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बेटियों ने बढ़ाया देश का मान4 सितम्बर, 2016

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Sep 26, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Sep 2016 12:55:52

आवरण कथा 'पदक कम सबक ज्यादा' से यह बात तो स्पष्ट है कि भारत की बेटियां किसी से कम नहीं हैं। उन्होंने रियो ओलंपिक में देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। सारा देश उनकी सफलता से गद्गद हो गया और उन्हें इसके लिए शुभकामनाएं दीं। पर हम  पदक के मामले में अन्य देशों के मुकाबले बहुत ही पीछे रहे। इसके लिए हमारी सरकारों और खेल जुड़ी समितियों को आत्ममंथन करना होगा और सुधार लाना होगा। खैर,बेटियों ने जो देश का मान बढ़ाया, वह अत्यधिक गौरवपूर्ण बात है। उन्होंने खेल में जुझारू तरीके से प्रदर्शन किया और पूरा दम लगा के खेलीं और विजय पाई।
—कमलेन्दु्र अग्निहोत्री, बदायंू (उ.प्र.)

ङ्म     एक बार फिर बेटियों ने देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। भारतीय समाज बेटियों के जन्म पर खुशी की जगह शोक मनाता है जबकि यही बेटियां बड़ी होने पर घर-परिवार या अपने माता-पिता का ही नहीं बल्कि देश का मान बढ़ाती हंै। गर्व है इन बेटियों पर।
—जिनेंद्र कुमार, धनबाद (झारखंड)

ङ्म  दरअसल रियो ओलंपिक के दौरान नाडा ने मैच से ठीक पहले भारत की ओर से नरसिंह यादव के न खेलने पर प्रतिबंध लगाया बल्कि उसे चार साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया। जो भी हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण था। अगर वह खेलता तो जरूर देश के पदकों में इजाफा होता क्योंकि वह एक अच्छा खिलाड़ी है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
ङ्म  खेलों पर सियासत न की जाए तो हमारे प्रदर्शन में सुधार हो सकता है। हमारे देश में खेलों में सुविधाओं के नाम पर उतनी अच्छी सहूलियतें नहीं मिलती जितनी विदेशों में खिलाडि़यों को मिलती हंै। ऐसा नहीं हैं कि हमारे खिलाड़ी किसी मामले में कमजोर हैं, हम बस अत्याधुनिक सुविधाओं के कारण मात खा जाते हैं। देश के खिलाड़ी अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करें। इसके लिए उन्हें सभी अत्याधुनिक सुविधाएं देनी होंगी। खेलों के मामले में किसी भी तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए। तभी सफलता प्राप्त होगी।
—नीलेश सिंह, देहरादून (उत्तराखंड)

पुरुषों से बराबरी
रपट 'मजबूत कदम, फौलादी इरादे' (4 सितंबर, 2016) महिला शक्ति को प्रदर्शित करती है। भारत वीरांगनाओं का देश है और इन्हीं वीरांगनाओं ने इतिहास में छाप छोड़ी है। आज देश की महिलाओं ने सीमा की सुरक्षा में भी अपने फौलादी इरादों से दुनिया को परिचित कराया है। कुछ वर्ष पहले एक अध्ययन में सेना में महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों के मुकाबले ज्यादा स्वस्थ, ईमानदार, अनुशासित और कर्तव्य के प्रति निष्ठावान पाया गया। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ बराबरी कर रही हैं।
—इंदु मोहन शर्मा, राजसमंद (राज.)

देश के दुश्मन, देश के अंदर
लेख 'मानवता विरोधी मानवाधिकारवादी' (4 सितंबर, 2016) से यह बात साफ जाहिर होती है कि देश के बाहर तो दुश्मन हैं ही, देश के अंदर भी दुश्मनों की कमी नहीं है। ये वे दुश्मन हैं जो घर में ही रहकर, यहां का ही खाकर देश के खिलाफ आग उगलते हैं। कश्मीर में पायलटगन से घायल होने वाले पत्थरबाजों पर सेकुलर दलों की टोली आंसू बहाती दिखाई देती है पर इन्होंने कभी घायल सैनिकों का हाल तक जानने की कोशिश की? कश्मीरी पंडितों की बात आते ही इन्हें सांप सूंघ जाता है। आखिर क्या इनके मानवाधिकार   नहीं हैं?
—प्रियानाथ शर्मा, नागपुर (महा.)

