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यूरोपीय देशों में राजनीतिक शरण देने सम्बन्धी कानून बहुत उदार हैं जिसके चलते मुस्लिम जान पर खतरा बताकर घुसते हैं। जनसंख्या बहुल होते ही इनका आतंक बढ़ता है और वहां इस्लाम तेजी से पैर पसारता है। यूरोप के अधिकतर देश इस घुसपैठ से परेशान हैं। लेकिन अब इसके खिलाफ वहां के राष्ट्रवादी संगठन भी खड़े होने लगे हैं
सतीश पेडणेकर
यूरोप अब यूरोप नहीं रहा… वह अब यूरेबिया हो गया है। इस्लाम का उपनिवेश जहां इस्लामी हमला भौतिकरूप से ही नहीं मानसिक और सांस्कृतिक स्तरपर भी चल रहा है। हर शहर में एक दूसरा शहर है मुस्लिम शहर, कुरान से चलने वाला। ऐसा अजीब है इस्लामी विस्तारवाद।
''मैं नहीं मानती कि अल्लाह के संतानों द्वारा हमारे खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध में इस्लामी आतंकवाद मुख्य हथियार है वरन इस युद्ध में पश्चिम के लिए दीर्घकाल में सबसे खतरनाक बात है अनियंत्रित मुस्लिम घुसपैठ जो ढाई करोड़ तक पहुंच चुकी है और 2016 के बाद दो गुनी हो जाएगी, जिससे मुस्लिम यूरोप का निर्माण होगा। जिस तरह इटली और यूरोप में मुस्लिमों की तादाद बढ़ती है उसी अनुपात में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्षरण होता है।''
यह आकलन है यूरोप पर इस्लाम के आबादी के हमले के गंभीर नतीजों की चेतावनी देने वाली दुस्साहसी इतालवी पत्रकार ओरिनिया फलेसी का। उन्होंने कई मुस्लिम नेताओं के साक्षात्कार किए। खुमैनी ने भी उन्हंे साक्षात्कार दिया मगर बुर्का पहनने की शर्त पर। साक्षात्कार के दौरान नोंकझोंक हुई तो फैसेली ने बुर्का खोल दिया तो खुमैनी तुरंत भागकर अपने कमरे में चला गया। लेकिन फलेसी की भविष्यवाणी आज के समय सही साबित हो रही है। लेकिन उससे महत्वपूर्ण बात यह है कि यूरोप इस आबादी के हमले का मुकाबला करने की तैयारी करता नजर आ रहा है।
कुछ दशक पहले अमेरिका और पश्चिमी देश 'ग्लोबलाइजेशन' के सबसे बड़े पैरोकार थे मगर अब भूमंडलीकरण का गुब्बारा फूट रहा है जिसने उनकी नींद उड़ा दी है। बढ़ती असमानता और घटते रोजगारों के कारण भूमंडलीकरण से उनका मन उचट गया है और फिर राष्ट्रवाद मजबूत हो रहा है। इन देशों की जनता ट्रंप के अमेरिका 'फर्स्ट' के तर्ज पर अपने देशों के हितों को प्रमुखता दे रही है। उन्हें महसूस हो रहा है कि भूमंडलीकरण के नाम पर उदारवादी नेतृत्व ने उन्हें ठगा है। भूमंडलीकरण की प्रतिक्रिया में वहां ऐसे नेता उभर रहे हैं जो अपने देशों की बहुसंख्यक जनता हितों की रक्षा करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, भले ही इस कारण उन्हें उदारवादी नेताओं का निशाना क्यों न बनना पड़े और विरोधी उन्हें नफरत का साक्षात अवतार क्यों न बताएं। भूमंडलीकरण की प्रतिक्रिया और बढ़ते इस्लाम विरोध के कारण दुनिया के कई प्रमुख देशों में राष्ट्रवाद की हवा जोरों पर थी। यूरोप की शरणार्थी समस्या ने उसे आंधी बना दिया । ब्रिटेन, स्वीडन, नीदरलैंड, फ्रांस, इटली, हंगरी, आस्ट्रिया, ग्रीस, डेनमार्क, चेक और स्लोवाकिया आदि देशों मे इनका असर साफ दिखाई दे रहा है।
