|
समाज के शोषित, उपेक्षित वर्गों और दिव्यांगों के हित और उन्नति से जुड़े कार्यों में लगा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का काम पहले चर्चा में नहीं आता था। परंतु अब इस मंत्रालय की छवि और काम की रफ्तार बदली है। पिछले करीब ढाई साल में कई रिकॉर्ड बने हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर इस मंत्रालय की कार्य योजनाओं, वैचारिक दृष्टि एवं चुनौतियों को टटोलते हुए पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर की प्रभारी मंत्री श्री थावरचंद गेहलोत से विशेष बातचीत के प्रमुख अंश:
'दीन दयाल जी' के 'अंत्योदय' की भावना से प्रेरित पार्टी की सरकार 'बाबा साहेब' की समानता की सोच पर कितने कदम बढ़ी है?
आंबेडकर जी का कहना था कि सामाजिक समरसता से ही समता आएगी। इसके लिए कुछ व्यावहारिक कदम उठाने चाहिए। उस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर हमने आंबेडकर जी की 125वीं वर्षगांठ सालभर मनाने का निर्णय लिया। बहुत से कार्यक्रम किए। देश की आजादी के बाद पिछले वर्ष 26 जनवरी को जो राजपथ पर झांकियां निकलीं, उनमें आंबेडकर जी के जीवन पर झांकी निकाली थी जो पहली बार हुआ था। उसके बाद हमने 100 बच्चों को जहां-जहां आंबेडकर जी पढ़ने गए थे, वहां पर 25-25 के समूह में भेजा था। ये बच्चे वहां से अच्छा अनुभव लेकर आए हैं।
पहली बार हुआ यानी? बाबा साहेब को कुछ दलों ने सीमित किए रखा, आप उन्हें दायरे से बाहर ला रहे हैं?
आंबेडकर जी का जीवन सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी, सर्वहितैषी व देशभक्ति से ओतप्रोत था। और इसके उदाहरण हमें देने की जरूरत थी, जो हमने दिए हैं। अगर आंबेडकर जी देशभक्त नहीं होते तो वे देश को सुधारने का काम क्यों करते? देश में विषमताएं थीं, उनको दूर करने के लिए उनके मन में संकल्प न होता तो इतनी उच्च शिक्षा व डिग्रियां उन्होंने प्राप्त की थीं जो शायद दुनिया में बहुत ही कम लोगों के पास होंगी। चाहते तो ब्रिटेन या अमेरिका में अच्छी-खासी नौकरी कर सकते थे। खुद ऐशोआराम की जिंदगी जीते और परिवार को भी ऐसी ही जिंदगी दे सकते थे। पर उन्होंने देखा कि भारत में विषमताएं हैं। इनको दूर किए बिना भारत का जो पुराना गौरव है, वह नहीं लौटाया जा सकता। तो उन्होंने विदेश में रहने के बजाय यहां आकर इन सब समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने जो कहा, उसको सही ढंग से समझने के लिए हमने एक आंबेडकर अध्ययन केंद्र की स्थापना करने का निश्चय किया और 1.95 करोड़ रु. की लागत से 15 जनपथ के पास उसे बनाया है। हमने उनसे संबंधित पांच स्थानों को पंच तीर्थ घोषित किया। जन्म स्थली महु, वहां स्मारक बनाया। शिक्षा भूमि लंदन, दीक्षा भूमि नागपुर और परिनिर्वाण स्थल 26, अलीपुर रोड, दिल्ली जहां वे रहते थे। यहीं उन्होंने अंतिम संास ली थी। इसको हमने आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया। 100 करोड़ रु. की लागत से संविधान की किताब जैसा प्रारूप बनाने का निर्णय लिया है और काम चल रहा है। इसके साथ ही चैत्य भूमि, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ था, उसका भी आधुनिकीकरण करने का जिम्मा महाराष्ट्र सरकार ने लिया है। दीक्षा भूमि के विस्तार के लिए हमने धन उपलब्ध कराया है और जन्म भूमि पर पहले से ही शिवराज सिंह सरकार ने भव्य स्मारक बना रखा है। हमने सामाजिक समरसता की दृष्टि से वाल्मीकि जी, रविदास जी, कबीर दास जी व ज्योतिबा फूले आदि महापुरुषों को ठीक से समझने की दृष्टि से व उनकी सोच गांव-गांव पहुंचे, इसके लिए हम उनकी जन्म तिथि व पुण्य तिथि पर कार्यक्रम करने के लिए आर्थिक सहायता भी देते हैं, ये भी निर्णय हमने किया है। हमारा इन सब कामों से भावनात्मक रूप से भी समाज में समता स्थापित करने का प्रयास रहा है।
इन कामों को करते समय कहीं आपने बहुत सारे दलों का राजनीतिक पैंतरा तो नहीं छीन लिया?
