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कतार के पार

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Nov 19, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Nov 2016 14:03:04

मुद्रा में परिवर्तन के सरकार के फैसले के बाद देश भर के बैंकों के बाहर लगी कतारों में जरूरतमंद आम नागरिक ही थे या उनमें कालाबाजारियों और राजनीतिकों के एजेंट भी थे?

हर्षवर्धन त्रिपाठी
हिन्दुस्थान के लोकतांत्रिक इतिहास में किसी राजनेता के इतना बड़ा फैसला लेने की यह पहली घटना थी। और इस घटना के बाद देश में ऊपर जैसे ही नजारे आम हो गए। जिस देश में काला धन और भ्रष्टाचार को एक कभी न खत्म होने वाली सच्चाई के तौर पर स्वीकार कर लिया गया हो, वहां ऐसे किसी फैसले की कल्पना भी नहीं की जा रही थी। यही वजह थी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम से शुरू हुआ नोटों के बिस्तर पर सोने का सिलसिला भारतीय समाज में कोढ़ की तरह फैल गया। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इस कोढ़ के इलाज की कोशिश शुरू की तो इसमें आनंद खोजने के आदी समाज के एक बड़े हिस्से ने इसे ध्वस्त करने का बड़ा अभियान शुरू कर दिया।

 एकमुश्त पुराने नोट बदलने की कोशिश
9 तारीख को बैंक और एटीएम बंद रहे। लेकिन बैंक जैसे ही 10 तारीख को खुले, काले धन के कुबेरों ने अपना काम शुरू कर दिया। सरकार की तरफ से साफ किया गया था कि जिसका पैसा जायज है, उसे किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं आने वाली, लेकिन जिनके पास काला धन अब भी है, वे किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे। काले धन के कुबेर डरे लेकिन, उन्होंने बैंकों में 500, 1000 के पुराने नोटों के बदले नए नोट लेने के लिए संगठित तरीके से लोगों को कतारों में खड़ा कर दिया। नोटबंदी के सरकार के फैसले पर सबसे बड़ी चोट इसी जरिये से की गई। काले धन के कुबेरों ने बाकायदा समूह में लोगों को एक ही शहर के अलग-अलग बैंकों की शाखाओं में और कई मौके पर तो दूसरे इलाकों में भी समूह में लोगों को भेजकर नोट बदली कराए। आम लोगों को परेशानी न हो, इसके लिए 4000 रुपये के नोटों की बदली के सरकार के फैसले को काले धन के कुबेरों ने अपना बड़ा अस्त्र बना लिया था। इससे उनका काला धन धीरे-धीरे ही सही, सफेद हो रहा था। साथ ही बैंकों और बाद में एटीएम के सामने लगी लंबी कतारें सरकार के इस फैसले के खिलाफ जनमानस बनाने की कोशिश कर रही थीं। हालांकि, आम जनता के इस फैसले के पक्ष में होने से यह कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी।

मीडिया की पहुंच वाले इलाके में भीड़
संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में लंबी कतारें लग गईं थीं। और सिर्फ संसद मार्ग की शाखा में ही नहीं, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लेकर लुटियन दिल्ली के हर इलाके में लंबी-लंबी कतारें थीं। और ऐसी ही कतार मुंबई के भी एक प्रमुख इलाके में लगनी शुरू हो गई थी। शास्त्री भवन के एटीएम की कतार में तो मेवात तक से आए लोग मिले। हैरानी की बात यह कि ज्यादातर लोग समूह में आए थे। पूछने पर इन लोगों का कहना था कि हमारे मेवात में एटीएम मशीन नहीं है इसलिए हमें यहां आना पड़ा। लेकिन, बड़ा सवाल यह कि ये लोग मेवात से चलकर दिल्ली के शास्त्री भवन में लगे एटीएम से पैसे निकालने के लिए कतार में ही क्यों लगे! दरअसल इस पूरे मामले में एक बड़ा ट्रेंड यह भी दिखा कि बड़ी भीड़ उन इलाकों में ही लग रही थी, जो ज्यादातर मीडिया की पहुंच के इलाके थे। नोटबंदी के फैसले को एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी मीडिया में किसी गांव या छोटे शहरों के इलाके से ऐसी कोई खबर नहीं आई, जिसमें ये दिखता हो कि लोगों को नकद रकम की इतनी बड़ी दिक्कत हो गई हो कि नेताओं को इसे आर्थिक आपातकाल कहना पड़ जाए। हां, दिल्ली-मुंबई के हर इलाके में जरूर एटीएम पर लंबी कतारें देखने को मिलीं। इसके पीछे बड़ी वजह वही थी कि कैमरे के सामने ये कतारें नजर आएं।

