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काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 17 से 24 दिसंबर तक आठ दिवसीय संस्कृति महोत्सव आयोजित हुआ। यह आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय की स्थापना के शताब्दी वर्ष पर किया गया। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री डॉ़ महेश शर्मा ने 17 दिसंबर को महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्मविभूषण गिरिजा देवी, कुलपति प्रो़ गिरीशचंद्र त्रिपाठी, काशी के महापौर रामगोपाल मोहले एवं गायिका मालिनी अवस्थी उपस्थित थीं।
गिरिजा देवी की प्रस्तुति उद्घाटन समारोह का मुख्य आकर्षण रही। इसके साथ ही विभिन्न राज्यों के मशहूर कलाकारों की प्रस्तुति भी देखने लायक थी। विभिन्न कलाओं और विधाओं की झांकियां भी मनमोहक थीं। इनमें लोक गायन, लोक नृत्य, मलखंभ, पंजाब की बाजीगर कला, केरल, पूवार्ेत्तर राज्यों और पंजाब के मार्शल आर्ट, हरियाणा के बिन-जोगी और नगाड़ा, केरल का पंचवाद्यम तथा राजस्थान की कच्ची घोड़ी और बहरूपिया की झांकियों ने खूब रंग जमाया।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि यह महोत्सव कला, संस्कृति और शिक्षा का अनोखा संगम है। हम अपनी इस पूंजी को विश्व पटल पर पहुंचाने का हरसंभव प्रयास करेंगे। उन्होंने बताया कि दिल्ली, वाराणसी के बाद तवांग, बेंगलुरू और जम्मू-कश्मीर में कला- संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव होंगे।
महोत्सव में इसी दिन कला एवं चित्रकला से जुड़ी एक प्रदर्शनी भी आयोजित हुई। इसका उद्घाटन ललित कला अकादमी (नई दिल्ली) के प्रबंधक सी़ एस़ शेट्टी एवं विशेष सचिव सुधाकर शर्मा ने किया। प्रदर्शनी में देश के अनेक भागों से आए कलाकारों की कलाकृतियों एवं छायाचित्रों का प्रदर्शन किया गया।
इसी दिन विश्वविद्यालय परिसर में स्थित विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में कलाकारों ने अनेक करतब दिखाए। ओडिशा से आए कलाकारों ने द्विशंख वादन और अपने पारंपरिक नृत्य का अनूठा संगम प्रस्तुत किया। अन्य कलाकारों ने लोहे के मोटे सरियों के साथ खतरनाक करतब दिखाए, जिन्हें देखने के लिए विशाल जन समूह उमड़ आया था।
महोत्सव के दौरान दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित हुई। इसका विषय था 'संस्कृति सभ्यता में नैमिषारण्य''। संगोष्ठी में प्रो. गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि नैमिषारण्य स्थान के साथ-साथ विचार भी है। भारत का अपना नैसर्गिक स्वभाव तथा जीवन और जगत की रूप दृष्टि ही संस्कृति एवं सभ्यता के तौर पर स्थापित रही है। वह अनेक विषमताओं एवं विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लुप्त नहीं हो पाई है।
मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना राष्ट्र निर्माण के लिए की थी। उनकी सोच थी कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि वह मस्तिष्क के साथ-साथ चरित्र का परिमार्जन कर सके। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रोफेसर बागीश शास्त्री ने कहा कि नैमिषारण्य से भारतीय संस्कृति, साहित्य तथा संगीत कला का प्रसार हुआ। नैमिषारण्य के वैचारिक अधिष्ठान नेे भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक सीमाओं को सुरक्षित रखा।
संगोष्ठी को प्रो. अन्नपूर्णा शुक्ला, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. पी. नाग और गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बी.एम. शुक्ला आदि ने भी संबोधित किया।
संगोष्ठी के दूसरे दिन की शुरुआत प्रख्यात नृत्यांगना और संस्कृतिकर्मी सोनल मानसिंह ने स्वागत उद्बोधन के साथ की। उन्होंने सुझाव दिया कि देश की सांस्कृतिक अस्मिता के जागरण के लिए काशी में सांस्कृतिक नैमिषेय आयोजित कर संसारभर के विद्वानों के बीच संवाद की ऐतिहासिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। राज्यसभा सांसद डॉ़ सुभाष चंद्रा ने कहा कि देश के युवाओं में अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति जागरूकता पैदा करना समय की मांग है।