जिसने भी आंबेडकर जी को ठीक से नहीं समझा, वे ही इस तरह की बातें करते हैं। आंबेडकर जी का मान-सम्मान हमारे विचार के लोग पहले से करते आ रहे हैं। आप अगर संघ का प्रात: स्मरण देखें तो उसमें इन सब महापुरुषों के नाम हैं। उसका नाम है एकात्मता स्तोत्र। अर्थात् एकात्म होने के लिए जो सारे स्तोत्र हमें मिलते हैं उनकी प्रेरणा ये सभी महापुरुष हैं। महात्मा गांधी के बारे में लोग कहते हैं कि आपने इन्हें भी हाईजैक कर लिया। उन्हें पता होना चाहिए कि जब भाजपा की स्थापना हुई थी तो लघु उद्योग, कुटीर उद्योग और पंचायती राज व्यवस्था है, जो हमारी पंच निष्ठा है, उसे हमने एक निष्ठा के रूप में सम्मिलित किया है।
सरदार पटेल को हम पहले से मानते रहे हैं। और जितने भी आजादी में लड़ने वाले महापुरुष रहे हैं उनके प्रति सदैव हमने आदर भाव, सम्मान का भाव रखा है। कुछ लोग हैं जो इनके नाम पर राजनीति करते रहे और गलत वातावरण बनाकर लाभ लेते रहे, लेकिन ऐसे लोग एक घर परिवार से ज्यादा आगे नहीं बढ़ते। लेकिन ये सभी महापुरुष हमारे तो घर-परिवार के हैं। ऐसे महापुरुषों को हम याद करते हैं, और करते रहेंगे क्योंकि उन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया है। हम उनके ऋणी हैं। देश की आजादी के लिए वे लड़े, हमें आजादी दिलाई। इस जन्म और आने वाले जन्म में भी हम उनके ऋण को उतारने का प्रयास करते रहेंगे।
यह मंत्रालय पहले की सरकारों में दबा हुआ और उपेक्षित था? अब इस मंत्रालय की महत्ता और जिम्मेदारी बढ़ी है?
आपके प्रश्न में कुछ सत्यता तो है। सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक समता और देश में जो सामाजिक विषमताएं हैं, उनको समाप्त करने के लिए भारत के संविधान में अनेक प्रावधान हैं और उनका उल्लेख भी उसमें हुआ है। उस पर तेज गति से काम करना चाहिए था। लेकिन देश में विकास की दृष्टि से बहुत सारे काम हुए, पर सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए जितनी तेज गति चाहिए थी, वैसी नहीं रही है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब कुछ अच्छे प्रयास शुरू हुए थे। बीच में जो सरकारें रहीं, उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास किए। मैं यह तो नहीं कहता कि कुछ भी नहीं हुआ। परन्तु श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में इस मंत्रालय की पहचान बनी है। इस मंत्रालय का दायित्व मिलने के बाद मैंने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और अन्यान्य प्रकार की जो विषमताएं हैं, उन्हें दूर करने की बहुत सारी नई योजनाएं प्रारंभ कीं। मेरे विभाग के दो हिस्से हैं-एक तो सामाजिक न्याय और इससे संबंधित वे वर्ग जो मेरे विभाग में आते हैं, उन वर्गों के अधिकार उन्हें उपलब्ध कराना। इसको ध्यान में रखकर हमने बहुत सारी योजनाएं प्रारंभ की हैं। इससे संबंधित कुछ वित्त विकास निगम के संस्थान हैं, उनके माध्यम से भी प्रयास किए। मेरे विभाग का एक दूसरा हिस्सा है-जिसे पहले विकलांग-सशक्तिकरण विभाग कहा जाता था। प्रधानमंत्री की इच्छानुसार और उनके सुझाव पर सारे देशवासियों के समर्थन से अब हमने उसका नाम दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग रखा है। उस विभाग के कारण देश और दुनिया में इस मंत्रालय की अच्छी पहचान बनी है।
अभी कुछ दिन पहले दीनदयाल वांड्मय का लोकार्पण करते हुए प्रधानमंत्री ने इस वर्ष को गरीब कल्याण वर्ष कहा। समाज के सशक्तिकरण और अधिकारिता की बड़ी चुनौती को देखते हुए मंत्रालय किन योजनाओं पर काम कर रहा है?
