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दुनिया के 150 से अधिक देशों में बसे 30 लाख से अधिक भारतवंशी इन देशों में सबसे शिक्षित और सभ्य समुदाय के नाते जाने जाते हैं। वे सब वहां के उद्योगों, शिक्षा, राजनीति, नौकरशाही, सेना, आईटी, सामाजिक कार्यों आदि क्षेत्रों में सम्मानित स्थान पाए हुए हैं और अपने तईं भरपूर योगदान दे रहे हैं। वहां की सरकारें भी उनकी तारीफ करते नहीं अघाती। इतना ही नहीं, वे कई देशों में राजनीति के शिखर पर भी आसीन रहे हैं, और आज भी हैं। चाहे वे अमेरिका में हों, आस्टे्रलिया, यू.के. या फिर कैरेबियाई देशों में, सबके बीच एक चीज समान है, एक सूत्र है जो सबको बांधे हुए है और वह सूत्र है भारत से उनका पैतृक नाता।
तो इसी पैतृक नाते का उत्सव मनाने, उन्हें यह सुनिश्चित कराने कि भारत उन्हें न भूला है, न भूलेगा और वे भी भारत को अपनी मातृभूमि के नाते आगे बढ़ाने में जितना बन सके, योगदान दें, 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। और इसके पीछे ऐसी आत्मीय सोच और किसी की नहीं, श्री अटल बिहारी वाजपेयी की थी। प्रधानमंत्री के नाते उनके कार्यकाल में ही 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई थी।
लेकिन 9 जनवरी ही क्यों? वह इसलिए क्योंकि इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टरी छोड़कर भारतीय वेश धोती-बंडी-पगड़ी पहन भारत लौटे थे। तो कई पीढि़यों पहले गिरमिटिया मजदूरी के रूप में फिजी, सूरीनाम, मॉरीशस, त्रिनिदाद आदि स्थानों पर गए भारतवंशियों की वर्तमान पीढ़ी इसीलिए भारत को अपनी मां मानकर अपनी उस ऊर्जा को 'रीचार्ज' करने इस मौके पर आती है। और इसीलिए सूरीनाम के नौजवान उप राष्ट्रपति मिशेल अश्विन अधिन गत 7-9 जनवरी को बंेगलूरू में संपन्न हुए प्रवासी भारतीय दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होकर आनंद का अनुभव कर रहे थे। 7 जनवरी को उन्हीं के हाथों युवा प्रवासी उत्सव का उद्घाटन हुआ।
इस साल यह खास आयोजन युवा प्रवासी भारतीयों की भारत में आए बदलाव में भूमिका दर्शाने का मौका तो था ही, यह यहां के युवा उद्यमियों और उनके बीच मेल-मिलाप बढ़ाने का साझा मंच भी था। इस तीन दिनी समारोह में 6000 से ज्यादा गर्वीले भारतवंशी
शामिल हुए।
8 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका औपचारिक उद्घाटन करते हुए भारतवंशियों के गर्व को यह कहकर और बढ़ा दिया कि ''देश के विकास की यात्रा में प्रवासी भारतीय हमारे अहम साझेदार हैं।'' मोदी के ये शब्द प्रवासी भारतीय उद्यमियों को बहुत भाए कि, ''मेरे लिए एफडीआई का मतलब सिर्फ फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट नहीं है, मेरे लिए तो इनका मतलब फर्स्ट डेवेलप इंडिया भी है। ''
इसमें संदेह नहीं कि भारत की आर्थिक प्रगति में प्रवासी भारतीयों की उल्लेखनीय भूमिका है। तभी तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इनकी तरफ से होने वाला निवेश 69 अरब डॉलर तक पहंुच गया है। और उस वक्त तो देर तक तालियां बजीं जब मोदी ने कहा, ''हम पासपोर्ट का कलर नहीं, खून का रिश्ता देखते हैं।'' उन्होंने बल देकर कहा कि प्रवासी भारतीय भारतीय संस्कृति, सिद्धांतों और मूल्यों का बेहतर प्रतिनिधित्व करते हैं। यह बात सही है। त्रिनिदाद-टौबैगो हो या फिजी, मॉरीशस या सूरीनाम, वहां के अधिकांश भारतवंशियों की जड़ें भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं इसलिए आज भी उनके घरों में भारतीय तीज-त्योहारों का आनंद देखते ही बनता है। वे आज भी बेहिचक रामायण की चौपाइयां गाते हैं, सत्यनारायण की कथा करते हैं।
