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चेतन भगत 42 वर्ष लेखक
प्रेरणा
युवाओं के बीच लोकप्रिय
उद्देश्य
युवाओं के जीवन और समस्याओं पर साहित्य का सृजन करना, जिसकी अभिजात्य किस्म की किताबों से कोई तुलना न हो
जीवन का अहम मोड़
हांगकांग वाले बैंक ने चेतन भगत को समय पर पदोन्नति नहीं दी। इस अपमान पर चेतन ने शौकिया लेखन को पेशा बना लिया।
ज्ञानऔर धन के प्र्रति दृष्टि
लेखन में सफल होने का संतोष। उनके उपन्यासों की करोड़ से ऊपर प्रतियां बिक चुकी हैं। धन खुद-ब-खुद बरस रहा है
अजय विद्युत
बचपन में चेतन भगत शैफ बनना चाहते थे। पर परिवार के दबाव में आईआईटी से इंजीनियरिंग करनी पड़ी। फिर, अमदाबाद आईआईएम से एमबीए किया। बैंकिंग सेक्टर में ऊंचे पद पर हांगकांग चले गए। चेतन को वहीं लिखने का शौक पैदा हुआ। शौकिया लेखन ने वक्त बीतने के साथ-साथ पेशे का रूप ले लिया। अब उनकी किताबें खूब पढ़ी जाती हैं। यही नहीं, उनकी किताबों पर फिल्में बनना भी अब आम हो चला है। चेतन अंग्रेजी में लिखते हैं, लेकिन अब हिंदी दुनिया में भी युवाओं के चहेते लेखक हैं। वे युवाओं के जीवन और समस्याओं पर कलम चलाते हैं पर रोचकता से भरपूर। यही कारण है कि वे फिल्मों और लेखन में खूब नाम-दाम कमा रहे हैं।
'कैंपस उपन्यास' की शैली को जन्म देने वाले चेतन भगत कहते हैं, 'साहित्य के क्षेत्र में मैं 'संभ्रांत वर्ग की दादागीरी' से संघर्ष कर रहा हूं। मेरी किताबों को आमतौर पर 'कम गंभीर' साहित्य बताकर खारिज कर दिया जाता है। अच्छा साहित्य क्या है, यह तय करने का हक 'विशेषाधिकार प्राप्त गिने-चुने लोगों' को नहीं, बल्कि समाज को है।'' चेतन की बात बिल्कुल ठीक है कि वह लेखक कथा का जाल क्या बुनेगा जो विरोधाभास न दिखाए।
फिल्मों में बुद्घिजीवी बताकर खारिज किए जाने और साहित्य में चलताऊ लेखक कहे जाने के बावजूद चेतन भगत दोनों ही क्षेत्रों में अत्यंत सफल दिखते हैं। जाहिर है, आलोचनाओं के ईंधन ने उनके लेखकीय करियर को अलग प्रकार की गति दी है। इस बाबत चेतन का कहना है, ''बॉलीवुड में मुझे बुद्धिजीवी समझा जाता है। आप मानें या न मानें। उस नाम से पीछा छुड़ाने के लिए मुझे 'किक ' (जिसके वह पटकथा लेखक थे) करनी पड़ी।'' अब साहित्य में समस्या यह है कि चेतन को लोग बुद्धिजीवी नहीं मानते और फिल्मों में लोग बुद्धिजीवी मानें तो भी समस्या। इसे कुछ लोग लेखन का मार्केटिंग प्रबंधन भी बताते हैं। पर इन सबसे इतर साल 2004 में छपी चेतन की पहली किताब 'फाइव प्वाइंट समवन' भारत में अंग्रेजी का पहला ऐसा उपन्यास थी जिसकी केवल तीन साल के भीतर दस लाख प्रतियां बिकी थीं। हांगकांग वाले बैंक के उस बॉस को धन्यवाद दिया जाना चाहिए जिसने साल 2000 के आसपास नौजवान चेतन भगत को पदोन्नति नहीं दी। और उसके बाद जो कुछ हुआ, उसने भारत में प्रकाशन की दुनिया की तस्वीर को हमेशा के लिए बदल दिया। अगर चेतन गोल्डमैन सैश में काम करते हुए अपनी अनदेखी पर अपमानित महसूस नहीं करते तो शायद लेखन की कभी न सोचते।
चेतन का मानना है, ''मेरी किताबें लोकप्रिय साहित्य हैं, वे अभिजात्य किस्म की किताबें नहीं हैं। तुलना करने की जरूरत ही क्या है? यह तो ऐसा है कि आप 'द कपिल शर्मा शो' देखते हुए कह रहे हों कि यह बीबीसी क्यों नहीं है?'' ''मुझे हाईप्रोफाइल नौकरी छोड़ने का कोई गम नहीं है क्योंकि लेखन में सफल होने के कारण आज मैं सिर्फ उपन्यास ही नहीं, बल्कि कई समाचार पत्रों के कॉलम्स भी लिखता हूं। कुछ कंपनियों में मुझे प्रेरक व्याख्यानों के लिए भी बुलाया
जाता है।'' उनके उपन्यासों पर पांच फिल्में बन चुकी हैं और करोड़ से ऊपर किताबें बिक चुकी हैं। वे कहते हैं, ''मैं अपनी किताबों में उपदेश नहीं दे सकता। 'किक ' तो किक रहेगी। लेकिन आप एफडीआई पर मेरा कॉलम इसलिए पढ़ेंगे क्योंकि मैंने किक लिखी है। और फिर… मेरी असली सफलता यही है कि मैंने अपने जज्बे को हकीकत में तब्दील कर दिया।'' ल्ल
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