अमेरिका में ट्रंप की जीत के बाद अगले साल मार्च में नीदरलैंड में चुनाव होने हैं। जनमत सर्वेक्षण कहते हैं कि वहां की धुर राष्ट्रवादी 'फ्रीडम पार्टी' (पीवीवी) को 25 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। उसके उग्रवादी नेता गेर्ट विल्डर्स शरणार्थियों के खिलाफ हैं उसे 'सुनियोजित इस्लामी हमला मानते है। वह यूरोपीय संघ के भी विरुद्ध हैं। अप्रैल में बडे़ पैमाने पर इस्लामी आतंकवाद का शिकार बने फ्रांस में चुनाव होने वाले हैं। वहां लंबे समय से बढ़ती मुस्लिम आबादी और उसकी कट्टरता राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है। पहली बार यूरोपीय संघ के चुनाव में अप्रवासन विरोधी नेशनल फ्रंट ने चुनाव जीतकर महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी। इसकी नेता मैरीन ले पेन 2017 में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनावों में एक महत्वपूर्ण दावेदार मानी जा रही हैं। मैरीन की जीत की संभावनाएं आज जितनी उजली हैं, उतनी पहले कभी नहीं थीं।
उनकी पार्टी नेशनल फ्रंट धुर दक्षिणपंथी है। वे अवैध घुसपैठ और इस्लामिक चरमपंथ की कट्टर विरोधी हैं। देश के सेकुलर सिविल कोड के जरिये बुर्का और तुर्की टोपी पर भी पाबंदी लगवाना चाहती हैं। उनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
फ्रांसिसीयों को इस्लामीकरण का खतरा सता रहा है। इस विषय पर कई किताबें छप रही हैं। इन दिनों प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक के नए उपन्यास 'सबमिशन' पर विवाद छिड़ा हुआ है। उसकी कहानी है साल 2022 तक फ्रांस का इस्लामीकरण हो जाएगा। देश में मुस्लिम राष्ट्रपति होगा और महिलाओं को नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा। विश्वविद्यालयों में कुरआन पढ़ाई जाएगी। उपन्यास में कल्पना की गई है कि फ्रांस में 2022 तक महिलाओं का पर्दा करना अच्छा माना जाएगा और एक से ज्यादा शादी करना कानूनी हो जाएगा। उपन्यास की कहानी को लेकर बहस छिड़ गई है कि यह सचाई बयान करने वाली एक साहित्यिक कृति है या किताब के शक्ल में इस्लाम विरोधी आतंक को बढ़ावा देने का काम है?
जर्मनी में कुछ समय पहले हुए विधानसभा चुनावों में सिर्फ तीन साल पहले बनी घोर-राष्ट्रवादी पार्टी 'जर्मनी के लिए विकल्प' (एएफडी) की भारी सफलता से देश चौंक गया। अपने पहले ही चुनाव में एएफडी तीनों विधानसभाओं में पहुंच गई। आर्थिक विशेषज्ञों और पत्रकारों द्वारा स्थापित 'एएफडी' इस्लाम की भी प्रबल विरोधी है। वह चांसलर मॉर्केल की सरकार की इस नीति से कतई सहमत नहीं है कि 'इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है।' इसकी मुख्य राजनीतिक पार्टियां ज्यादातर यूरोपीय देशों में राजनीतिक शरण देने सम्बन्धी कानून बहुत उदार है तो वहां मुस्लिम अपनी जान पर खतरा बताकर घुस जाते हैं। इनकी संख्या बढ़ने के साथ ही इन देशों में इस्लामिक आतंकवाद भी तेजी से पैर पसार रहा है। और साथ ही बढ़ रहा है मुस्लिम तुष्टिकरण का चलन भी। हालांकि अब इसके खिलाफ वहां के राष्ट्रवादी संगठन भी खड़े होने लगे हैं जैसे जर्मनी में जर्मन डिफेंस लीग, इंग्लैंड में इंग्लैंड डिफेंस लीग, पौडिगा इत्यादि। जर्मनी में पैडिगा नाम के संगठन ने कई इस्लाम विरोधी रैलियां की जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया।