बैंकिंग सेवाओं के दायरे से बाहर का वर्ग
लोगों तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने की सबसे बड़ी मुहिम, जनधन खाते खोलने के अतिसफल अभियान के बाद भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बैंकिंग सेवाओं तक है ही नहीं। लोगों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो बैंकिंग सेवा में शामिल नहीं होना चाहता। यहां तक कि बैंक खाता खुला भी तो उसका इस्तेमाल सिर्फ रकम जमा करने तक ही सीमित रहा। ऐसा वर्ग दरअसल ज्यादातर नकद पूंजी के जरिये ही जीवनयापन करता है। अब मजबूरी में घर में पड़े 500 और 1000 के पुराने नोटों की वजह से वह बैंकों की कतार में आ खड़ा हुआ। टीवी पत्रकार ऋषिकेश कुमार कहते हैं कि दरअसल इस फैसले से एक बड़ा वर्ग बैंकिंग तंत्र के दायरे में आजाएगा, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहतर होगा।

सोना कारोबारियों ने भी बढ़ाई कतारें

8 तारीख की रात से 9 नवंबर की सुबह तक 20-40 प्रतिशत ज्यादा भाव पर पुराने नोट लेकर सोना बेचने वालों के लिए अपने नोट बदलने का मौका 30 दिसंबर तक का ही दिख रहा है। इसीलिए उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों को दिन भर के लिए कतारों में खड़ा कर दिया। हालांकि, काले धन के बदले सोना देकर फिर उसे सफेद करने की कोशिश में लगे गहना कारोबारियों पर सरकार, आयकर विभाग की कड़ी नजर है। इसी वजह से लगातार पड़े छापों के बाद तेजी से चढ़े सोने के दाम उसी तेजी से गिर भी गया।
राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की कतार
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में, जहां आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं, राजनीतिक पार्टियों से लेकर नेताओं ने चुनाव की तैयारी में बड़ी नकद रकम इकट्ठा कर रखी है। इस रकम को ठिकाने लगाने के लिए रैली की शक्ल में बैंक और एटीएम में कतारें लग गईं। हर नेता इकट्ठा चंदे की रकम ज्यादा से ज्यादा बचा लेने की जुगत में लगा हुआ है। इतना ही नहीं, विपक्ष के कई नेताओं के बयान जिस तरह से बार-बार कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दे रहे हैं, उससे यह आशंका बलवती होती है कि कहीं वे अपने कार्यकर्ताओं को संगठित तौर पर भीड़ बढ़ाने का संदेश तो नहीं दे रहे।  
छोटे शहरों में बैंक अधिकारियों की गड़बड़
उत्तर प्रदेश के बलिया, आजमगढ़ जैसे जिलों से कुछ अलग तरह की ही खबरें आ रही हैं। बलिया के रहने वाले राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि 10, 11 तारीख को बैंकों में लोगों को कम नकदी होना बताकर 500 रुपये ही दिए गए। लेकिन आशंका इस बात की है कि लोगों का पहचान पत्र लेकर उनके हिस्से के बचे 3500 रुपये उन लोगों को दे दिए गए, जो बैंकों के बड़े खातेदार थे, जिनके पास पुराने 500 और 1000 के नोट बड़ी मात्रा में थे।

