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अखिल भारतीय साहित्य परिषद, दिल्ली की प्रादेशिक इकाई 'इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती' के तत्वावधान में गत दिनों दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के सभागार में श्री वीर सैन जैन 'सरल' के उपन्यास 'अकेलेपन का दर्द' पर परिचर्चा हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ बाबा कानपुरी द्वारा सरस्वती वंदना द्वारा किया गया। परिचर्चा की अध्यक्षता हिन्दी की वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती रजनी सिंह ने की। साहित्यकार डॉ. हरी सिंह पाल, आचार्य हरि भारद्वाज, डॉ. इंद्र सैंगर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे।
अध्यक्षीय भाषण में श्रीमती रजनी सिंह ने कहा कि यद्यपि भारत के शिक्षित समाज में पर्याप्त वृद्धि हुई है लेकिन फिर भी महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया कुछ खास नहीं बदला है। हमें यह नजरिया बदलना पड़ेगा और अपनी प्राचीन परंपराओं और संस्कृति को अपनाना होगा। डॉ. हरि सिंह पाल ने कहा कि वीर सैन जैन 'सरल' का अकेलेपन का दर्द एक सामाजिक उपन्यास है। इसमे एक विधवा के दर्द को बड़ी ही सूक्ष्मता के साथ रेखांकित किया गया है। धर्म के नाम पर कुछ लोगों द्वारा जो पाखंड किया जा रहा है उसे पूरी गंभीरता के साथ उद्घाटित किया गया है। समाज में व्याप्त विसंगतियों, विरोधाभासों पर करारा प्रहार किया गया है। ल्ल प्रतिनिधि
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