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भोपाल में आयोजित लोक मंथन में स्वदेशी को युगानुकूल और विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाने पर जोर दिया गया। इस मंथन से निकला अमृत भारतीयता को स्थापित करने में मदद करेगा
आशीष कुमार 'अंशु'
ावचारक थॉमस एल. फ्रिडमैन की एक किताब है 'द वर्ल्ड इज फ्लैट'। इसमें लेखक ने बताया है कि कैसे पूरी दुनिया एक जैसी होती जा रही है। इस किताब का जिक्र यहां इसलिए क्योंकि यही चुनौती भारत के सामने भी है, चूंकि विविधता भारत की पहचान और उसकी ताकत है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में तेजी से इस विविधता को एकरूपता में बदलने की कोशिश हो रही है। पूरे देश को एक तरह के वेलेन्टाइन उत्सव, एक तरह के पिज्जा-बर्गर खानपान, एक तरह की भाषा, एक तरह के पहनावे के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इस समझ के समाज में विकसित होने के पीछे कहीं ना कहीं वह औपनिवेशिक-आयातित बौद्धिक परंपरा है, जिसे देशभर के अकादमिक और मीडिया संस्थानों पर कब्जा करके वामपंथी विचारधारा ने प्रोत्साहित किया। इस विचार को भारत में प्रोत्साहित करने के पीछे यह उद्देश्य कि भारतीय सामाजिक जीवन पाश्चात्य जीवन से अभिभूत हो, जिससे भारतीय समाज में मौजूद विविधता को हानि पहुंचे और वह खत्म हो।
देश के लिए यह शुभ संकेत है कि अब इस बीमारी की पहचान हो गई है। जब रोग को पहचान लिया गया है तो उम्मीद की जा सकती है कि इसकी चिकित्सा की राह भी विमर्श और चर्चा से निकल आएगी। इसी क्रम में राष्ट्र सवार्ेपरि का भाव लेकर चलने वाले विचारकों एवं कर्मशीलों का एक राष्ट्रीय विमर्श 'लोकमंथन 2016, देश-काल-स्थिति' के नाम से भोपाल में 12, 13 और 14 नवंबर को हुआ। इसका आयोजन 'भारत भवन' और 'प्रज्ञा प्रवाह' ने किया था।
लोकमंथन 2016 के संदेश गीत में
डॉ. अवनिजेश अवस्थी लिखते हैं,
पहचान कभी थी विश्व गुरु की,
थी सत्य अहिंसा की पहचान
कैसा पाठ पढ़ाया हमको
भूल गए अपना ही नाम।
लोक मंथन का उद्घाटन 12 नवंबर को हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे जूनापीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी महाराज। अध्यक्षता की गुजरात और मध्य प्रदेश के राज्यपाल प्रो. ओमप्रकाश कोहली ने। सान्निध्य मिला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी का। इनके साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीतारमण शर्मा, राज्य के संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।
अपने उद्बोधन में श्री सुरेश सोनी ने राष्ट्र शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि 'राष्ट्र' शब्द नेशन का अनुवाद नहीं है, क्योंकि हर शब्द के पीछे एक अलग परंपरा और जीवन दृष्टि होती है। पश्चिम के राष्ट्र जब सबल हुए तो उन्होंने पूरी दुनिया में कॉलोनियां बनाईं और उनका शोषण किया, जबकि भारत राष्ट्र जब सबल हुआ तो लोग विदेशों में गए। भारतीयों ने वहां जाकर न, सिर्फ उनकी अस्मिता का संरक्षण किया, बल्कि उन्हें नई प्रविधियां सिखाईं और उनके विकास में योगदान दिया। यह दो राष्ट्रों की प्रकृति का अंतर भी है। इसलिए अपनी अस्मिता के आधार पर ही इस राष्ट्र को खड़ा करने की जरूरत है। एक ओझल हो गए भारत को समझने की जरूरत है।
महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि जी ने अपने आशीर्वचन में कहा, ''हम पूरे विश्व को एक परिवार समझते हैं, जबकि पश्चिम इसे बाजार समझता है। भारतीय जीवन मूल्यों में सदैव समता, समानता और सामान्य जन, पशु-पक्षी के अधिकारों की चिंता रही है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन का अधिकार रहा है। इसलिए हम अन्न को औषधि और जल को देवता मानते हैं।''
राज्यपाल प्रो. ओमप्रकाश कोहली ने कहा, ''भक्ति आंदोलन के समय हम राजनीतिक रूप से भले ही हारे हों, लेकिन इस आंदोलन ने हमें सांस्कृतिक पराजय से बचाया।''
उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण देते हुए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ''उज्जैन में हुए विचार कुंभ के 51 बिंदुओं को हमने पूरी दुनिया में पहंुचाया है, लोक मंथन से निकले अमृत को भी हम प्रचारित और प्रसारित करेंगे।''
लोक मंथन 2016 की संकल्पना के संबंध में भाजपा सांसद डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने बताया कि इस तीन दिन के विमर्श में उपनिवेशवाद और औपनिवेशिक मानसिकता का लेखा-जोखा लेने के साथ-साथ अस्मिता और आविष्कार से जुड़े विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। श्री सहस्रबुद्धे के अनुसार लोक मंथन 2016 एक सामूहिक चिंतन था, जो स्वदेशी को युगानुकूल और विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाने की भावना से प्रेरित था।
'ब्रेकिंग इंडिया' पुस्तक के लेखक श्री राजीव मल्होत्रा ने 'औपनिवेशिकता से भारतीय मानस की मुक्ति' पर कहा, ''19वीं सदी के अंत में जो इंग्लैंड से पढ़कर लौटे वे कोई भी हों, उनका चिन्तन मूल भारतीय नहीं था। पश्चिमी इंडोलॉजी उस ऐप की तरह है जिसे डाउनलोड हम अपनी इच्छा से करते हैं, किन्तु सक्रिय होने के बाद वह कार्य अपने अनुसार करता है। अब इसे हटाना है तो इसे हम भारतीय मिलकर ही हटा सकते हैं।'' उन्होंने इसी क्रम में कहा, ''चीन, जापान, रूस अपनी पहचान के प्रति बेहद सजग हैं। आज हमारी भाषा में अंग्रेजी के शब्दों की भरमार है। भाषा ही नहीं, हमारे विचार भी आयातित हैं, वह चाहे मार्क्सवाद हो या चारू मजूमदार का नक्सलवाद।''
इसी सत्र में प्रो. राकेश सिन्हा ने कृष्णचंन्द्र भट्टाचार्य को उद्धृत करते हुए कहा, '1931 में उन्होंने लिखा ''राजनीतिक दासता दिखाई पड़ती है, लेकिन सांस्कृतिक दासता को बिना वाद-प्रतिवाद के हम स्वीकार कर लेते हैं। वह दिखाई नहीं देती। इस उपनिवेशवाद को समझना ही मुख्य चुनौती है।'' उन्होंने संत तुकाराम, रामदास, कबीर, तुलसीदास का जिक्र करते हुए कहा कि ये सभी बिना किसी औपचारिक शिक्षा के संस्कृति के पक्ष में यह लड़ाई लड़ चुके हैं।
प्रो. गौतम सेन ने कहा कि दुनिया में अकेला भारत ऐसा देश है, जहां राज्य पर हुए आक्रमण की भी प्रशंसा होती है। उन्होंने कहा कि यह गुलामी का ही परिणाम है कि हमारे पूवार्ेत्तर राज्यों की दो तिहाई आबादी तथा नेपाल की एक तिहाई आबादी मतांतरित होकर ईसाई हो चुकी है। सामाजिक संतुलन में यह परिवर्तन इसलिए विचारणीय है, क्योंकि आज वे भारत के साथ शत्रुवत व्यवहार करते दिखाई देते हैं।