काला-सफेद करने में जुटे बिल्डर
यह लगभग घोषित तौर पर छिपी हुई बात है कि सबसे ज्यादा काला धन रीयल एस्टेट क्षेत्र में ही लगा हुआ है। और यही वजह है कि जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद रीयल एस्टेट में काले धन पर रोक लगानी शुरू की, तो इस क्षेत्र में मंदी देखने को मिली। अब पुराने 500 और 1000 के नोट बंद करने का मोदी सरकार का फैसला 100-200 प्रतिशत मुनाफा कमाने के आदी रहे बिल्डरों के लिए जीवन-मरण जैसा प्रश्न हो गया है। इसलिए बिल्डरों ने इसी का फायदा उठाते हुए चुनाव वाले राज्यों की राजधानी लखनऊ और चंडीगढ़ में अपने प्रतिनिधि बिठा दिए। इनके जरिए आने वाले काले धन को वे अपने यहां काम करने वाले मजदूरों के जरिए नोट बदली कराकर सफेद कराने में जुट गए। 30-50 प्रतिशत रकम लेकर बिल्डर काला धन सफेद करने में जुटे हैं। बिल्डरों के यहां पड़े छापे इस बात का सबूत देते हैं कि सरकार को भी इस बात की जानकारी मिल रही है।

जनधन खाते खरीदने का सिंडिकेट
मुंबई, दिल्ली से लेकर देश के छोटे-छोटे शहरों तक जनधन खातों के जरिए काला धन सफेद करने की कोशिश ने भी बैंकों और एटीएम पर कतारें बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। जनधन खातों में 2-2.़5 लाख रुपये जमा कराए जा रहे हैं और अगले 2-3 महीने बाद वह रकम वापस ली जाएगी। पहले पुराने नोट जमा कराए जा रहे हैं। उसके 2-3 महीने बाद वह रकम धीरे-धीरे वापस कर दी जाएगी।

हवाला कारोबारियों ने बढ़ाई कतारें
मुंबई में 17 प्रतिशत से शुरू हुआ पुराने नोटों को नए नोटों में बदलने का काम अब 40-50 प्रतिशत पर हो रहा है। दरअसल सरकार ने शुरू में आम लोगों की परेशानी को ध्यान में रखकर जो कुछ रास्ते छोड़े थे, उन रास्तों से इस तरह के लोग धड़ल्ले से घुस रहे थे। इन संगठित कारोबारियों में हवाला के जरिये पैसे उठाने वाला नेटवर्क भी शामिल था, जो एक शहर से रकम उठाकर दूसरे शहरों में नोटों की बदली संगठित तरीके से करा रहा था।
देश में बेरोजगारी का फायदा उठाकर काला धन रखने वालों ने बाकायदा यही रोजगार दे दिया। 200-500 रुपये दिहाड़ी पर लोगों को बैंकों और एटीएम की कतार में लगाया गया। ऐसे लोग दिन भर कतारों में खड़े होकर आम लोगों के हिस्से की रकम निकालते रहे।

 

दृश्य 1
8 नवंबर को 8 बजे जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को अब तक के सबसे बड़े फैसले की जानकारी दी, देश के हर हिस्से में हाहाकार मच गया। देश में काला धन रखने वालों, रिश्वतखोरों के लिए यह भूकंप आने जैसा था।
दृश्य 2
दिल्ली के चांदनी चौक, करोलबाग जैसे व्यस्त इलाकों में गहनों की दुकान पर रात 8 बजे आए इस भूकंप असर अगली सुबह तक दिखता रहा। नोटों को बोरों में और बिस्तर के नीचे दबाकर सोने वालों की बड़ी-बड़ी कारें जल्दी से जल्दी सोना खरीदकर अपना पुराना काला धन पीले सोने की शक्ल में सफेद कर लेना चाहती थीं। और ऐसा सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, देश के लगभग हर शहर में हुआ। पीला सोना काले धन को सफेद करने का सबसे बड़ा जरिया बन गया।
दृश्य3
उत्तर प्रदेश और पंजाब, दोनों राज्यों में स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब हो गई। दोनों प्रदेशों में चुनाव नजदीक होने की वजह से राजनीतिक दलों से लेकर चंदा देने वालों तक के पास ढेर सारी नकद रकम जमा थी। इस रकम को ठिकाने लगाने की मुश्किल साफ नजर आ रही थी। जाहिर है, जिन राजनेताओं के पास बड़ी रकम पुराने नोट के तौर पर आ गई थी, उनके लिए मोदी सरकार का यह फैसला जहर पीने के समान दिख रहा था।
दृश्य 4
मुंबई, दिल्ली से लेकर देश के छोटे-बड़े सभी शहरों में अब तक बैंकिंग की सेवाओं से काफी हद तक बाहर रहने वाला समुदाय इसे अपने खिलाफ मोदी सरकार की साजिश मान बैठा। लेकिन, विदेशों से आने वाले चंदे की रकम अब पूरी तरह से मिट्टी होती दिख
रही थी।
दृश्य 5
काले धन के बल पर चल रहे रियल एस्टेट क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी पहले ही दिवालिया होने की हालत में पहुंच रहे थे। अचानक काले धन पर इतनी बड़ी चोट से बौखलाए इन कारोबारियों ने इसमें भी रकम बनाने का रास्ता निकालने की कोशिश शुरू कर दी। 

