अमर बलिदानी/ शंकर शाह-रघुनाथ शाह बलिदान दिवस (18 सितंबर) पर विशेष''नर जीवन के स्वार्थ सकल, बलि हों तेरे चरणों पर मां''
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

अमर बलिदानी/ शंकर शाह-रघुनाथ शाह बलिदान दिवस (18 सितंबर) पर विशेष''नर जीवन के स्वार्थ सकल, बलि हों तेरे चरणों पर मां''

by
Sep 19, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 19 Sep 2016 15:08:02

भारत में अनेक क्रांतिवीरों की गाथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है पिता-पुत्र की वीर और देशभक्त जोड़ी जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आमजनों में एक अनूठा ज्वार पैदा किया था

 प्रशांत बाजपेई
बलि-पंथी को प्राणों का मोह न होता, कर्तव्य मार्ग में मिलन-बिछोह न होता।
अपने प्राणों से राष्ट्र बड़ा होता है,
हम मिटते हैं तब राष्ट्र खड़ा होता है।
श्रीकृष्ण 'सरल' की ये पंक्तियां प्रेरक तो हैं ही, इतिहास प्रेरित और समयसिद्ध भी हैं। विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेने वाले मरजीवड़ों की अपने देश में कभी कमी नहीं रही। मध्यप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र ने भी रानी दुर्गावती, महाराजा छत्रसाल, रानी अवंतीबाई लोधी जैसे नक्षत्रों को जन्म दिया है। 1857 के स्वातंत्र्य समर में जब सारे देश में क्रांति की ज्वाला भड़की तब जबलपुर के महाराजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह प्रेरणा-पुंज बनकर आगे आए और देश-धर्म की रक्षा के लिए बलिदान हो गए। तारीख थी 18 सितंबर, 1857 अपने राजा के पदचिन्हों पर चलकर बलिदान होने वाले लोगों में समाज के सभी वगोंर् के नागरिक और राज-कर्मचारी शामिल थे। राजा शंकर देव की पत्नी फूलकुंवर ने अपने पति के बलिदान होने के बाद स्वतंत्रता की अग्नि को प्रज्वलित रखा। इस बलिदान शृंखला ने जबलपुर छावनी में तैनात अंग्रेजी सेना की 52वीं बटालियन के भारतीय सैनिकों के ह्दय में क्रांति की ज्वाला सुलगा दी। उन्होंने राजा शंकर शाह को अपना राजा घोषित कर दिया और अंग्रेजी राज के विरुद्ध शस्त्र उठा लिए। यह आत्मविश्वास जगाने वाला, धरती से रागात्मक संबंध को दृढ़ करने वाले तथ्य है, लेकिन ये सेनानी देश के सरकारी इतिहास लेखकों द्वारा उपेक्षित ही रहे।
आजादी के बाद इतिहास को सत्ता की सुविधा के हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा गया है।  लेकिन झूठे इतिहास के सहारे सच्चे इंसान नहीं गढ़े जा सकते। यह असंभव है। इतिहास का किसी भी देश के लिए वही महत्व होता है जो किसी व्यक्ति अथवा जीव के लिए स्मृति का होता है। वास्तव में हमारा सारा अनुभव, हमारा ज्ञान, जिसके कारण हम जीवित हैं, हमारी स्मृति के कारण ही तो है। हमारे गुणसूत्रों में रासायनिक बंधों के रूप में जैविक स्मृति ही तो है जिससे हमारा शरीर निर्मित और विकसित होता है। अच्छी बात है कि माटी की अपनी स्मृति होती है। नौ दशकों  के ब्रिटिश सेंसर और साथ ही दशकों की (सरकारी) पाठ्यक्रमों की उपेक्षा के बावजूद महाकौशल के मानस में ये पिता-पुत्र अक्षुण्ण रचे-बसे हैं।
