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आहट बदलाव की-2016/ फिल्मनई धारा, नए कथानक

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Dec 26, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 26 Dec 2016 15:05:28

अजय देवगन की 'शिवाय'  की सफलता के बाद करण जौहर जैसे निर्देशक, जो किसी को बनाने और बिगाड़ने का दंभ भरते हैं, के दर्प को दर्शकों ने तोड़ दिया है। वहीं यह साल बायोपिक फिल्मों के लिए बड़ा सुखद रहा। अधिकतर फिल्मों ने करोड़ों का करोबार करके मील के पत्थर स्थापित किए 

 प्रदीप सरदाना
इस वर्ष यदि हम फिल्म संसार के नए चलन पर दृष्टि डालें तो दो बड़ी बातें सामने आती हैं। एक तो यह कि सन् 2016 में बायोपिक फिल्मों ने एक नया इतिहास रचा। दूसरा यह भी कि इस बरस हिंदी सिनेमा के कुछ बड़े महारथियों का वर्चस्व भी टूटा। कुछ सितारे या निर्माता जो यह सोचते थे कि यह फिल्मी दुनिया उन्हीं के ईद-गिर्द घूमती है, उन्हें इस साल ने खूब सबक सिखाया।

पहले बात करते हैं इस बरस के नए चलन, नए ट्रेंड बायोपिक फिल्मों की। यूं देश में किसी व्यक्ति के वास्तविक जीवन पर बनने वाली आत्मगाथा-जीवन गाथा पर आधारित फिल्मों अर्थात् बायोपिक फिल्मों का लम्बा इतिहास रहा है। यह बात अलग है कि पहले राजा-महाराजाओं, महान योद्धाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों और अन्य विभिन्न ऐतिहासिक पात्रों पर बायोपिक फिल्में बनती थीं। मुगल शासकों पर भी कई फिल्में बार-बार बनती रहीं। साथ ही हमारे धार्मिक ग्रंथों, महाकाव्यों से देवी-देवताओं पर बनी फिल्में भी फिल्मों के आरंभिक काल से पसंद की जाती रहीं। महात्मा गांधी के जीवन पर बनी 'गांधी' तो इस श्रेणी में मील का पत्थर है। लेकिन अब बदलते समय के साथ बायोपिक फिल्मों का स्वरूप तेजी से बदला है। अब इसमें खिलाड़ी भी शामिल होने लगे हैं, उद्योगपति भी और आधुनिक काल के विभिन्न जाने-अंजाने तथा साहसिक, असाधारण और चर्चित लोगों पर भी बायोपिक बन रही हैं। पिछले बरसों में बायोपिक फिल्मों में फिल्मकारों की दिलचस्पी तब बढ़ी जब राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने सन,2013 में विश्वप्रसिद्ध धावक मिल्खा सिंह पर 'भाग मिल्खा भाग' बनाई  और इस फिल्म ने 100 करोड़ की कमाई करके सफलता की बड़ी कहानी लिख दी।
इस साल तो बायोपिक का यह हाल रहा कि साल के शुरू होने से लेकर अंत तक बायोपिक फिल्में ही आती रहीं। जिससे इस एक बरस में कुल मिलाकर 8 बायोपिक फिल्में प्रदर्शित हुईं। भारतीय सिनेमा के इतिहास में किसी एक बरस में इतनी बायोपिक फिल्में प्रदर्शित होने का यह एक नया आयाम है। जनवरी में जहां आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश की जिदंगी के आरंभिक वषोंर् पर बनी फिल्म 'रेबीलियस फ्लॉवर' आई तो दिसंबर अंत में हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट और उनकी पहलवान बेटियों की जिंद्गी पर 'दंगल' आई है। हालांकि 'रेबीलियस फ्लॉवर' को तो दर्शक नहीं मिले लेकिन फरवरी में आई एक और बायोपिक फिल्म 'नीरजा' सुपर हिट साबित हुई। 