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रियो ओलंपिक खेलों में पदक जीतने या शानदार प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर भारतीय खिलाडि़यों के सम्मान समारोहों का दौर अब थोड़ा थमने-सा लगा है। हालांकि अंतिम पलों में अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और चकित कर देने वाले दांव के बल पर किर्गिस्तानी पहलवान को हराकर कांस्य पदक जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक के लिए सम्मान समारोहों का दौर अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा। ओलंपिक इतिहास में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनने के मायने साक्षी को बखूबी समझ आने लगे हैं, क्योंकि रियो से वापसी के बाद उनकी जिंदगी काफी बदल चुकी है। भारत की बेटी के रूप में उन्होंने ओलंपिक खेलों में देश का नाम रोशन किया है। साथ ही देश में महिला कुश्ती को एक राह दिखाई है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। अपने व्यस्त कार्यक्रम के दौरान साक्षी ने खेल व अपनी बदलती दुनिया के बारे में बेबाकी से अपनी राय रखी। यहां प्रस्तुत हैं प्रवीण सिन्हा की साक्षी से हुई लंबी बातचीत के प्रमुख अंश-
आगामी ओलंपिक खेलों में पदक जीतने के लिए प्रधानमंत्री ने एक टास्क फोर्स बनाने का निर्णय लिया है। आपकी क्या राय है?
प्रधानमंत्री जी की योजना भारतीय खेल को एक नई दिशा देने के लिए एक शानदार पहल है। इससे अगले दो-तीन ओलंपिक खेलों की योजनाबद्ध तैयारी अभी से शुरू की जा सकेगी, जिसका खिलाडि़यों को फायदा मिलना तय है। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जरूरत है प्रतिभाओं को तलाश कर उन्हें विकसित करने की। प्रधानमंत्री ने जिस तरह से भारतीय खेल जगत को विकसित करने की पहल की है, उससे हमारी उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। देश के अंदर आधुनिक सुविधाओं से लैस प्रशिक्षण केंद्र हों तो अच्छे खिलाडि़यों की संख्या निश्चित तौर पर बढ़ेगी। इसके बाद देश में खिलाडि़यों की प्रतिद्वंद्विता का स्तर बढ़ेगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी निकलेंगे जो भविष्य में देश का नाम रोशन करेंगे।
2020 टोक्यो ओलंपिक में देश के ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी पदक विजेता बनकर मंच पर पहुंचें, इसके लिए क्या करने की जरूरत है?
मेरा मानना है कि देश में ज्यादा से ज्यादा आधुनिक तकनीक व सुविधाओं से लैस प्रशिक्षण केंद्र हों तो उसका हम भारतीय खिलाडि़यों को काफी फायदा मिलेगा। फिर, अपनी तैयारी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को आंकने के लिए कम से कम चार-पांच अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भागीदारी बहुत जरूरी है। यही नहीं, अपने देश में प्रशिक्षण का स्तर ऊंचा उठाने के लिए यह भी जरूरी है कि विकसित खेल देशों में एक-दो प्रशिक्षण शिविर भी लगाए जाएं। इससे आप बेहतर तकनीक के बल पर पदक जीतने के काफी करीब पहुंच सकते हैं।
क्या विदेशी प्रशिक्षकों की जरूरत है?
मैं नहीं मानती कि कुश्ती में विदेशी प्रशिक्षकों की जरूरत है। हां, विदेश में प्रशिक्षण और स्पर्धाओं में भाग लेने से जरूर फायदा मिलेगा। साथ ही भारतीय खिलाडि़यों को बेहतर डॉक्टर और फिजियोथेरेपिस्ट की मदद मिलनी चाहिए ताकि हम यूरोपीय खेल महाशक्तियों को पटखनी देने में सफल हो सकें।
ल्ल सोनीपत में खिलाडि़यों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए पहलवानों को एक मशीन मुहैया कराई गई है जिसका उपयोग विश्वप्रसिद्ध फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो भी करते हैं। सुधार प्रक्रिया में क्या यह एक बड़ा कदम है?
निश्चित तौर पर। लेकिन इस तरह की आधुनिक मशीनों का लाभ हजारों एथलीटों को मिले तो दर्जनों पदक विजेता खिलाड़ी पैदा किए जा सकते हैं। मैं इसी तरह की सुविधाओं की बात कर रही हूं जिसका ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी लाभ उठा सकें। कुश्ती ही नहीं, दीपा करमाकर का उदाहरण लें तो उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं और वह पदक के बेहद करीब पहुंचने में सफल रहीं। इसी तरह अगर हमें लंबे समय तक विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं तो बेहतर व प्रतिभाशाली खिलाड़ी सामने आ सकते हैं।
ल्ल टोक्यो ओलंपिक को लेकर आप क्या सोच रही हैं?
