कौन भरेगा शून्य?
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कौन भरेगा शून्य?

by
Dec 12, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 2016 12:16:58

द्रविड़ अतिरेक, देशविरोधी गुटों और ब्राह्मण-उत्तर भारत से घृणा को थामा था जयललिता ने। नेतृत्वहीन अन्ना द्रमुक अब दिशा और सहारे की तलाश में। राज्य पुन: द्रमुक के अंधेरे युग में न लौटे, यह सुनिश्चित करना होगा

तरुण विजय

तमिलनाडु की सर्वाधिक करश्मिाई नेता और पांच बार मुख्यमंत्री रहीं सुश्री जयललिता के अवसान का समाचार आते ही पूरा तमिलनाडु सन्नाटे में समा गया। 5 दिसंबर की मध्य रात्रि 12.20 पर उनके निधन की खबर आई। 12.22 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया- ''तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जी के निधन का समाचार पाकर बहुत दुख हुआ। अपने प्रशंसकों से अम्मा बिछुड़ गईं और भारत ने अपनी एक महान बेटी खो दी।''
मैंने 1.30 बजे अपनी श्रद्धांजलि लिखी और सुबह की जो भी उड़ान संभव हो, उससे चेन्नै जाने की व्यवस्था की।
चेन्नै उतरते ही सन्नाटे की दहशत से सामना हुआ। नर्विात, नर्विाक, नस्तिब्ध चेन्नै। अवाक्, अवसन्न, अश्रुमय चेन्नै। सूनी सड़कें, घर-दुकानें बंद। सांय-सांय करता वातावरण और शब्दहीन संसार। हमारा चालक भी चुप था। कुछ पूछने पर भी हां या हूं में जवाब। यह वातावरण सर्फि चेन्नै में नहीं, सभी नगरों में था। राजाजी भवन से लेकर मरीना सागर तट तक उमड़ी भीड़ खारे सागर के किनारे खारे आंसुओं का सागर बन गई थी।
तमिलनाडु की राजनीति का एक युग समाप्त हो चला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुश्री जयललिता के अवसान पर असाधारण विनम्रता और संवेदना के साथ अड्यार हवाई अड्डे से राजाजी भवन तक अपनी गाड़ी पर न तो तिरंगा लगाया, न ही हूटर का उपयोग किया। उनकी आंखें नम थीं। एक बड़े भाई के नाते वे जयाजी के साथ जुड़े सभी लोगों से मिले-श्रीमती शशिकला, श्री पन्नीरसेल्वम, जो बेहद भाव विभोर थे, उन्हें थामा, सांत्वना दी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, राज्यपाल श्री वद्यिासागर राव के साथ आए। यह दृश्य देख पत्थरहृदय भी पसीजते ही। यदि भाजपा के प्रदेश और केंद्र से प्राय: सभी प्रमुख नेता-वेंकैैया नायडू,  पोन. राधाकृष्णन, तमिलीसाई सुन्दरराजन, वानती श्रीनिवासन, राज्यसभा सांसद ला. गणेशन-थे, तो उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, दल्लिी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तृणमूल आदि दलों के सांसद, कांग्रेस से राहुल गांधी, गुलाम नबी आजाद…संख्या अंतहीन। जयललिता के प्रबल राजनीतिक प्रतद्विंद्वी करुणानिधि को भी कहना पड़ा कि जयललिता हमेशा याद की जाती रहेंगी। उनके बेटे स्टालिन ने जया को लौह महिला बताया।
चंदन की काष्ठ-पेटिका में जब स्व. जयललिता की पार्थिव देह धरा के गर्भ में समायी जा रही थी-उनके ईद-गर्दि हम सब लकड़ी के छोटे-छोटे खंड-संभवत: वह भी चंदन ही थी, अर्पित कर रहे थे। धरती की बेटी, धरती के आंचल में अंतिम वश्रिाम के लिए चली गई। चारों ओर जन सागर-पुरच्ची तलैवी वाळगा-पुरच्ची तलैवी वाळगा (क्रांतिकारी नेता अमर रहे) के नारे लगा रहा था। एक महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि इस अवधि में कहीं भी किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला। तमिलनाडु में भावुक हृदय प्रशंसक अपने प्रिय नेताओं के निधन पर आत्महत्या कर लेते हैं, दंगे भी हो जाते हैं। किंतु स्व. जयललिता का प्रभाव एवं उनके राज्य में पुलिस व्यवस्था की ऐसी चुस्ती दिखी कि सभी आशंकाएं नर्मिूल सद्धि हुईं।
 

