काजीरंगा का राजा
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काजीरंगा का राजा

by
Nov 28, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Nov 2016 16:50:46

 

काजीरंगा अभयारण्य को एक सींग वाले गैंडे के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर विशेष रूप से जाना जाता है। एक वक्त था जब गैंडों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी लेकिन आज तस्करों के कारण असम की यह 'शान' सान पर चढ़ी है। इनकी संख्या घटती जा रही है। अपने अनूठे सींग के ही कारण यह तस्कारों के निशाने पर है। आए दिन होती गैंडों की हत्या काजीरंगा के रंग को फीका कर रही है

 

 

काजीरंगा से लौटकर अश्वनी मिश्र

घटना बीते 12 अगस्त की है। असम के अधिकतर समाचार पत्रों में एक तस्वीर छपी थी। तस्वीर काजीरंगा अभयारण्य में एक मादा गैंडे और उसके बच्चे की थी, जिसे शिकारियों ने गोली से घायल करने के बाद जीवित अवस्था में ही उसका सींग और कान काट लिया था। मादा गैंडे के शीश से खून की धारा बह रही थी। उद्यान में 24 घंटे में एक के बाद एक दो गैंडों की हत्या से अभयारण्य का प्रशासन परेशान था। वन्य सुरक्षाकर्मियों ने मादा गैंडे के शव को उद्यान के बांगोरी रंेज से बरामद किया था। स्थानीय लोगों को जैसे ही इस बात की भनक हुई, घटनास्थल पर भीड़ जुट गई। खून से लथपथ मूक प्राणी को देखकर स्थानीय लोग मर्माहत हो गए और उनके सब्र का बांध टूट गया। विरोध में वे सड़क पर उतरे। गुस्साए लोगों ने अभयारण्य के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी की और राज्य सरकार से इस पर त्वरित कार्रवाई करने का दबाव बनाया। आनन-फानन में वन अधिकारियों ने टीम गठित कर शिकारियों की धर-पकड़ तेज की। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी शिकारी अपने काम को पूरा कर उनकी पहुंच से दूर जा चुके थे और वन्य सुरक्षाकर्मी फिर चूक गए थे। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान राजधानी गुवाहाटी से 194 किमी. दूर है। गुवाहाटी से सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। एक सींग वाले गैंडे को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां पहुंचते हैं। हरा-भरा स्थान, जंगलों जैसी दलदली जमीन, ऊंची-ऊंची झांडि़यां, दूर-दूर तक सरकंडे वाले घास के मैदान एवं गहरे तालाब यहां की विशेषताएं हैं। 858 वर्ग किमी. में फैला काजीरंगा दुनिया में विख्यात है। एक सींग वाले गैंडों की 70 फीसद संख्या अकेले यहीं विचरती है। इसी वजह से इसे यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया है। लेकिन जिसके लिए काजीरंगा प्रसिद्ध है, आज उसी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस साल यानी जनवरी से अब तक कुल 16 गैंडों की हत्या की जा चुकी है। तो वहीं दस साल के आंकड़ों पर गौर करें तो तस्करों ने सैकड़ों गैंडों को अपना शिकार बनाया है। तस्करों के हौसले इतने बुंलद हैं कि पिछली 7 जून को उन्होंने ऐसे समय गैंडे की हत्या की जब राज्य की वन मंत्री प्रमिला रानी ब्रह्म एवं अन्य दो मंत्री अभयारण्य में मौजूद थे। तमाम सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए शिकारी गैंडे को मौत के घाट उताकर उसका सींग काटकर फरार हो गए। वन मंत्री प्रमिला ब्रह्म ने इसके लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया। वहीं असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवव्रत सैकिया ने गैंडों की मौत पर मीडिया से बातचीत में कहा कि जब हमारी सरकार थी तो हमने गैंडों की हत्या के मामले में सीबीआई जांच कराने की घोषणा की थी। और भी कई प्रयास किये लेकिन हमें केंद्र का साथ नहीं मिला।

हालांकि वन्य विशेषज्ञों का कहना है,''हर बार गैंडों की हत्या होने पर राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं,लेकिन शायद तस्करों को इससे कोई मतलब नहीं होता कि सरकार किसकी है। उन्हें जब भी मौका मिलता है, वे अपना काम कर देते हैं।'' तभी तो अप्रैल महीने में जब ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस विलियम अपनी पन्नी केट मिडिलटन के साथ यहां आए थे तो उस समय भी शिकारियों ने तमाम सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए शाही परिवार के आने से एक दिन पहले और उनके जाने के एक दिन बाद दो गैंडों की हत्या करके उद्यान प्रशासन को चुनौती दी थी। तब अभयारण्य के बूढ़ापहाड़ क्षेत्र से गैंडों के शवों को बरामद किया गया था। वन्य अधिकारियों और मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक घटनास्थल से एके-47 के दर्जनों खाली कारतूस बरामद किये गए थे।

 

