रचनात्मक कार्य करता रहा है। इस पर दो बार प्रतिबंध भी लगा, लेकिन वह अपने कार्य और ध्येय से कभीभी नहीं डिगा। यह तो ओछी मानसिकता और कमजोर लोगों का भ्रमजाल है जो समय-समय पर संघ में खोट और बुराइयों को दिखाते रहते हैं। संघ का स्पष्ट ध्येय शायद उन्हें पता नहीं है। संघ राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने के लिए लगा हुआ है। यही उसका कार्य और ध्येय है।
—सुचित्रा खन्ना, लखनऊ (उ.प्र.)
राष्ट्रहित के मुद्दों पर विरोध क्यों?
रपट 'कतार के पार (27 नवंबर,2016)' से एक बात स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काले धन पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी के कदम से भ्रष्टाचारियों में खलबली मचती दिखाई दी। यहां तक कि कुछ भ्रष्ट दलों द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ बेबुनियाद बातें फैलाईं गईं और यह क्रम अभी जारी है। लेकिन नोटबंदी के बाद से कुछ चेहरे तो बुझे दिखाई दिए। ममता और माया की नोटबंदी के बाद की बदजुबानी उनके चाल-और चरित्र को बताने के लिए काफी थी। जनता ने उनकी सच को जाना और जितना ईमानदार बनने का वे प्रयास चलाकी से करती दिखाईं दीं, वह नहीं हो सका। आज राजनीति का यह स्वरूप हो गया है कि कुछ भी अच्छा काम करो लेकिन विपक्ष को केवल और केवल उसका विरोध करना है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। कुछ दलों और नेताओं का एक ही मंतव्य रहता है कि कैसे भी करके सत्ता पर अधिकार जमा लो, लूट-कसोट करके धन अर्जित कर लो। इसके बाद सत्ता में भागीदारी बढ़ाकर अपने भाई, बेटों और भतीजों को इसका हिस्सा बनाओ। जबकि चुनाव के समय यही नेता जनता से सेवा का वादा करके आते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद वे सब भुला देते हैं। लगभग 6 दशक तक देश में कांग्रेस ने शासन किया। लेकिन उसके काम और उपलब्धियों पर नजर डालें तो सब नगण्य ही दिखाई देता है। और भी दल इसमें पीछे नहीं हैं। यानी जिसे सत्ता हाथ लगी उसने देश को लूटा। अब एक ऐसा प्रधानमंत्री सत्तासीन है जिसके मन में देश को विश्व गुरु बनाने और तमाम बुराइयों को जड़मूल से समाप्त करने का इच्छुक है तो सेकुलर दल उसमें रोड़ा बने हुए हैं। लेकिन ऐसे लोगों के रोड़ा बनने से प्रधानमंत्री रुकने वाले नहीं हैं। देश की जनता उनके साथ है।
—अभिमन्यु कुमार खुल्लर, 22, नगर निगम क्वार्टर्स, जीवाजीगंज, लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.)
कहां हम जाएंगे
रिश्तेदारों के लिए, टिकट न मांगे कोय
मोदी का संदेश सुन, दिल में धुक-धुक होय।
दिल में धुक-धुक होय, कहां फिर हम जाएंगे
अपनी पगड़ी किसके सिर पर पहनाएंगे?
कह 'प्रशांत' जो इसे समझते केवल धंधा
ऐसों ने ही राजनीति को कीन्हा गंदा।।
— प्रशांत
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