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विजय शेखर शर्मा 38 वर्ष संस्थापक,पेटीएम
विजय शेखर शर्मा ने सिर्फ छह वर्ष में जो कर दिखाया है, उसकी चर्चा और तारीफ दुनियाभर में हो रही है। पैदल घूम-घूमकर कंप्यूटर ठीक करने वाले शर्मा अब करोड़ों के मालिक हैं
प्रेरणा
सफलता के रास्ते खुद खोजने पड़ते हैं
उद्देश्य
सफल उद्यमी बनकर विश्व में भारत का नाम करना
जीवन का अहम मोड़
हर व्यक्ति को छुट्टे पैसों की समस्या से जूझते देखना
ज्ञान और धन
के प्र्रति दृष्टि
एक अच्छा विचार आपके सपनों को पंख लगा सकता है।
दिलचस्प आंकड़ा
15,000 करोड़ रु. का कारोबार
नागार्जुन
पेटीएम और वन97 के मालिक विजय शेखर शर्मा साधारण और हंसमुख इनसान हैं। लेकिन उनमें जिंदगी से लड़ कर सपने को जीतने का जुनून गजब का है। विजय हिन्दी माध्यम से पढ़े-लिखे हैं। अंग्रेजी में उनका हाथ तंग था, लेकिन देशभर की छुट्टे पैसे की समस्या खत्म करने वाले एक विचार ने उन्हें 15,000 करोड़ रुपए की कंपनी का मालिक बना दिया।
अलीगढ़ के एक छोटे से गांव विजयगढ़ में 1973 को जन्मे विजय मध्यम वर्गीय परिवार से वास्ता रखते हैं। चार भाई-बहनों में विजय तीसरे नंबर के हैं। दो बहनें उनसे बड़ी और एक छोटा भाई है। शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ में ही हिन्दी माध्यम से की। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए तैयारी शुरू की तो अंग्रेजी चुनौती बनकर सामने खड़ी हो गई। परीक्षा में प्रश्न अंग्रेजी में पूछे जाते थे जो उन्हें समझ में नहीं आते। कई बार जब उन्हें सवाल समझ में नहीं आता तो वे दिए गए विकल्पों से सवाल गढ़ते। फिर उसका उत्तर लिखते। हालांकि गणित और विज्ञान पर उनकी पकड़ अच्छी थी। वे दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने के बाद चयन की उम्मीद छोड़कर उत्तर प्रदेश के किसी कॉलेज में दाखिला लेने की सोचने लगे। लेकिन परिणाम आया तो खुद को नौवें रैंक पर पाया। विजय बड़ी साफगोई से कहते हैं, ''मैं अंग्रेजी से संघर्ष में नहीं जीता था। असली मुश्किल दाखिला लेने के बाद शुरू हुई। कॉलेज में प्रोफेसर से लेकर छात्र-छात्राएं फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते जो मेरी समझ से बाहर थी। कई बार इस वजह से मुझे हंसी का पात्र भी बनना पड़ा। लेकिन मैंने आत्मविश्वास नहीं खोया। इसी दौरान मेरी दोस्ती हरेंद्र से हुई। हमने मिलकर एक वेबसाइट बनाने का काम शुरू किया, और उसे बनाकर एक अमेरिकी कंपनी लोटस इंटरवर्क्स को बेच दिया और उसी कंपनी में नौकरी करने लगे। इससे हमें अच्छा मुनाफा हुआ।''
करीब एक साल बाद कुछ नया करने के लिए विजय ने नौकरी छोड़ दी और वन97 नाम से एक नई कंपनी बनाई। लेकिन यह कंपनी नहीं चली और एक साल तक घाटा झेलते रहे। आलम यह था कि जेब में इतने पैसे नहीं होते थे कि बस से भी चल सकें। तब पैदल ही चलते और सिर्फ चाय पर गुजारा करते। इस दौरान उन्होंने लोगों के घर जाकर कम्प्यूटर मरम्मत का काम करना शुरू किया। तंगहाली के इसी दौर में चाय वाले से लेकर ऑटो और बस वाले से छुट्टे पैसे की समस्या से ही सामना होता था।
यही देखकर उनके दिमाग में पेटीएम बनाने का विचार आया। 2010 में इसकी शुरुआत हुई। लेकिन पेटीएम को पहचान क्रिकेट ने दी। इस साल जुलाई में पेटीएम ने तमाम जाने माने ब्रांड को पछाड़ते हुए भारत के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में टाइटल स्पॉन्सरशिप अपने नाम किया। विजय ने इस प्रस्ताव के लिए 200 करोड़ रुपए से ज्यादा चुकाने का फैसला केवल 10 सेकंड में लिया था। यहीं से विज्ञापन प्रचार शुरू हुआ जिसने इसे युवाओं के बीच प्रसिद्ध कर दिया। छुट्टे पैसों और छोटे-छोटे लेन-देन की बदौलत पेटीएम 15,000 करोड़ रुपए का कारोबार कर रही है।
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