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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चुनावी बयानों से साफ है कि वे चीन और पाकिस्तान पर नरमी नहीं दिखाने वाले। आने वाले दिन इन देशों के लिए ठीक नहीं है। लेकिन भारत के लिए ट्रम्प की दरियादिली जगजाहिर
डॉ़ भगवती प्रकाश
मेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने प्रचार अभियान में अनेक बार हिन्दुओं की प्रशंसा करते हुए हिन्दू संस्कृति के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त की है। भारतीय हिन्दू समाज के सम्मुख हिन्दी में भाषण देते हुये उन्होंने ने कई बार अमेरिकी सभ्यता के विकास में हिन्दू संस्कृति के प्रभाव की भी विस्तार से चर्चा की है। विश्व की क्रमांक एक आर्थिक महाशक्ति के राष्ट्रपति द्वारा भारत को एक हिन्दू देश के रूप में देखते हुये भारत व भारतीय हिन्दुओं का अपना श्रेष्ठ मित्र कहना और पाकिस्तान को एक अस्थिर आणविक देश कह कर पाक अराजकता को नियंत्रित करने में भारत की अहम भूमिका को महत्व देने से इस क्षेत्र के भू-राजनैतिक समीकरणों में दूरगामी परिवर्तन आ सकता है।
वैश्विक स्तर पर भी ट्रम्प का उदय संपूर्ण विश्व व्यवस्था, वैश्विक आर्थिक समीकरणों व सामरिक संतुलन में दूरगामी परिवर्तन लायेगा। चीन व पाकिस्तान को लेकर भारत व ट्रम्प का दृष्टिकोण लगभग समान है। वे पाकिस्तान को आतंकवाद नियन्त्रण मंे अमेरिका के सहयोगी देश के रूप मे नहीं देखते हैं और पाकिस्तान को भारत की तरह विश्व का सर्वाधिक खतरनाक देश मानते हैं। आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग देने के बदले अमेरिका पाकिस्तान को 2002 से 30 अरब डालर (2 लाख करोड़ रुपये) की सहयता व एफ-16 जैसे उन्नत लड़ाकू विमान आदि दे चुका है। ट्रम्प उसे बन्द करने के पक्ष में है। उनका मत है कि पाकिस्तान आतंकवाद के विरुद्ध अमेेेेरिकी सहायता भी ले रहा है आतंकवाद पर अंकुश के नाम पर वही ढाक के तीन पात। अब तक अमेरिकी प्रशासन आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान को अपना सहयोगी देश मानता था। जबकि ट्रम्प पाकिस्तान जैसे खतरनाक, आतंक व आतंकवाद पोषक देश के विरुद्ध लड़ाई में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण मानते हैं।
इन दिनों सस्ते चीनी आयात से अमेरिका व भारत की अर्थव्यवस्थाएं सर्वाधिक प्रभावित हो रही हैं। चीन-अमेरिकी व्यापार 2015 में 598 अरब डॉलर (40 लाख करोड़ रुपए) रहा। इसमें अमेरिका का व्यापार घाटा 366 अरब डॉलर का है। वहीं 72 अरब डालर के भारत-चीन व्यापार में भारत का व्यापार घाटा 54 अरब डॉलर है। चीन दोनों देशों के लिये एक गम्भीर सामरिक चुनौती है। इस पर भी ट्रम्प का मत भारत जैसा ही है। चीन भारत की थल व जल पर सामरिक घेराबंदी, जल, थल व नभ की सीमाओं का निरन्तर अतिक्रमण, आतंकवाद के मामले में भारत के विरुद्ध बार-बार वीटो का उपयोग, आणविक आपूर्त्ति समूह में भारत के प्रवेश का विरोध जैसी अनेक शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों में लिप्त रहा है। अमेरिका के विरुद्ध व उसके प्रभाव कम करने हेतु भी चीन द्रुत गति से रणनीति बना रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के विरोध के बाद भी वह व्यापक स्तर पर निर्माण कर वहीं से 46 अरब डॉलर के चीन-पाक आर्थिक गलियारे का विकास कर रहा है। उसने भारत में जल संकट उत्पन्न करने के लिये ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोक रखा है। सिंधु नदी का अतिरिक्त जल हम पाकिस्तान में जाने दें, इसके लिये धमकियां दे रहा है। हाल ही में 3 नवम्बर को उसने अरुणाचल में सीमा से 29 किमी. अंदर हमारा नहर निर्माण का कार्य रुकवाने का दुस्साहस किया है।