ऐसा क्या था स्व. जयललिता के व्यक्तित्व में? 68 वर्षीया जयललिता ने 140 फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें धर्मेंद्र के साथ बनी फिल्म 'इज्जत' हिंदी में थी। वे हिंदी बोलती, समझती थीं, सिमी ग्रेवाल के साथ अपने एक प्रसिद्ध इंटरव्यू में उन्होंने हिंदी गीत 'आ जा सनम, मधुर चांदनी ..' की पंक्ति भी गुनगुनाई थी। द्रविड़ अस्मिता, पेरियार के आत्मरुझान आंदोलन से जन्मी द्रविड़ राजनीति, तमिल भाषा के लिए चरम संघर्ष और फिल्मी नायकों के गहरे असर में तमिल राजनीति शेष देश से हमेशा कुछ अलग ही रही है। पेरियार (मूल नाम ई.वी. रामास्वामी नाइक्कर) ने 1925 में वैदिक रीति-रिवाज, संस्कृत, ब्राह्मण-प्रभुत्व के विरुद्ध निषेध आंदोलन शुरू किया और उत्तर भारत की परंपराएं थोपने के लिए हिंदू-हिंदू का विरोध चरम तक पहुंचाया। यहां तक कि सप्तपदी पर आधारित विवाह पद्धति को अस्वीकार कर केवल 'आत्म सम्मान-विवाह' को प्रचलित किया।
उन्होंने पूरे तमिलनाडु में भारत से अलग होने की मुहिम चलाई और घोषित किया कि द्रविड़ समाज का उत्तर भारत, हिंदी, संस्कृत, ब्राह्मण समाज से कोई संबंध नहीं है। इतना तीव्र था यह आत्मसम्मान आंदोलन कि तमिलनाडु में ब्राह्मणों को नौकरी मिलना कठिन हो गया और वे केंद्र सरकार की नौकरियों में जाने लगे। मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हुआ, जिनके  प्रमुख अनीश्वरवादी बनाए गए। पेरियार द्वारा बनाई गई द्रविड़ कझगम का मूल विचार 1916 में जस्टिस पार्टी के गठन से निकला था, जिसने 1920 से 1937 के मध्य अपने स्थानीय शासन के दौरान आरक्षण व्यवस्था लागू की। परंतु पेरियार के द्रविड़ कझगम के विचार के ज्यादा जोर पकड़ने पर 1944 में जस्टिस पार्टी का कझगम में विलय हो गया।1962 तक द्रविड़ कझगम, 'ब्राह्मण-बनिया शिकंजे' के विरुद्ध पृथक देश की मांग करता रहा, पर जनता ने साथ न दिया तो अंतत: वे लोकतांत्रिक संविधान की राह पर आए।
उधर तमिल राजनीति में सिनेमा के बढ़ते प्रभाव से द्रविड़ विचार अलग राह चला। युवा लेखक करुणानिधि द्वारा लिखित पराशक्ति पर 1952 में फिल्म रिलीज हुई जो द्रविड़ आंदोलन के लिए मील का पत्थर साबित हुई।
1967 में द्रविड़ कझगम से निकली पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम (द्रमुक) अन्नादुरई के नेतृत्व में चुनाव जीती और फरवरी 1969 तक अन्नादुरई तथा उनकी मृत्यु के बाद करुणानिधि मुख्यमंत्री बने। 1971 के चुनाव में भी द्रमुक जीती, लेकिन तब तक उन पर भ्रष्टाचार और कुशासन के इतने आरोप लगे कि चमकते फिल्मी सितारे और द्रमुक नेता एम. जी. रामचंद्रन ने उनसे अलग होकर अन्ना द्रमुक पार्टी बनाई और 1977 में जीतकर मुख्यमंत्री बने। जयललिता, उभरती फिल्मी नायिका और एम. जी. आर. की सहयोगी, 1982 में अन्ना द्रमुक में पदाधिकारी बनीं तथा उसी वर्ष राज्यसभा की सदस्य भी निर्वाचित हुईं। तब से जयललिता का राजनीति में आरोहण हुआ और एम. जी. आर. की मृत्यु के बाद 1991 में वे मुख्यमंत्री बनीं। 2001, 2011, 2014 व पुन: अदालती आदेश से पदच्युत व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुन: पदासीन किए जाने के बाद मई 2015 में मुख्यमंत्री बनीं।
इस पृष्ठभूमि को अन्ना द्रमुक में जयललिता की स्थिति समझने के लिए जानना जरूरी है। जयललिता ने देश में सबसे पहले पुजारियों को पंेशन देनी शुरू की, उनके मूल घर का नाम वेद-निलयम रखा, पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठानों में विश्वास जताया, वैदिक रीति से विवाहों में शामिल हुईं- 'आत्मसम्मान' विवाहों की अवैदिक, अधार्मिक पद्धति अपने यहां रुकवाई, लेकिन राजनीतिक शतरंज भी खेली।
जो भी रहा, द्रविड़ अतिवाद, पृथकतावाद एवं उत्तर भारत के प्रति तीव्र घृणा के प्रवाह को जयललिता ने रोका। इसमें संदेह नहीं। श्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने सबसे पहले समर्थन दिया, उनके मुख्यमंत्री काल में उनके प्रत्येक शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुईं। उन्हें अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया।  गोधरा कांड पर उन्होंने चुप्पी तोड़ हिंदुओं के समर्थन में बयान दिया। जब करुणानिधि ने रामसेतु तोड़, वहां सेतुसमुद्रम मार्ग से जहाज जाने का जल-पथ स्वीकार किया तो जयललिता ने रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की और यूपीए सरकार द्वारा रामसेतु ध्वस्त करने के लिए  सर्वोच्च न्यायालय में दिए शपथपत्र का विरोध किया। जयललिता ने एक बयान में कहा कि यदि रामसेतु तोड़ा जाता है तो हिंदू भावनाओं को आघात पहुंचेगा और देश में सांप्रदायिक संघर्ष हो सकता है। स्पष्ट है, जयललिता द्रविड़ आंदोलन के तीव्र हिंदू विरोध के सामने चट्टान बनकर खड़ी हुईं और तमिलनाडु की राजनीति को अलग स्वरूप दिया। राज्य में सबसे पहले मध्याह्न भोजन एम. जी. आर. के समय शुरू हुआ। गरीबों, महिलाओं के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी योजनाएं तमिलनाडु में जयललिता ने प्रारम्भ कीं। बालिकाओं को शिक्षा, महिलाओं को रोजगार एवं गृहविहीन गरीब वर्ग के लिए बहुत ही कम दर पर  'अम्मा भोजन' जैसी योजनाओं में तमिलनाडु अग्रणी रहा।
