आवरण कथा : शक्तिमान भारत
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आवरण कथा : शक्तिमान भारत

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Oct 3, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Oct 2016 13:08:22

 

अट्ठाइस सितंबर, 2016 की रात भारत ने  अपनी शक्ति की हल्की-सी झलक दिखाते हुए नियंत्रण रेखा के उस पार आतंकी लॉन्चपैड ध्वस्त करके कई आतंकवादियों को ठिकाने लगा दिया। गुपचुप हुए इस ऑपरेशन के बाद अगले दिन राष्ट्र को शुभ समाचार सुनने को मिला। भारतीय सेना के वीर जवानों ने रात साढ़े बारह बजे से भोर तक चले 'सर्जिकल स्ट्राइक'ऑपरेशन में नियंत्रण रेखा के पार 2 किलोमीटर अंदर जाकर न केवल पांच आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया बल्कि 35 से 40 आतंकियों का भी सफाया कर दिया। इसके माध्यम से उरी में शहीद हुए 18 वीर सपूतों के रक्त को प्रधानमंत्री ने व्यर्थ नहीं जाने दिया और अपने उस वचन को भी निभाया जिसमें उन्होंने देश के नागरिकों से कहा था कि वे उऱी के अपराधियों को अवश्य दंडित करेंगे। उधर पाकिस्तान की कसक है कि वह भारत से खाई इस चोट को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकता। फिर भी वह मान रहा है कि उसके दो सैनिक ढेर हो गए। 
सैन्य ऑपरेशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने खुलासा किया-''विश्वस्त और पक्की जानकारी मिली है कि कुछ आतंकी एलओसी के साथ लॉन्चपैड्स पर इकट्ठे हुए थे। उनका मकसद भारत में घुसपैठ करके आतंकी हमले करना था। भारत ने उन लॉन्चपैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की। इसका मकसद आतंकियों के नापाक मंसूबों को नाकाम करना था। इन हमलों के दौरान आतंकियों और उनके समर्थकों को भारी नुकसान पहंुचा है। कई को मार गिराया गया। मैंने पाकिस्तान डीजीएमओ से संपर्क करके उन्हें अपनी चिंताएं बताईं और मामले की जानकारी दी। हम यह बिलकुल गवारा नहीं करेंगे कि आतंकी हमारे देश पर किसी तरह का हमला करें।''
उरी हमले के बाद भारत की ओर से जिस ठोस कार्रवाई की उम्मीद की जा रही थी, मोदी सरकार ने उसे अंजाम दे दिया है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इस अति गोपनीय ऑपरेशन में भारतीय सेना के लगभग 150 कमांडो ने हिस्सा लिया, जिन्हें हेलिकॉप्टर की मदद से सीमा रेखा के पास उतारा गया। इस पूरे ऑपरेशन में अच्छी बात यह रही कि मिशन पूरा करने के बाद सभी सैनिक सकुशल वापस लौट आए। इस अभूतपूर्व ऑपरेशन की कामयाबी पर प्रधानमंत्री ने सेना के पराक्रम को नमन करते हुए उन्हें अपनी शुभकामनाएं दीं।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 29 सितंबर की शाम ही सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें उन्होंने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और सेना के अधिकारियों के साथ इस ऑपरेशन की विस्तृत जानकारी साझा की।
जो जानकारियां सामने आ रही हैं, उनके अनुसार यह ऑपरेशन हॉटस्प्रिंग, केल और लिपा समेत चार सेक्टरों में किया गया। ये स्थान नियंत्रण रेखा के दूसरी ओर यानी पाकिस्तान की ओर स्थित हैं। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने भी इन क्षेत्रों में संघर्ष होने की बात कबूल की है। यह भी पता चला है कि इस जवाबी कार्रवाई के लिए सेना को कई दिन पहले ही स्वीकृति मिल चुकी थी, किन्तु भारत संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के सम्बोधन के बाद ही इस तरह की कार्रवाई के पक्ष में था।
डीजीएमओ की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद से ही नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में सतर्कता बढ़ा दी गई है। सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान की सीमा पर सेना को सचेत कर दिया गया है। भारत के द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध की गई यह कार्रवाई पहली और आखिरी नहीं है।   
