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पाकिस्तान की जनसंख्या में दस प्रतिशत की वृद्धि उसे स्थायी रूप से जल की कमी वाले क्षेत्र में बदल देगी। पाकिस्तानी जल समस्या का एक अन्य पहलू यह भी है कि उसके 70 प्रतिशत जल स्रोत उसके सीमा क्षेत्र के बाहर स्थित हैं, जिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। राष्ट्रीय संदर्भ में, पाकिस्तान को बराबर बढ़ती हुई मांग और आपूर्ति में अंतर का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार विभिन्न प्रांतों को आवंटित किए गए जल स्रोत की वजह से वहां 10 (एमएएफ) मिलियन एकड़ फुट जल की कमी आई है। पाकिस्तान की तीन उच्च जल प्रबंधन एजेंसियां—योजना आयोग, जल एवं विद्युत मंत्रालय (वाटर एंड पावर डिस्ट्रीब्यूशन एजेंसी-वापदा) और सिंधु नदी प्रणाली अथारिटी इस तथ्य को स्वीकारती हैं। उनका यह भी मानना है कि इस कारण से वे प्रांतों को उनके हिस्से में आवंटित 114 एमएएफ पानी के बजाय केवल 100 एमएएफ पानी ही दे पा रही हैं। पाकिस्तान में वर्षा में भी खासी असमानता है। गर्मी और वर्षा के दौरान 4 महीनों में उसकी नदियों में 75 प्रतिशत पानी रहता है जबकि शेष 8 महीनों में इसका औसत घट कर 25 प्रतिशत रह जाता है। इसी दौरान उसकी जरूरत क्रमश: 60 प्रतिशत और 40 प्रतिशत की रहती है। वर्तमान में लगभग 13 एमएएफ जल को ही संकट से बचाव के लिए सुरक्षित किया जाता है। इस वर्ष 25 फरवरी को सिंधु नदी प्रणाली अथारिटी ने पाकिस्तानी सरकार से अप्रत्याशित अनुरोध किया कि वह सार्वजनिक क्षेत्र में देश भर में जारी सारी योजनाओं को 5 वषोंर् के लिए रोक दे और उस धन का उपयोग अगले 5 वर्षों तक युद्ध स्तर पर केवल बांध बनाने में करे ताकि पाकिस्तान 22 एमएएफ जल का संरक्षण कर सके। उसका मानना है कि बिना ऐसा किए पाकिस्तान को बराबर पानी की किल्लत झेलनी पड़ेगी। अथारिटी ने यह भी उजागर किया है कि उसके नदी जल संसाधन में पिछले दस वषोंर् में 9 एमएएफ जल की कमी हुई है, जो कि जल प्रबंधन के असफल होने का ज्वलंत उदाहरण है। पाकिस्तान में प्रांतों के परस्पर असहयोग और उनमें एक दूसरी के प्रति संदेह के चलते कई बांध और जल विद्युत परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं।
कोई सेना या बम इतने बड़े भू-भाग को नष्ट नहीं कर सकता जितना नुकसान भारत द्वारा पाकिस्तान को दिए जाने वाले पानी को रोकने से होगा। यह संदेश विश्व बैंक के तत्कालीन प्रमुख इयूने ब्लैक ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को 1951 में दिया था। यह हकीकत है और भारत ऐसा करके पाकिस्तान को एक मरुस्थल में बदल सकता है। यह आकलन है पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' का।
सिन्धु समझौते के प्रमुख बिन्दु
समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। सतलुज, व्यास और रावी पूर्वी जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया। पूर्वी नदियों के पानी का कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोक-टोक इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर इन नदियों के पानी के सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी और नौवहन इत्यादि। भारत को इसके अंतर्गत इन नदियों के 20 प्रतिशत जल के उपयोग की अनुमति है जबकि वर्तमान में वह मात्र 7 प्रतिशत जल का ही उपयोग इन कार्यों के लिए कर रहा है। अनुबंध में बैठक, कार्यस्थल के निरीक्षण आदि का प्रावधान है।
किशनगंगा पर पाकिस्तानी आपत्ति
भारत की 330 मेगावाट की किशनगंगा जल विद्युत परियोजना ने पाकिस्तान की नींद हराम कर रखी है। किशनगंगा परियोजना जम्मू एवं कश्मीर के बारामूला जिले में झेलम नदी की एक सहायक नदी किशनगंगा पर स्थित है। नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचपीसी) के अनुसार इस परियोजना में सैंतीस मीटर ऊंचे कंक्रीट मुख वाला एक रॉक-फिल (पत्थरों से भरा हुआ) बांध और एक भूमिगत विद्युत गृह का निर्माण प्रस्तावित है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद उरी-1 और उरी-2 जल विद्युत परियोजनाओं से भी 300 मेगावाट से अधिक अतिरिक्त बिजली उत्पादित की जाएगी।
बगलिहार बांध परियोजना पर अड़ंगा
भारत द्वारा चेनाब नदी पर बनाए जा रहे बगलिहार बांध के डिजाइन को लेकर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चला गया था। तटस्थ विशेषज्ञ ने सिंधु जल समझौते के तहत बनाई जाने वाली परियोजनाओं के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल पर जोर दिया और इसके लिए सुरक्षा तथा पानी के सवार्ेत्तम इस्तेमाल को कारण बताया। उन्होंने कहा कि समझौते के सामान्य नियमों के अनुसार अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों और विज्ञान के नियमों को अपनाने की अनुमति है। उन्होंने बगलिहार बांध तथा पन बिजली संयंत्र की अवधारणा तथा डिजाइन के मूल्यांकन के बारे में यह टिप्पणी की थी।
