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अपनी बात : कदम सबके हित में

by
Oct 10, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Oct 2016 13:02:55

भारत के मुकाबले उसका भूगोल रुपए के मुकाबले चवन्नी है। उन्नति और सकारात्मकता के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पैमानों पर उसकी हैसियत इस रुपए के सामने दस पैसे भी नहीं बैठती लेकिन भारत को लेकर पाकिस्तान की अकड़ रुपए के मुकाबले डॉलर सरीखी है! यह अकड़ और गलतफहमी उसे मुबारक। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि बंटवारे के बाद से ही भारत भी पाकिस्तान को उसकी हैसियत से ज्यादा तूल देता रहा।  इसे विभाजन की वास्तविकता को न मानने की जिद कहें या भलमनसाहत के अतिरेक में लिपटी रूमानी विदेश नीतियों का भ्रम कि पिछले सात दशक में भारतीय नीति नियंता अवचेतन पर ऐसी गठरी ढोते रहे जिसे वास्तव में 1947 में ही अलग रखा जा चुका था। पाकिस्तान के आकार और इतिहास को देखते हुए उसकी भारत केंद्रित और इस पर भी सिर्फ भारत विरोधी जिद समझी जा सकती है। जिसका बीज ही भारत (या कहिए हिन्दू) विरोध से फूटा और जिसने इंसानों को मुसलमान और गैर मुसलमान के खांचे में बांटकर देखना ही सीखा, उसकी मूढ़ता और मतान्धता समझ आती है। लेकिन, भारत के लिए हर वक्त सिर्फ पाकिस्तान के बारे में सोचना न तो संभव है, न फलदाई।
हर सकारात्मक पैमाने पर पिछड़े राष्ट्र को अपने अवचेतन में बांधे हम किस गति से आगे बढ़ सकते हैं? कब तक झेलें और क्यों झेलें? अच्छा है कि उरी हमले के दर्द ने भारत को पड़ोसी के प्रति खुशफहमी और अनमनेपन से आगे सोचने पर बढ़ा दिया।
सरकार ने बात सटीक और पाकिस्तान को समझ आने वाले तरीके से साफ कर दी है। मानना चाहिए कि 'सर्जिकल स्ट्राइक' के बाद भारत ने अपनी अनकही हिचक यानी 'पाकिस्तान ग्रंथि' की भी शल्यक्रिया कर डाली है। यह ठीक है कि अशांत, अस्थिर और उत्पाती पड़ोसी की ओर से आप आंखें नहीं मूंद सकते। यह खतरनाक है। लेकिन इससे भी खतरनाक है हर वक्त आशंकाओं को ढोना। स्थायी स्वभाव को न समझते हुए जख्म के फौरी मरहम तलाशना। और, तो और शत्रुता में मित्रता का भ्रम पाले रहना। इससे बीमारी बढ़ी ही है, यह बात पाकिस्तान के मामले में सिद्ध हो चुकी है। फिर, पाकिस्तान को अतिशय वरीयता देने और नाहक उदारता दिखाने वाली नीतियों में सुधार क्यों न हो?
उरी हमले के बाद का घटनाक्रम बताता है कि भारत में सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि देश के तेवर निर्णायक तौर पर बदले हैं। अच्छी बात है। भ्रम छंटा है और इसका छंटना जरूरी है, भारत के लिए और पाकिस्तान के लिए भी—वहाबी उन्माद को पोसना पाकिस्तान का अपना स्वभाव है लेकिन भारत को आंखें दिखाने की ताकत उसकी अपनी नहीं है। रुपए के सामने डॉलर जैसी पाकिस्तानी अकड़ के पीछे वास्तव में युआन खड़ा है। पाकिस्तान के हुक्मरान यह जानते हैं लेकिन वहां की जनता को सिर्फ भारत दिखाया जाता है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान चीन का दोस्त नहीं बल्कि प्यादा भर है, यह बात सबको खुलकर समझनी चाहिए। इस पर चर्चा होनी चाहिए।
दक्षिण एशिया में चीन नहीं है किन्तु व्यापक चीनी हित हैं। रूस यहां नहीं है किन्तु यूरेशिया की उपेक्षा न एशिया कर सकता है, न यूरोप… ऐसे में भारत क्या करे? स्वस्थ सकारात्मक माहौल के लिए जरूरी है कि भारत की विदेश नीति किसी एक देश को नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक भागीदारों को ध्यान में रखकर संतुलित रहे। पाकिस्तान को बढ़ावा देना चीन की मजबूरी है, यह बात उस चीनी नजरिए से समझी जा सकती है जिसे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में अपने भारी-भरकम निवेश को बचाने की चिंता खाए जा रही है। लेकिन इस शह और खुशफहमी के बदले में जो मिला, वह ज्यादा खतरनाक है… बड़े से बड़े निवेश का बंटाढार करने वाला सबसे बड़ा खतरा तो खुद पाकिस्तान है! पूरे क्षेत्र में उन्माद को पोसते, क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा देते, मानवाधिकारों को कुचलते और आतंकवाद का वैश्विक निर्यात करते देश को साथ लेकर कौन कितनी दूर तक चलेगा? हद से बाहर निकला प्यादा अपने आका की बाजी चौपट कराता है, यह बात समझने का वक्त चीन का है। चीन जानता है कि पाकिस्तान भारत को सिर्फ परमाणु हमले की भभकी दे सकता है। इसके भारतीय प्रतिकार की क्षमता और परिणाम वह जानता है। इस मामले में चीन भी एक हद से आगे नहीं बढ़ सकता। इस क्षेत्र और खासकर भारत से उसके अपने संवेदनशील हित जुड़े हैं। भारतीय सेना द्वारा आतंक की कमर तोड़ने से बिलबिलाये पाकिस्तान के हद से आगे बढ़ने की सोच पर बात हानि के आकलन से परे चली जाएगी। उस हद से आगे देखने पर भारत और चीन तो नजर आते हैं किन्तु पाकिस्तान का अस्तित्व और विश्व की दो अहम अर्थव्यवस्थाओं के लिए आगे बढ़ने का रास्ता नहीं दिखता। स्थिति वास्तव में ऐसी ही है यह समझना सबके लिए जरूरी है। ऐसे में चाहिए यह कि पाकिस्तान की बेजा अकड़-फूं को बर्दाश्त करना बंद हो और उसे उतना ही महत्व दिया जाए जितना वास्तव में है। बड़े प्रतिभागी गंभीरता से आगे बढ़ें और सीधी सकारात्मक बातचीत और सहयोग व समन्वय की संभावनाओं पर चर्चा करें। भारत पहल कर चुका है। रूस स्थायी क्षेत्रीय समीकरणों की ओर संकेत कर चुका है, चीन ने भी पाकिस्तान के पक्ष में पेशबंदी की अपनी सीमा जता दी है।
भारत की भंगिमा में यह निर्णायक बदलाव वैश्विक शांति, मानवता और विकास के क्षेत्र में ज्यादा फलदायी साबित होगा, यह न मानने का कोई कारण नहीं है।

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