गौरतलब है कि कुछ महीनों पहले राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में जहां बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का मुद्दा हावी था वहीं एक सींग वाले गैंडों की हत्या ने भी कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हालांकि काजीरंगा राष्ट्रीय अभयारण्य के निदेशक डॉ. सत्येन्द्र सिंह का मानना है कि पिछले वर्षों की तुलना में अब गैंडों की हत्या में कमी आई है। वे कहते हैं,''वन्य प्राणियों की हत्या आज से नहीं, बहुत पहले से होती रही हैं। पहले ये समाचार समाज में आ नहीं पाते थे अब मीडिया के कारण आ जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे इन हत्याओं में कमी आ रही है।'' वे आगे कहते हैं,''गैंडों की सुरक्षा के लिए वन्य प्रशासन बराबर चिंतित है। उनकी सुरक्षा के लिए 'खुफिया संजाल' सबसे अहम है। इसे विकसित करने के लिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैं।'' लेकिन कुछ महीने पहले के आंकड़े निदेशक की बात से इतर सच सामने रखते हैं। तमाम सुरक्षा दावों के बाद भी काजीरंगा और राष्ट्रीय मानस पार्क में पिछले कुछ महीने में ही अकेले 5 से ज्यादा गैंडों की हत्या कर दी गई और तस्कर सींग लेकर फरार हो गए। आए दिन होती इन हत्याओं से स्थानीय लोग एवं पशु प्रेमी काफी आहत हैं। इसके लिए वे पूर्ववर्ती सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। वन्य जीवन से संबंधित फिल्म निर्माण के लिए मशहूर फिल्म निर्माता नरेश बेदी आए दिन होती घटनाओं पर कहते हैं, ''सबसे बड़ा कारण गैंडों के सींग का बेशकीमती होना है। इसके लिए तस्कर किसी भी हद चले जाते हैं। जान देने से लेकर जान लेने तक में उन्हें कोई परहेज नहीं है।'' वे बताते हैं, ''कुछ हद तक उद्यान के पास बंगलादेशी मुस्लिमों की बस्तियां भी एक समस्या हैं। जब भी इस समस्या पर कभी कोई बात करने का दम भरता है, वैसे ही इसे राजनीतिक रूप दे दिया जाता है। असल में इनके द्वारा अपने जानवरों को अभयारण्य में छोड़ दिया जाता है। उन जानवरों को जो भी बीमारियां(खुर पका-मुंह पका) होती हैं, वे यहां के जानवरों को भी होने का खतरा रहता है। गैंडा भी इससे अछूता नहीं है।'' पर्यावरण संरक्षण पर काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन आरण्यक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विभव तालुकदार कहते हैं,''आए दिन गैंडों की होती हत्या हर किसी को मर्माहत करती है। कुछ साल पहले इन में काफी कमी आई थी लेकिन फिर से इसमें बढ़ोतरी हुई है। इस संख्या को शून्य करने के लिए जिन प्रयासों की जरूरत है वैसा काम जमीनी स्तर पर देखने को नहीं मिल रहा है।''

 

सोनोवाल सरकार ने छेड़ी तस्करों के खिलाफ मुहिम

 

तस्करों द्वारा आए दिन की जा रही गैंडों की हत्या पर राज्य की सोनोवाल सरकार ने कड़ा कदम उठाया है। दर्जनों शिकारिओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा चुका है। पुलिस ने 12 अगस्त की घटना के आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया है। जिन 6 अपराधियों को पकड़ा गया है, उसमें एक अपराधी की पुलिस को लंबे समय से तलाश थी क्योंकि उसने काजीरंगा में कई गैंडों की हत्या की है।

 

 

तस्करों के निशाने पर साल मारे गए गैंडों की संख्या

2016    16 (अब तक)

2015    16

2014    33

2013    37

2012    25

2011    5

2010    18

2009    14

2008    16

2007    22

2006    05

2005    07

2004    04

2003    03

 

 

31 दिसंबर, 2012 की गणना के मुताबिक पूरी दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की संख्या 3,033 है। इनमें से लगभग 70 फीसदी गैंडे केवल असम में ही हैं। वन्य विभाग की ओर से जारी 15 मार्च, 2015 की गणना की बात करें तो काजीरंगा उद्यान में ही 2401 एक सींग वाले गैंडे हैं। इसके अलावा असम के अन्य क्षेत्रों में भी ये मौजूद हैं। सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के अथक प्रयासों से एक दशक पहले तक गैंडों के अवैध शिकार पर तकरीबन रोक लग गई थी लेकिन 2007 से इसमें फिर तेजी आ गई। प्रतिवर्ष शिकारियों के हाथों जान गंवाने वाले गैंडों की संख्या बढ़ती जा रही है। तो वहीं 145 के करीब गैंडों ने बीमारी के चलते भी कुछ वर्षों में दम तोड़ा है। हालांकि काजीरंगा के पास बसे आम लोगों का मानना है कि संदिग्धों को बसाने में पूर्व वन मंत्री रकीबुल हुसैन का बड़ा हाथ रहा है। उनका आरोप है कि गोगोई सरकार असम की 'शान' की हिफाजत को लेकर गंभीर नहीं रही। तस्करों ने उनके कार्यकाल के दौरान 292 गैंडों को मौत के घाट उतारा वहीं, पिछले कुछ समय में हिरण सहित पांच सौ से अधिक दुर्लभ वन्य प्राणी भी मारे गए। मगर सरकार इस सबके बाद भी   सोती रही।

