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27 नवंबर, 2016
आवरण कथा 'कतार के पार' से यह बात उभरी कि बैंकों में भीड़ है, समस्याएं हैं लेकिन अधिकतर लोग नोटबंदी के फैसले की तारीफ कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस फैसले की पूरे देश ने हृदय से प्रशंसा की, क्योंकि यह फैसला देशहित में है।
—वीरेंद्र सिंह परिहार, उज्जैन (म.प्र.)
ङ्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन पर प्रहार करके धन कुबेरों की नींद उड़ा दी। उन्हें संभलने तक का मौका नहीं दिया। कुछ जगह से ये भी समाचार आए कि उद्योगपतियों और कालाधन रखने वालों ने गरीबों और कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारियों को अपना काला धन दिया जिसे वे अपने खाते में जमा करके सफेद कर सकें। इस सबके कारण बैंकों में अफरा-तफरी का माहौल देखने को मिला। वहीं कुछ लोगों ने सरकार के खिलाफ लोगों को भड़ाकाने का काम भी किया। लेकिन फिर भी उनके मन में मोदी के प्रति भरोसा दिखाई दिया।
—आशुतोष वर्मा, कटिहार(बिहार)
ङ्म मीडिया के एक वर्ग ने नोटबंदी के फैसले को देश और समाज के सामने इस तरह परोसा जैसे इससे भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा बल्कि बढ़ेगा। उसने लगातार उन दो-चार रोते हुए चेहरों को दिखाया जिन्हें पैसे नहीं मिल पाए लेकिन उन हजारों लाखों के चेहरों को नहीं दिखाया जो बैंकों से पैसा लेकर अपना काम सुचारु रूप से चला रहे थे। देश के कुछ स्थानों में समस्या हुई लेकिन सरकार ने बड़ी तत्परता से इस कार्य को संभाला और दूर-दराज के इलाकों में पैसों की कमी को पूरा किया। विपक्ष को तो बस एक मुद्दा चाहिए। उसने अपने स्वार्थवश लोकसभा और राज्यसभा के कामकाज को ठप रखा। लेकिन जनता की ओर से उसे कोई समर्थन नहीं मिला।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा(हरियाणा)
ङ्म माना कि नोटबंदी से समस्याएं हो रही हैं, लोग घंटों-घंटों लाइन में लगे हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद लोग प्रधानमंत्री के निर्णय को देश के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम मानते हैं। जनता का यही कहना है कि हमें इस फैसले से कुछ ही दिन समस्या होगी लेकिन धन कुबेरों, जिन्होंने गरीबों का शोषण करके काला धन जमा किया है, को हर दम समस्या होने वाली है। यानी फैसले की सीधी चोट काली कमाई करने वालों पर ही है।
—शुभ्रा सक्सेना, जलालाबाद (उ.प्र.)
ङ्म नोटबंदी का खरा निर्णय लेकर मोदी ने विरोधियों, भ्रष्टाचारियों, षड्यंत्रकारी शक्तियों व आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को चारों खाने चित कर दिया। इस निर्णय से काले धन से राष्ट्र विरोधी गतिविधियां संचालित करने वालों की कमर टूटी ही, जनता में भी एक परिवर्तनकारी लहर आई। आज सारा राष्ट्र प्रधानमंत्री के इस फैसले के साथ है। पहले नोट के बल पर आतंकवाद राष्ट्र पर चोट कर रहा था, अब मोदी जी ने नोट द्वारा इन सब पर चोट की जो विरोधियों से सही नहीं जा रही इसीलिए वे चिल्ला
रहे हैं।
—रूप सिंह सूर्यवंशी, राजसमंद(राज.)
ङ्म नोटबंदी के बाद से मीडिया की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में यह कहना प्रासंगिक है कि उसने इस फैसले में पूर्वाग्रह और संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है। देश ही नहीं, विदेशों तक के प्रमुख नेताओं और उद्योगपतियों ने सरकार के कदम को साहसपूर्ण बताया। लेकिन इस सकारात्मक तथ्य को मीडिया ने छिपाकर कुछ दो-चार लोगों के रोते चेहरों को मुखौटा बनाकर नकारात्मक पक्ष को उभारा। लेकिन इससे उसने अपनी ही गरिमा को धूमिल किया। जनता अब मीडिया में उस वर्ग को अच्छे समझ चुकी है जिसका काम सिर्फ विरोध करना है। वह अच्छी बातों का भी विरोध करता है और खराब बातों का तो करता ही है।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड (म.प्र.)