पिछले अप्रैल में अस्ट्रिया में राष्ट्रपति के चुनाव में घोर राष्ट्रवादी फ्रीडम पार्टी (एफपीओ) के नेता नोरबर्ट होफर को सबसे अधिक 36़ 7 फीसद वोट मिले थे। 2018 में होने वाले संसदीय चुनावों तक यदि यही स्थिति बनी रही तो अस्ट्रिया पूरी तरह राष्ट्रवादियों की मुठ्ठी में आ जायेगा। अपनी उदारता और वर्जनाहीनता के लिए मशहूर स्वीडन में वहां की घोर-दक्षिणपंथी पार्टी 'स्वीडन डेमोक्रैट' की लोकप्रियता 2014 से लगातार बढ़ रही है़ उस वर्ष के चुनावों में उसे संसद के 20 प्रतिशत मतों के साथ उसे भी लगभग उतना ही जनसमर्थन मिला, जितना देश के दो प्रमुख दलों सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और मडरेट पार्टी को मिला। वहां की सरकार ने एक लाख 90 हजार शरणार्थियों को लेने का वचन दे रखा है। इससे उदार और सहिष्णुतावादी होने के बावजूद वहां के लोग खुश नहीं हैं, क्योंकि मुस्लिम शरणार्थी, अपनी मजहबी कट्टरता के कारण, वहां के उन्मुक्त समाज में घुलमिल नहीं पायेंगे। डेनमार्क में जून, 2015 के संसदीय चुनावों में घोर-दक्षिणपंथी 'डेनिश पीपल्स पार्टी' (डीएफ) को संसद में इतनी सीटें मिलीं हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन को बनाए रखने या गिरा देने की कुंजी उसके हाथ में आ गई है।
यूरोपीय संघ के इन देशों के अलावा बेल्जियम, इटली, फिनलैंड, इत्यादि देशों में राष्ट्रवाद की लगातार बढ़ती लोकप्रियता पूर्वी यूरोप के उन देशों में भी साफ दिखाई पड़ती है जो ढाई दशक पहले तक कम्युनिस्ट देश हुआ करते थे। पूर्वी यूरोप के पोलैंड, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया जैसे देश मुस्लिम शरणार्थियों और इस्लाम का विरोध करने में पश्चिमी यूरोप के देशों से भी आगे हैं। स्लोवाकिया के पीएम रबर्ट फिको जो मुस्लिम प्रवासियों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं,उनका कहना है कि स्लोवाकिया में इस्लाम के लिए कोई जगह नहीं है। फिको जो कि मुख्यतौर पर यूरोप के मुस्लिम विरोधी नेताओं में गिने जाते हैं उन्होंने मुस्लिम प्रवासियों को अपने देश में शरण देने से साफ इनकार करते हुए कहा कि, मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या से उनके देश की तस्वीर बदल जाएगी। वे ऐसा नहीं होने देंगे। चेक गणराज्य की राजनेता और मशहूर वकील क्लालरा संकोवा ने चेक संसद में इस्लाम के खिलाफ बहुत तीखा
भाषण दिया।
क्लालरा संकोवा ने अपने इस भाषण में अन्य मत-पंथों बारे में कहा कि ईसाइयत, बौद्ध, हिंदू ये सभी मत-पंथ आपके आस-पास रह सकते हैं। इन म-पंथों में किसी को मारने, जबरदस्ती कन्वर्जन की बातें नहीं होती हैं। लेकिन इस्लाम में हिंसा, बलात्कार, गुलाम बनाने की प्रथा, औरतों की आजादी पर तरह-तरह की पाबंदियां हैं। इसलिए मुसलमान यूरोपीय संस्कृति से मेल कभी नहीं खा सकते। यूरोपीय देशों को बचाने, यहां की संस्कृति को बचाने के लिए हमें मुसलमानों से मुक्ति पाना ही होगा, नहीं तो मुस्लिम यूरोप को बर्बाद कर देंगे।
मुस्लिम नेता का पक्ष लेंगी
यूरोप के 28 राष्ट्र-राज्यों का यूरोपीय महासंघ भले ही बन गया हो इन देशों की जनता की राष्ट्रीय भावना खत्म नहीं हुई है। वह समय समय पर जोर मारती रहती है और अब तो यूरोपीय संघ से उसका मोहभंग होने लगा है। यूरोप के घोर-दक्षिणपंथी और उग्रराष्ट्रवाद हल्ला यूं ही नहीं है। यूरोप का तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है। इसके लिए वे यूरोपीय राजनेताओं की 'अदूरदर्शी धार्मिक सहिष्णुता' को जिम्मेदार मानते हैं और उनकी सहिष्णुता,बहुलतावाद और सेकुलरिज्म के दावे हवा हो गए हैं।