हरिद्वार में जब हमने संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा स्थापित करने के लिए जयललिता का सहयोग मांगा तो उन्होंने तुरंत अपने सभी सांसदों को निर्देश देकर सपा नेता मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखवाया। सब कुछ सरल रेखा में वैसा नहीं भी होगा जैसा राष्ट्रीयता की विचारधारा के अनुगामी सोचते हैं। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि द्रविड़ अतिवाद एवं अराष्ट्रीय विचारों के विरुद्ध सामंजस्य और समन्वय का सेतु थीं स्व.जयललिता। उनके निधन के बाद तमिलनाडु में एक बड़ा राजनीतिक शून्य पैदा हो गया है। अन्ना द्रमुक में कोई अब उनकी छाया के निकट भी आने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस वहां अस्तित्वहीन है, जो करुणानिधि की द्रमुक के साथ बंधी है। इस शून्य को तमिलनाडु की धर्मप्रिय, राष्ट्रीयता के विचार वाली जनता भरना चाहेगी तो निश्चय ही करुणानिधि इस अवसर का उपयोग द्रमुक के लिए करना चाहेंगे।
 यह स्थिति केवल तमिलनाडु ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी चिंता का विषय है। बहुत समय बाद तमिलनाडु राष्ट्रविरोधी अतिवाद के भंवर से निकला और अब जो खालीपन जयललिता के अवसान से पैदा हुआ है, उसका देश की एकता को कमजोर करने वाले तत्व लाभ न उठा सकें, यह सुनिश्चत करना होगा। इस्लामी अतिवाद, विदेशी धन के कुचक्र और द्रविड़ अतिवाद तमिलनाडु में सिर उठा ही रहे हैं। अपनी शर्तों पर राज कर अपनी दृष्टि से, पुरुष प्रधान राजनीति में  'एकला चोलो रे' का सिक्का जमाने वाली जयललिता ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया, अनेक झंझावातों से विजयी निकलीं और अंतिम समय तक संघर्ष करते हुए जनमानस पर एक अभूतपूर्व छाप छोड़ी—यह निर्विवाद सत्य है। उनके बाद जन्मे शून्य को भरना एक बड़ी चुनौती है।
जयललिता के समय स्कूली शिक्षा, पुलिस और प्रशासन चुस्त रहा। देश की सबसे अच्छी प्रशासन व्यवस्थाओं में यदि गुजरात, म.प्र., महाराष्ट्र गिने जाते हैं तो तमिलनाडु भी इसी वर्ग में प्रतिष्ठित है। यहां चिकित्सा, विज्ञान, तकनोलॉजी के विश्वविख्यात केन्द्र हैं। देश में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद में तीसरा सबसे बड़ा राज्य, 50 प्रतिशत शहरी आबादी और औद्योगिक प्रगति का अग्रगामी प्रदेश वस्तुत: हिंदू धर्म और संस्कृति का आगार है। यहां धर्महीन राजनीति के विरुद्ध अन्ना द्रमुक का साथ राजनीति पर स्पष्ट और तीखे विचार रखने के लिए मशहूर तुगलक पत्रिका के संस्थापक, संपादक, सुप्रसिद्ध व्यंग्य चित्रकार चो. रामास्वामी (जिन्हें 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाञ्चजन्य सम्मान से अलंकृत किया था) ने दिया। तमिलनाडु में द्विदलीय द्रविड़ राजनीति का धु्रवीकरण है और इस सच्चाई को सामने रखते हुए ही कुछ किया जा सकता है। चो. रामास्वामी का 7 दिसंबर को 82 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। रुग्णावस्था में उनसे मैं अपोलो अस्पताल में मिला था। उनका स्वर हमेशा राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रहा। वे सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दस वर्ष पूर्व ही कहा था कि देश के प्रधानमंत्री पद पर  नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति ही आना चाहिए। प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी उनसे मिलने गए और उनके सम्मान में हुए कार्यक्रम में चो ने मंच से श्री मोदी को भाषण के लिए आमंत्रित
किया था।
चो और जयललिता, दोनों तमिल राजनीति के विशिष्ट और समन्वयवादी ध्रुव थे, जिनके मानस में देश की पूरी छवि थी। गोधरा कांड पर यदि जयललिता और चो ने सेकुलरों को लताड़ा था और दृढ़ता दिखाई तो अयोध्या और आतंकवाद पर उनकी दृष्टि राष्ट्रीय थी। यही कारण है कि रा.स्व.संघ व विश्व हिंदू परिषद ने भी भावभीने शब्दों में दोनों को श्रद्धांजलि अर्पित की। अब आगे का मार्ग तमिलनाडु ही नहीं, दक्षिण भारत की राष्ट्रीय यात्रा का सोपान तय करेगा। 

