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नर्मदा पूज्य है, असंख्य जन के लिए जीवनदायिनी है। हमारे ग्रंथों में इसका प्रचुर वर्णन है। नर्मदा के महात्म्य को समर्पित है 'नमामि देवी नर्मदे' प्रकल्प।
डॉ. जितेंद्र जामदार
हमारी नदियां हमारी जीवन रेखा हैं, हमारी संस्कृति का प्रवाह हैं और हमारी आस्था भी हैं। परंतु आजादी के बाद इनकी ओर कितना दुर्लक्ष्य किया गया, इसकी कहानी इन नदियों की दुर्दशा से खुद ही बयान हो जाती है। सौभाग्य से नर्मदा की दशा गंगा व यमुना की तुलना में काफी बेहतर है और यदि आज परिश्रम और श्रद्धापूर्वक काम किया जाए तो पूर्णत: निर्मल नर्मदा का स्वप्न साकार हो सकता है। यह काम जाग्रत जनता और सचेत सरकार की युति ही पूरा कर सकती है। नर्मदा के संरक्षण के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने बहुआयामी, महत्वाकांक्षी 'नमामि देवी नर्मदे' प्रकल्प शुरू किया है।
भारत भूमि को दो बराबर भागों में विभाजित करने वाली नर्मदा अन्य नदियों के विपरीत पश्चिम से पूर्व की ओर बहने की बजाए पूर्व से पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। नर्मदा भारत की तीसरी सबसे लंबी नदी है, जिसकी लंबाई 1,312 किलोमीटर है।
सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रेणियां इसके दक्षिण और उत्तर तट को परिभाषित करती हैं। अपने प्रवाह में नर्मदा मध्यप्रदेश में 1,077 किमी़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के बीच 39 किमी़, महाराष्ट्र और गुजरात के बीच 74 किमी़ तथा गुजरात में 161 किमी़ बहती है। नर्मदा का उद्गम मैकल पर्वत शृंखला में अमरकंटक पर्वत पर एक कटोरीनुमा कुंड से होता है। मध्यप्रदेश के 16 जिलेे नर्मदा के सीधे संपर्क में आते हैं। इसमें अनेक उपनदियां मिलती हैं, जिनमें प्रमुख हैं गौर, हिरन, शेर, शक्कर तथा तवा। महाराष्ट्र की सीमा को स्पर्श करते हुए नर्मदा गुजरात में प्रवेश करती है, जहां भरूच में वह अरब सागर में मिलती है। नर्मदा के दोनों किनारों पर बहुत किया गया बड़ी संख्या में डायनोसोर के जीवाश्म अभी भी प्राप्त होते रहते हैं।
सांस्कृतिक-आध्यात्मिक-प्रागैतिहासिक महत्व
इस प्रकल्प का नाम आदि शंकराचार्य द्वारा नर्मदा की स्तुति में रचे गए नर्मदाष्टक की पंक्ति 'त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवि नर्मदे' से लिया गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण में वामन अवतार के समय वर्णन आता है कि दैत्यराज बलि के जिस यज्ञ में भगवान वामन का प्राकट्य हुआ था वही यज्ञ सतयुग में नर्मदा जी के तट पर संपन्न हो रहा था, वैज्ञानिक दृष्टि से भी नर्मदा की आयु 4 करोड़ वर्ष से ऊपर मानी जाती है। नर्मदा के बारे में हमारी परंपरा कहती है-
पुण्या कनखलेे गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा॥
नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम्।
तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिता:॥
अर्थात् गंगा हरिद्वार में, कुरुक्षेत्र में सरस्वती पुण्य देने वाली हैं, परंतु ग्राम हो अथवा वन, नर्मदा सर्वत्र पुण्य देने वाली हैं।
गंगा स्नानम् तुंगा पानम्-रेवा दर्शनम्
अर्थात् गंगा में स्नान और तुंगभद्रा के जल का पान एवं नर्मदा का दर्शन समान पुण्य देता है।
स्कंदपुराण तथा वायुपुराण के रेवाखण्ड में नर्मदा के आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से वर्णित है। प्राचीन नगरी माहिष्मति (वर्तमान- मण्डला) सहस्रबाहु, कार्तवीर्य की नगरी मानी जाती है, जिसने अपने 1,000 हाथों से नर्मदा के प्रवाह को रोक दिया था। जबलपुर के पास भी ऐसे अनेक स्थान हैं, जिनका वर्णन पुराणों एवं इतिहासकारों के उल्लेखों में प्राप्त होता है, जिसमें त्रिशूलभेद, बाहुतीर्थ आदि शामिल हैं। नर्मदा शिव की पुत्री हैं। नर्मदा के पात्र में पाये जाने वाले पत्थर लंब गोलाकार हो जाते हैं, जिन्हें बाणलिंग कहा जाता है। ओंकारेश्वर, महेश्वर, नेमावर, सिद्धेश्वर आदि प्रसिद्ध मंदिर नर्मदा के बीच में टापू में अथवा नर्मदा जी के तट पर स्थित हैं। नर्मदा एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है।
करोड़ों मानवों का पोषण
वैज्ञानिक दृष्टि से नर्मदा मध्य भारत की जीवनरेखा है जो न केवल तटीय जिलों अपितु सुदूर शहरों को भी पीने का जल, सिंचाई का जल एवं बिजली उपलब्ध कराती है। आज भोपाल, इंदौर, उज्जैन ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात और कच्छ में भारत-पाकिस्तान की सीमा तक नर्मदा का जल अनेक प्रकल्पों के माध्यम से उपलब्ध है। नर्मदा के जल से साबरमती को पुनर्जीवन दिया गया और आज नर्मदा का ही जल क्षिप्रा नदी में प्रवाहित हो रहा है। सिंहस्थ कुंभ की सफलता का श्रेय नर्मदा, क्षिप्रा लिंक को ही दिया जा सकता है।
