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पाञ्चजन्य ने सन् 1968 में क्रांतिकारियों पर केन्द्रित चार विशेषांकों की शंृखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित कर रहा है। प्रस्तुत है 22 जनवरी ,1968 के अंक में प्रकाशित प्रफुल्लबाला बख्शी के आलेख की दूसरी कड़ी:-ं
सन् 1932 की 6 फरवरी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में समावर्तन उत्सव मनाया जा रहा था। मुख्य अतिथि थे बंगाल के अंग्रेज लाट सर स्टैनले जैकसन। उस अवसर पर कुमारी वीणादास नामक एक नई स्नातिका ने, जो उपाधि लेने आई थी, गवर्नर पर गोली चला दी। गोली चूक गई, गवर्नर के कान के पास से निकल गई और वह मंच पर लेट गया। इतने में ले.क. सुहरावर्दी ने दौड़कर वीणादास का गला एक हाथ से दबा लिया और दूसरे हाथ से पिस्तोल वाली कलाई पकड़ कर सीनेट हाल की छत की तरफ कर दी फिर भी वीणादास गोली चलाती गई, लेकिन पांचों गोलियां चूक गईं। उन्होंने पिस्तौल फेंक दी। अदालत में वीणादास ने एक साहसपूर्ण बयान दिया। अखबारों पर रोक लगा दिये जाने के कारण वह बयान प्रकाशित न हो सका। वीणादास को दस साल कारावास का दण्ड मिला था।
बलिदानी क्रांतिकारिणी प्रीतिलता ओदेदार
उन्हीं दिनों 24 सितम्बर, 1932 की रात नौ-दस बजे चटगांव के पहाड़तली में स्थित यूरोपियन इंस्टीट्यूट पर बम तथा रिवाल्वरों से हमला हुआ। इस अभियान का नेतृत्व किया था कुमारी प्रीतिलता ओदेदार ने। इसमें कुछ गोरे मरे तथा जख्मी हुए। आक्रमण करने वाले दस या बारह क्रांतिकारी थे।
अंत में क्लब से सौ गज के फासले पर प्रीतिलता की लाश मिली। वह गोरों की गोली से जख्मी हो गई थी। जख्म खतरनाक था अत: पोटेशियम साइनाइड खाकर उसने अपना अंत कर लिया ताकि पुलिस भेद न ले सके। कोई और क्रांतिकारी हाथ नहीं लगा था।
प्रीतिलता ने चटगांव कालेज से बी.ए.पास किया था। पढ़ते समय ही कर्मठ क्रांतिकारी बन गई थी। प्रसिद्ध शहीद सूर्यसेन की शिष्या थी। सूर्यसेन के आदेशानुसार ही उसने यूरोपियन क्लब पर क्रांतिकारियों के आक्रमण का नेतृत्व किया था। बहुत दिनों तक फरार रहीं। एक बार फरारी की हालत में सूर्यसेन तथा अन्य क्रांतिकारियों के साथ चटगांव जिले के घलघाट गांव में एक गरीब ब्राह्मण के घर उन सबने आश्रय ले रखा था। पुलिस ने घर को घेर लिया। विप्लवियों ने पिस्तौल चलायी और ब्रिटिश फौज ने मशीनगन। अंग्रेज सरकार की तरफ कैप्टन कैमरन मरे और विप्लवियों में निर्मल सेन तथा अपूर्व सेन मारे गये। सूर्यसेन और प्रीतिलता आश्चर्यजनक रूप से फरार हो गए।
उन्हें आश्रय देने के कारण वृद्धा माता सावित्री देवी और उनके पुत्र रामकृष्ण को चार-चार साल की सजा मिली।
क्रांतिकारिणी कल्पना दत्त