प्रो़ प्रसन्ना देशपांडे ने 9 फरवरी, 2016 को सांस्कृतिक संध्या (कल्चरल ईवनिंग) के नाम पर जेएनयू में हुए हंगामे की चर्चा करते हुए कहा कि 'भारत तेरे टुकडे़ होंगे' जैसे नारे कौन से सांस्कृतिक कार्यक्रम का भाग हो सकते हैं। यह सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, मार्क्सवादी विचारधारा है। 1924 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से आए विद्यार्थियों ने जर्मनी के फ्रेंकफर्ट विश्वविद्यालय में लिवरिस्ट सोशलिस्ट मूवमेंट चलाया। उनका वही स्वरूप आज भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को आलोचना के माध्यम से तोड़ना-यही वामपंथ का मकसद है।
प्रो़ संदीप सिंह ने कहा कि अमेरिका क्रिकेट नहीं खेलता, क्योंकि उसका मानना है कि यह खेल अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है। अमेरिका कभी अंग्रेजों का गुलाम नहीं रहा, हम क्यों खेलें? भारत में उपनिवेशवाद ने समाज को कैसा प्रभावित किया है कि जिस राजस्थान के राजपूताने ने मुगल सत्ता के विरुद्ध सर्वाधिक संघर्ष किया, उसके ही जयपुर राजवंश की राजकुमारी का विवाह अकबर से और जोधपुर राजवंश की बेटी का विवाह जहांगीर से हुआ। यह प्रवृत्ति आज भी दिखाई देती है। जिन हिन्दू लड़कियों और अभिनेत्रियों ने मुसलमान अभिनेताओं के साथ विवाह किया है, उनमें से कई सैन्य अधिकारियों की बेटियां हैं।
मंथन को वैदिक विद्वान आचार्य डेविड फ्रॉली (जिन्हें पं. वामदेव शास्त्री के नाम से भी जाना जाता है), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे. नंदकुमार, वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, महाचसिव श्री राममाधव, वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहाुदर राय, चर्चित अभिनेता श्री अनुपम खेर, फिल्मकार श्री चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, श्री मधुर भंडारकर, श्री विवेक अग्निहोत्री, प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मानसिंह, कनाडा में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के लेखक श्री तारक फतेह, विचारक प्रो. अशोक मोडक सहित अनेक गणमान्य लोगों ने संबोधित किया।
लोक मंथन के लिए तय किए गए विषयों को देखकर आप अनुमान लगा सकते हैं कि इस आयोजन के लिए विभिन्न विषयों के समायोजन का आयोजकों ने कितना ख्याल रखा। आयोजन में शामिल हुए प्रतिभागियों से बात करके यह स्पष्ट हुआ कि आयोजकों ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों से उन्हें चुना था। वहां कलाकार, लेखक, पत्रकार, अधिवक्ता, सीए, व्यवसायी, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे। अर्थात् समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से बराबर प्रतिनिधित्व हो पाए इस बात का प्रयास आयोजकों की तरफ से किया गया था। विभिन्न सत्रों में विषय की विविधता भी आयोजकों के श्रम और दृष्टि को स्पष्ट करती है।
