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योद्धा मोदी का सर्वोत्तम क्षण
2016 में पचास वर्ष बाद विधाता ने वह संयोग श्री नरेन्द्र भाई मोदी के समक्ष प्रस्तुत किया है कि वे दीनदयाल जी के वचनों को आत्मसात करते हुए दुष्ट पाकिस्तान का निर्ममता से दलन करें
तरुण विजय
पचास वर्ष पूर्व पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कोझीकोड (कालीकट) में जनसंघ के अध्यक्ष के नाते जो ऐतिहासिक भाषण दिया था उसमें महिषासुर-मर्दिनी दुर्गा का स्मरण करते हुए उन्होंने भारतमाता के ऐसे स्वरूप का उल्लेख किया था जो दुष्टों का वैसे ही दलन करेगी जैसे दुर्गा ने किया था।
2016 में पचास वर्ष बाद विधाता ने वह संयोग श्री नरेन्द्र भाई मोदी के समक्ष प्रस्तुत किया है कि वे दीनदयाल जी के वचनों को आत्मसात करते हुए दुष्ट पाकिस्तान का निर्ममता पूर्वक दलन करें।
यह अकस्मात हुई घटना नहीं है। इसके पीछे नियति के संकेत को समझना होगा। पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का आना, पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती का भी इसी वर्ष प्रारंभ होना और पाकिस्तान द्वारा अपनी दुष्टता को जारी रखते हुए आत्म-नाश को न्योता। ये सब बातें पं. दीनदयाल उपाध्याय की विचारधरा के अनन्य भक्त नरेन्द्र मोदी को निश्चित मार्ग की ओर बढ़ा रही प्रतीत होती हैं।
पाकिस्तान सही मार्ग पर आए, दोनों के संबंध अच्छे हों तथा भारत आर्थिक विकास के मार्ग पर ध्यान देते हुए आगे बढ़े—इसके लिए सामान्य अपेक्षाओं का दायरा असमान्य रूप से बढ़ाते हुए नरेन्द्र मोदी ने इतने प्रयास किए कि घोर विपक्षी भी हैरान रह गए। काबुल से लाहौर जाना, नवाज शरीफ को लोकतांत्रिक और शांतिप्रय ढंग से समझाना, ये ऐसे असाधारण और साहसी कदम माने गए जिसकी शत्रुओं की भी अपेक्षा नहीं थी। लेकिन पाकिस्तान ने नरेन्द्र मोदी के सहज, शालीन व्यवहार का उत्तर पठानकोट और उरी हमले से देकर बताया कि वह सुधरने की कोई मंशा नहीं रखता। हम उस परंपरा का निर्वाह करते हैं जिसमें शिशुपाल को भी निन्यानवे मौके देने के बाद अंतत: सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग करना ही पड़ा था। सागर से श्रीराम ने विनय पूर्वक मार्ग मांगा, तो उसे समझ नहीं आया। तब लक्ष्मण ने कहा था- 'काटहि ते कदरी फले।'
कुछ लोग काटने पर ही अक्ल पाते हैं। पाकिस्तान भी वैसा ही है। पाकिस्तान में कभी भी आमने-सामने के युद्ध में जीतने की क्षमता नहीं रही। उसकी सेना विलासी और युद्ध से डरती है। 1947 के बाद पाकिस्तानी सेना ने खुलकर कोई युद्ध नहीं लड़ा। 1947-48 में उसने कबायलियों को आगे किया, 1965 में रेंजर्स का सहारा लिया, 1971 में युद्ध किया तो इतना अनिपुण था कि पाकिस्तानी सेना की दरिंदगी और वहशीपन का सामान्य जनता शिकार बनी और अंतत: बड़ी भारी संख्या में उन्हें अपने हथियार हमारे सामने रख कर आत्मसमर्पण करना पड़ा।
अमेरिकी डॉलरों की खैरातों और अफसरों की सामंती मानसिकता ने पाकिस्तानी सेना में सिर्फ नियमहीन जंगलियों की भीड़ इकट्ठा की है और वह सीधे युद्ध के बजाय आतंकवादियों के कंधों से भारत पर छुप-छुप कर वार करना जयादा सुरक्षित मानती है।
उस पर पाकिस्तान द्वारा परमाणु हमले की धमकियां बेहद बचकाना तथा अपनी पराजय स्वीकार करने जैसी हैं। भारत ने नरेन्द्र मोदी के नेतृतव में स्पष्ट किया है कि वह इस्लामाबाद की परमाणु धमकियों के आगे झुकने वाला नहीं है और उसकी परवाह किए बिना पाकिस्तान के विरुद्ध दण्डात्मक कार्रवाई करेगा। पाकिस्तान के पास यदि परमाणु बटन है तो भारत के पास भी है और किसी भी पाकिस्तानी चाल का उत्तर देने के लिए हमारी शक्ति और सामर्थ्य उससे कई गुना अधिक है।
इस समय विश्व भर में पाकिस्तान अकेला पड़ रहा है। रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देश, जिनकी विदेश नीति आपस में मेल नहीं खाती, पहली बार पाकिस्तान के विरुद्ध एक स्वर में खड़े दिखे हैं। चीन यद्यपि पाकिस्तान समर्थक और उसके परमाणु कार्यक्रम को मदद देने वाला है जो भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का उपयोग कर ही रहा है फिर भी आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक स्वरों से वह स्वयं को अलग रख नहीं पाया। यदि भारत की पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई में वह अलिप्त ही रहे तो भी वह भारत के हित में होगा। परंतु रूस ने हमेशा की तरह भारत का साथ देकर अपनी बरसों पुरानी दोस्ती की परंपरा को कायम रखा है। निश्चय ही पाकिस्तान के संबंध में भारत का सबसे विश्वसनीय और प्रभावी मित्र रूस ही रहा है।