प्रीतिलता की ही तरह कल्पना दत्त भी कर्मठ क्रांतिकारिणी थी। वह भी चटगांव की एक शिक्षिता लड़की थी। 16 फरवरी, 1933 को रात 10 बजे थे। विप्लवियों के गुप्त आश्रयस्थल चटगांव के गैराला गांव को पुलिस तथा फौज ने घेर लिया। उस समय सूर्यसेन अन्य फरार विप्लवियों से मिलने बाहर जा रहे थे। उन्होंने मकान को घिरा पाया। पुलिस के साथ विप्लवियों का घंटों संघर्ष हुआ। दोनों तरफ से गोली चलती रही। शांति चक्रवर्ती जख्मी हुए। जख्म गंभीर था। सूर्यसेन पकड़ लिए गए। शांति चक्रवर्ती, कुमारी कल्पना दत्त, मणिदत्त, सुशीलदास गुप्त आदि सब निकल जाने में सफल हुए। सूर्यसेन भी भाग रहे थे, लेकिन गोरखा सिपाहियों ने उन्हें देख लिया और पकड़ लिया।
सूर्यसेन को फांसी
सूर्यसेन की गिरफ्तारी के तीन महीने बाद कल्पना दत्त और तारकेश्वर दस्तीदार भी पकड़ लिए गए। यहां भी पुलिस के साथ खूब संघर्ष हुआ। कल्पना दत्त तथा अन्य क्रांतिकारियों को आश्रय देने वाले पूर्ण तालुकदार तथा उनके छोटे भाई निशि तालुकदार फौज की गोली से शहीद हुए। क्रांतिकारी गोलियां चलाते रहे, जब गोलियां खत्म हो गईं तो कल्पना दत्त तथा तारकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया।
स्पेशल ट्रिब्युनल में सूर्यसेन, तारकेश्वर दस्तीदार तथा कल्पना दत्त का फैसला एक साथ हुआ। कल्पना दत्त को आजन्म कालेपानी की सजा मिली। सूर्यसेन व तारकेश्वर दस्तीदार को फांसी की सजा हुई।
विप्लविनी पारुल मुखर्जी
कुमारी पारुल मुखर्जी उपाख्य नीहार भी ऐसी ही एक विप्लवी लड़की थी, जिसने जोखिम भरा क्रांतिकारी संगठन का काम किया। इनका भाई अमूल्य मुखर्जी, कुमिल्ला के क्रांतिकारियों में खास कार्यकर्ता था। पारुल भी बहुत दिनों तक फरार रही और एक दिन 20 जनवरी, 1936 को टीटागढ़ के एक गुप्त केन्द्र में पकड़ ली गई। यहां पर इनके साथ अन्तर्प्रादेशिक षड्यंत्र के नेता तथा अलीपुर सेंट्रल जेल से फरार पूर्णानंददास गुप्त एवं एक अन्य क्रांतिकारी श्यामविनोद पाल चौधरी पकड़े गये। टीटागढ़ षड्यंत्र का मुकदमा 29 लोगों पर चला। इसमें कुमारी पारुल मुखर्जी को पांच साल की सजा हुई।
सुहासिनी गांगुली
सुहासिनी गांगुली का नाम भूल जाना अविचार होगा। सुहासिनी देवी उपाख्य पुंटऊदी चटगांव की रहने वाली थीं। क्रांतिकारियों की स्नेहमयी-ममतामयी दीदी थीं।
सन् 1930 की पहली सितम्बर को चन्दननगर के मकान को पुलिस ने घेर लिया। पुलिस को संदेह हुआ था कि उस मकान में चटगांव के फरार क्रांतिकारी टिके हुए हैं। क्रांतिकारी वहां थे भी। दोनों तरफ से गोलियां चलीं। क्रांतिकारी जीवन घोषाल शहीद हुए। गणेश घोष, लोकनाथ बल व आनंद गुप्त पकड़े गये। वे चटगांव कांड के मुकदमे में शामिल कर दिये गये। इन लोगों के आश्रयदाता के रूप में सुहासिनी गांगुली भी पकड़ी गईं। उन्हें दो साल की सजा मिली और सजा काट लेने के बाद भी छोड़ी नहीं गईं—कई साल तक नजरबंद रहीं।
इससे पता चलता है कि क्रांतिकारी आंदोलन में स्त्रियों को शरीक न करने की परंपरा रहने पर भी उन्होंने पुरुषों की ही तरह क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था। नीचे कुछ ऐसी क्रांतिकारी महिलाओं का परिचय दिया गया है, जिनको सजा नहीं दी जा सकी—परंतु नजरबंद करके जेल में रखी गईं-