देखिए, मोदी जी की सरकार बनने के बाद हम इन्हीं बिंदुओं और विषयों को लेकर तेज गति से काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बहुत सारी योजनाएं बनाईं, प्रधानमंत्री जन-धन योजना और प्रधानमंत्री मुुद्रा योजना उसी का एक हिस्सा है। वेंचर कैपिटल फंड और बैंकों की जितनी भी शाखाएं हैं, उनमें एससी, एसटी महिलाओं को ऋण सुविधा देने का प्रावधान किया है। स्टार्टअप इंडिया, डिक्की व फिक्की के माध्यम से अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को सारी सुविधाएं देकर आगे बढ़ाना, विशेषकर दिव्यांग जन के लिए सशक्तिकरण की दृष्टि से बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं। जब हमने पिछली सरकारों का रिकॉर्ड देखा तो इन वर्गों के लिए केवल 57 शिविर आयोजित करने का रिकॉर्ड मिला। पर हमने पिछले दो वर्ष से कुछ ही ज्यादा समय में 4,000 से ज्यादा शिविर आयोजित किए हैं। सार्वजनिक तौर पर व विभाग की ओर से हम सबको जो जानकारियां एवं सामग्री दे रहे हैं, उसकी गुणवत्ता भी उन्हें बताई। साथ ही उनसे सुझाव भी मांगे और खामियों को दूर करने व पारदर्शिता बनी रहे, इसके लिए कार्यक्रम आयोजित किए, जिनको सामग्री दी, उनका पूरा विवरण इंटरनेट पर दिया गया है। करीब 4,000 शिविरों से करीब 5 लाख लोगों को लाभ मिला। और जो मैंने कहा कि देश-दुनिया में पहचान बनाई, उसका एक उदाहरण। हाल ही में काशी में एक शिविर आयोजित किया जिसमें 12,000 से ज्यादा लोगों को सुविधा उपलब्ध कराई। उसके बाद नवसारी, गुजरात में 11,930 लाभार्थियों को 11 करोड़ रु. के उपकरण दिए। यहां तीन विश्व रिकार्ड भी बने। पहला, दुनिया में ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश रहा है जिसने एक ही कार्यक्रम में 350 लोगों को सुनने की मशीन उपलब्ध कराई थी। हमने एक ही स्थान पर इस रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 1700 लोगों को यह मशीन उपलब्ध कराई। प्रत्येक को दो-दो मशीन दीं तो ये 3400 मशीनें हुईं। दूसरा, एक हजार दिव्यांग बच्चों ने पंक्ति में बैठकर 30 सेकेंड में एक हजार दीपक जलाए। तीसरा, करीब एक हजार दिव्यांग बच्चों ने प्रधानमंत्री को जन्मदिन की शुभकामनाओं का संदेश लिखा। ये अपने आप में रिकार्ड बने। यानी दुनिया में इतने बड़े शिविर आयोजित नहीं हुए थे। 3 कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री स्वयं उपकरण बांटने आए । पहले कभी देखने में नहीं आया कि नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए दिव्यांग जन के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने उपकरण बांटे हों। प्रधानमंत्री ने बैठकों व चर्चा में हमें मार्गदर्शन दिया। उसके चलते हमने इस क्षेत्र में तेज गति से प्रगति की है। शैक्षणिक दृष्टि से इन वर्गों के बच्चों को छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए थी, पहले की सरकार ने इसे प्रारंभ नहीं किया था। मंत्रालय ने 2014-15 से दिव्यंाग छात्र-छात्राओं को 'प्री-मैट्रिक' व 'पोस्ट मैट्रिक' छात्रवृत्ति देने का निर्णय किया। साथ ही अगर विदेश का कोई विश्वविद्यालय इन छात्रों को अपने यहां प्रवेश देता है तो ऐसे छात्रों को भी आर्थिक सहायता देने का निर्णय लागू किया। ऐसे ही वे दिव्यांग छात्र-छात्राएं जो विशेष पढ़ाई, जैसे पीएचडी, आईआईटी व आईआईएम कर रही हैं, उनको हम आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते हैं।
सरकारी योजनाएं पहले भी थीं, अब भी हैं। क्या अब कुछ ज्यादा रचनात्मकता का समावेश किया गया है?