अभी काफी लंबा समय है अगला ओलंपिक होने में। मैं अगले ओलंपिक में अपने कांस्य पदक का रंग जरूर बदलना चाहूंगी। इसके लिए हमें काफी तैयारी करनी पड़ेगी। रियो ओलंपिक में कुछ कमियां रह गई थीं जिन पर बारीकी से गौर करने के बाद मैं अपने प्रशिक्षक के साथ बैठकर उन्हें दूर करने का प्रयास करूंगी। ओलंपिक खेल जगत का सबसे बड़ा मंच है। वहां आसानी से पदक नहीं जीता जा सकता। उसके लिए बेहतर तैयारी और सटीक रणनीति की जरूरत होगी। रियो ओलंपिक में विदेशों में लगे कुछ प्रशिक्षण शिविरों का हमें तकनीकी स्तर पर काफी फायदा मिला था। अब ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षण शिविरों और स्पर्धाओं में भाग लेते हुए मैं और मजबूत तैयारी करना चाहूंगी।
क्या आपको आगामी ओलंपिक खेलों की तैयारी के लिए देश में कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलने का भरोसा है?
देश में कई अच्छी महिला पहलवान आगे आ रही हैं। मेरे वजन वर्ग में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। इसके अलावा कुछ भारी वजन वर्गों में भी काफी अच्छी पहलवान हैं। उनके साथ तैयारी कर हम खुद को अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों के लिए तैयार कर सकते हैं।
ल्ल रियो ओलंपिक के दौरान आप कई बार शुरुआती दौर में पिछड़ीं, लेकिन अंतिम कुछ क्षणों में आपने दमदार वापसी करते हुए अपनी प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी दी। क्या इसके पीछे आपकी कोई रणनीति थी?
हां, मैंने और मेरे प्रशिक्षक ने हर मुकाबले के लिए एक रणनीति तैयार की थी। मुझे मालूम था कि यूरोपीय या एशियाई देशों की पहलवानों के खिलाफ शुरू में अंक बटोरना आसान नहीं होगा। वे आक्रामक अंदाज में शुरुआत करती हैं। मैं भी आक्रामक अंदाज में कुश्ती लड़ना पसंद करती हूं। लेकिन तेज मुकाबलों में अंक बटोरने के साथ अंक खोने का भी जोखिम होता है। इसलिए मैंने कोशिश की कि अपनी रणनीति के अनुसार विपक्षी पर ऐसा दांव खेलो कि जिससे अंक मिल सकें। इसके अलावा शुरुआती दौर में धुआंधार कुश्ती लड़ने पर विपक्षी खिलाड़ी थक रही थीं। उस समय मुझे अपनी ताकत पर भरोसा था और अंतिम क्षणों में मैं अचूक दांव के बल पर उनसे अंक छीनने में सफल रही। जाहिर है, मेरी कुश्ती में तकनीक के अलावा ताकत का भरपूर सम्मिश्रण था।
ल्ल रियो में पदक जीतने के बाद आप रातोंरात सुपर स्टार बन गईं। कैसा रहा आपका अनुभव?
रियो में पदक जीतने से पहले मुझे इस बात का अहसास नहीं था कि मेरी जिंदगी इतनी बदल जाएगी। सारे देशवासियों और खेलप्रेमियों ने हमें सिर-आंखों पर बिठा लिया। लोगों का इतना सम्मान और प्यार पाकर मैं बेहद खुश हूं। मुझे इतना ज्यादा सम्मान हासिल होगा, उम्मीद नहीं थी। वे कभी न भूल पाने वाले क्षण थे। हर खिलाड़ी की तरह मेरा भी ओलंपिक में पदक जीतने का सपना था जो पूरा हो गया है। लेकिन मैं इसे (कांस्य) स्वर्ण पदक में तब्दील करना चाहूंगी। स्वदेश वापसी के बाद मुझे खेल रत्न सम्मान से नवाजा जाना अद्भुत पल था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी (23 वर्ष) मुझे खेल रत्न से सम्मानित किया जाएगा। यह बहुत बड़ा सम्मान है जो मुझे बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। मैं इस सम्मान की प्रतिष्ठा रखने के लिए अगले ओलंपिक में और बेहतर प्रदर्शन करूंगी।
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