आतंकवाद के निर्यात की बैसाखी पर टिके और अपने अस्तित्व के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गुहार लगाते पाकिस्तान की हकीकत विश्व में जाहिर हो चुकी है। हालांकि जो सऊदी अरब और चीन उसके पक्ष में समझे जा रहे थे, उन्होंने भी फिलहाल चुप्पी साधी हुई है। इससे पाकिस्तान की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक है। प्रमुख पाकिस्तानी समाचारपत्रों को आश्चर्य हो रहा है कि सऊदी अरब, ओमान, तुर्की, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में से आज उसके साथ कोई भी नहीं खड़ा है। इसके उलट, भारत के सुविचारित कूटनीतिक कदमों से अब दुनिया भी पाकिस्तान के रवैये की आलोचना कर रही है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने पाकिस्तान के रुख की आलोचना करते हुए लिखा है कि पाकिस्तान लंबे समय तक भारत के संयम को हल्के में नहीं ले सकता। समाचारपत्र के अनुसार अगर पाकिस्तान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के प्रस्ताव को खारिज करता है तो वह पूरी दुनिया के लिए एक 'अछूत देश' बन जाएगा। अखबार ने चेतावनी देते हुए लिखा कि अगर पाकिस्तानी सेना सीमा पार से भारत में हथियार और आतंकवादी भेजना जारी रखती है तो मोदी की कार्रवाई न्यायसंगत होगी और उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त होगा। वाल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि आतंकवाद के मुद्दे पर नैतिकतापूर्ण व्यवहार करने के लिए भारत का सम्मानजनक दर्जा है। समाचारपत्र ने कोई भी सैन्य कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लेने के लिए मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि हालांकि उन्होंने सैन्य कार्रवाई नहीं की, लेकिन उन्होंने इसकी जगह संकल्प लिया कि यदि पाकिस्तानी सेना आतंकवादी समूहों का समर्थन करना बंद नहीं करती है तो वे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के लिए कदम उठाएंगे। उसने कहा कि भारत 1960 की सिंधु जल संधि को रद्द करने पर विचार कर रहा है। समाचारपत्र ने कहा कि वे व्यापार में सबसे पसंदीदा राष्ट्र का दर्जा भी पाकिस्तान से वापस ले सकते हैं। भारत ने पाकिस्तान को 1996 में यह दर्जा दिया था, पर पाकिस्तान ने भारत को यह दर्जा आज तक नहीं दिया है।
चक्रव्यूह में फंसा पड़ोसी
उरी हमले के बाद पूरे देश में पाकिस्तान के विरुद्ध उठे असंतोष की तपिश को सरकार समझ रही थी पर विपक्षियों का शोर इस आपदा में राष्ट्र के साथ एक होने की बजाय सरकार की खिल्ली उड़ाने पर ज्यादा रहा। वे जन-आक्रोश को हवा दे कर भारत को सैन्य टकराव की दिशा में धकेलने के पक्षधर थे, किन्तु प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की जो नई रणनीति अपनाई, उससे जहां विपक्ष सकते में आ गया, वहीं आम भारतीय अब मोदी के नेतृत्व पर और भरोसा करने लगा है। 
जाता रहा अमेरिकी सहारा
सलाला में अमेरिकियों द्वारा पूरी पाकिस्तानी टुकड़ी का सफाया और पाकिस्तान को अमेरिकी रसद रोके जाने के बाद से अमेरिका की नीति में उसे लेकर आमूल-चूल परिवर्तन द्रुत गति से घटित हुए। अमेरिका ने क्रमिक रूप से पाकिस्तान के ऊपर अपनी निर्भरता को
कम किया।
भारत-अमेरिकी संबंधों के सामरिक महत्व से घबराए पाकिस्तान की वित्तीय सहायता के स्रोत पर भी अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिए। उसने एफ-16 विमानों के झुनझुने को भी पाकिस्तान से छीन लिया और अपमानित करने की हद तक जाकर कहा कि यदि पाकिस्तान इन विमानों को खरीदना चाहता है तो वह इनका बाजार मूल्य चुकाए। पाकिस्तान ने अहमन्यता प्रकट करते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेशर्मी से कहा कि यदि अमेरिका उसे ये विमान नहीं प्रदान करता तो वह किसी अन्य देश से इन विमानों को हासिल कर लेगा। उसे तुर्की पर भरोसा था, किन्तु अमेरिकी इशारे पर यह संभव नहीं हो सका।
इधर उरी हमले के बाद इस रुख की पुष्टि करते हुए अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुसन राइस ने अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से फोन पर बात की और उरी में भारतीय सेना के शिविर पर हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की। राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, ''राइस ने पाकिस्तान के सामने अमेरिका की इस उम्मीद को दोहराया है कि पाकिस्तान, संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और उनसे जुड़े अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करेगा।''     -सुधेन्दु ओझा

