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भले ही हरियाणा को एक अलग राज्य के रूप में पहचान 1 नवंबर 1966 को मिली हो लेकिन ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से उसकी पहचान सदियों से बरकरार है। यह राज्य आदिकाल से भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धुरी रहा है। हरियाणा की पावन मिट्टी में संस्कृति की सुगंध हैै, साहित्य के सुंदर फूल खिले हैं, प्राचीन भारत की परंपराओं और लोककथाओं का भंडार है, स्वतंत्रता आंदोलन के दौर की वीरगाथाएं हैं। बहुत कुछ समाहित है इस पावन भूमि में। कु्नरुक्षेत्र का वह मैदान जहां कभी कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जो भारत की संस्कृति में सदा-सदा के लिए मंत्र रूप में अमर हो गया।
हरियाणा प्रांतीय स्तर पर दुनिया की ऐसी पहली राजनीतिक-भौगोलिक इकाई है जिसने निज भाषा की लड़ाई लड़ने वालों को स्वतंत्रता सेनानी का गौरव प्रदान किया। हिंदी की नींव पर खड़े हरियाणा में सालों-साल धुर दक्षिण में बोली जाने वाली तमिल भाषा दूसरे पायदान पर रही। हरियाणा की हरित धरती पर महिलाओं को सम्मानित स्थान दिलाए जाने और कन्या भू्रणहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने जैसे विषयों को और गहनता से स्वीकारा जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार ने इस ओर कई बड़े कदम उठाए हैं। नतीजतन राजनीति से लेकर खेल के मैदान तक और जमीन से लेकर आसमान तक हरियाणा की बालाओं ने दुनिया के सामने अपना दमखम दिखाया है। ऐसे तेजी से आगे बढ़ते राज्य के चहुंमुखी विकास की झलक दिखाता है पाठकों की भारी मांग पर हरियाणा की विभूतियों और इनके राष्ट्रीय योगदान पर केन्द्रित यह विशेष आयोजन।
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