'नीरजा' पैनएम फ्लाइट की एयर स्टाफ की मुख्य सदस्य 22 वर्षीया नीरजा भनोट की जिंदगी और उसके साहसिक कारनामे पर आधारित थी। जिसमें सितंबर, 1986 की चर्चित घटना को प्रमुख आधार बनाया गया। जब मुंबई से अमेरिका के लिए उड़ान भरने वाली पेनएम फ्लाइट-73 को आतंकवादियों ने कराची में हाईजैक कर लिया था, तब भारत की रहने वाली फ्लाइट एयर स्टाफ नीरजा भनोट ने अपनी सूझबूझ से 300 से अधिक विमान यात्रियों की जान बचाने में सफलता पाई थी। लेकिन यह देख आतंकवादियों ने नीरजा की हत्या कर दी थी। भारत सरकार ने नीरजा के इस साहसिक कार्य के लिए उसे मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया था। करीब 20 करोड़ रु. में बनी निर्देशक राम माधवानी की इस फिल्म ने देश-विदेश में लगभग 136 करोड़ रुपये कमाकर दिखा दिया कि यदि अच्छी बने तो एक छोटी फिल्म भी मोटी कमाई कर सकती है। इस कमाई में देश में ही करीब 76 करोड़ रुपए का विशुद्ध कारोबार हुआ। फिल्म को सफल बनाने में नीरजा के रूप में सोनम कपूर के शानदार अभिनय का भी योगदान रहा।
इस फिल्म के अलावा जिस एक और  बायोपिक फिल्म ने इस साल धूम मचाई वह थी-'एमएस धोनी-ए अनटोल्ड स्टोरी।'  साल की दस शिखर की सफल फिल्मों में भी यह दूसरे नंबर पर रही।
उपरोक्त तीन बायोपिक फिल्मों के अतिरिक्त 2016 में 'सरबजीत,' अजहर, 'अन्ना' और 'अलीगढ'़ फिल्म भी आयीं। इनमें प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र पर बनी 'अलीगढ़' तो फ्लाप हो गयी, लेकिन पाकिस्तान की जेल में  कैद रहे भारतीय सैनिक सरबजीत की मार्मिक गाथा दिखाने वाली फिल्म 'सरबजीत' और क्रिकेट खिलाड़ी अजहरुद्दीन पर बनी 'अजहर' के साथ अन्ना हजारे के जीवन पर आधारित 'अन्ना' ने अपनी लागत निकाल कर कुछ कमाई भी की। हालांकि 'अजहर' और 'अन्ना' यदि कुछ और अच्छे ढंग से बनतीं तो ज्यादा कमाई कर सकती थीं। जबकि 'अन्ना' के लिए तो खुद अन्ना हजारे ने फिल्म का प्रचार भी किया। पर 'अजहर' और 'अन्ना' के मुकाबले में 'सरबजीत' ज्यादा सफल रही। एक तो इसलिए कि इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन ने सरबजीत की बहन दलबीर कौर की अहम् भूमिका निभाई और सरबजीत की भूमिका रणदीप हुड्डा ने की। इस फिल्म को भूषण कुमार और वासु भगनानी जैसे बड़े निर्माताओं ने बनाया तो उन्होंने इसका प्रचार भी काफी किया। फिर सरबजीत की दर्द भरी दास्तान पिछले कई बरसों से सुर्खियों में चल रही थी। जिस तरह 1990 में सरबजीत एक रात को नशे की हालत में गलती से सीमा पार करके पाकिस्तान में प्रवेश कर गया और किस तरह पाक ने उसे झूठे आरोपों में फंसाकर उस पर जुल्म ढाए। उसे पाक की अदालत ने फांसी की सजा तक सुना दी। लेकिन सरबजीत की बहन दलबीर ने अपने भाई को निदार्ेष साबित करके देश वापस लाने के लिए जो लम्बी लड़ाई हिम्मत से लड़ी उसे इस फिल्म में अच्छे से दिखाया गया है। हालांकि पाक में सरबजीत के साथ कैद खूंखार कैदियों ने सरबजीत के वतन लौटने से पहले ही उस पर हमला करके उसकी हत्या कर दी। लेकिन दलबीर अपने भाई को निदार्ेष साबित करने, उसकी कहानी और पाक की नापाक करतूत को दुनिया के सामने लाने में सफल रही। निर्देशक उमंग कुमार की कुल 15 करोड़ रु. के बजट में बनी फिल्म 'सरबजीत' ने देश विदेश में कुल लगभग 44 करोड़ कमाए। इसलिए कुल मिलाकर बायोपिक फिल्म बनाना निर्माताओं के लिए फायदे का सौदा    ही रहा। 