 

पाकिस्तान पर गहराया सार्क का संकट
पाकिस्तान में नवंबर में प्रस्तावित सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन आखिरकार स्थगित हो ही गया। उरी हमले के बाद पाकिस्तान को अलग-थलग करने के अभियान में भारत की यह पहली बड़ी सफलता है। वैसे भी सार्क बैठक का भारत की उपस्थिति के बिना कोई मतलब नहीं है। इस्लामाबाद में तय यह शिखर सम्मेलन सिर्फ इस वजह से ही बेमतलब नहीं हो गया था कि भारत ने उसके बहिष्कार की घोषणा कर दी, बल्कि इस एलान के बाद अफगानिस्तान, बंगलादेश और भूटान ने जो कहा, वह प्रमाण है कि इन सभी देशों में पाकिस्तान को दहशतगर्द मुल्क समझा जा रहा है। इस सबके बाद इस्लामाबाद में सार्क शिखर बैठक होने की गुंजाइश वैसे भी बची नहीं थी। पाकिस्तान के सामने यह हकीकत अब मुंह बाए खड़ी है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वह अकेला पड़ चुका है। निहितार्थ यह कि उरी हमला पाकिस्तान को बहुत महंगा पड़ने जा रहा है। भारत ने उसके खिलाफ कड़ा अभियान छेड़ा है। इसके दूरगामी प्रभावों से खुद को बचाना पाकिस्तान के वश में
नहीं दिखता।

अफगानिस्तान ने कहा कि उस पर 'थोपे गए आतंकवाद' के कारण राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी सेना के सर्वोच्च कमांडर की भूमिका निभाने में व्यस्त रहेंगे, इसलिए वे शिखर सम्मेलन में नहीं जाएंगे।

बंगलादेश ने कहा कि उसके 'आंतरिक मामलों में एक देश विशेष के बढ़ते दखल ने ऐसा माहौल बना दिया है कि स्थितियां इस्लामाबाद में 19वें सार्क शिखर सम्मेलन के आयोजन के अनुकूल नहीं रह गई हैं।'

भूटान ने कहा कि 'इस क्षेत्र में आतंकवाद बढ़ने के कारण ऐसा वातावरण नहीं रह गया है कि पाकिस्तान में सार्क शिखर बैठक हो'।  इस वक्तव्य के बाद साफ है कि वह पाकिस्तान में इस बैठक को लेकर पुनर्विचार कर रहा था।

श्रीलंका ने प्रस्तावित बैठक के बहिष्कार का एलान तो नहीं किया, मगर मीडिया रपटों के मुताबिक राय जताई कि 'भारत की अनुपस्थिति में शिखर सम्मेलन का आयोजन संभव नहीं होगा'।

हद पार की जा चुकी थी। सहने का स्तर लांघा जा चुका था। इसलिए यह तो होना ही था। मैं उनको बधाई देता हूं लेकिन मैं अब भी सरकार से अनुरोध करूंगा कि इसे लेकर ज्यादा जोश में न आए। यह एक ऑपरेशनल आवश्यकता थी। यह काम तो होना ही था।
-सी. डी. सहाय, पूर्व प्रमुख, रॉ

आतंकियों के ठिकाने की सही जानकारी देने के लिए हमें गुप्तचर सूत्रों को बधाई देनी होगी। हमें सरकार की तारीफ करनी होगी कि उसने सेना को पूरी छूट दी। जाहिर है, सरकार ने सेना को कार्रवाई करने के साफ आदेश दिए थे जिसने अच्छे नतीजों के साथ सर्जिकल हमला किया।
-ले. जनरल एस. प्रसाद, पूर्व महानिदेशक, इन्फेंट्री

यह बहुत पुराना कर्जा था जिसे विशेष बल द्वारा एक अचूक ऑपरेशन के जरिए चुकाया गया है। सेना ने इन लोगों को पिछले एक हफ्ते से निगरानी में रखा था और उनके ऐसे 5 लॉन्चपैड पहचान कर तबाह कर दिए गए जिन्हें आतंकी भारत में आने के लिए इस्तेमाल करते थे।
-मे. जनरल जी. डी. बख्शी, वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक    

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