तुलबुल की अड़चन
पाकिस्तान किशनगंगा और बगलिहार परियोजना की ही तरह भारत की तुलबुल परियोजना में भी अवरोध पैदा करता रहा है। इसको वूलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने 1985 में भारत प्रशासित कश्मीर के बारामूला जिले में झेलम नदी पर इस परियोजना का निर्माण शुरू किया था जिसके अंतर्गत झेलम को नौवहन के लायक बनाकर इसका उपयोग दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने के लिए किया जाना था। भारत इसे तुलबुल नेवीगेशन प्रोजेक्ट कहता है। लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि भारत झेलम नदी पर जिस वूलर बैराज का निर्माण कर रहा है, उससे वह पाकिस्तान का पानी रोकेगा। पाकिस्तानी सरकार की ओर से आपत्ति और जिहादी गुटों की धमकियों के बाद भारत ने 1987 में इस परियोजना के निर्माण कार्य को रोक दिया था।
पाकिस्तान के चारों सूबे पानी के मामले में पंजाब को संदेह की नजर से देखते हैं। सिंधु जल संधि की दुहाई देने वाला पाकिस्तान स्वयं अपने यहां आज तक पानी का न्यायोचित बंटवारा नहीं कर पाया है। उसके पास उत्तरी पाकिस्तान में मंगला और तरबेला बांध हैं।
ठंडे बस्ते की परियोजनाएं
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सिंधु नदी पर ही पंजाब प्रांत के मियांवाली में कालाबाघ स्थान पर कालाबाघ बांध बनाने की प्रबल इच्छा थी। इस बांध की जल भंडारण क्षमता 6,100,000 एकड़ फीट होती और पाकिस्तान इससे 3,600 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर सकता था। किन्तु अन्य पाकिस्तानी सूबों के विरोध के चलते अब यह परियोजना ठंडे बस्ते के हवाले कर दी गयी है। दिअमिर उत्तरी पाकिस्तान के 6 जिलों में से एक है। चीन के द्वारा तैयार काराकोरम हाईवे यहीं से गुजरता है। पाकिस्तान सिंधु नदी पर यहीं भाषा क्षेत्र में 272 मीटर ऊंचा दिअमिर भाषा बांध बनाने की तैयारी कर रहा है। इस बांध की जल भंडारण क्षमता लगभग 8,107,132 एकड़ फीट होगी और इससे 4,500 मेगावाट बिजली उत्पादित की जा सकेगी। चीन इस योजना के लिए अरबों रुपये का कर्ज देगा। सिनिहाइड्रो नाम की कंपनी इस परियोजना के विकास पर काम करना चाहती है। किन्तु चीन इस परियोजना पर पूरी धनराशि लगाने से कतरा रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच विवादित स्थल पर स्थित होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भी इस पर अपनी पूंजी फंसाने से बच रहे हैं।
पाकिस्तान में प्रजातंत्र और सैनिक शासकों के बीच सत्ता को लेकर रस्साकशी तथा आतंकवादियों को सैनिक सहयोग की वजह से कोई भी वित्तीय संस्थान इन जल परियोजनाओं में हाथ बंटाने को तैयार नहीं है। दायमर भाषा बांध चिलास, सिंधु नदी पर प्रस्तावित है। 4,500 मेगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य वाली इस परियोजना पर लगभग 14 अरब डॉलर का व्यय अनुमानित था और इसे 12 वषोंर् में तैयार होना था। सरकार ने इसके लिए 17,000 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया है और कुछ आरंभिक काम भी शुरू हुआ है। 2025 तक तैयार होने वाली इस परियोजना पर भी वित्तीय संकट का खतरा है। बहुमहत्वाकांक्षी स्कार्दू-कातजराह बांध से पाकिस्तान को 15,000 मेगावाट बिजली की उम्मीद थी किन्तु यह परियोजना अभी ठंडे बस्ते में ही है। आज से लगभग दस वर्ष पूर्व, पंजाब में सिंधु नदी पर परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में कालाबाघ बांध बस बनने ही वाला था किन्तु पाकिस्तान के अन्य प्रांत पंजाब में यह बांध नहीं बनने देना चाहते थे। उन्हें भय था कि इससे पंजाब अन्य राज्यों का पानी रोक कर बैठ जाएगा। इस बांध से केवल पंजाब को ही फायदा होता। साथ ही सिंधु नदी में सदैव के लिए जल की कमी उत्पन्न हो जाती। यह परियोजना अभी शुरू ही नहीं हो पाई है। पाकिस्तान अपने यहां जल प्रबंधन को सुधारना तो चाहता है पर चाहे-अनचाहे उसे आर्थिक संकट की दीवार सामने खड़ी मिलती है। दूसरे सिंधु नदी में पर्याप्त जल कश्मीर के क्षेत्र में ही है और भी कश्मीर के विवादित होने की वजह से कोई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान इन परियोजनाओं में हाथ डालते हुए कतराता है।
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