प्रतिज्ञा
25 मार्च, 1989 को तमिलनाडु विधान सभा में बजट सत्र में मचे शोर के दौरान एक द्रमुक विधायक ने जयललिता की साड़ी ऐसे खींची कि वे गिर गईं। जयललिता ने फौरन संभलते हुए शपथ ली कि अब वे उस सदन में तभी लौटेंगी जब वह महिलाओं के लिए सुरक्षित होगा, यानी जब वे मुख्यमंत्री बनेंगी।

प्रहार
जयललिता गलत बात पर तुरंत कार्रवाई करती थीं। एक बार सरकारी कर्मियों ने हड़ताल की, जिसे गैरकानूनी बताते हुए जयललिता ने आदेश दिया, करीब 1.50 लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उन्होंने एक और फैसला लेते हुए 5,000 से ज्यादा आय वालों के राशनकार्ड निरस्त कर दिए थे।

प्रतिशोध
2001 में अपने धुर विरोधी करुणानिधि, मुरासोली मारन और टी. आर. बालू पर फ्लाइओवर घोटाले के आरोप में मुख्यमंत्री जयललिता ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया। पुलिस ने फौरन हरकत में आते हुए 30 जून, 2001 को पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि को उनके निवास से रात 1.45 बजे गिरफ्तार किया था।

सुश्री जयललिता के निधन पर विहिप का शोक संदेश
विश्व हिंदू परिषद ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री डॉ. जयरामा जयललिता केे निधन पर गहन शोक संवेदना व्यक्त की है। परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव श्री चंपतराय ने अपने शोक संदेश में कहा है-'' देश ने एक ऐसी महान महिला नेत्री को खो दिया है जिसने जिंदगीभर विभिन्न चुनौतियों से संघर्ष किया और गरीबों के उत्थान के लिए काम किया। एक महान मानवतावादी के नाते अपने राज्य में सामाजिक जीवन स्तर की बेहतरी के उनके कामों के लिए उन्हें सदा याद रखा जाएगा। अपने ऊपर बार-बार हमले होने के बावजूद अपने राजनीतिक जीवन में वे शुचिता के साथ वापस लौटीं।
प्रभु से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनके समर्थकों तथा तमिलनाडु की जनता को संबल प्रदान करें।''

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