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नई दिल्ली के छतरपुर में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना के 80 वर्ष पूर्ण होने पर तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रेरणा शिविर में सुदूर क्षेत्रों से आई हजारों सेविकाओं ने भारत को परम वैभव पर पहुंचाने का संकल्प लिया
''भारत जैसी कुटुंब व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है और अब यह विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत है क्योंकि कुटुंब में जोड़ने की ताकत है। इस सबका आधार मातृशक्ति है। मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है, न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है।'' ये उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने नई दिल्ली के छतरपुर में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना के 80 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रेरणा शिविर के उद्घाटन के दौरान व्यक्त किए।
समिति के भव्य समारोह में भारत के सुदूर क्षेत्रों से 3,000 से ज्यादा सेविकाओं ने हिस्सा लिया। अलग-अलग भाषा-प्रांत होने के कारण कार्यक्रम स्थल पर एक लघु भारत की झलक के दर्शन हो रहे थे। लद्दाख से लेकर केरल और सौराष्ट्र से लेकर अरुणाचल तक की संस्कृतियों का अनूठा संगम जिसने भी देखा, वह देखता ही रहा। अधिकतर सेविकाएं अपने-अपने राज्यों की पारंपरिक वेश-भूषा में नजर आ रही थीं। उद्घाटन अवसर पर मातृशक्ति एवं परिवार के संस्कारों पर विशेष बल देते हुए श्री भागवत ने कहा कि संपूर्ण हिन्दू समाज के विकास के लिए पुरुषों के साथ महिलाएं भी आगे आएं। हमारे समाज में प्राचीन काल से ही मातृशक्ति का अलग महत्व रहा है। जागृत मातृशक्ति के सहयोग के बिना किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। वर्तमान समस्याओं को लेकर उन्होंने कहा कि जिस देश के लोग समुद्र लांघकर दूसरे देश में जाने को भी समस्या समझते थे, आज उस देश के लोग मंगल पर जा रहे हैं। लेकिन साथ ही विज्ञान और प्रगति के कारण पर्यावरण की समस्याएं भी जन्म ले रही हैं। पूरी दुनिया आज पर्यावरण की चिंता कर रही है। दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने के लिए उसमें केवल समीक्षा होती है, लेकिन, सम्मेलनों में जो तय किया जाता है वह पूरा होता है क्या? उन्होंने सुझाव दिया कि अब मनुष्य को अपने छोटे-छोटे स्वार्थ छोड़ने पड़ेंगे, क्योंकि स्वार्थ ही मनुष्य के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। मनुष्य अपने आप को सृष्टि का स्वामी मानने लगा है। सृष्टि से हमारे संबंध एक उपभोक्ता के संबंध बन गए हैं और यह गलत बात मनुष्य को गर्त की ओर ले जा रही है।
समारोह में उपस्थित जैन मुनिश्री जयंत कुमार ने कहा कि संघ और जैन धर्म त्याग की राह पर चलते हुए समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य कर रहे हैं और ये एक नदी के दो किनारे के समान हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि ज्यादातर सत्ताधारी लोग पहले अपना स्वार्थ, फिर पार्टी का स्वार्थ और अंत में राष्ट्रहित के बारे में सोचते हैं। लेकिन सबसे पहले देश हित आना चाहिए। राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय महासचिव सीता अन्नदानम् ने सेविका समिति की 80 वर्ष की गौरवमयी यात्रा व गतिविधियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया।
इस तीन दिवसीय समारोह में अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थीं, जिनमें गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा भी रहीं। उल्लेखनीय है कि समारोह के दूसरे दिन विभिन्न सत्रों में अनेक कार्यक्रम संपन्न हुए। कार्यक्रम के अंतिम दिन कालिदास विश्वविद्यालय, रामटेक-नागपुर की उपकुलपति ड़ॉ. उमा वैद्य ने परिवार की संस्कृति एवं संरक्षण विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति शाश्वत है। इसका प्रवाह निरंतर रहेगा क्योंकि इसके मूल में परिवार है और परिवार ही संस्कृति की रक्षा करता है। प्रतिनिधि
'समाज को सकारात्मक दिशा देना जरूरी'
राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांता अक्का ने कहा कि कश्मीर घाटी के युवकों के साथ-साथ पूरे भारत की युवा पीढ़ी को जाति-बिरादरी और संप्रदाय के नाम पर उकसाने का षड्यंत्र चल रहा है। ऐसे में युवा पीढ़ी को एक सकारात्मक दिशा देना आवश्यक हो गया है। समिति अपने विविध कार्यक्रमों के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी को देशभक्त बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की युवा पीढ़ी प्रतिभा, मेधा, दृष्टि और श्रद्धा जैसे गुणों से भरपूर है, बस इन गुणों को और अधिक विकासित करने की कला आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व को गढ़ने और संवारने में परिवार की अहम भूमिका होती है और भारतीय परिवारों में अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की परंपरा सदा से रही है। उन्होंने देश-विदेश की सभी भारतीय महिलाओं से अनुरोध किया कि वे अपनी देश की प्राचीन और गौरवमयी संस्कृति को अपना आधार बनाकर कुटुंब को सींचें। उन्होंने कहा कि समिति पारंपरिक मूल्यों को सहेज कर रखने की पक्षधर है, लेकिन युगानुकूल (समय के अनुसार) परिवर्तन आवश्यक है। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, करुणा, ममता आदि महिलाओं के नैसर्गिक गुण हैं। उसमें क्षमताओं की भी कमी नहीं है। समिति पिछले 80 वर्ष से महिलाओं के आतंरिक और बाहरी गुणों को निखारने और संवारने का काम कर रही है और हमें इस बात पर प्रसन्नता है कि भारतीय नारी आज हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही है।
'समाज का आधार शक्ति परिवार'
समारोह के अंतिम दिन लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने 'राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका' संगोष्ठी के अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमें अपने परिवार की स्त्री को सक्षम बनाना होगा, क्योंकि संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास के मूल में परिवार की भूमिका होती है और स्त्री परिवार को परिष्कृत करती है। परिवार समाज का आधार शक्ति होता है, तो परिवार की आधार शक्ति स्त्री होती है। उन्होंने कहा कि संस्कृति संरक्षण में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि मां ही परिवार में संस्कारों की पोषक होती है। जिस प्रकार शरीर के हर अंग का महत्व और कार्य है, ठीक उसी प्रकार समाज के प्रति समाज के हर वर्ग, संप्रदाय का महत्व है। जब समाज के सभी अंग भेदभाव और आपसी वैमनस्य भुलाकर मिलकर कार्य करेंगे, तभी सामाजिक समरसता आएगी, उन्नति एवं विकास होगा। मात्र दिखावे और ढोल पीटने से समाज में बदलाव नहीं आएगा। समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें खुद को बदलना होगा।
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