ङ्म     आज देश सहित कश्मीर में जो हालात पनपे हैं, वे कुछ नेताओं की गलतियों का नतीजा हैं। कश्मीर में दो महीने से ज्यादा समय हो गया लेकिन अलगाववादी किसी भी हालत में मानने को तैयार नहीं हैं। असल में सरकार इनसे सख्ती से नहीं निबटती। अभी तक इनके साथ दोस्ताना रवैया राज्य और केन्द्र सरकारों का रहा है। जिसका परिणाम घाटी ही नहीं, पूरा देश भुगत रहा है।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार(नई दिल्ली)

ङ्म     सरकार कश्मीर के अलगाववादियों की सुरक्षा, विदेश यात्रा, होटल बिल आदि पर हर साल करोड़ों रु. खर्च करती हैल् लेकिन इन लोगों का काम सिर्फ देश को क्षति पहुंचाना ही है। भारत ही शायद ऐसा विश्व में एकलौता देश है जो अपने दुश्मनों को सिर्फ पालता ही नहीं बल्कि उनके ऐशो-आराम की भी व्यवस्था करता है। सरकार को चाहिए कि वह आस्तीन के इन सांपों को पालना बंद करे और इन पर कड़ी कार्रवाई करके इन्हें जेले में डाले।
—रामतीर्थ, बेलसंडी, समस्तीपुर,(बिहार)

ङ्म     जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का यह कहना बिल्कुल ठीक है कि घाटी में मुट्ठीभर लोग हैं जो अशांति फैलाये हुए हैं, बाकी कश्मीर का जनसामान्य यहां शांति चाहता है। कुछ अलगाववादियों और रास्ते से भटके हुए लोगों के कारण यहां का पूरा जनजीवन अस्त-व्यस्त है। राज्य और केन्द्र सरकार यहां शांति बहाली के लिए बराबर प्रयास कर रही है लेकिन अलगाववादी इसमें पलीता लगाने पर तुले हैं। इसलिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे और यहां के जनजीवन को सामान्य करना होगा।
—सरिता राठौर, अंबेडकर नगर (दिल्ली)

ङ्म     कश्मीर में आतंकी और कुछ भटके हुए युवा घाटी को अशांत बनाने में लगे हुए हैं। लेकिन मोमबत्ती गिरोह और तमगा वापसी गैंग को यह सब दिखाई नहीं देता। आए दिन हमारे सैनिक बलिदान हो रहे हैं, इस पर वे आंसू नहीं बहाते? असल में ये देश के अंदर पनपने वाले दुश्मन हैं। अभी तक हम सभी इन्हें पहचान नहीं पाए थे। पता नहीं, इन्होंने देश और समाज का कितना नुकसान किया है। लेकिन अब जब हम इन्हें पहचान गए हैं तो इन चेहरे से नकाब उतारना होगा और इनके असली चेहरे को देश के सामने लाना होगा।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)

ङ्म     जब से भारत के प्रधानमंत्री की ओर से गिलगित-वाल्टिस्तान का जिक्र  किया गया तब से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। इनका नाम लेते ही वह इतना असहज हो गया है कि कश्मीर मामले को तूल देने और विश्व का ध्यान अपनी ओर से हटाने के लिए कश्मीर राग अलापना शुरू कर दिया है। लेकिन अब उसकी पोल दुनिया के सामने खुलने लगी है। दुनिया के अधिकतर देश भारत का समर्थन करते हैं और पाकिस्तान को आतंक के मोर्चे पर आईना दिखाते हैं। बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का तीर चलाकर मोदी ने विश्व स्तर पर पाक की पोल पट्टी खोल दी है।
—प्रेम शर्मा, टोंक (राज.)

ङ्म     पाकिस्तान आज अपनी पहचान आतंकियों को पालने वाले देश के रूप में बना चुका है, इसको पूरी दुनिया जानने लगी है। वहाबी सोच से उपजने वाले आतंकी आज यहां पल रहे हैं और फिर देश-दुनिया में खूनखराबा करते हैं। इसके बाद भी कुछ देश उसका समर्थन करते हैं
और भारत को आतंकवाद से लड़ने में समस्या उत्पन्न करते हैं। ऐसा नहीं कि आतंकवाद सिर्फ भारत के लिए ही
खतरा है। यह सारी दुनिया के लिए खतरा है और दुनिया इसे भुगत भी रही है।
सभी देशों को मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ना पड़ेगा क्योंकि यह
सभी के लिए खतरनाक है।
—उमेदुलाल 'उमंग', पटूड़ी (उत्तराखंड)
ङ्म     देश में होने वाली कुछ घटनाएं न केवल ह्दय को झकझोरती हैं अपितु गहन चिंतन को विवश करती हैं। कश्मीरी अलगाववादियों की सुरक्षा, यात्रा व्यय और अन्य सुविधाओं पर भारत और प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करना संविधान में कहां लिखा है, यह समझ में नहीं आता। ये अलगाववादी जो हमेशा भारत के विरुद्ध ही बोलते हैं, पाकिस्तान के साथ गलबाहियां डालते हैं और कश्मीर को भारत से पृथक करने की योजनाएं बनाते हैं, पर क्या इनके साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा नहीं है?
—कुमुद कुमार, बिजनौर (उ.प्र.)