लोकाभिव्यक्ति, औपनिवेशिकता, साहित्य, समाजविज्ञान-मानविकी, राजनीतिक विमर्श, कला एवं संस्कृति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं जीवनशैली, शास्त्रार्थ, शास्त्रीय नृत्य, रामायणी कथा, नव उदारीकरण, राष्ट्रीयता, राजनीति, स्वदेशी अर्थव्यवस्था, संस्कृति, लोक परंपरा और उपासना, पहचानों का समायोजन, जाति, भाषा, पंथ, क्षेत्र तथा वर्ग जैसी पहचान, महिला शक्ति, दलित और वंचित आख्यान, पूवार्ेत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, लोकतंत्र में लोकस्थान, कबीर गायन, पंडवानी गायन, काठा नृत्य, चित्र काव्य, कथकली, कलरी, भरतनाट्यम, चित्रकला, लोककला एवं परंपराएं, मीडिया, अकादमिक एवं बौद्धिक जगत, इतिहास लेखन की दृष्टि, भारतीय फिल्म, सोशल मीडिया जैसे विविध विषयों को देखकर आप अनुमान लगा सकते हैं कि लोक मंथन के चिन्तन का दायरा कितना विस्तृत था।
1,000 से अधिक श्रोता, 100 से अधिक वक्ता और 35 से अधिक सत्र का संचालन तीन दिन में करने की योजना बनाना और भोपाल के बाहर से आए अतिथियों के साथ समन्वय आसान नहीं रहा होगा। लेकिन लोक मंथन की संचालन समिति ने योजनाबद्ध तरीके से करके यह सब करके अपने कुशल प्रबंधन की मिसाल पेश की।
लोक मंथन की आयोजन समिति ने इस बात का ख्याल रखा कि इस मंथन में अधिक से अधिक लोगों के विचारों की भागीदारी हो। संभवत: इसलिए समानान्तर सत्रों की व्यवस्था की गई। समानान्तर सत्रों के लिए कक्षों के नाम कुछ इस प्रकार थे, नैमिषारण्य, जो आयोजन का केन्द्रीय कक्ष था। जहां उद्घाटन और समापन सत्र सम्पन्न हुए। समानान्तर सत्रों
के लिए कक्षों के नाम अनुसंधान, निर्वाण, साधना, केवल ज्ञान, प्रत्यभिज्ञा, अद्वैत, बहिरंग आदि थे।
बहरहाल, लोक मंथन की चर्चाओं से यह महसूस किया गया कि यह चर्चा सिर्फ एक बार का आयोजन बनकर ना रह जाए। इसे हर वर्ष आयोजित होना चाहिए, जिससे अगले वर्ष हम पिछली मुलाकात के 'लेखा-जोखा' पर विचार कर पाएं।
महाभारत कहता है कि किसी राज्य में बच्चे भूखे रहें और वे बड़ों को खाता हुआ देखें तो ऐसा राज्य धिक्कार योग्य है। भीष्म पितामह युधिष्ठिर से यह नहीं कहते कि जिसके पास सामरिक शक्ति है, वह राज्य महान है। वे पूछते हैं- सब सुखी हैं या नहीं। यह बुनियादी सवाल है कि सरोकार किसके साथ है। हमारा सरोकार इस बात में है कि यह प्रकृति हमारी मां है। हम इसका दूध तो पी सकते हैं लेकिन खून नहीं पी सकते।
—डॉ. मुरली मनोहर जोशी
वरिष्ठ भाजपा नेता
हम पूरे विश्व को एक परिवार समझते हैं, जबकि पश्चिम इसे बाजार समझता है। भारतीय जीवन मूल्यों में सदैव समता, समानता और सामान्य जन, पशु-पक्षी के अधिकारों की चिंता रही है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन का अधिकार रहा है। इसलिए हम अन्न को औषधि और जल को देवता मानते हैं।
—स्वामी अवधेशानंद गिरि जी, पीठाधीश्वर, जूना अखाड़ा
पश्चिम के राष्ट्र जब सबल हुए तो उन्होंने पूरी दुनिया में कालोनियां बनाईं और उनका शोषण किया, जबकि भारत राष्ट्र जब सबल हुआ तो लोग विदेशों में गए। भारतीयों ने वहां जाकर न, सिर्फ उनकी अस्मिता का संरक्षण किया, बल्कि उन्हें नई प्रविधियां सिखाईं और उनके विकास में योगदान दिया। यह दो राष्ट्रों की प्रकृति का अंतर भी है। —सुरेश सोनी, सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