देश में जब 1857 की क्रांति-ज्वाला पूरी शक्ति के साथ धधक रही थी, और कमल तथा रोटी का संदेश गांव-गांव पहुंच रहा था, तब गढ़ा पुरवा (जबलपुर) के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह के हृदय में भी स्वतंत्रता की अग्नि सुलग रही थी। वे जबलपुर की अंग्रेज सैन्य छावनी पर आक्रमण कर वहां तैनात भारतीय सैनिकों की मदद से अंग्रेजी राज को उखाड़ फेंकने की योजना बना रहे थे। किसी तरह अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई।
 बस फिर क्या था, गुप्तचरों ने गढ़ा-पुरवा के अंदर-बाहर घेरा डाल  दिया। सही मौके की प्रतीक्षा की जाने लगी। अंतत: 14 सितंबर, 1857 की मध्यरात्रि को डिप्टी कमिश्नर क्लार्क 20 घुड़सवार व 40 पैदल सिपाहियों के साथ राजा शंकर शाह की गढ़ी पर टूट पड़ा। राजा शंकर शाह, उनके पुत्र रघुनाथ शाह और 13 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर बंदीगृह में डाल दिया गया। पूरे घर की तलाशी ली गई। संदिग्ध सामग्री की जब्ती की गई, जिसमें राजा द्वारा अपने सरदारों को लिखा हुआ आज्ञा पत्र और उनके द्वारा लिखी गई यह कविता उनके हाथ लगी—
मूंद मुख इंडिन को चुगलों को चबाई खाइ,
खूंद दौड़ दुष्टन को, शत्रु संहारिका।
    मार अंग्रेज, रेज, कर देई मात चण्डी,
    बचौ नहीं बैरि, बाल बच्चे संहारिका।
संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपालकर
दीन की सुन आय मात कालिका।
खायइ लेत मलेछन को, झेल नहीं करो अब
भच्छन कर तच्छन धौर मात कालिका।    
 इस कविता को आधार बनाकर मुकदमा चलाया गया।  पिता-पुत्र को पीली कोठी में बंदी बनाकर रखा गया था। इमलाई राजवंश के वंशज बताते हैं कि उनके सामने तीन शर्तें रखी गयी थीं-1-अंग्रेजों से संधि, 2-अपने धर्म का त्याग कर ईसाइयत को अपनाना, और 3-पुरस्कार स्वरूप ब्रिटिश सत्ता से पेंशन प्राप्त करना। स्वाभिमानी राजा शंकर शाह ने इससे साफ इंकार कर दिया। तब अंग्रेज सत्ता ने डिप्टी कमिश्नर क्लार्क व दो अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का सैनिक आयोग बनाया। राजा व उनके अन्य साथियों पर अभियोग चलाने का नाटक कर निर्णय दिया गया कि शंकर शाह और रघुनाथ शाह को 'बगावत' के अपराध में तोप के मुंह से बांधकर मृत्युदण्ड दिया जाए।
18 सितंबर, 1857 को एजेंसी के सामने फांसी परेड हुई और एक अहाते में आमंत्रित जन-समुदाय के बीच पैदल व घुड़सवार सैनिकों की टुकडि़यों के साथ शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह को लाकर हथकडि़यां, बेडि़यां खोलकर तोप के मुंह पर बांध दिया गया। आजादी के दोनों दीवानों ने अपनी आराध्य देवी से प्रार्थना की, तोपें दाग दी गयीं और भारत के इन बेटों ने स्वाधीनता यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। सवाल यह कि तोप के मुंह से बांधकर मृत्युदंड क्यों दिया गया, जबकि उन दिनों फांसी या बंदूक की गोली से मृत्युदंड दिया जाता था? ऐसा अंग्रेजों ने इसलिए किया था ताकि पिता-पुत्र के दाह संस्कार हेतु अवशेष न बच सकें।    
पति और बेटे के प्राणोत्सर्ग के बाद विधवा रानी फूलकुंवर बाई ने दोनों शवों के अवशेष एकत्र कर उनका अन्तिम क्रिया-कर्म करवाया तथा  प्रतिज्ञा की कि 'जब तक मेरी सांसें रहेगी, यह युद्ध जारी रहेगा।' परिणामस्वरूप स्वतंत्रता समर की अग्नि और भड़क उठी। 52वीं रेजीमेंट ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध उठ खड़ी हुई और हथियार, गोला-बारूद लेकर पाटन की ओर चल पड़ी। पाटन और स्लीमनाबाद स्थित सैनिक दस्ते भी 52वीं रेजीमेंट के विद्रोही सैनिकों के साथ चल पड़े। राजा के बलिदान से महाकौशल क्षेत्र के अन्य राजाओं में अंग्रेजी राज के विरुद्ध रोष भड़क उठा। सागर, दमोह, सिहोर, सिवनी, छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट, नरसिंहपुर आदि स्थानों पर क्रांति की चिनगारियां फूटने लगीं।