उद्घाटन और समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के नाते मौजूद पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा समारोह में विशेष रूप से प्रफुल्लित मन से शामिल हुए थे। इस बहाने उन्हें गोवा में अपने पुरखों के घर जाने का मौका जो मिला था। उनके पिता ओलांदो डिकोस्टा एक उपन्यासकार थे। गोवा पर पुर्तगालियों के शासन के वक्त ओलांदे युवा थे।
समापन सत्र में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले 30 प्रवासी भारतीयों को प्रवासी भारतीय सम्मान देते हुए कहा कि आज हम यहां उनकी सफलता और उपलब्धियों का आनंद मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। राष्ट्रपति ने सराहनापूर्ण शब्दों में कहा कि प्रवासी भारतीय जहां बसे हैं वहां सबके साथ घुल-मिलकर रहते हुए भी अपनी पहचान बनाए रखते हैं। उन्होंने अपने समर्पण और कड़ी मेहनत से अपने देशों के विकास में योगदान दिया है। वसुधैव कुटुंबकम् का इससे सुंदर उदाहरण और क्या हो सकता है।
समारोह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, विदेश राज्यमंत्री जनरल वी. के. सिंह और एम. जे. अकबर, केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार, सदानंद गौडा और विजय गोयल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, मंत्री आर. वी. देशपांडे, प्रियंका खड्गे विशेष रूप से उपस्थित रहे।
-आलोक गोस्वामी
30 को प्रवासी भारतीय सम्मान
सम्मेलन के आखिरी दिन यानी 9 जनवरी को राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अपने अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले 30 प्रवासियों को प्रवासी भारतीय सम्मान से अलंकृत किया। यह सम्मान पाने वाले प्रमुख जन हैं-
अंतोनियो लुई सांतोस दा कोस्टा (प्रधानमंत्री, पुर्तगाल-जनसेवा के क्षेत्र में योगदान के लिए), निशा देसाई बिस्वाल (सहायक विदेश सचिव, निवर्तमान ओबामा प्रशासन, अमेरिका), हरिबाबू बिन्दल (अमेरिका-पर्यावरण अभियांत्रिकी में योगदान), सम्पत कुमार शिवांगी (अमेरिका-सामुदायिक नेतृत्व), महेश मेहता (अमेरिका-समाज सेवा), रमेश शाह (अमेरिका-समाज सेवा), भारत हरिदास बरई (अमेरिका-समाज सेवा), नीना गिल (यू.के.-जनसेवा), प्रीति पटेल (यू.के.-जनसेवा), वासुदेव श्राफ (यूएई), इंडियन सोशल एंड कल्चरल सेंटर (यूएई), राजशेखरन पिल्लै (बहरीन-व्यवसाय), मुकुन्द भीखूभाई (कनाडा-व्यवसाय), सुशील कुमार सर्राफ (थाईलैंड-व्यवसाय), लाएल एंसन (इज्राएल-मेडिसिनल साइंस), करानी बलरामन (इस्राएल-मेडिसिनल साइंस),संदीप कुमार टैगोर (जापान-कला-संस्कृति), मुनियांडी थंबिराजा (मलेशिया), जीनत मुसर्रफ जाफरी (सऊदी अरब), प्रवीण कुमार जूनोथ (मारीशस), विंस्टन चंद्रभान (त्रिनिदाद) और विनोद चंद्र पटेल (फिजी)। इनके अलावा कुछ संस्थाओं को इस सम्मान से सम्मानित किया गया।
अब पीआइओ नहीं, ओसीआइ कार्ड
भारत सरकार की ओर से प्रवासी भारतीयों को दिए गए पीआइओ कार्ड अब ओसीआइ कार्ड में बदले जो रहे हैं। यानी अब वे पर्ससन ऑफ इंडियन ओरिजिन नहीं, ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया माने जाएंगे। समारोह में आए कई प्रवासी भारतीयों को यह बदलाव सुखद लगा। वे बोले-अब नामकरण सही हुआ है, क्योंकि इससे भारत के साथ ज्यादा जुड़ाव महसूस होता है।
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