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पंजाब में चुनाव से पहले आआपा और सद्धिू के बीच चला कॉमेडी शो अब हंसा भी नहीं पा रहा। लोग उकता गए हैं स्वार्थी गुटबंदियों से। एक तरफ अकाली-भाजपा गठबंधन है तो दूसरी ओर भगदड़ मंचन
राकेश सैन
टीवी पर चलने वाला कपिल शर्मा कॉमेडी शो इन दिनों पंजाब की चुनावी राजनीति में भी देखने को मिल रहा है। भाजपा छोड़ चुके पूर्व सांसद नवजोत सिंह सद्धिू को लेकर कहा जाने लगा है- 'गुरु, ठोको-ठोको कहते हुए खुद ही ठुक गए।' न तो आम आदमी पार्टी और न ही कांग्रेस उन्हें अब गंभीरता से ले रही है। उनका आवाज-ए-पंजाब फ्रंट नामक संगठन घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाया है और इसमें शामिल हुए पूर्व हाकी कप्तान व विधायक परगट सिंह, नर्दिलीय विधायक सिमरजीत सिंह बैंस और बलवंत सिंह बैंस भी अधर में लटकते नजर आ रहे हैं।
अगस्त महीने में राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देते समय पूर्व भाजपा सांसद नवजोत सिंह सद्धिू ने कुछ ऐसा आभास दिया था कि वे पंजाब की राजनीति में पूरे जोशोखरोश से उतरने वाले हैं। भाजपा में रहते हुए भी उन्होंने व उनकी धर्मपत्नी, जो अमृतसर से पार्टी की विधायक थीं, ने अनुशासन भंग करते हुए राज्य में अपने ही गठजोड़ के नेतृत्व वाली मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल सरकार पर ताबड़तोड़ हमले करने शुरू कर दिए। कुछ समय बाद सद्धिू दंपती ने भाजपा को छोड़ दिया।
पंजाब में सत्ता के लिए लालायित आम आदमी पार्टी (आआपा) ने सद्धिू को हाथोंहाथ लिया और बताया जाता है कि सद्धिू ने दल्लिी में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करके राजनीतिक मुद्दे पर बातचीत की। इस बीच मीडिया में समाचार आए कि सद्धिू आआपा से उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी व अपने 40 चहेतों को टिकट देने की मांग पर अड़े थे। 'आआपा' व सद्धिू को लेकर मीडिया व राजनीतिक गलियारों में लंबे समय तक तरह-तरह की चर्चाएं छिड़ी रहीं परंतु बात नहीं बनी। लेकिन ताजा हलचल की मानें तो सद्धिू की उक्त दोनों मांगें खारिज हो चुकी हैं और गठजोड़ खटाई में पड़ गया है। अकाली-भाजपा गठबंधन को लेकर कुछेक हस्सिों में जो कसमसाहट दिखी थी, उसे दूर करके जनता को विकास और अस्मिता का चेहरा इस गठबंधन में ही नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री के पिछले पंजाब दौरों के बाद से बयार पलटने लगी है।
इस बीच आआपा की जगह कांग्रेस ने ले ली परंतु बताया जाता है कि सद्धिू की मांगें जस की तस रहीं। चर्चा है कि कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सद्धिू की मुलाकात पार्टी के उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी से करवाई और उनका कांगे्रस में जाना लगभग पक्का माना जाने लगा।
अब इस बात को लेकर भी एक माह से अधिक का समय बीत चुका है, परंतु सद्धिू ने कांग्रेस में जाना तो दूर इस संबंध में एक शब्द तक नहीं कहा। इस बीच 1 नवंबर को अमृतसर में चल रहे मानहानि के केस की तारीख भुगतने आए अरविंद केजरीवाल ने
एक बार फिर सद्धिू की प्रशंसा कर दी और कहा कि वे आआपा के संपर्क में हैं। मतलब यह कि पूरे प्रकरण में सद्धिू की हालत कुछ-कुछ वैसी हो गई है कि 'इधर जाऊं या
उधर जाऊं'।
वैसे सद्धिू कांग्रेस में जाएं या न जाएं, परंतु उनके आने की धमक ने पार्टी में एक बार फिर गुटबंदी को उजागर कर दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल से नहीं चाहते कि सद्धिू कांग्रेस में आएं और लोकप्रियता में उन जैसा कोई नेता उनके बराबर खड़ा हो। इसीलिए वे यह कह कर सद्धिू का विरोध कर रहे हैं कि उन्हें अपने मोर्चे (आवाज-ए-पंजाब) का कांग्रेस में विलय करना होगा। उनके साथ गठजोड़ नहीं हो सकता। इसका कारण बताते हुए कैप्टन कहते हैं कि सद्धिू का कोई भरोसा नहीं है, वे कुछ सीटें जीतने के बाद कांग्रेस से अलग भी हो सकते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के दूसरे गुट के नेता पूर्व प्रदेश प्रधान प्रताप सिंह बाजवा को लगता है कि सद्धिू के रूप में उन्हें वह अस्त्र मिल सकता है जिसके जरिए वे अपने चिरप्रतद्विंद्वी कैप्टन अमरिंदर सिंह को ठिकाने लगा सकते हैं।
आखिर बाजवा की कुर्सी की बलि लेकर ही तो अमरिंदर की प्रदेश प्रधान पद पर ताजपोशी हुई थी। इसीलिए बाजवा गुट पूरा जोर लगा रहा है कि सद्धिू किसी भी कीमत पर कांग्रेस में शामिल हों। बाजवा का कहना है कि ''सद्धिू के गुणसूत्र (डीएनए) में कांग्रेस है, उनके पिता जी पटियाला जिला कांग्रेस के पदाधिकारी रहे हैं। अगर वे किसी भी रूप में पार्टी से जुड़ते हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए।'' इस बीच राजनीतिक गलियारों से यह भी जानकारी मिल रही है कि आआपा से नष्किासित किए गए प्रदेश संयोजक सरदार सुच्चा सिंह छोटेपुर, निलंबित सांसद
डॉ. धर्मवीर गांधी, नर्दिलीय विधायक बैंस बंधू, परगट सिंह व आआपा से ही निकाले
गए योगेंद्र यादव सहित अनेक छोटे-छोटे दल मिल कर एक नया गठजोड़ बनाने की
तैयारी में हैं।
इनका कहना है
सद्धिू को अपने मोर्चे (आवाज- ए-पंजाब) का कांग्रेस में विलय करना होगा। उनके साथ गठजोड़ नहीं हो सकता। सद्धिू का कोई भरोसा नहीं है। वे कुछ सीटें जीतने के बाद कांग्रेस से अलग भी होसकते हैं।''
– कै. अमरिंदर सिंह, अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस
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