इधर हाल ही में प्रदर्शित 'दंगल' के पूरे परिणाम आने अभी बाकी हैं। फिल्म में हरियाणा के उन पहलवान महावीर सिंह फोगट की कथा दिखाई गइ है जिन्होंने पुरानी परंपराओं और लोगों की परवाह न करके पुरुषों के एकाधिकार वाले पहलवानी क्षेत्र में अपनी बेटियों गीता और बबीता को उतारा। बाद में फोगट की बेटियों ने पहलवानी में कई बड़े मुकाबले जीतकर अपने पिता के सपनों को पूरा किया। फिल्म की कहानी ठीक है लेकिन आमिर का अपने प्रशंसकों के बीच विवाद चल रहा है। बशर्ते आमिर खान को अगर उनके उन प्रशंसकों ने पूरी तरह माफ कर दिया हो जो उनके और उनकी पत्नी के देश छोड़ने वाले बयान से खफा चल रहे हैं तो यह फिल्म भी कुछ अच्छा कर पाएगी। बायोपिक फिल्मों की इस साल की सफलता बताती है कि अब आगे भी इस प्रकार की फिल्मों का प्रचलन बढे़गा, जिससे दर्शकों को कुछ और दिग्गजों तथा असाधारण व्यक्तित्वों की जीवन गाथा देखने को मिलेंगी।
कई बड़ों को लगे बड़े झटके
अब बात करते हैं इस साल की उन  फिल्मों और उन लोगों की जिन्हें सन्, 2016 ने बड़े झटके दिए। इन झटकों में सबसे बड़ा झटका शाहरुख खान को लगा। वे पिछले कई बरसों से खुद को किंग खान कहते हुए बॉक्स ऑफिस पर राज कर रहे थे लेकिन इस बरस उनकी दोनों प्रदर्शित फिल्में 'फैन' और 'डियर जिंदगी' असफल रहीं। यूं 'फैन' ने 85 करोड़ का व्यवसाय करके खुद को साल की सर्वाधिक कमाई करने वाली 10 फिल्मों में शामिल तो कर लिया लेकिन यह फिल्म तब भी असफल है क्योंकि इसका बजट और बैनर दोनों बड़े हैं। उधर आलिया भट्ट के साथ आई शाहरुख की दूसरी फिल्म 'डियर जिंदगी' तो मात्र 67 करोड़ ही एकत्र कर सकी। यह व्यवसाय भी 'डियर जिन्द्गी' ने करीब एक महीने में किया। जबकि आज के दौर में सुपर हिट फिल्म तीन चार दिन में ही 100 करोड़ की कमाई कर लेती है। शाहरुख की 'हैपी न्यू इयर' फिल्म ने तो अपने प्रदर्शन के पहले ही दिन 45 करोड़ रुपये एकत्र करने का रिकार्ड बनाया है। इसलिए इस बरस शाहरुख का किंग खान का तमगा उनसे पूरी तरह छिन ही गया। साथ ही उनका वर्चस्व भी पूरी तरह टूट गया। कोई समय था जब शाहरुख की फिल्म के सामने बड़े-बड़े फिल्मकार अपनी फिल्म रिलीज करने से घबराते थे। लेकिन इस साल शाहरुख की हालत इतनी पतली हो गयी कि उन्हें अपनी फिल्म 'रईस' को प्रदर्शित करना मुश्किल हो गया। अपनी यह हालत देख शाहरुख 'रईस' के लिए ऐसी सोलो तारीख तलाशते रहे जब उस दिन कोई और फिल्म रिलीज न हो लेकिन इस प्रतीक्षा में पूरा साल निकल गया पर की यह फिल्म कई तारीख तय होने के बाद भी इस साल के आखिर तक प्रदर्शित नहीं हो सकी।
ऐसे ही इस साल अभिनेताओं में रणवीर सिंह को भी बड़ा धक्का लगा। रणवीर सिंह 2013 में तब स्टार बन गए थे जब उनकी फिल्म 'राम लीला' ने 110 करोड़ की कमाई की। रणवीर का अंदाज और नखरे तब और भी बढ़ गए जब पिछले बरस उनकी फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' ने 184 करोड रु. की कमाई की वह भी शाहरुख की फिल्म 'दिलवाले' के सामने और 'दिलवाले' से ज्यादा। इससे रणवीर सिंह, यशराज बैनर और संजय लीला भंसाली जैसे बड़े निर्माताओं के चहेते बन गए। लेकिन इस साल इसी फिल्म 'बेफिक्रे' लाख कोशिशों के बाद भी कुल 55 करोड़ का व्यापार ही कर सकी है वह भी तब जब इस दौरान कोई और बड़ी फिल्म मैदान में नहीं थी।