पूरे मध्य भारत का 'ईको सिस्टम' नर्मदा के प्रवाह पर आधारित है जिसमें हजारों प्रकार की वनस्पतियां एवं सैकड़ों प्रकार के प्राणियों की जीवनशैली पूर्णत: नर्मदा पर आधारित है।
नर्मदा ग्लेेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है कि जिसमें पानी का बर्फ के रूप में ठोस भण्डार हो और जो पिघल-पिघलकर नदी का प्रवाह बनाये रखे। नर्मदा के किनारों पर विराट वृक्ष संपदा है जो बरसात में जल को सोख लेेते हैं एवं फिर साल भर थोड़ा-थोड़ा करके वर्ष भर नदी में पानी छोड़ते रहते हैं। विगत कुछ दशकों में नर्मदा के किनारे वृक्षों की भयावह कटाई हुई है जिसके कारण नर्मदा का जल स्रोत ही सूखने लगा है।
'नमामि देवी नर्मदे' नर्मदा के जलस्रोत को अक्षुण्ण बनाने का एक ठोस वैज्ञानिक प्रयास है। इस प्रकल्प के अंतर्गत मुख्य उद्देश्य है नर्मदा के दोनों तटों पर सघन वृक्षारोपण के माध्यम से घनी हरी चुनरी बिछाना। नर्मदा के दोनों तटों पर एक किलोमीटर तक सरकारी जमीन पर बड़े-बड़े वृक्ष लगाने की योजना है, जिससे आने वाले 5 वर्ष में नर्मदा का जलस्रोत फिर एक बार स्थापित हो सकेगा। नर्मदा के तट पर 60 प्रतिशत से अधिक भूमि किसानों के स्वामित्व की है, जिन्हें वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करने हेतु प्रदेश शासन ने 40 प्रतिशत सब्सिडी एवं 3 वर्ष तक प्रति हेक्टेयर 20,000 रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है। व्यक्तिगत भूमि पर फलदार वृक्ष लगाने का आग्रह सरकार द्वारा किया गया है, जिससे किसानों को जीवनपर्यंत आजीविका का साधन भी बनेगा एवं नर्मदा को जल भी प्राप्त होगा। इन वृक्षों की देख-रेख करने के लिए ग्राम स्तर से लेकर ब्लॉक विकासखंड, जनपद एवं जिलास्तर तक नर्मदा सेवकों की समितियां बनाने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। इसमें लाखों नर्मदा सेवकों ने नर्मदा के संरक्षण का संकल्प लिया है।
'नमामि देवी नर्मदे' प्रकल्प के उद्देश्यों में नदी के दोनों तटों पर एक किलोमीटर तक सघन वृक्षारोपण, नर्मदा में मिलने वाले नालों एवं औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए संयंत्रों की तत्काल स्थापना, नर्मदा अंचल में खुलेे में शौच से मुक्त ग्राम, नशामुक्ति का संकल्प, जैविक कृषि का संकल्प, नर्मदा के तटों को अतिक्रमण मुक्त बनाना आदि शामिल है।
नर्मदा सेवा यात्रा को जिस प्रकार का जनसमर्थन मिल रहा है, उससे अभियान की सफलता की प्रबल आशा उत्पन्न हुई है। यह यात्रा 21 दिसंबर की रात्रि को मंडला जिले से 13 किलोमीटर दूर रामनगर ग्राम में पहुंची। अगले दिन होने वाली जनसभा में 8-10 हजार लोगों के पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन इतने लोग रात्रि को ही जुट गए और जब अगले दिन 7,000 नर्मदा भक्तों ने नर्मदा संरक्षण का संकल्प लिया तो कार्यकर्ता अभिभूत हो उठे। नर्मदा के प्रति जन-जन की यह अटूट आस्था ही नर्मदा सेवा यात्रा और 'नमामि देवी नर्मदे' प्रकल्प का प्राण है।
संकल्प का विकल्प नहीं
नर्मदा संरक्षण के इस प्रकल्प को व्यापक जन आंदोलन का स्वरूप देने के लिए 'नर्मदा सेवा यात्रा' निकाली जा रही है। यात्रा में 16 जिलों के 51 विकास खंड,1104 कस्बे तथा ग्राम सम्मिलित होंगे। इस दौरान यात्रा 'कोर ग्रुप' के द्वारा स्थान-स्थान पर संगोष्ठी, चौपालों, सांस्कृतिक-धार्मिक कार्यक्रमों, भजन संध्याओं का आयोजन किया जाएगा। नर्मदा सेवा यात्रा अमरकंटक से अलीराजपुर तक होते हुए वापस अमरकंटक तक144 दिनों में 3,344 किलोमीटर की होगी, जिसमें 1,909 किलोमीटर यात्रा पैदल तथा 1,435 किलोमीटर यात्रा वाहन से होगी।
यात्रा का उद्घाटन 11 दिसंबर, 2016 को अमरकंटक में पूज्य संतों एवं समाज के वरिष्ठ मार्गदर्शकों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैय्याजी जोशी, महामण्डलेेश्वर अवधेशानंद जी, स्वामी चिदानंद सरस्वती, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, गुजरात के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा, बाबा कल्याणदास आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय थी। यह यात्रा नर्मदा के संपर्क में आने वाले सभी 16 जिलों में जाने वाली है। हर जिले में 2-3 स्थानों पर जनसभायें होंगी।
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