चीन एक ऐसा देश है जो हमेशा ही अमेरिका और भारत के लिए समस्या बना हुआ है। वह दोनों देशों के लिए सामरिक व आर्थिक चुनौती बनकर उभरा है। एशियन इन्फ्रारट्रक्चर एण्ड इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना सहित चाहे वह पर्ल ऑफ स्ट्रिंग की नीति हो, वन बेल्ट वन रूट की नीति हो या साउथ चाइना सी व हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते दबदबे की बात, इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक पटल पर अमेरिका और भारत जैसे देशों को किनारे करना रहा है। सामरिक रूप से दोनों देश चीन से प्रभावित तो हैं ही, साथ ही साथ आर्थिक रूप से भी प्रभावित हैं। अमेरिका के अंदर बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है और इसका एक कारण सीधे चीन में उत्पादक क्षेत्र के विकास से जुड़ा है। ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषणों के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि वे चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को कम करने का पूरा प्रयास करेंगे। भारत भी चीन के साथ व्यापार असंतुलन का शिकार रहा है। ट्रम्प, भारत को साथ लेकर चीन को घेरने की कोशिश करेंगे यह स्पष्ट ही है।
चुनाव के दौरान अमेरिकी भारतीयों द्वारा आयोजित एक चुनावी सभा में ट्रम्प ने यहां तक कहा था कि वे हिंदुओं से और भारत से बहुत प्यार करते हैं, मोदी एक सशक्त नेता हैं और वे भी मोदी की तरह और उनके साथ काम करेंगे। ट्रम्प के कार्यकाल में भारत की एनएसजी की सदस्यता, संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का मुद्दा या फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर भारत के प्रस्ताव का समर्थन जैसे मुद्दों पर अमेरिका भारत के साथ सहयोग बढ़ायेगा। इसके साथ ही भारत व अमेरिका विश्व व्यापार संगठन और जलवायु सम्मेलन में भी परस्पर सहयोग देंगे।
कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो दोनों देशों के लिए समस्या का कारण बन सकते हैं। अमेरिका में अगर निगमित कर (कॉरपोरेट टैक्स) 35 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत किया जाता है तो इससे व्यापार की संभावना वहां पर ज्यादा होगी जो भारत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से चीन को अधिक हानि होगी। ट्रम्प स्पष्ट रूप से कह चुके हैंं कि चीन और पाकिस्तान बीते कई दशकों से अमेरिका को 'दुधारू गाय' की तरह दुहते रहे हैं। चीन ने अमेरिका से ट्रेड सरप्लस के चलते 2015 में 366 बिलियन डॉलर कमाए हैं। वहीं पाकिस्तान कट्टर इस्लामी ताकतों के खिलाफ लड़़ाई के नाम पर अमेरिका से मदद के तौर पर 2002 के बाद से अब तक 30 बिलयन डॉलर की रकम वसूल चुका है। ट्रम्प के अब तक के भाषणों से संकेत मिलता है कि वे इन देशों में जाने वाले अमेरिकी धन पर अंकुश लगाएंगे। विगत 15 वषार्ें में अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन के कारण 50 लाख नौकरियां घटी हैं और वहीं इसके कारण चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जोरदार वृद्धि हुई है। डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनाव प्रचार में अमेरिकियों को इन खोई हुई नौकरियों को वापस लाने की बात करते रहे हैं। इसके लिए वे चीन से होने वाले 500 अरब डालर के आयात को कम करेंगे। चीन के लिए यह सबसे बुरा होगा, जो अब आंशिक मंदी से गुजर रहा है। और अब वह तेजी से मंदी की राह पर जायेगा। ऐसी स्थिति में चीन में राजनीतिक स्थितियां विस्फोटक हो सकती हैं और वह आंदोलन में फंस सकता है। चीन द्वारा इन विगत 10 वषार्ें में अनेक अवसरों पर आतंकवादियों के संबंध में भारत द्वारा लाये प्रस्तावों का संयुक्त राष्ट्र में विरोध, आणविक आपूर्ति समूह में प्रवेश का विरोध, ब्रह्मपुत्र का जल रोकना व आये दिन की घुसपैठ आदि सभी भारत के विरुद्ध घोर शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियां जगजाहिर हो चुकी हैं।