श्रीमती लीलावती नाग, एम.ए.—अवकाशप्राप्त डिप्टी मजिस्ट्रेट रायबहादुर गिरीशचंद्र नाग की पुत्री। अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.। ढाका में इन्होंने लीलावती विद्यालय और बाद में कमरुन्निसां बालिका विद्यालय की स्थापना भी की। दीपावली संघ नाम की एक नारी संस्था की स्थापना भी की, जिसका उद्देश्य नारियों की सर्वतोमुखी उन्नति करना था। गांव-गांव घूमकर इन्होंने लड़कियों के विद्यालय स्थापित किये। इसी युग में लीलावती ने जयश्री नाम की एक विख्यात मासिक पत्रिका निकाली। विप्लव के आदर्शवाद का प्रचार करती रहीं। 20 दिसम्बर, 1931 को गिरफ्तार कर ली गईं और 1938 में नजरबंदी से रिहा की गईं।
रेणुका सेन, एम. ए.—अर्थशास्त्र में एम. ए. ढाका में लीलावती के पहले विद्यालय की छात्रा थीं। ढाका से बी.ए. करने के बाद कलकत्ता से एम.ए. किया। 17 सितम्बर, 1930 को यह पहले-पहल डलहौजी स्क्वायर बमकांड के संबंध में गिरफ्तार की गईं। एक महीने हवालात में बंद रहीं। फिर 20 दिसम्बर, 1930 को लीलावती नाग के साथ गिरफ्तार की गईं और 1931 को रिहा की गईं।
लाला कमाल, बी.ए.— महाराष्ट्र निवासिनी। आशुतोष कालेज में बी.ए. में पढ़ते समय गे्रण्डले बैंक के मामले में गिरफ्तार हुईं, किंतु फिर छूट गईं।
इन्दुमती सिंह—चटगांव के गोपाल लाल सिंह की पुत्री। छह साल जेल में नजरबंद रहीं।
अमितासेन—1933 में इनके बालीगंज वाले मकान से एक पिस्तौल बरामद हुई। अत: वह अपने छात्रावास से गिरफ्तार कर ली गईं। सबूत न मिलने पर रिहा हो गईं परंतु तत्काल बंगाल ऑर्डिनेंस में पुन: गिरफ्तार हो गईं। कई वर्ष जेल में रहीं।
कमला चटर्जी बी.ए.—1933 में अध्ययनकाल में गिरफ्तार हुईं। 1937 के अंत में रिहा। अच्छी लेखिका थीं।
सुशीला दास गुप्ता—5 साल जेल में रहीं।
लावण्यप्रभा दास गुप्ता— 5 साल जेल में रहीं।
कमला दास गुप्ता बी.ए.— वीणादास के साथ गिरफ्तार की गईं। पश्चात ऑर्डिनेंस में नजरबंद।
सुरमा दास गुप्ता, बी.ए.— डेढ़ साल जेल में रहीं।
उषा मुकर्जी- तीन साल जेल में रहीं।
सुनीति देवी— दो साल जेल में थीं।
प्रतिभा भद्र, बी.ए.— पांच साल जेल में रहीं।
सरयू चौधरी—टीटागढ़ कांड में गिरफ्तार। पश्चात आर्डिनंस में चार साल जेल में रहीं।
इंद्रसुधा घोष—चार साल जेल में थीं।
प्रफुल्ल नलिनी ब्रह्म—त्रिपुरा के मजिस्ट्रेट के कत्ल के षड्यंत्र में गिरफ्तार। मुकदमा न चल सका, फिर ऑर्डिनेंस में गिरफ्तार और जेल में ही मर गईं।
हेलेना बाल, बी.ए.—अपने मामा प्रफुल्ल कुमार दत्त के साथ गिरफ्तार, कई साल जेल में रहीं।
आशा दास गुप्ता—पांच साल जेल में रहीं।
अरुणा सान्याल—पांच साल जेल में थीं।
सुषमा दास गुप्ता—कई साल घर में नजरबंद।
प्रमिला गुप्ता, बी.ए.—वीणादास के साथ गिरफ्तार। कई साल नजरबंद रहीं।
सुप्रभा भद्र—प्रतिभा भद्र की छोटी बहन। नजरबंद रहीं।
शांतिकणा सेन—दो साल जेल में रहीं। ल्ल
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