हमने नई सोच के साथ काम शुरू किया है, जिसके कारण इसमें चैतन्यता और जीवंतता आई है। विभाग के सभी अधिकारी एक उत्साह के साथ काम कर रहे हैं। इसी तरह के अधिकारी और मंत्री पहले भी हुआ करते थे लेकिन मैं किसी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता, पर अनुभव में आया है कि इस बार सभी बड़े ही उत्साह से काम कर रहे हैं। इसी वजह से इस विभाग को ऊंचाइयां और पहचान मिली है।
शिक्षा को रोजगार और कौशल विकास से जोड़ना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। क्या उस दृष्टि से कुछ काम हुए हैं?
बिल्कुल। मेरे विभाग में अनुसूचित वर्ग, ओबीसी, दिव्यांग, जनजातीय, किन्नर वर्ग आता है। इन वर्गों के लिए हमने कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था की है। हमारे यहां अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम है, इसके माध्यम से इस वर्ग के लोगों को प्रशिक्षण देते हैं। सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम है जो सफाई कर्मचारियों को, मैला ढोने वालों को इस कार्य से मुक्त कराकर प्रशिक्षण देना और स्वावलंबी बनाने का कार्य करता है। हम दिव्यांग जन को भी प्रशिक्षण देते हैं। मैं कह सकता हूं कि हमने इन दो वषोंर् में हरेक क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया है। वित्त विकास निगम द्वारा 4, 5 और 6 फीसद वार्षिक के हिसाब से ऋण उपलब्ध कराए हैं। हमने 1.5 लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया है और इन्हें कर्ज भी उपलब्ध कराया है। एक विशेष बात का उल्लेख करना यहां उचित रहेगा कि हाथ से मैला ढोने वालों, सफाई कर्मचारी से संबंधित परिवारों की 500 महिलाओं को कर्मिशयल ड्राइविंग, मैकेनिक व जूडो-कराटे का प्रशिक्षण दिया। इसके साथ ही कुछ टैक्सी कंपनियों व मोटर कंपनियों और कुछ अन्य स्थानों पर बात करके उनके माध्यम से करीब 100 से ज्यादा लोगों को नौकरी भी उपलब्ध कराई। वित्त विकास निगमों से ऋण सुविधा उपलब्ध कराकर हमने छोटे उद्योगों के लिए काफी सुविधा दी। ऐसे प्रयासों से हमने इन्हें सक्रिय करने का काम किया और अच्छी सफलता भी मिली है।
राजनीति में कई मंत्रालयों की चर्चा होती है, पर सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय की उतनी चर्चा नहीं होती। लेकिन चर्चित राजनीति के सबसे बड़े लक्षित वर्ग आपके अंतर्गत हैं।
देखिए, ये प्रश्न हमारे मन-मस्तिष्क में हमेशा रहता है। अधिकतर मंत्रालयों की चर्चा होती है और उनके अंदर बहुत कुछ आता है। स्वाभाविक है कि जहां धन-संपदा होती है उस ओर झुकाव होता है। मेरा विभाग भारत सरकार के बजट का उपयोग गरीबों के हित में करता है। मेरे विभाग में मुनाफेदार निगम और मंडल नहीं हैं। विभाग में हम अधिकार और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और उनका सशक्तिकरण करने की दृष्टि से प्रयास करते हैं। दुर्भाग्य है कि देश का रुझान जितना इस ओर होना चाहिए, उतना नहीं रहा। विकास के दो पहलू होते हैं, एक, आर्थिक विकास। दूसरा, सामाजिक उत्थान। व्यक्ति के विकास को अगर आर्थिक विकास के समान नहीं बनाएंगे तो चाहें कितना भी विकास, सड़क, बिल्डिंग बना दें पर जब मनुष्य, मनुष्य के प्रति मनुष्यता का भाव प्रदर्शित नहीं करेगा तो यह विकास व्यक्ति को एक सूत्र में पिरोने में सफल नहीं हो सकेगा। उसको लगेगा कि ये तो सब हो रहा है लेकिन जितना हमें न्याय मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। तो राजग सरकार बनने के बाद हमने ऐसे वर्ग के लोगों को न्याय दिलाने के लिए जो प्रयास किया है, उसके कारण इस मंत्रालय की पूछ-परख और पहचान बढ़ी है, यह मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूं।
इन वगार्ें को लेकर होने वाली राजनीति को कैसे देखते हैं?