लेकिन, आज वह एक गम्भीर आर्थिक व वित्तीय ज्वालामुखी के ऊपर बैठा है। वर्ष 2008 में अमेरिकी 'मेल्ट डाउन' से अधिक भयावह 'मेल्ट डाउन' अर्थात् आर्थिक संकट उसे निगलने को है। आज वहां की कंपनियां 180 खरब डॉलर के कर्ज में डूबी हुईं हैं। यह राशि चीन के सकल घरेलू उत्पाद की 170 प्रतिशत है। पूरी चीनी अर्थव्यवस्था आज उसके घरेलू उत्पाद के 250 प्रतिशत ऋण के बोझ तले चरमराने को है। चीन के सारे बैंकों सहित उसका मुद्रा तंत्र, उद्योग व वाणिज्य सब कुछ डूब सकता है। चीन ने इस पूरे संकट से पार पाने की योजना की घोषणा 10 अक्तूबर को कर दी है। अब वह अपनी अकुशल कंपनियों को अपनी मौत मर जाने देगा और कुशल कंपनियां, जिनके उत्पाद विश्व भर में बिकते हैं, उनके ऋण को पूंजी में बदल देगा। वह हर कंपनी को ऋण पर ब्याज चुकाना होता है और किश्त भी प्रतिमाह देनी होती है। उस ऋण को पूंजी में बदलते ही कंपनी पर से किस्त व ब्याज के भुगतान का दायित्व समाप्त हो जाता है।
ऐसे में आज की मंदी में वह कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाने पर भी जीवित रह सकती है, क्योंकि उसे अब न तो किस्त चुकानी है और न ही ब्याज। लेकिन, यदि भारत व अमेरिका चीन से होने वाले आयात पर मिलकर अंकुश लगाते हैं व उनकी बिक्री ही नहीं हुई तो उन्हें बन्द होना ही है। ऋण को पंूजी में बदलने के बाद भी वे बंद होगी। ऐसे में चीन के सकल घरेलू उत्पाद के 170 प्रतिशत तक पहुंच चुके कंपनी ऋणों का दो तिहाई अर्थात् उसके सकल घरेलू उत्पाद 120 खरब डॉलर का डूबना निश्चित है। चीन में कुल बकाया ऋणों की राशि आज 280 खरब डॉलर अर्थात उसके सकल घरेलू उत्पाद के 250 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह राशि अमेरिका व जापान के संयुक्त वाणिज्यिक बैंकिंग तंत्र के तुल्य है। यदि वर्तमान में चीन ने अपने कंपनी ऋणों की पुनर्रचना जिसमें ऋणों को पंूजी में परिवर्तन करना भी सम्मिलित है, के सहारे अपने बैंकिंग तंत्र व बड़ी प्रतिष्ठित कंपनियों के उत्पादन तंत्र को बचा लिया तो वह 3-5 वर्ष में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ विश्व की क्रमांक एक आर्थिक शक्ति व सामरिक शक्ति बन कर खड़ा होगा। दूसरी ओर, अभी जबकि चीन की अधिकांश कंपनियां व संपूर्ण बैकिंग तंत्र चरमराने को है, ऐसे में भारत व अमेरिका चीन से आयात कम कर देंगंे तो चीन का उत्पादन तंत्र व बैंकिंग तंत्र ध्वस्त होगा, निर्यात घट जाएगा, विदेशी व्यापार में घाटा भी होगा, विदेशी मुद्रा भण्डार चुक जाएगा और विश्व चैन की सांस लेगा। भारत का निकट पड़ोसी होने से चीन भारत के लिये सर्वाधिक संकट कारक है। ऐसे में अगर ट्रम्प द्वारा चीन के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं तो चीन का पराभव निश्चित ही है।
वस्तुत: ट्रम्प द्वारा अमेरिका में रोजगार बचाने के लिये संरक्षण की नीति से चीन का पराभव होगा। अमेरिका द्वारा उसके घरेलू उद्यमों को संरक्षण व आप्रवासियों की संख्या परिमित करने का भारत के व्यापार व निजी अन्तरणों (अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली आय से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा) पर कुछ प्रभाव हो सकता है। लेकिन, यदि 25 वषार्ें से जारी अनियंत्रित आयात व विदेशी निवेश उदारीकरण की नीतियों में ट्रम्प की पहल पर बदलाव आता है, तब ऐसी दशा में भारत का लाभ अधिक होगा। आज देश के तीन चौथाई बाजार पर चीन व अन्य विदेशी उत्पादों व ब्राण्डों का नियन्त्रण है। ऐसे में भारत द्वारा भी संरक्षण की नीति अपनाने से आयातित अथवा विदेशी कंपनियों द्वारा प्रस्तुत 'मेड इन' का स्थान 'मेड बाई इंडिया' उत्पाद व ब्रांड ले लेंगे। इसलिये निजी अन्तरणों में जो थोड़ी बहुत कमी आयेगी भी तो उसका कई गुना लाभ व्यापार घाटे में आने वाली कमी से मिलेगा और देश से बाहर जाने वाली निवेश आय से उपजने वाले भुगतान संकट से भी राहत मिलेगी।
इसके अतिरिक्त अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विविध ज्ञान आधारित क्षेत्रों से भारत को कम करना सहज नहीं है। चीन के उत्पादों पर अमेरिका में रोक से उसकी अर्थव्यवस्था का पराभव अवश्यंभावी है। आज चीन की अर्थव्यवस्था 280 खरब डालर ऋण में दबी हुई है। इसलिये चीन का आर्थिक पराभव व परिणामस्वरूप सामरिक पराभव भारत के अधिक हित मंे है। दूसरी ओर चीन व पाक पर नियन्त्रण हेतु भारत-अमेरिकी सहयोग दोनों देशों के आर्थिक व सामरिक उत्कर्ष में अधिक लाभदायक होगा।
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