पांच छह दशक पहले यूरोप में ही जन्मे गोरे ईसाइयों का पूरी तरह अपना देश हुआ करता थ। 2010 आते-आते यूरोपीय संघ के देशों में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी। फ्रांस में 10 प्रतिशत और जर्मनी में लगभग 6 प्रतिशत है। अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 वाले आतंकवादी हमले के बाद से ब्रिटेन में रहने वाले मुस्लिमों की संख्या दोगुनी हो गई है। मुस्लिमों से इन देशों के लोग इसलिए दुखी हैं क्योंकि मुसलमान अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को लेकर बहुत कट्टर होते हैं। वे देश की मुख्यधारा में शामिल होने और स्थानीय समाज में घुलने-मिलने से कतराते हैं। यूरोप में कहीं भी मुसलमान मुख्यधारा में आत्मसात नहीं हुआ है बड़ी मुश्किल से दूसरे मत-पंथों में विवाह होते हैं। यूरोप के शहरों में मुस्लिम घनी आबादी वाले इलाके आम आदमी के लिए तो छोडि़ए पुलिस के लिए भी 'नो गो' इलाके माने जाते हैं। यानी वहां जाना खतरे से खाली नहीं।
यूरोप के मूल निवासियों की जनसंख्या ने गिरावट आने से भी भी यूरोपवासियों को इस्लामीकरण का खतरा ज्यादा सता रहा है। आज यूरोप की कुल जन्म दर 1़ 4 है जबकि किसी जनसंख्या को स्थिर रहने के लिये आवश्यक है कि यह जन्म दर 2़ 1 प्रति युगल हो। इसलिए यूरोप को बड़ी मात्रा में अप्रवासियों की आवश्यकता होती है। अप्रवासियों का का एक तिहाई मुसलमान होते हैं, क्योंकि वे बहुत पास के देशों में रहते हैं। मोरक्को से स्पेन की दूरी मात्र 13 कि़मी़ है और इसी प्रकार अल्बानिया या लीबिया से इटली की दूरी कोई दो सौ कि़मी़ ही है।
बढ़ती आबादी के कारण कई मुस्लिम नेता तो अभी से यूरोप पर विजय हासिल करने के सपने देखने लगे हैं जिस पर यूरोपीय लोगों में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। जैसे एक मुस्लिम नेता उमर बकरी मोहम्मद ने कहा मैं ब्रिटेन को एक इस्लामी राज्य के रूप में देखना चाहता हूं। मैं इस्लामी ध्वज को 10 डाउनिंग स्ट्रीट (प्रधानमंत्री भवन) पर फहराते देखना चाहता हंूं। बेल्जियम मूल के एक इमाम की भविष्यवाणी की जैसे ही हम इस देश पर नियन्त्रण स्थापित कर लेंगे जो हमारी आलोचना करते हैं, हमसे क्षमा याचना करेंगे। उन्हें हमारी सेवा करनी होगी। तैयारी करो समय निकट है।
फ्रांस के मुख्य राजनीतिक दल
मुस्लिम मामलों के जानकार डैनियल पाइप कहते हैं कि यूरोप में तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या के यूरोप के साथ दीर्घकालिक सम्बन्ध सर्वाधिक जटिल प्रश्न है। इस विषय में तीन रास्ते ही बचते हैं-सद्भावनापूर्वक आत्मसात करना, मुसलमानों को निकाला जाना या फिर यूरोप पर इनका नियन्त्रण हो जाना। यूरोप के मुसलमानों का धीरे-धीरे उनके साथ आत्मसात होगा यह विचार कल्पना से परे है। कोटिंगगेन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जिन्होंने घोषणा की थी कि या तो इस्लाम का यूरोपीकरण होगा या फिर यूरोप का इस्लामीकरण होगा। अमेरिकी स्तम्भकार डेनिस प्रेजर ने निष्कर्ष निकाला है कि पश्चिमी यूरोप के इस्लामीकरण या गृहयुद्ध के अतिरिक्त इसके किसी अन्य भविष्य की कल्पना कठिन है। निश्चित रूप से यूरोप के पास यही भयानक विकल्प बचते हैं जो परस्पर विरोधी दिशाओं में जाते हैं या तो मुसलमानों का यूरोप पर नियन्त्रण हो जाये, या मुसलमानों को निकाला जाये, या तो यूरोप को उत्तरी अफ्रीका का विस्तार बनने दिया जाये या फिर अर्ध गृहयुद्ध की स्थिति देखी जाये।
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