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1. सत्ता और सेना के अलग सुर : नवाज शरीफ कहते हैं कि सीमापार से गोलीबारी की गई, जबकि राहिल शरीफ कहते हैं कि कोई कार्रवाई ही नहीं हुई।
2. भारत का बदला रुख : शांति प्रयासों और कूटनीतिक कोशिशों के बाद भारत ने आखिरकार सख्त कदम उठाए और नियंत्रण रेखा के उस पार आतंकी शिविर ध्वस्त किए।
3. जनता में बढ़ता असंतोष : पकिस्तानी जनता का बड़ा वर्ग चाहता है कि देश में वास्तविक लोकतंत्र हो और सरकार आतंकवाद व कट्टरता को पोसने और लगातार भारत को कोसते रहने की स्थिति से बाहर आए। लोग चाहते हैं कि सरकार जो भी हो, वह रोजगार और विकास की स्थिति पर ध्यान दे।
4. अंदर से उठती अलगाव की आवाज : पाकिस्तान के दो सूबों बलूचिस्तान और वजीरिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से आजादी के स्वर गुंजाने शुरू कर दिए हैं।
5. सरहदों पर बदलते समीकरण : ईरान और अफगानिस्तान से सटी सीमाओं पर तनाव बढ़ा। जहां पहले खुली आवाजाही होती थी, अब पासपोर्ट और वीजा जरूरी हो गया है।
पाकिस्तानी कलाकारोें पर प्रतिबंध
भारतीय फिल्म उद्योग संघ ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध ठीक नहीं हो जाते, तब तक पाकिस्तानी कलाकार और टेक्नीशियन बॉलीवुड में काम न करें।
ईरान-पाकिस्तान की सीमा पर तनाव
जिस रात भारत ने नियंत्रण रेखा के अंदर घुसकर आतंकवादियों को मारा, उसी रात ईरान ने भी पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर मोर्टार दागे। ईरान के सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने सरहद पार से बलूचिस्तान में तीन मोर्टार दागे। यह घटना पंजगूर जिले की है। गोलीबारी के बाद इलाके में दहशत फैल गई। पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' के मुताबिक दो गोले फ्रंटियर कोर के चेकपोस्ट के पास गिरे, जबकि तीसरा किल्ली करीमदाद में गिरा। इस हमले से किसी तरह के जानोमाल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इससे ईरान-पाकिस्तान की सीमा पर तनाव बढ़ गया। पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर लंबी सीमा है। दोनों देश एक-दूसरे पर सीमापार से गोलीबारी का आरोप लगाते रहे हैं।
पसंदीदा देश के दर्जे पर लटकी तलवार
सिंधु जल संधि की समीक्षा के बाद भारत पाकिस्तान को दिए गए 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' के दर्जे की समीक्षा करने जा रहा है। हालांकि इस विषय पर भारत सरकार की तरफ से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है किन्तु विशेषज्ञों का कयास है कि यह कार्रवाई उन्हीं कोशिशों का हिस्सा है, जिसके तहत उरी हमले के बाद भारत सरकार पाकिस्तान पर दबाव बना रही है। यहां यह उल्लेख आवश्यक है कि भारत की ओर से पाकिस्तान को दिया गया यह दर्जा एकतरफा है। पाकिस्तान ने भारत को ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया है। भारत ने पाकिस्तान को 1996 में यह दर्जा दिया था। पाकिस्तान ने 2012 में भारत को एमएफएन यानी विशेष तरजीही देश का दर्जा देने का ऐलान किया था, लेकिन वह वादा निभाया नहीं।
चीन की शरण
अमेरिकी प्रतिबंधों के हटने के बाद भारत-ईरान और अफगानिस्तान के बीच चाबहार बन्दरगाह के विकास को लेकर हुए त्रिपक्षीय व्यापार समझौते ने पाकिस्तान में असुरक्षा की भावना को और बढ़ा दिया। ईरान एक शिया देश है जबकि पाकिस्तान शियाओं की कब्रगाह बना हुआ है। ऐसे में पाकिस्तान के पास चीन की शरण में जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
दक्षेस सम्मेलन का दबाव
पाकिस्तान को विश्व समुदाय में अलग-थलग करने की कूटनीतिक कवायद के तहत भारत ने दक्षेस मंच का उपयोग करते हुए उसे एक और तगड़ा झटका दिया है। भारत की इस पहल में अफगानिस्तान, भूटान और बंगलादेश ने भी सहयोग किया और उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रश्रय देने और उनके घरेलू मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए भारत के साथ इस सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा करके पाकिस्तान पर करारी चोट की है। जानकारों के अनुसार कश्मीर घाटी में आतंकवाद को हवा देने और आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने पर पाकिस्तान में शोक दिवस मनाए जाने ने भारतीय रणनीतिकारों को पाकिस्तान को आतंकवाद के समर्थन का मूल्य चुकाने वाली रणनीति पर विचार करने की नई दिशा प्रदान की। यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान में प्रजातंत्र सैन्य शासन का मुखौटा भर है। यही कारण है कि वहां के अशक्त प्रधानमंत्री को सेना ने विदेश मंत्री नियुक्त करने की अनुमति नहीं प्रदान की। सरताज अजीज को विदेशी मामलों का सलाहकार बना कर पाकिस्तानी सेना ने विदेशी मामलों पर अपना पूरा नियंत्रण रखा। बहरहाल भारत की बदली मुद्रा ने तय कर दिया है कि न केवल क्षेत्रीय बल्कि विश्व राजनीति की स्थिति पाकिस्तान के लिए पूरी तरह से उलट चुकी है। नए परिदृश्य में अपने मजबूत इरादों वाले दमदार पड़ोसी को भरोसे में रखकर चलने के अलावा पाकिस्तान के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। शक्तिमान भारत के उदय के संकेत साफ हैं। वह अब मूकदर्शक बन कर नहीं रहेगा बल्कि आगे बढ़कर पड़ोसी के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करेगा। इन संकेतों को देखना या इनकी अनदेखी कर अंधेरे भविष्य में खो जाना, फैसला पाकिस्तान को करना है।
संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या पर मंथन
परिषद की बैठक में आजादी के बाद से संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं की वामपंथी विचारधारा के लोगों द्वारा की जा रही हत्या पर गहन मंथन हुआ। बैठक में आहूति नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए वामपंथी हिंसा के शिकार कई लोगों की दिल दहला देने वाली दास्तान हैं। किताब का संपादन संजू सदानंदन और निरुपाका बी ने किया है। खुद प्रधानमंत्री ने संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की निंदा की। उन्होंने कहा कि भाजपा-संघ के लोगों को अलग विचारधारा के कारण निशाने पर लिया जा रहा है। उन्होंने राजनीतिक हिंसा पर राष्ट्रव्यापी चर्चा की जरूरत बताई। बैठक में केरल में संगठन को और मजबूत करने और लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने पर सहमति बनी।
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