प्रख्यात सिनेकर्मी डॉ़ चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने नैमिषारण्य परंपरा का वर्णन करते हुए कहा कि भारतीय तत्व चिंतन और देश के पवित्र वांड़्मय से जुड़ी पूरी परंपरा का संगम काशी में आयोजित किया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को पता चल सके कि भारत का वास्तविक स्वरूप आखिर क्या है और किन बातों के कारण भारत विश्वगुरु के रूप में जाना-पहचाना गया। यह कार्य नैमिषारण्य परंपरा के पुनर्स्थापन द्वारा ही हो सकता है।
इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव प्रो़ सच्चिदानंद जोशी, प्रख्यात संस्कृतिकर्मी वासुदेव कामत, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए़ सूर्यप्रकाश और प्रख्यात अभिनेता नीतीश भारद्वाज समेत 100 से ज्यादा गणमान्य जन उपस्थित थे।
महोत्सव के तीसरे दिन 19 दिसंबर को 'युवा महिला राष्ट्रीय सम्मेलन, राष्ट्रनिर्माण एवं रचनात्मक कार्यक्रम' विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें उद्यमिता से जुड़ीं अनेक कंपनियों तथा आईआईटी, बीएचयू से संबंधित स्टार्टअप कंपनियों ने छात्राओं को उद्यमिता के गुर बताए, साथ ही समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने तथा उज्ज्वल भविष्य के लिए उनका उत्साहवर्धन भी किया। 'शुरूआर्ट' की सह संस्थापक सना सबाह ने छात्राओं को कड़ी मेहनत करने की सलाह दी। 'रोजहब एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड' के कुबेर पटेल ने उच्च शिक्षा के महत्व पर लघु फिल्म दिखाई। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी 'अगाती हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड' की सदस्या ज्योति श्रीवास्तव और प्रीति कौर ने छोटे-छोटे खेलों के माध्यम से सत्र को मनोरंजक एवं आकर्षक बनाते हुए स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की महत्ता को समझाया।
पत्रकारिता एवं जनसंप्रेषण विभाग में आयोजित कार्यशाला में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे के डीन अमित त्यागी ने छात्रों के साथ संवाद किया और उन्हें फिल्म निर्माण तथा संपादन की तकनीक बताई। पत्रकारिता विभाग में ही चल रहे 'शार्ट टर्म एक्टिंग कोर्स' में एफटीआईआई, पुणे के सहायक प्रोफेसर सिद्धांत शास्ता ने छात्रों को फिल्मों में अभिव्यक्ति की कला के महत्व के बारे में बताया, साथ ही फिल्म और थियेटर के मध्य अंतर को स्पष्ट किया।
'एनीमेशन फिल्म मेकिंग' पर आयोजित कार्यशाला में फिल्म निर्माण के विशेषज्ञ सूर्यकिरण ने एनीमेशन फिल्म निर्माण के 12 महत्वपूर्ण सिद्धांतों के बारे में विस्तार से बताया। अंत में कार्यशाला में 'गुड मार्निंग मुंबई' नामक एक एनीमेशन फिल्म दिखाने के बाद उसके दृश्य प्रभावों के बारे में भी चर्चा की गई। के़ एऩ उडुप्पा सभागार में चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी के द्वारा 'गौरा' और 'गोपी गवैया बाजा बजैया' नामक बाल फिल्मों का प्रदर्शन हुआ जो कि छोटे बच्चों को बहुत रास आया।
स्वतंत्रता भवन सभागार में प्रख्यात नाटककार शेखर सेन द्वारा 'विवेकानंद' नाटक की अविस्मरणीय प्रस्तुति की गई। यह नाटक स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचार पर आधारित है। स्वामी विवेकानंद का बचपन, उनके जीवन पर ब्रह्म समाज का प्रभाव, उनकी ईश्वर की खोज, अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलन और एक सामान्य मनुष्य से संत बनने की कहानी को शेखर सेन ने अपने सुंदर अभिनय, संवाद और गीतों के माध्यम से मंच पर जीवित किया। इसी क्रम में कला संकाय प्रेक्षागृह में चैतन्य बेहरा द्वारा कठपुतली नाटक 'मां जगत जननी कंदोई' का मंचन किया गया। इसकी दर्शकों ने बड़ी सराहना की।