जब संविधान बना तो इन सब विषयों पर गहन अध्ययन किया गया था। आर्थिक और अधोसंरचना की दृष्टि से जितना विकास होना है उससे कहीं अधिक सामाजिक, आर्थिक , शैक्षणिक, धार्मिक विषमताओं को दूर करना बहुत ही जरूरी है। इन बातों को लेकर राजनीति भी हुई और वोट लेने का प्रयास भी हुआ। लेकिन इन वर्गों के उत्थान के लिए जिस तरह का प्रयास होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। मैं फिर से कहना चाहूंगा कि हमारी सरकार ने इन विषयों पर बहुत ही तेज गति से काम किया है। अपवाद स्वरूप कोई दलित उत्पीड़न की घटना होती है, जिन पर प्रधानमंत्री ने भी चिंता व्यक्त की है और कहा है कि आजादी के 70 साल बाद भी दलित उत्पीड़न की घटनाएं घटती हैं तो यह दुखद और शर्मनाक है, ये बंद होना चाहिए। लोग इस तरह की घटनाओं की आड़ में राजनीतिक रोटियां जरूर सेंकते हैं लेकिन इसके समाधान के बारे में कदम नहीं उठाते। राजनीतिक लाभ लेने की दृष्टि से एक घटना हुई है तो वातावरण बनाना चाहिए कि दूसरी घटना फिर न हो। पर वातावरण ऐसा बनाने का प्रयास किया जाता है कि दूसरी घटना हो जाती है। मैं अगर उदाहरण दूं तो जैसे बिहार और अन्य राज्यों के चुनाव थे। उस समय हरियाणा में कोई घटना घटी। ऐसे ही और भी कहीं एक घटना घटी। तो उन मामलों को इतना चर्चा में लाया गया कि साहित्यकार अपने पुरस्कार वापस करने लगे। लेकिन जैसे ही बिहार चुनाव समाप्त हुआ, उसकी कोई चर्चा ही नहीं। अभी ऊना की घटना हुई तो उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में चुनावों को देखते हुए उसकी भी जोरों से चर्चा चल रही है। जो इस तरह का वातावरण बनाते हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि अगर वे सरकार में होते तो क्या करते? गुजरात में जो घटना घटी उस पर सरकार ने कार्रवाई की और प्राथमिकी दर्ज की। जो वास्तविक धाराएं लगनी चाहिए वे लगीं और तुरंत गिरफ्तारी हुई। सरकार कानून का इससे अच्छा उपयोग क्या कर सकती थी। ये सब किया फिर भी कुछ लोगों ने जान बूझकर इसे चर्चा का विषय बनाया। दूसरी तरफ आगरा में अरुण माहौर की हत्या की घटना घटी थी। संघ विचार परिवार के कार्यकर्ता को सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर जान से मार दिया, लेकिन उसकी कोई बात नहीं हुई। केरल में एक लड़की जीशा का बलात्कार करने की कोशिश की गई और उस पर 38 बार चाकुओं से वार किया गया, उसकी कोई चर्चा नहीं हुई, न ही कोई वहां गया। कर्नाटक में एक अधिकारी, जो दलित वर्ग का था, अपने वरिष्ठ अधिकारी द्वारा प्रताडि़त किया गया था, उसने आत्महत्या कर ली, उसकी कोई चर्चा नहीं हुई। उसकी चर्चा इसलिए नहीं हुई क्योंकि वहां पर विरोधी विचार वालों की सरकार है। उ.प्र. में सपा की सरकार है। केरल में उस समय कांग्रेस की सरकार थी। अगर वहां और किसी की सरकार होती तो ये लोग पूरे देश में माहौल खराब कर देते। और दूसरा पहलू, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने और अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करके उनकी मदद का कार्य किया। राजनीतिक लाभ लेने की कोई कोशिश नहीं की गई।