संस्कृति का प्रवाह गंगा नदी की तरह है, लेकिन गंगा में प्रदूषण कितना आ गया है। नदी, नालों की सारी गंदगी। अब उसे दूर करने में हम सब लगे हुए हैं। वैसे ही संस्कृति के गंगा प्रवाह में बहुत तरह की कुरीतियां, गलत रिवाज शामिल होते चले जाते हैं। उन्हें दूर करने की जिम्मेदारी भी हम सभी को लेनी होगी।
—डॉ. सोनल मानसिंह
प्रसिद्ध नृत्यांगना
मुझे लगता है कि इस देश में बहुत सारी घटनाएं, बहुत सारे व्यक्तित्व, बहुत सारी बातें ऐसी हैं, जिन्हें सत्य घटना के तौर पर दिखाना जरूरी है। आपातकाल, जो लोकतंत्र पर कलंक था, उसके ऊपर एक फिल्म बना रहा हूं। मुझे कहा गया कि इस तरह की फिल्म बनाने पर तुम पर हमला होगा लेकिन मैं डरा नहीं।
—मधुर भंडारकर, फिल्मकार
आप डोनाल्ड ट्रम्प को गाली दे रहे हैं। ट्रम्प को गाली देना आसान है। आप सऊदी अरब के राजा को गाली देकर देखिए कौन सड़क पर उतर आता है। पता चलेगा। आपका असली दुश्मन पाकिस्तान है। पाकिस्तान जब तक वजूद में है, आपको अमन नसीब नहीं होगा। आपमें से जो लोग कहते हैं कि हाथ बढ़ाओ, वे डरपोक लोग हैं। जो कहता है कि आगे बढ़कर एक चपत लगाओ, वह आपका प्रधानमंत्री है। पिछले एक हजार साल में ऐसा व्यक्ति नहीं आया।
—तारक फतेह, पाकिस्तानी मूल के लेखक
हम जब दुनिया को बताते हैं कि इस देश की समृद्ध संस्कृति है, तो इस संस्कृति को समृद्ध किन लोगों ने किया? मंदिर के पत्थर कौन उठा कर लाया? किसने उसकी नींव रखी? किसने उस मंदिर को बनाया? रास्ते और सड़कें बनीं, इन्हें बनाने वाला कौन है? ये सभी वंचित, वनवासी और पिछड़े वर्ग से आते हैं। इन्हीं लोगों ने इस देश की संस्कृति को समृद्ध बनाया है।
—मिलिन्द काम्बले, संस्थापक, डिक्की
यदि हमें मां दुर्गा के स्वरूप में हिंसा नजर आती है तो यह भाषा बता रही है कि हम अपने स्वरूपों के संबंध में कितना कम जानते हैं। यदि यह सच है तो श्रीराम ने कितनी हिंसा की और श्रीकृष्ण तो सबसे बड़े अपराधी हैं। दोष उनका नहीं है जो 'मां' के लिए इस तरह के सवाल पूछते हैं, मुश्किल तो यह है कि अपनी परंपराओं को समझने का हर द्वार शिक्षा ने बंद कर दिया है।
—डॉ. कपिल तिवारी
आदिवासी लोक अकादमी, भोपाल
दलित और वनवासी समुदाय का नाम साथ-साथ लेने की परंपरा चलन में है, जबकि वनवासी कभी दलित नहीं रहे। वे राजा हैं, वे मालिक हैं।
—अशोक भगत
संस्थापक, विकास भारती, झारखंड
विचार एक बीज है। दुनिया की पचास फीसदी आबादी किसी न किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुजर रही है। अमेरिका जैसे विकसित देशों के पास साधन तो हैं, पर समाधान नहीं। समाधान के लिए भारत की तरफ देखा जा रहा है। भारत के पास धन्वंतरी का ज्ञान है, जो किसी और के पास नहीं है।
— आचार्य डेविड फ्रॉली, वैदिक विद्वान