कदम विकास की ओर
रपट 'समझदारी से सहमति' (4 सितंबर, 2016) रपट यह जाहिर करती है कि केंद्र सरकार ने जीएसटी बिल पारित कराकर एक बड़ी सफलता प्राप्त की है। देशहित में यह एक बड़ा कदम है और विश्व के कई देशों ने भारत के इस कदम की प्रसंशा भी की है।। देश में एक प्रणाली लागू होने से जहां अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। वहीं कर चोरी पर अंकुश लगेगा।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

देश तोड़नी वाली टोलियां
रपट 'विदेशी पैसे पर देश तोड़ने की मुहिम' (4 सितंबर,2016) से स्पष्ट है कि कुछ एनजीओ विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के बजाए भारत विरोधी काम में लगे हुए हैं। इन्हें विदेशों से मोटा पैसा आता है। इसी से या तो कन्वर्जन करते हैं या देश विरोधी मुहिम को हवा देते हैं। ऐसे एकाध नहीं बल्कि सैकड़ों एनजीओ हैं। सरकार को इन तथाकथित स्वयंसेवी संगठनों पर शिकंजा कसना होगा।
—दिशा वशिष्ठ,भोपाल(म.प्र.) जीवन निर्माण में शिक्षा की महती भूमिका
एक मानव का शैक्षिक होना अति आवश्यक है। अगर इसका अभाव है तो पशु और मानव में कोई अंतर नहीं रह जाता। रिपोर्ट 'शिक्षा की परीक्षा (4 सितंबर,2016)' यह स्पष्ट करती है कि देश का विकास तभी संभव होगा जब मनुष्य शिक्षित होगा। शिक्षा कैसी होनी चाहिये? यह प्रश्न प्राचीनकाल से ही विचारणीय विषय है। लेकिन हमारे विद्धानों ने जो परिभाषा दी वह यह है कि जिससे समाज का सर्वांगीण विकास और उन्नति हो, वह शिक्षा अच्छी है। इसे पाने के लिए हमारे युवाओं की गुणात्मक क्षमता सबसे महत्वपूर्ण है। शिक्षा से ही ग्राम, स्वदेश, समाज और राष्ट्र की रक्षा हो सकती है। शिक्षा से ही विश्व के अनेक देशों में अपना प्रभाव स्थापित करने में युवा समर्थ हो सकता है।
 शिक्षा ही मनुष्य की माता की तरह रक्षा करती है और पिता की तरह हितकारी होती है। यह युवाओं को उन्नति के पथ पर ले जा सकती है। भारत के नवोत्थान में स्त्री शिक्षा का अति महत्व है। जिस देश की स्त्री शिक्षित होगी, वह समाज भी शिक्षित होगा। जब समाज शिक्षित होगा तो देश का उत्थान होगा। अत: राष्ट्र का यह कर्त्तव्य है कि गुणवत्ता पूर्ण सस्ती शिक्षा सबको सुलभ कराने का प्रयत्न करें। हरेक बच्चे को राष्ट्रवादी व रोजगारपरक शिक्षा मिलनी चाहिये। शिक्षा के उददेश्य, उसके अनुरूप पाठ्यचर्या, व्यवस्थित पाठ्यक्रम,  ये सभी बातें हमारे विचार की परिधि में लाती हैं। हमारे पाठ्यक्रम में महापुरुषों के जीवन चरित्र और प्रेरित करने वाले विषय होने चाहिये। इसके लिए सरकार को शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधनों का वितरण और समुचित नीतियों का निर्माण करना चाहिये।
                                                   -एसोसिएट प्रो. सुमन मिश्रा
ऋषिकुल परिसर, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय हरिद्वार 

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