ङ्म अगर मैं सरकार के इस कदम सराहनीय कहूं तो सेकुलरों को बुरा नहीं लगना चाहिए। क्योंकि इस सरकार ने आम जनता में नई जागृति का संचार किया है। इस फैसले से आतंकियों, नक्सलियों, काला धन रखने वालों की कमर टूट गई है। इस फैसले से यह बात सामने आई कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर दृढ़ संकल्प है और काली कमाई करने वालों को किसी भी कीमत पर छोड़ने के मूड में नहीं है।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल(जम्मू-कश्मीर)
जनता के मन से उतरी सपा
रपट 'यात्रा शुरू पर पहिये थमे' से जाहिर है कि समाजवादी पार्टी जिस ख्वाब के साथ प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उतरी थी और अपने को मजबूत दिखाने वाली थी, उसके इस मंसूबे को कुनबे की कलह ने चकनाचूर कर दिया। अभी कुछ दिन पहले तक सपा के नेता यह कहते नहीं थक रहे थे कि वे फिर से सत्ता में आएंगे और किसी से गठबंधन करने का तो सवाल ही नहीं उठता। लेकिन परिवार की लड़ाई और प्रदेश की बिगड़ी कानून-व्यवस्था को देखते हुए पार्टी अब अंदर ही अंदर गठबंधन की बैसाखी का सहारा लेने के लिए तैयार दिख रही है।
—शिवकुमार फैजाबादी, फैजाबाद (उ.प्र.)
ङ्म समाजवादी पार्टी जिन दलों का समर्थन लेकर गठबंधन करने जा रही है, वे पहले से ही इतने निर्बल हैं कि खुद ठीक-ठाक दल के कंधों पर बैठकर अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं। यानी ये दल पहले से ही जनता के मन से उतर चुके हैं। लेकिन बस भीड़ बढ़ाने और लोगों को ये दिखाने के लिए कि हमारे पास इतने नेताओं का साथ है, सपा गठबंधन के लिए प्रयास करती दिख रही है। कुछ भी हो, जनता समाजवादी पार्टी के सभी कारनामों से परिचित है। इसलिए वह चाहे अकेले लड़े या कुनबे के साथ, हार तय है।
—स्नेहा कनौजिया, पहाड़गंज (दिल्ली)
हिंदुओं पर अत्याचार
हिंदुओं पर देश ही नहीं, दुनिया में कहीं भी कोई अत्याचार होता है तो उसका जिक्र तक नहीं होता है। देश-दुनिया की बात करने वाले तथाकथित सेकुलर और अपने को मानवाधिकारी संगठन कहने वाले इस मसले पर खामोश रहते हैं। आज बांग्लादेश में मजहब के नाम पर उन्माद फैलाया जा रहा है। हिन्दुओं की हत्याएं हो रही हैं, मंदिर तोड़े जा रहे हैं लेकिन वहां की सरकार अपना मुंह सिले हुए है। वह इन गुंडों पर कोई कार्रवाई नहीं करती। आश्चर्य की बात है कि मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले भी चुप हैं।
—शैलेन्द्र कुमार गणेश, औरंगाबाद(महाराष्ट्र)
ङ्म पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश को भी हिन्दूविहीन किया जा रहा है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब वहां पर हिन्दुओं पर हमले न किये जाते हों। ऐसे हमलों से समाज में मुस्लिमों के प्रति नफरत का भाव जागता है। समाज में उनके खिलाफ गुस्सा न पनपे और सद्भाव का माहौल बना रहे, इसको देखते हुए मुल्ला-मौलवियों को चिंतन-मनन करना चाहिए।
—प्रदीप सिंह, पनकी, कानपुर(उ.प्र.)
ङ्म पिछले माह जिस तरह से बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्वों ने हिंदू मंदिरों और उनके घरों-दुकानों को निशाना बनाया, उससे यही आभास हुआ कि एक लोकतांत्रिक देश होने के बाद भी वह पाकिस्तान के रास्ते पर है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि शेख हसीना की कट्टरपंथियों पर बिल्कुल भी लगाम नहीं है। भारत सरकार को बांग्लादेश सरकार से कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहिए।
—रमेश कुमार, अंबेडकरनगर(उ.प्र.)