हमें किसी विचार और पंथ को स्वीकार करने में संकट नहीं है। हमारी संस्कृति ही समावेशी है, हम किसी पर कोई शर्त नहीं थोपते। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि यहां पर रहने वाला हर नागरिक कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस देश की माटी के प्रति प्रतिबद्ध रहे।
—प्रो़ अशोक मोडक
विचारक और राजनीति विज्ञानी
भारतीय दर्शन की यह खूबसूरती है कि जिस मत ने भारतीयता को आत्मसात कर लिया, उसे इस देश में फलने-फूलने का पूरा अवसर भी मिला। इसका एक उदाहरण इस्लाम हो सकता है।
—मौलाना सैयद अतहर हुसैन देहलवी
मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने अपने प्रदेश में जितनी खत्म होती विरासत देखी है, उतनी पूरे देश में कहीं नहीं देखी है।
—मालिनी अवस्थी, लोक गायिका
अपने यहां ध्रुपद मार्गीय संगीत श्रेणी में था, लेकिन पाश्चात्य संगीत के प्रभाव में इसे शास्त्रीय संगीत की श्रेणी में रखा गया। यह पश्चिमी देशों के क्लासिकल म्यूजिक का अनुवाद है, जबकि शास्त्रीय संगीत जैसा कोई शब्द हमारे शास्त्रों में नहीं है।
—उमाकांत गुंदेचा, ध्रुपद गायक
मैंने भारत में बहुत यात्रा की है। लेकिन जो भाषा बॉलीवुड की फिल्मों में बोली जाती है, वह इस देश के अधिकतर स्थानों पर किसी को बोलते हुए सुना नहीं। लोग यह कहते हैं कि इस भाषा को युवा पसंद करते हैं। युवा पसंद जरूर करता है, लेकिन वह युवा बांद्रा और ब्रीज कैन्डी का युवा है।
—विवेक अग्निहोत्री, फिल्मकार
लोक मंथन 2016 हेतु भोपाल के चयन के पीछे एक विशेष कारण है। भोपाल एक ऐसा शहर है जिसने अपनी प्राचीन लोक-परंपरा को बहुत सम्मान दिया है। राजा भोज की संस्कृति और भोपाल के लोगों द्वारा उस परंपरा को बचाए रखने का विशेष गुण भोपाल की विशेषता है।
—जे. नंदकुमार, अ.भा.सह प्रचार प्रमुख
हमें सिर्फ उस वक्त देशभक्ति याद नहीं आई जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच चल रहा था। हमें उस वक्त भी देशभक्ति याद आई जब हमारे सेना के जवान सरहद पर शहीद हो रहे थे।
—अनुपम खेर, अभिनेता
लोक मंथन का यह कार्यक्रम भारतीय इतिहास में एक नए युग के उदय का प्रारंभ जैसा है। यह मेरी शुभकामना भी है और आशा भी।
—सामदोंग रिनपोछे
पूर्व प्रधानमंत्री, निर्वासित तिब्बती सरकार
विचार एक बीज है। जिस प्रकार बीज सही वातावरण, सही खाद, सही पानी, सही धूप मिल जाने से वृक्ष बन जाता है। संभव है कि वह वृक्ष आपके जीवन काल में फल न दे, तो क्या हम ऐसा बीज रोपे ही नहीं वृक्ष बनने के लिए जिसके फल हमें नहीं मिलने वाले।
-चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, फिल्मकार
भारत में उपनिवेशवाद ने समाज को कैसा प्रभावित किया है कि जिस राजस्थान के राजपूताने ने मुगल सत्ता के विरुद्ध सर्वाधिक संघर्ष किया, उसके ही जयपुर राजवंश की राजकुमारी का विवाह अकबर से और जोधपुर राजवंश की बेटी का विवाह जहांगीर से हुआ। यह प्रवृत्ति आज भी दिखाई देती है।
-प्रो. संदीप सिंह
चीन, जापान, रूस अपनी पहचान के प्रति बेहद सजग है। आज हमारी भाषा में
अंग्रेजी के शब्दों की भरमार है। भाषा ही नहीं हमारे विचार भी आयातित हैं, वह चाहे मार्क्सवाद हो या चारू मजूमदार का नक्सलवाद।
-राजीव मल्होत्रा
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