 

महिलाओं का घर का पैसा बैंकों में पहुंचा
भारतीय परिवारों में ज्यादातर घरेलू महिलाएं पैसा बचाकर घर में रखती हैं। इसलिए जब अचानक सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने का एलान किया, तो महिलाओं के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। वे जल्दी से जल्दी अपनी बचाई रकम जमा करने के लिए कतारों में खड़ी हो गईं। हालांकि, यह यह डर भी है कि कहीं उन्हें नोटिस न भेज दिया जाए। महिलाओं को आयकर विभाग का नोटिस गया तो यह सरकार के खिलाफ जा सकता है। सरकार को यह व्यवस्था करनी होगी कि महिलाओं को ऐसा नोटिस न जाए। ऋषिकेश ने जनकपुरी की कुछ महिलाओं से बात की। उनका साफ कहना था कि हमारा पैसा तो सबके सामने आ गया। लेकिन, अब हमें इस बचत की सजा नहीं मिलनी चाहिए।

कतार में भी नाराज नहीं है आम आदमी
देश के 2 लाख एटीएम में से सिर्फ 1.20 लाख एटीएम ही सही हालत में हैं। इसलिए लोगों को परेशानी तो हो रही है। लेकिन, इस परेशानी के बावजूद ज्यादातर इलाकों में घंटों कतार में खड़े होने के बावजूद आम आदमी इस फैसले में प्रधानमंत्री के साथ खड़ा नजर आ रहा है। दिल्ली के महरौली, बदरपुर इलाकों में लोगों से बातचीत में सामने आया कि आम आदमी का भरोसा मोदी पर मजबूत हुआ है। यहां तक कि रोज खाने-कमाने वाले तबके के लोग भी संगम विहार और देवली जैसी जगहों पर घंटों कतार में लगने के बाद भी यही कह रहे हैं कि इससे उन्हें जो तकलीफ है, वे झेल लेंगे। बड़ी चोट तो अमीरों को लगी है। वे कैसे झेलेंगे! नरेंद्र मोदी कतार में खड़े हिन्दुस्थान के नायक जैसे नजर आ रहे हैं।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का यह फैसला विपक्षियों को भी विरोध का मौका नहीं दे रहा। क्योंकि, देश के आम लोगों को लग रहा है कि यह फैसला उन्हें अच्छे से जीने की जमीन तैयार करेगा। और बड़ी मुसीबत उन लोगों के लिए करेगा जिनके पास काला धन, भ्रष्टाचार का पैसा है। इसीलिए कतारों में खड़ा, फंसा होने के बाद भी हिन्दुस्थान मोदी के साथ खड़ा है। जरूरत इस बात की है कि सरकार एटीएम नेटवर्क को दुरुस्त करे और बैंकों में आने वाले आम आदमी को उसकी जरूरत भर का पैसा आसानी से उपलब्ध कराए, जिससे संगठित तौर पर कतार तैयार करके इस बड़े फैसले को ध्वस्त करने की कोशिशों पर करारी चोट की जा सके।   

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