दूसरी ओर शंकर शाह की विधवा रानी फूलकुंवर भी दुश्मन फिरंगियों से बदला लेने का संकल्प कर मण्डला आ गईं। उन्होंने सेना को संगठित कर फिरंगियों के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ दिया और अंतत: आत्मोत्सर्ग किया। इस महान बलिदान गाथा के 9 दशक बाद जब लालकिले में आजाद हिन्द फौज के सेनानियों पर अंग्रेज सरकार मुकदमा चला रही थी और इन सेनानियों के समर्थन में नौसेना के भारतीय सैनिकों ने बगावत कर दी, तब भी जबलपुर की छावनी ने देश के लिए त्याग और बलिदान की परंपरा कायम रखी। 26 फरवरी, 1946 को जबलपुर की ब्रिटिश सैन्य छावनी में सिग्नल ट्रेनिंग सेंटर की 'जे' कंपनी के 120 सैनिकों ने अंग्रेज सत्ता के विरुद्ध बगावत की, तब भी उन्होंने बलिदानी शंकर शाह और रघुनाथ शाह को अपना नायक घोषित किया था। अंग्रेज सरकार सकते में आ गई और उसे 1857 की पुनरावृत्ति के दु:स्वप्न आने लगे। इन सबका  तत्काल कोर्ट मार्शल हुआ और सेना से निकालकर इस घटना संबंधी दस्तावेज जला दिए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन्हें पुन: सेना में बहाल किया गया।
यह महान गाथा सारे देश को प्रेरणा देने वाली और सामाजिक एकात्मता को दृढ़ करने वाली है। इसे राजनैतिक कारणों से समय के। गर्त में दबाने का प्रयास किया गया, लेकिन अब समय आ गया है कि इतिहास की वास्तविक जानकारी नई पीढ़ी तक पहुंचाई जाए ।
देश में स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की अगणित गाथाएं हैं लेकिन पिता-पुत्र का एक साथ तोप के मुंह के सामने खड़ा होना इसे अद्भुत होने के साथ-साथ हमारे बहुत करीब  की घटना भी बना देता है। ऐसी घटनाएं युवा पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणास्पद और उत्साहवर्धक होती हैं। जो उन्हें नव इतिहास निर्माण के लिए आंदोलित करती हैं। निराला की ये पंक्तियां जीवन की आपा-धापी में डूबे किसी बुद्धि-केंद्रित व्यक्ति को कवि के भावुक ह्दय की उपज लग सकती है, लेकिन राजा और कवि शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह की जीवन आहुति को देखकर एहसास होता है कि हम सभी के अंदर वे बूंदें हैं जो सागर बनकर लहराने को बेचैन रहती हैं। निराला कहते हैं –
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर मां,
    मेरे श्रम-संचित सब फल।       

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

मतदाता सूची मामला: कुछ संगठन और याचिकाकर्ता कर रहे हैं भ्रमित और लोकतंत्र की जड़ों को खोखला

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

सऊदी में छांगुर ने खेला कन्वर्जन का खेल, बनवा दिया गंदा वीडियो : खुलासा करने पर हिन्दू युवती को दी जा रहीं धमकियां

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

मतदाता सूची मामला: कुछ संगठन और याचिकाकर्ता कर रहे हैं भ्रमित और लोकतंत्र की जड़ों को खोखला

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

सऊदी में छांगुर ने खेला कन्वर्जन का खेल, बनवा दिया गंदा वीडियो : खुलासा करने पर हिन्दू युवती को दी जा रहीं धमकियां

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies