बेटी में भरी शक्ति
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बेटी में भरी शक्ति

by
Oct 27, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Oct 2016 13:24:08

संध्या चन्द्रशेखर
36 वर्ष
पावर गर्ल अभियान

प्रेरणा
ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री
मार्गेट थैचर
उद्देश्य
  लड़कियों को सही राह दिखाना

ज्ञान और धन के प्रति दृष्टि
हम अगर सरस्वती की साधना पर ध्यान देंगे, तो लक्ष्मी अपने आप द्वार खटखटाएंगी।  
जीवन का अहम मोड़
आईआईएम में प्रवेश

-अश्वनी मिश्र-

आईआईएम, अमदाबाद से एमबीए करने के दौरान संध्या चन्द्रशेखर ने तीन बातें सीखीं। वे बताती हैं,''पहली, या तो आप आसपास के माहौल को लेकर परेशान हो सकते हैं या उस माहौल को बदल सकते हैं, यह आपका फैसला है। दूसरा, अपनी क्षमता और अपने सपनों को पूरा करने के लिए यह जीवन ही पर्याप्त है। तीसरा, एक और एक सच में ग्यारह होते हैं। अगर काम में सच्चे मन से किसी का सहयोग मिल जाए तो धारा को बदला जा सकता है।'' इन बातों को संध्या ने अपने जीवन में लागू किया है। वर्तमान में संध्या सिंगापुर में 'पावर गर्ल' नाम से एक अभियान चलाती हैं। वे सिंगापुर में स्विस बैंक की उपाध्यक्ष भी हैं। आन्ध्र प्रदेश के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मीं संध्या परंपरा और संस्कृति में रची-बसी हैं। इसके लिए वे अपने परिवार की कृतज्ञ हैं। अच्दी तनख्वाह वाली नौकरी रहते हुए जीवन में कोई कष्ट नहीं था, पर मन में लगन थी कि बेटियों के लिए कुछ किया जाए। इसके बाद उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ आया पावर गर्ल। 'पावर गर्ल' अभियान मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ'अभियान जैसा ही है। वे इस अभियान की शुरुआत के बारे में बताती हैं,''हम एक दिन परिवार के साथ टहलने निकलने तो सड़क, मॉल, रोड एवं अधिकतर स्थानों पर जो पोस्टर और पम्फलेट दिखाई दिए, उन सभी में महिलाओं के बारे में एक ही चीज दिखाई जा रही थी कि वे कैसे पतली हो सकती हैं, कैसे अपने चेहरे को गोरा बनाएं, आदि। यह देखकर मन में ख्याल आया कि हमारे बच्चे कहां जा रहे हैं? हमारी बच्चियां आगे चलकर क्या सीखेंगी? क्या जीवन का एक ही उदद्ेश्य है कि कैसे गोरा और पतला हुआ जाए? मेरी बेटी भी मुझसे कई बार गोरे होने के बारे में पूछ चुकी थी, क्योंकि उसके साथ पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे गोरे लोगों के हैं। वे बताती हैं, ''मेरे मन में काम के बाद यही विचार आ रहा था। मैंने तय किया कि बेटियों को जीवन में कुछ बनना है तो उन्हें ऐसे विज्ञापनों पर ध्यान देना छोड़ना होगा। एक तरफ नौकरी करना फिर इस अभियान पर लगना एक चुनौती ही है। पर मैंने इसे स्वीकार किया। 2014 में मैंने अभियान की शुरुआत की। इसके लिए मैंने सिंगापुर के स्कूलों का सहारा लिया। सिंगापुर में 12वीं स्तर तक के कुल 92 स्कूल हैं। इनमें सैकड़ों लड़कियां पढ़ती है। मैंने स्कूल प्रशासन से बेटियों को जागरूक करने और जीवन के उदद्ेश्य के बारे में प्रेरित करने के लिए निवेदन किया। स्कूल प्रशासन ने मेरी बात मान ली। अब तक 20 से ज्यादा स्कूलों में जागरूकता से संबंधित कार्यक्रम हो चुके हैं। वे कहती हैं,''बेटियों को जागरूक करने के लिए मैंने विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं जैसे-पायलट, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, जिन्होंने अपने जीवन की शुरुआत छोटे स्तर से की लेकिन आज उन्हांेने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से एक मुकाम हासिल किया है, से संपर्क किया। ये सभी  ख्याति प्राप्त महिलाएं इन बेटियों से मिलती हैं,उन्हें जीवन के उदद्ेश्यों के बारे में बताती हैं, जीवन को कैसे जीना है, बाहरी दुनिया का सत्य क्या है, ताकि वे दिखावे की दुनिया में न फंस पाएं।'' संध्या कहती हैं,''ऐसे अभियानों का असर कोई दो-चार साल में दिखाई नहीं देने वाला। पर हां, ऐसे अभियान का असर हमारी आने वाली पीढ़ी में जरूर दिखाई देगा। मैं चाहती हूं कि भारत में जो छोटी-छोटी लड़कियां हैं उनको प्रेरणा और प्रोत्साहन देने का माध्यम बनूं। अभी भी भारत में ऐसी लाखों बेटियां हैं जो सपने नहीं देख पातीं, उन्हें सपने देखने और पूरा करने का अधिकार मिले। बस इसके लिए ही प्रयासरत हूं।''                ल्ल

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