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तमाम चर्चाओं के बीच भारतीय खेल जगत भी बीते वर्ष सुर्खियों में रहा। भारतीय खेल को लेकर हालांकि चर्चाएं तो अक्सर होती रहती हैं, लेकिन वर्ष 2016 में अच्छी बात यह रही कि खेलों में हमने नए कीर्तिमान स्थापित हुए
भारतीय टीम अगर अपनी धरती पर खेल रही होती है तो बल्लेबाजों के दबदबे के साथ अश्विन और जडेजा की फिरकी विपक्षी टीम के लिए सिरदर्द बन जाती है, जबकि विदेश में खेल रही होती है तो बल्लेबाजों के साथ तेज गेंदबाजों का कहर विपक्षी टीम को चैन का सांस नहीं लेने देता है। सौरव गांगुली ने कोई डेढ़ दशक पहले भारतीय टीम में विश्वास भरा था कि भारतीय टीम आस्ट्रेलिया जैसे दिग्गज को उसकी धरती पर हरा सकती है। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए महेंद्र सिंह धोनी ने भारत को टेस्ट, एकदिवसीय और टी-20 मैचों में शिखर पर बिठाया। फिर एक के बाद एक स्टार खिलाडि़यों के संन्यास लेने से टीम में शून्यता की सी स्थिति का आभास हुआ, लेकिन विराट कोहली ने खुद बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए टीम को एक बार फिर से शिखर पर पहुंचा दिया। इसका ताजातरीन उदाहरण भारतीय टीम ने इंग्लैंड को टेस्ट सीरीज में धोकर दिया। विराट, टीम को जीत दिलाने के क्रम में एक कैलेंडर वर्ष में तीन दोहरे शतक सहित 1,000 रन बनाने वाले पहले भारतीय कप्तान बने।
सिंधु-साक्षी ने रियो में रखी लाज
भारतीय दल ने 2012 लंदन ओलंपिक में छह पदक जीत इतिहास क्या रचा, सभी खेलप्रेमियों की अपेक्षाएं काफी बढ़ गईं। हालांकि यह जायज भी है। क्योंकि लिएंडर पेस ने 1996 अटलांटा ओलंपिक में भारत को पदक दिलाकर जो सिलसिला शुरू किया था, उसे कर्णम मल्लेश्वरी, राज्यवर्धन सिंह राठौर, अभिनव बिंद्रा, सुशील कुमार, सायना नेहवाल, एम. सी. मैरीकॉम, विजय कुमार और योगेश्वर दत्त ने बखूबी आगे बढ़ाया। लेकिन रियो ओलंपिक में कुछ कमियों की वजह से भारत पदक की दावेदारी से बाहर हो गया, जबकि जीतू राय, अभिनव बिंद्रा और दीपा करमाकर जैसे कुछ भारतीय खिलाड़ी पदक के बेहद करीब आकर भी उससे दूर रह गए। इनके अलावा पी. वी. सिंधु और साक्षी मलिक ने जरूर क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीत खेलप्रेमियों को निराश नहीं होने दिया। वैसे भी बैडमिंटन और कुश्ती में भारत एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है और इन दोनों ही खेलों में सिंधु और साक्षी ने पूरे दम के साथ सफलताएं हासिल कीं। इन दोनों का पदक जीतना कहीं से भी तुक्का नहीं, बल्कि विश्वास के साथ आगे बढ़ने का एक सुंदर उदाहरण था।
हालांकि रियो ओलंपिक में भारत को पदक जरूर कम मिले, लेकिन खेलों का यह महाकुंभ कई संभावनाएं जगाने के साथ बड़ी सीख जरूर दे गया। इस क्रम में निशानेबाजी में अभिनव और जीतू राय अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर पदक के बेहद करीब पहुंचे। निशानेबाजी एक ऐसी स्पर्धा है जिसमें सूक्ष्मतम गलती आपको स्वर्ण पदक की दौड़ से खींचकर आठवें स्थान पर भी पहुंचा सकती है। यह पूरी तरह से प्रतिभा के साथ शत-प्रतिशत एकाग्रता का खेल है। इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहती। शायद भारतीय निशानेबाजों की यही बदकिस्मती थी कि अंतिम दौर में पहुंचने के बावजूद उनका दिन नहीं था और छोटी सी गलती से अभिनव और जीतू पदक से दूर रह गए। भारतीय निशानेबाज विश्व स्तर पर बार-बार तगड़ी दावेदारी पेश कर सफलताएं हासिल करते रहे हैं जिसे उन्होंने रियो में भी कायम रखा। इस बार अंतर सिर्फ इतना था कि वे पदक से चूक गए। बहरहाल, दीपा करमाकर एक नई सनसनी की तरह रियो में उभरीं जिससे साथी खिलाडि़यों में कुछ स्थापित स्पर्धाओं के अलावा भी पदक जीतने का विश्वास जागा। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।
इस बीच, चोट के बावजूद ओलंपिक में उतरकर सायना नेहवाल और योगेश्वर दत्त जैसे वरिष्ठ खिलाडि़यों ने खेलप्रेमियों के साथ जो धोखा किया, उसे बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। इन दोनों से देशवासियों को पदक की पूरी उम्मीद थी, लेकिन सचाई का आभास तब हुआ जब मुकाबले के दौरान वे चारों खाने चित होते दिखे। इसी तरह भारतीय एथलीटों ने देश में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए रिकॉर्ड संख्या में रियो ओलंपिक में दावेदारी पेश की, लेकिन उनकी कलई खुलने में एक महीने का भी समय नहीं लगा और वे रियो से खाली हाथ वापस लौटे। भारतीय खेल को आगे ले जाने के क्रम में इस तरह की गलतियों को कतई दोहराया नहीं जाना चाहिए।
भारतीय झंडा बुलंद रखा
इस वर्ष पैरालंपिक खेलों में भी भारतीय खिलाडि़यों ने अद्भुत प्रदर्शन किया। बहुत मामूली पृष्ठभूमि से आने वाले इन खिलाडि़यों ने दिखा दिया कि दमखभ और इरादे मजबूत हों तो कुछ भी असंभव नहीं होता। महिला गोल्फ में अदिति अशोक का उभरना और बैडमिंटन में के सिरीकांत, गुरुसाईं दत्त और सौरभ वर्मा जैसे खिलाडि़यों ने उम्मीद की किरणें जगाई हैं। इन खिलाडि़यों में नए साल में धमाल मचाते हुए भारत को हैरतअंगेज सफलताएं दिलाने का माद्दा है। हमें इन जैसे और नए स्टार खिलाडि़यों का इंतजार रहेगा।
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