इधर 'बेफिक्रे' की असफलता ने यशराज जैसे बड़े बैनर और इसके कर्ता-धर्ता आदित्य चोपड़ा को भी हिलाकर रख दिया है। यूं इस साल यशराज की फिल्म 'सुल्तान' ने 300 करोड़ रुपये का बड़ा व्यवसाय करके आशाओं के नए द्वार खोले लेकिन इस फिल्म के अलावा यशराज की इस साल प्रदर्शित दोनों अन्य फिल्मों की नाकामी के भविष्य को लेेकर सवाल खड़े कर गयी है। ये सवाल इसलिए खड़े हैं कि उनके सबसे पसंदीदा अभिनेता शाहरुख खान के साथ बनायीं फिल्म 'फैन' भी असफल रही और नए खास अभिनेता रणवीर के साथ ़बेफिक्रे' भी। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि 'बेफिक्रे' का निर्देशन खुद आदित्य चोपड़ा  ने किया है। यशस्वी फिल्मकार यश चोपड़ा के पुत्र और यशराज फिल्म्स के प्रमुख आदित्य  के बारे में यह मान्यता रही है कि वह जब भी जिस फिल्म का निर्देशन करते हैं, उसे जबरदस्त कामयाबी मिलती है। इस बात की साक्षी उनके निर्देशन में बनी फिल्म दिल वालेे दुल्हनिया ले जायेंगे, मोहब्बतें और रब ने बना दी जोड़ी जैसी शानदार फिल्में हैं। इन तीनों खूबसूरत फिल्मों ने मनोरंजन और सफलता के कई आयाम स्थापित किये। लेकिन इस बरस आदित्य का वर्चस्व भी टूटता दिखाई दे      रहा है।
वर्ष, 2016 करण जौहर के लिए भी मुश्किल भरा रहा। पकिस्तानी कलाकारों के समर्थन में आने से एक तो वह विवादों में फंसे ही साथ ही उन्हें लोगों के कोपभाजन का शिकार भी  होना पड़ा। यह देखते हुए करण ने माफी भी मांगी और भविष्य में अपनी फिल्मों में पाक कलाकारों को फिर कभी न लेने की कसम भी खायी। लेेकिन फिर भी उनकी मल्टीस्टार फिल्म 'ए दिल है मुश्किल' मुश्किलों से नहीं निकल सकी। इस बड़े बजट की फिल्म ने 112 करोड़ रु. का व्यवसाय चाहे कर लिया लेेकिन यह फिल्म तब भी औसत फिल्म ही रही।
क्योंकि इसका बजट तो ज्यादा था ही, इसमें रणबीर कपूर,अनुष्का शर्मा और ऐश्वर्या राय बच्चन जैसे सितारे थे। फिर इस फिल्म को विवादों के चलते करोड़ों रुपये का मुफ्त प्रचार भी मिल गया था, जबकि इसके सामने लगी अजय देवगन की फिल्म 'शिवाय' इससे कम बजट, कम प्रचार और कम स्क्रीन्स के होते हुए भी 100 करोड़ रु. से कुछ ज्यादा व्यवसाय करने में कामयाब रही। उधर इस साल करण जौहर की एक और फिल्म 'बार बार देखो' भी टिकट खिड़की पर बुरी तरह मात खा गयी जबकि उसमें कटरीना कैफ जैसी नायिका थीं। करण की इस साल एक और फिल्म 'कपूर एंड संस' भी प्रदर्शित हुई लेकिन यह भी 100 करोड़ रु. के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी और कुल मिलाकर एक औसत फिल्म रही। वह करण जौहर जिनका नाम कुछ कुछ होता है,कभी खुशी कभी गम, कल हो न हो,अग्निपथ, ये जवानी है दीवानी और स्टूडेंट ऑफ द ईयर जैसी सुपर हिट फिल्मों के लिए जाना जाता है, उनके लिए इस साल असफल होना निश्चय ही उनके वर्चस्व पर भारी पड़ा।
यह साल दो और निर्माताओं के लिए भी घातक रहा। एक राकेश ओमप्रकाश मेहरा जिनकी 'मिर्जया' इस साल चारों खाने चित हो गयी। जबकि इस फिल्म में अनिल कपूर जैसे दिग्गज अभिनेता के पुत्र हर्षवर्धन कपूर ने अपने करियर की शुरुआत की थी। साथ ही आशुतोष गोवारिकर की 'मोहनजो दारो' का भी असफल होना उनके साथ ऋतिक रोशन जैसे लाजवाब अभिनेता के लिए भी परेशानी भरा सबब रहा। आशुतोष अपनी 'लगान', 'स्वदेश' और 'जोधा अकबर' जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं लेेकिन 'मोहनजो दारो' की असफलता से उनका नाम और काम दोनों धूमिल हुए हैं।

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