ओमकार नाथ ठाकुर सभागार में भजन सोपोरी और रुस्तम सोपोरी ने संतूर वादन, छन्नू लाल मिश्र ने शास्त्रीय गायन तथा सोनल मानसिंह ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। सोनल मानसिंह की मनमोहक नृत्य नाटिका से लोग मंत्रमुग्ध हो गए। इसमें मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म, वासुदेव का यमुना पार कर अंधेरी रात में गोकुल जाना और कंस के द्वारा भेजे गए राक्षसों से सामना करना इत्यादि लीलाओं का प्रदर्शन किया गया।
स्वतंत्रता भवन प्रांगण में विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकारों ने अपनी-अपनी शैली में लोक नृत्यों की प्रस्तुति दी। इनमें पंडवानी, धोबिया, बिरहाए कबीर गायन, मुगल गायन, धोबिया नृत्य और लोक गायन आदि की प्रस्तुति बेहद रोचक रही।
स्वतंत्रता भवन सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आकर्षण का केंद्र रहा। इसमें अशोक चक्रधर, गोपालदास नीरज, वसीम बरेलवी, अंजुम रहबर, गजेंद्र सोलंकी, शिव कुमार व्यास, कमलेश मौर्या, अनिल चौबे, सांड बनारसी इत्यादि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समां बांधा।
महोत्सव के चौथे दिन 20 दिसंबर को महामना का परिसर गायन, वादन व नृत्य से झूम उठा। सूफी बंधु उस्ताद चांद निजामी, उस्ताद शादाब फरीदी निजामी और सोहराब निजामी ने अपनी गायिकी से सबको झूमने के लिए मजबूर कर दिया। पंडित ओमकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह में पंडित राजन-साजन मिश्र की जोड़ी ने शास्त्रीय संगीत का ऐसा समां बांधा कि श्रोतागण झूम उठे।
चौथे दिन के अन्य कार्यक्रमों में पत्रकारिता एवं जनसंप्रेषण विभाग के प्रशिक्षु छात्रों को उनके विषय से संबंधित जानकारी दी गई। छात्रों को भारतीय एवं पश्चिमी फिल्म निर्माण के सिद्धांतों के मध्य अंतर समझाया गया। छात्रों को जापानी फिल्म 'रशोमन' भी दिखाई गई। वहीं भारतीय फिल्मों में बिमल रॉय द्वारा निर्देशित 'देवदास' दिखाई गई।
चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित कार्यशाला के आखिरी दिन फिल्म पटकथा लेखन पर मंजरी पाण्डेय ने प्रशिक्षु छात्रों को पटकथा लेखन की बारीकियों से रूबरू कराया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित काव्य संग्रह 'रश्मिरथी' पर आधारित लघु नाटक का मंचन भी हुआ।
उडुप्पा प्रेक्षागृह में लगभग 200 दिव्यांग बच्चों को बाल फिल्में दिखाई गईं।
पांचवें दिन (21 दिसंबर) पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हरित भवन में 'पर्यावरण एवं हरित भवन प्रदर्शनी' का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने किया। प्रदर्शनी में आगंतुकों को पर्यावरण संरक्षण, धारणीय विकास एवं हरित भवन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी गई।
छठे दिन (22 दिसंबर) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महोत्सव में पधारे। उन्होंने कहा कि आज के युग में कला और संस्कृति का संरक्षण जरूरी है। यह महोत्सव कला को सहेजने में मददगार होगा। इस दिन महोत्सव में 'चाणक्य' नाटक का 1001वां मंचन हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब इस नाटक का पहली बार मंचन हुआ था तो वे उपस्थित थे। आज जब इस नाटक का 1001वां मंचन हो रहा है तो भी मैं उपस्थित हूं। सातवें और आठवें दिन भी अनेक कार्यक्रम हुए। इन सभी में लोगों की जबरदस्त सहभागिता रही।
महोत्सव में देश के सभी राज्यों से 1,500 कलाकार आए। इन सबने यही संदेश दिया कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है। इसकी रक्षा के लिए हमें ही सजग होना होगा। -वाराणसी से लोकनाथ-
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