अमेरिका में पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने संबंधी विधेयक वहां की संसद में रिपब्लिकन सांसद टेड पो और डेमोक्रेट सांसद डाना रोहराशेखर ने पेश किया है। ये दोनों सांसद अमेरिका में बहुत प्रभावशाली और जनमत को प्रभावित करने वाले माने जाते हैं।
भारत को इस माहौल का लाभ उठाकर पाकिस्तान को विश्व समुदाय से अलग-थलग करने, शर्मिंदा करने और कलंकित करने का अभियान एक ओर लेना होगा तो दूसरी ओर पाकिस्तान के विरुद्ध आर्थिक नाकेबंदी लागू करनी होगी।
पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि सिन्धु नदी का 80 प्रतिशत से ज्यादा पानी हम पाकिस्तान को दे रहे हैं। एशिया में 57 ऐसी नदियां हैं जो दो या अधिक देशों से गुजरती हैं। केवल अकेला भारत है जिसने अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार जाने वाली नदियों के जल बंटवारे पर पड़ोसी देशों के साथ समझौता या करार किया है। वहीं चीन की सीमा से सटे बारह देश हैं जिनमें चीन की नदियां जाती हैं- लेकिन उसने किसी एक देश के साथ भी जिनमें भारत शामिल है- जहां ब्रह्मपुत्र तिब्बत से आती है- कोई नदी जल बंटवारा करार नहीं किया है।
यदि भारत जम्मू-कश्मीर राज्य की पानी आवश्यकताओं के लिए सिंधु जल का उपयोग करे तो यह पाकिस्तान को सूखा कर देगा। जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा ने 2003 में प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान को बेवजह, अनावश्यक मात्रा में जा रहे जल को रोक कर राज्य की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए सिंधु जल संधि की पुन: समीक्षा की मांग की थी। 2003 से 2016 आ गया, लेकिन केन्द्र ने अपने ही राज्य की मांग अनसुनी कर पाकिस्तान को आवश्यक जल की आपूर्ति जारी रखी है।
पाकिस्तान नफरत की पैदाइश है। मुहम्मद इकबाल जिनके नाम पर भारत की एक राज्य सरकार आज भी साहित्यिक सम्मान देती है और मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अलग कौम घोषित कर हिन्दुओं के साथ रहने से इनकार किया और द्विराष्ट्रवाद के खोखले, बेमानी, झूठे सिद्धांत पर पाकिस्तान की नींव रखी। वह पाकिस्तान आज सिंध, बलोचिस्तान और पख्तूनिस्तान के विद्रोही स्वर तले चरमरा रहा है। उसका वजूद सिर्फ पंजाबी, पाकिस्तान, उसकी पंजाबी फौज और अमेरिका तथा चीन की मदद से बचा है।
ऐसे पाकिस्तान को अब मरना ही होगा। बलोचिस्तान की आजादी का मामला भारत को आगे बढ़ाते हुए उसकी निर्वासन में सरकार स्थापित कर मान्यता देने पर विचार किया जा सकता है। सिन्ध और पख्तूनिस्तान को भी पाकिस्तान से अलग करने की मुहिम तेज
करनी होगी।
जन्म से अब तक पाकिसतान ने भारत को लहूलुहान ही किया है। 1947 का मीरपुर नरसंहार, दो तिहाई कश्मीर जबरन धोखे से हड़पना, उसका एक भाग चीन को 'उपहार' में देना, भारत के विरुद्ध चीन की घेराबंदी को मजबूत बनाने हेतु ग्वादर बंदरगाह से लेकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक महामार्ग बनाने की योजना, गिलगित में चीनी सैनिकों की उपस्थिति, भारत पर आतंकवादी हमलों के लिए हर प्रकार की राजकीय मदद और शिविरों की स्थापना, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को पनपा कर हिन्दू कश्मीरियों को शरणार्थी बनाकर राज्य से निकालना तथा दुनिया के सबसे भयानक हिन्दू कत्लेआम को अंजाम देना, खालिस्तानी आतंकवाद को जन्म देना, कारगिल युद्ध के बाद लगातार आतंकवादी हमलों में 80,000 से ज्यादा भारतीयों हत्या… यह सूची बहुत लंबी है।
अब विश्व समुदाय के समर्थन और सवा अरब भारतीयों को एकजुट कर सर्वदलीय एकता का ऐसा परचम बना है जो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री से बढ़कर योद्धा मोदी के नाते स्थापित करने में समर्थ है। अब तो बस यही कहा जा सकता है कि दीनदयाल के अनुयायियों को दुुष्ट हनन का लक्ष्य पूरा करना ही होगा। 'मत चूको चौहान' का अब से बेहतर क्या उपयेाग होगा?
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