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अभिमत – सेकुलर चश्मे से न देखें संघ को

by
Dec 5, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Dec 2016 16:30:14

एक अनाम व्यक्ति ने फोन करके पूछा, 'क्या आप कर्ण खर्ब हैं?'  मैंने 'हां' में जवाब दिया, तो उसने मुझे हरियाणा में जाटों द्वारा नौकरियों में आरक्षण की मांग की खिल्ली उड़ाने और गैर-भाजपा दलों तथा आईएसआई जैसी एजेंसियों, लश्कर और पाकिस्तानी आतंकवादियों के बीच गठजोड़ दर्शाने के लिए 'गंभीर परिणाम' भुगतने की चेतावनी दी। उसने यह भी कहा, ''आप रा. स्व. संघ के आदमी हैं, आपको जल्दी ही इसके लिए पछताना होगा।'' हालांकि 'ट्रू कलर' एप्लिकेशन के बूते फोन करने वाले का जल्दी  ही पता लगा लिया गया।
इसके बाद जिस चीज ने मुझे हैरान कर दिया था, वह न तो उसकी चेतावनी थी और न उसकी लगभग अपमानजनक भाषा थी, बल्कि उसके द्वारा मुझे 'रा. स्व. संघ का आदमी' कहा जाना और उसकी निहित धारणा थी। मीडिया के कुछ वगोेेर्ें और देश में तुष्टीकरण की स्वार्थी राजनीति द्वारा फैलाई गई झूठी अफवाह ऐसी है कि आलोचकों के पास जब भी तकार्ें की कमी होती है, वे संघ का राग अलापना शुरू कर देते हैं। वे इस बात का कभी सटीक विवरण नहीं देते कि इस संगठन में इतना वीभत्स क्या है। मैं न तो संघ का स्वयंसेवक हूं और न ही भाजपा का कार्यकर्ता। हालांकि देश के एक नागरिक के तौर पर, जब भी मैंने राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के दर्शन में बुराइयों को सटीक तौर पर निर्दिष्ट करने के लिए कहा है, तो उन्होंने दो बातों का उल्लेख किया है- एक, महात्मा गांधी का हत्यारा गोडसे  संघ का आदमी था और दूसरा, संघ का 'हिंदू राष्ट्र' का एजेंडा।
तथ्यात्मक तौर पर, पहला आरोप झूठा है, जिसे न्यायपालिका द्वारा और नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा भी 1950 के दशक की शुरुआत में ही स्वीकार किया जा चुका है। दूसरा – 'हिंदू राष्ट्र की अवधारणा' निस्संदेह सच है! अब यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी 'हिंदुत्व' पर अपने पहले के उस फैसले को दोहराया है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि 'हिंदुत्व एक जीवनशैली है' जो कि एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर लागू होती है, जिनकी एक साझी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत है। तो जिस भारत में सभी लोगों को एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक के रूप में समान अधिकार और दायित्व प्राप्त हैं, अगर वह भारत एक 'हिंदू राष्ट्र' नहीं है तो इसका क्या मतलब है?
सबसे पहली बात, पंथनिरपेक्षता हिंदू धर्म में अंतर्निहित है। विश्व बंधुत्व की सदियों पुरानी उक्ति – वसुधैव कुटुम्बकम् इस महान सिद्धांत की एक पवित्र और संस्कारपूर्ण पुष्टि है। दूसरे, हालांकि हिंदू विद्वान अति प्राचीनकाल से समाज सुधार करने और एक पवित्र समाज को पुष्ट करने के लिए उपदेश देते रहे हैं, लेकिन हिंदू दूसरों को 'हिंदू धर्म' में कन्वर्ट नहीं करते हैं। तीसरे, भारत कई मत-पंथों और आस्थाओं के विकास की भूमि रहा है, जो यहां मौजूद हिन्दू संस्कृति और हिन्दू जीवनशैली के साथ सद्भाव के साथ पनपी हैं।
रसखान और रहीम जैसे कवियों ने हिंदू देवताओं की स्तुति में पूर्ण भक्ति के साथ भजन गाए थे। 1857 में ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंदू और मुसलमान एक संयुक्त राष्ट्रवादी शक्ति के रूप में एक साथ लड़े थे। संघ की स्थापना के समय डॉ. हेडगेवार ने का उद्देश्य था सार्वभौमिक बंधुत्व, एकजुटता और समानता की अपनी सदियों पुरानी संस्कृति में निहित एक राष्ट्र के रूप में संयुक्त भारत की विचारधारा पर आधारित अवधारणा को पुष्ट करना। आज संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है, जिसमें कई मुस्लिम, ईसाई, आदि पंथों के लोग भी स्वयंसेवक हैं। ये साझे राष्ट्रीय हित के संवर्धन के लिए कंधे से         कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। इस अवधारणा और अभ्यास में गलत क्या है?
1934 में महात्मा गांधी संघ के एक शिविर में आए थे। वे स्वयंसेवकों के अनुशासन और भाईचारे के माहौल से बहुत प्रभावित हुए थे। अक्तूबर 1947 में, कांग्रेस ने संघ के नेतृत्व पर इतना विश्वास किया था कि कश्मीर का भारत में विलय करने हेतु महाराजा हरि सिंह को मनाने के लिए श्रीगुरुजी से निवेदन किया था। राहुल गांधी, पी़ चिदंबरम और दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने खुले तौर पर राष्ट्र विरोधी नारेबाजी का समर्थन करने और एक अस्तित्वहीन 'हिंदू आतंकवाद' का भूत खड़ा करके हिंदुओं को कलंकित करने के प्रयासों से कभी संकोच नहीं किया। संघ के किसी स्वयंसेवक के किसी भी आतंकवादी, राष्ट्र विरोधी या आपराधिक गतिविधि में शामिल होने के लिए अपराधी ठहराए जाने के एक भी उदाहरण का हवाला दिए बिना, इनमें से एक तो आईएसआईएस के साथ संघ की तुलना करने की हद तक गया है!
दुर्भाग्य से, सांप्रदायिक जुनून पैदा करके समुदायों के बीच आपसी विश्वास और इस महान राष्ट्र के नैतिक चरित्र को नष्ट करने की मीडिया के एक वर्ग और भारतीय राजनीति के एक हिस्से द्वारा रची गई एक गहरी साजिश स्पष्ट तौर पर नजर आती  है। हिन्दुत्व और संघ के खिलाफ सारे दुष्प्रचार का लक्ष्य एक राष्ट्र के रूप में भारत के नैतिक चरित्र को कमजोर करना है, जबकि हिंदुत्व पर सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या संघ की व्याख्या से अलग नहीं है।  
                                           लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं

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