शक्ति स्वरूपा नारी
लेख 'शक्ति पुंज भारत की बेटी' (27 नवंबर, 2016) अच्छा लगा। नारी शक्ति को आदिकाल से देवी का रूप माना जाता रहा है। आदिकाल से घर-परिवार में संस्कार रोपने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर रही है। लेकिन आज समाज में बदलाव हुआ है। इस बदलाव में भी नारी ने अपने कर्तव्यों को नहीं छोड़ा है। वह उसी तरह से आज भी कार्य करती आ रही है और घर-परिवार और देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने के लिए सतत प्रयासरत है। वह छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम कर रही है और दुनिया में देश का नाम रोशन कर रही हैं। ऐसी नारी को नमन।
—शिवकुमार, जींद(हरियाणा)
सादगी की मूर्ति
लेख 'कर्मयोगी अशोक जी' (20 नवंबर, 2016) से एक बार फिर से अशोक जी की स्मृति तरोताजा हो गई। जब वे कानपुर महानगर में प्रचारक थे तो उनका नियम था कि महीने में लगभग दो बार वे प्रत्येक शाखा पर उपस्थित होकर सभी स्वयंसेवकों के परिवारों से मिल उनके साथ एक रस हो जाते थे। उनसे संवाद करते थे और सुख-दुख बांटते थे। उनकी सादगी उस समय भी मन को लुभाती थी। आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियां जीवनपर्यंत ह्दय में बसी रहेंगी। उन्हें शत्-शत् नमन।
—रामशंकर श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)
असहनीय होता दर्द
बंगलादेश की राजधानी ढाका के ठीक पास यानी शेख हसीना की नाक के नीचे अल्प से अतिअल्पसंख्यक होते जा रहे हिन्दुओं की बस्तियों पर आएदिन मुसलमानों द्वारा सुनियोजित-संगठित आक्रमण किया जा रहा है। हिन्दू मां-बहनों का बलात्कार किया जाता है। हिन्दुओं के घरों को जलाया जाता है। दुकानों में लूट होती है। लेकिन बंगलादेश की बात छोड़ दीजिए, भारत में इन हमलों की हिन्दू समाज के बीच कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होती। उनको लगता है कि 'बांग्लादेश के हिन्दुओं पर हमला हुआ, हमें क्या? हमारे पास में ऐसा कुछ हुआ होता तो हम इसकी प्रतिक्रया जरूर देते!' जिहादियों द्वारा बंगलादेश ही नहीं देश में आएदिन होने वाले हमलों पर भी वे इसी तरह अक्सर ये मौन ही रहते हैं। सवाल है कि कब तक हम इस सचाई को नजरअंदाज करके सेकुलरिज्म के दिवास्वप्न में डूबे रहेंगे? यह बिल्कुल सत्य है कि इस प्रकार के हमले हजारों वर्षों से हो रहे हैं और हर हमले के बाद हिन्दू मानसिकता के लोग ये उम्मीद करते हैं कि 'अब से शायद ऐसा न हो। हमले करने वालों को एक न दिन अवश्य ज्ञान आएगा और वे इस तरह की हरकत करने से बचेंगे।' लेकिन हिन्दुओं को ये समझ में नहीं आता कि जब तक एक भी हिन्दू बचा हुआ है तब तक उन पर ये हमले होते रहेंगे। आखिर कब तक हिन्दू इस तरह के हमले सहन करता रहेगा? चंद गुमराह नेताओं की करनी का फल आज सारा हिन्दू समाज भुगत रहा है। कश्मीर, केरल, अलीगढ़, असम, मालदा, मालेगांव जगह-जगह 'मिनी पाकिस्तान' खड़े होते जा रहे हैं। हिन्दुओं के लिए यहां जीना दूभर हुआ जा रहा है। अब समय है कि हिन्दू समाज को खुद जागना होगा और तत्परता से आवाज उठानी होगी।
—छगनलाल बोहरा, बोहरा गणेश मार्ग, उदयपुर (राज.)
प्रति सप्ताह पुरस्कृत पत्र के रूप में चयनित पत्र को प्रभात प्रकाशन की ओर से 500 रु. की पुस्तकें भेंट की जाएंगी।
समय का सत्यानाश
हंगामा होता रहा नहीं हुआ कुछ काम
संसद को अब दे दीजिए, अब तो दूूजा नाम।
अब तो दूजा नाम, शोर में समय गंवाया
जनता के पैसे को पानी समझ बहाया।
कह 'प्रशांत' बैंकों के आगे लोग खड़े हैं
लेकिन नेताजी हंगामा किए पड़े हैं॥
—प्रशांत
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