ऐसे बनाते हैं निशाना

गैंडों की हत्या के पीछे तस्कारों का एक बड़ा संजाल कार्यरत है। इसके पीछे विदेशी मदद की बात सामने आती रहती है। स्थानीय लोगों की मानें तो शिकारी अधिकतर रात के समय ही इनका शिकार करते हैं। पहले वे गैंडे को गोली मारते हैं और जब वह गिर जाता है तो कीमती सींग काटते हैं। बाढ़ के समय तस्कर गैंड़ों के बाहर निकलने का फायदा उठाते हैं और घात लगाकर मार देते हैं।

बाढ़ भी बनती है काल

हर साल बरसात के मौसम में आने वाली प्रलयकारी बाढ़ काजीरंगा के जानवरों के लिए काल से कम नहीं होती। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के मंडलीय वन अधिकारी सुवाशीष दास के मुताबिक, ''बाढ़ के चलते काजीरंगा उद्यान में छोटे-बड़े लगभग 500 जानवर मारे गए हैं। जिन 31 गैंडों की मौत हुई है उसमें दस बच्चे थे जिनकी आयु दो से छह माह के बीच ही थी।'' वे कहते हैं, ''यह बिल्कुल सच है कि हर साल बाढ़ से यहां सैकड़ों पशुओं की मौत होती हैं। पर काजीरंगा के लिए बाढ़ बहुत ही जरूरी है। और रही मौत की बात तो इसमें अधिकतर उन्हीं पशुओं की मौत होती है जो बच्चे हैं, तैरना नहीं जानते या फिर बूढ़े हो   चुके हैं।''

सुरक्षाकर्मियों की कमी

राज्य के वन अधिकारी हमेशा से सुरक्षाकर्मियों की कमी का रोना रोते रहे है। उद्यान के निदेशक डॉ.सत्यंेद्र सिंह मानते हैं,''पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मी उपलब्ध न होने के कारण भी इस तरह की घटनाएं होती हैं। साथ ही इनके पास जो हथियार हंै वह बेहद पुराने हैं ये और तस्करों के मुकाबले उतने प्रशिक्षित भी नहीं हैं। जबकि शिकारियों के पास अत्याधुनिक हथियार होते हैं। ऐसे में उनका मुकाबला करना कठिन होता है।'' हालांकि इसके बाद भी सुरक्षाकर्मियों ने शिकारियों से मुकाबला किया है।

गौरतलब है कि 1985 से अब तक सुरक्षाकर्मियों के साथ हुई मुठभेड़ में 96 तस्कर मारे जा चुके हैं। लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो गैंडों के शिकार की बढ़ती घटनाओं के मुकाबले इस तरह की मुठभेड़ में लगातार कमी आ रही है। खोरा, काजीरंगा के रहने वाले नूतन बरुआ कहते हैं,''इसके पीछे एक बड़ा कारण है काजीरंगा में काम कर रहे आस्थायी कर्मचारियों को स्थायी न करने का निर्णय।'' स्थानीय निवासी अमरकांत सैकिया कहते हैं,''ये सभी कर्मचारी जंगली इलाकों में ही बसने वाले लोग हैं,जो जंगल को बेहतर जानते हैं। ये जंगल के दूसरे कामों के अलावा शिकारियों के आने-जाने की सूचना भी उपलब्ध करवाते रहे हैं। इन आस्थायी कर्मचारियों को आने वाले दिनों में स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने का आश्वासन मिला था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में कुछ लोग शिकारियों और तस्करों के जाल में फंसे हुए हैं। शिकारियों को भी अब ऐसे जानने वाले मिल गए हैं, जो जंगल के चप्पे-चप्पे को अच्छे से पहचानते हैं। जाहिर है, ऐसे हालात में गैंडों के शिकार पर रोक लगा पाना थोड़ा कठिन साबित होने वाला है।''

वैसे, गैंडों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से 'इंडियन राइनो विजन-2020' के नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य वर्ष- 2030 तक असम में एक सींग वाले गैंडों की आबादी बढ़ाकर 3,000 करना है। लेकिन यदि शिकारी इसी तरह आसानी से गैंडों को अपना शिकार बनाते रहे तो ऐसे तमाम कार्यक्रम कागजों में ही सिमट कर रह जाएंगे और भविष्य में आने वाली पीढि़यां इस अद्भुत प्राणी को शायद किताबों में ही देख पाएंगी।

 

 

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