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ध्वस्त हुआ ममता का सपना

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Nov 19, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Nov 2016 13:13:24

नोटबंदी के बहाने केन्द्र सरकार की घेराबंदी का सपना देखने वालीं ममता का साथ उनके पुराने दोस्तों ने भी नहीं दिया। इस मुद्दे के बहाने वे सारदा और नारदा जैसे घोटालों से जनता का ध्यान भटकाना चाहती हैं

  असीम कुमार मित्र

नोटबंदी के बहाने केन्द्र सरकार को घेरने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का महागठबंधन ध्वस्त हो गया है। जीतोड़ कोशिश के बावजूद उनके साथ एकाध नेता ही राष्ट्रपति भवन तक गए। ममता बनर्जी की इस कवायद को समझने के लिए आपको पीछे जाना होगा। ममता को जब से इस बात का एहसास हुआ कि भारतीय लोकतंत्र को अब केवल 13 वोटों के बल पर  अपने नियंत्रण में रखा जा सकता है, तब से उनके मन में यह बात घुस गई है कि वे दुनिया की मालकिन हैं। उल्लेखनीय है कि लोकसभा में तो भाजपा का बहुमत है, पर राज्यसभा में वह अल्पमत में है। राज्यसभा में ममता की पार्टी टीएमसी. के 13 सांसद हैं। ममता अपने इन सांसदों के बल पर केन्द्र सरकार के कई विधेयकों को कानून बनने से रोकने में सक्षम हैं। उन्होंने ऐसा किया भी है। ममता को लगता है कि जब वे केन्द्र सरकार के विधेयकों और योजानाओं को रोक सकती हैं, तो प्रधानमंत्री भी बन सकती हैं।  
इसके बाद वे केन्द्र की तथाकथित सांप्रदायिक सरकार के खिलाफ विपक्षी नेताओं को एकजुट करने की कोशिश में लग गईं। उन्होंने छोटी-मोटी बातों को लेकर भी देश के सभी विरोधी दलों के नेताओं के दरवाजे खटखटाए। शुरू में ममता की इस पहल को भाजपा विरोधी लगभग सभी बड़े दलों ने समर्थन भी दिया था। परंतु थोड़े ही दिनों में वे सब समझ गए कि ममता एक ऐसी नेता हैं, जिनके साथ किसी भी हालत में गठजोड़ नहीं किया जा सकता।  इसके अलावा प्रधानमंत्री बनने की इच्छा तो लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, मायावती सभी के अंदर है। इसीलिए इन सभी ने कोई न कोई बहाना बनाकर ममता के साथ गठबंधन बनाने से  इनकार कर दिया। इसके बावजूद ममता की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा मरी नहीं है। यही चाहत उन्हें कोलकाता से दिल्ली तक चक्कर लगाने को मजबूर कर रही है। ममता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में कह चुकी हैं कि मैं उनकी कमर में रस्सी बांधकर जेल में डाल दूंगी। उनका यह बयान उनकी चाहत को दर्शाता है।
अब जब कालेधन पर प्रधानमंत्री ने हमला किया है, तो ममता को उन्हें गाली देने का एक और मौका मिल गया। पिछले दिनों ममता ने कहा, ''खुद कालेधन के कारोबारी और कालेधन वाले लोगों के दोस्त होते हुए नरेन्द्र मोदी गरीबों के आंसू पोंछने का ढोंग कर रहे हैं।'' अपनी इसी बात को आगे बढ़ाने के लिए ममता एक बार फिर से विपक्षी एकता के लिए सक्रिय हुईं। उन्होंने विमुद्रीकरण का मामला उठाया और विपक्षी नेताओं को अपने साथ लाने का प्रयास किया, लेकिन उनका यह प्रयास बेकार गया।
एक-दो राजनीतिक दलों को छोड़कर किसी ने भी इस मामले में ममता का साथ नहीं दिया। वे कह रही हैं कि प्रधानमंत्री ने गैरकानूनी तरीके से देश में आर्थिक आपातकाल लागू कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कालेधन का बहाना बनाकर सरकार गरीबों को भिखारी बनाने पर तुली हुई है।
दरअसल, नोटबंदी के इस मामले को सुलगाकर ममता अपने ऊपर आने वाली समस्याओं से छुटकारा पाना चाहती हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से यह मुद्दा गर्म होगा और केन्द्र सरकार उनके सामने नरम रहेगी। सवाल यह है कि ममता के सामने कौन सी समस्या आने वाली है? कहा जा रहा है कि बंगाल में सारदा से नारदा तक जितने भी घोटाले हुए हैं, उन सबका लाभ ममता को मिला है। इन घोटालों में टीएमसी के अनेक बड़े नेता शामिल हैं। हाल ही में सीबीआई ने इन नेताओं ने पूछताछ की है। ममता की समस्या यही है। उन्हें यह भी भलीभांति पता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास ही इन घोटालों की फाइलें हैं।
यही कारण है कि ममता नोटबंदी के इस मामले को हवा देना चाहती थीं, परन्तु इसमें असफल रहीं वे 16 नवंबर को राष्ट्रपति से मिलीं तो जरूर, लेकिन इस मुलाकात से पहले ही विपक्षी एकता चकनाचूर हो गई। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने यह प्रश्न उठाया कि इस विषय को लेकर ममता राष्ट्रपति से क्यों मिलना चाहती हैं? फिर उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि हम किसके नेतृत्व में राष्ट्रपति के पास जाएंगे, यह भी पहले ही तय हो जाना चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का साथ आना तय था, परन्तु शिव सेना के उद्धव ठाकरे जब ममता के साथ आने के लिए राजी हो गए तो केजरीवाल ने साथ आने से इनकार कर दिया। माकपा ने पहले ही मना कर दिया था।
इस तरह ममता की कोशिश एक बार फिर बेकार चली गई।                     

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