आप इस वर्ग को लेकर राजनीति करने वालों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
जहां भी इस तरह की घटनाएं होती हैं, वहां इस पर राजनीति करना, उन्हें नीचा दिखाना और अपना फायदा सोचना, इस प्रकार का कृत्य करने वालों से मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि देश में सामाजिक समरसता की आवश्यकता है और सामाजिक समरसता के लिए सामाजिक समता लाने की अवश्यकता है, क्योंकि इसी से समाज में सद्भाव आएगा। इसी की कल्पना संविधान निर्माताओं, स्वामी विवेकानंद, गांधी जी, पं.दीनदयाल उपाध्याय व अन्य महापुरुषों ने की थी। इसी सबके चलते हमारे संवैधानिक प्रावधान भी इस प्रकार के किए गए हैं। उसका ठीक ढंग से अनुपालन करना चाहिए।
हमारी आजादी को 7 दशक पूरे होने को आए। इन सात दशकों में इतने कदम! तो पांच साल में कितने कदम?
देखिए, इसका सीधा-सीधा पैमाना और मापदंड कर पाना उचित नहीं होगा। मैं इतना कह सकता हूं कि आजादी के बाद इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के प्रयास हुए हैं। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सब विषमताओं को दूर करने के प्रयास हुए पर पिछले 15-20 साल में वातावरण जितना अनुकूल बनाना चाहिए था, वह बनाने की कोशिश नहीं हुई। देश में देशभक्ति का जज्बा जगाने के बजाय व्यक्तिहित, जैसे मैं और मेरा परिवार, तक सीमित रखकर समाज की चिंता किए बिना समाज को बांटने की भी कोशिश की। कुछ लोग योजनाबद्ध तरीके से देशविरोधी गतिविधियां संचालित करते हैं और ऐसे लोग ऐसी घटनाओं का लाभ लेने का प्रयास करते हैं। उसके कारण वातावरण खराब हुआ है। श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद इस प्रकार की सब गड़बडि़यों को रोकने, सद्भावना और अमन-चैन का वातावरण बनाने के लिए योजनाएं भी बनीं और उन पर अमल भी हुआ है। सब मिलकर प्रयास कर रहे हैं कि देश में अमन-चैन का वातावरण बनंे। भारत की संस्कृति ही विश्व में आगे रहकर सुख-शांति दिला सकती है। इसलिए हमारी संस्कृति महान है। हमें सबके प्रति आदर भाव रखना चाहिए। इन दो वर्षों में ये सब काम हुआ है। संसद में भी इस तरह की घटनाओं के आंकड़े आए हैं जोकि पहले की तुलना में कम हैं। लेकिन इस काम को भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना कुछ लोगों का काम बन गया है। भारत और भारत सरकार को कुछ लोगों ने ऐसी घटनाओं की आड़ लेकर बदनाम करने का प्रयास किया है, जो ठीक नहीं है।
मंत्रालय के काम में सबसे बड़ी चुनौती क्या देखते हैं?
सामाजिक समता लाना सबसे बड़ी चुनौती है, और जो विषमताएं हैं, उनको दूर करना भी एक चुनौती है। आज भी ऐसे लोग हैं जिनके गले संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप होने वाला काम नहीं उतरता है। हम सबको शोषित, पीडि़त, दलित, अनुसूचित और दिव्यांग वर्ग के लोगों के सशक्तिकरण के लिए उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास करना चाहिए। मैं सोचता हूं कि इस प्रकार के प्रयास को निरंतर आगे बढ़ाने की जरूरत है।
टिप्पणियाँ