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21 अगस्त, 2016
आवरण कथा 'समझदारी से सहमति' से स्पष्ट होता है कि राजग सरकार द्वारा जीएसटी पास कराने को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। वर्षों से लटके इस बिल को दोनों सदनों में पारित कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने सभी राजनीतिक दलों के साथ समन्वय बैठाते हुए इसे पारित कराया। बिल के पास होने के बाद कुछ दिन के भीतर ही कई राज्यों ने भी इसे अपने यहां पारित कराया। यह बिल्कुल सच है कि इससे देश को बहुत फायदा होने वाला है, वहीं विभिन्न स्थानों पर होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।
—श्रवण नागर, बांदा (उ.प्र.)
ङ्म अब बीस तरह के करों के स्थान पर सिर्फ एक ही कर लगेगा। यानी करों के चक्रव्यूह से अब छुटकारा मिलेगा। व्यवसाय से जुड़े लोगों को इससे बहुत फायदा होगा। उन्हें अभी तक जो कर संबंधी दिक्कतें आ रही थीं, अब उनका जल्द ही समाधान हो जाएगा।
—श्रीनिवास कोठारी, इंदौर (म.प्र.)
फैसला लेने का सही समय
लेख 'कश्मीर पर निर्णायक फैसले का वक्त' में लेखक ने सही विचार व्यक्त किये। आखिर कब तक देश इन पत्थरमारों को झेलता रहेगा? ये हमारे देश का खाकर हमारी सेना पर हमले करना कब बंद करेंगे? असल में अभी तक की सरकारों ने इनके साथ नरमी बरती है और इन्होंने जो चाहा, वही किया है। इस सबके कारण इनके हौसले बुलंद हैं। उन्हें लगता है कि हम अराजकता फैलाकर घाटी में जो चाहेंगे, वह करेंगे, और सरकार ऐसे ही कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करेगी। लेकिन अब राज्य और केन्द्र सरकार को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि ये अलगाववादी और हिंसा फैलाने वाले लोग देशद्रोही हैं। आतंकवादी और इनमें कोई समानता नहीं है। सरकार को इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, तभी घाटी में डर पैदा होगा। यहां इनके प्रति शांति बरतने की जरूरत नहीं है।
—अनूप सिंह, मेल से
ङ्म मजहब के नाम पर कुछ सिरफिरे निर्दोषों को मार रहे हैं। जो लोग हत्या और खून-खराबे पर यकीन करते हैं, उन्हें इस सभ्य समाज में रहने का कोई हक नहीं है। ऐसे दुष्टों का खात्मा करना पूरी दुनिया की जिम्मेदारी है। बेरहमी से लोगों का कत्ल करने वाले मजहबी तो कतई नहीं हो सकते। कोई भी मजहब मानवता की हत्या करने का आदेश नहीं दे सकता है। लेकिन इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय से यह भी अपेक्षा है कि वह इन हत्यारों के खिलाफ आवाज उठाए।
—हरीश चन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
ङ्म आज जिहाद व इस्लाम के नाम पर आतंकी खून बहा रहे हैं। और इसे नेक काम और अल्लाह का हुक्म कहकर जिहाद की संज्ञा दे रहे हैं। अगर इस्लाम को बचाए रखना है तो मुल्ला-मौलवियों और सूफियों को आगे आना होगा। उन्हें देश-दुनिया को इसकी अच्छाइयां बतानी होंगी। युवाओं को नेक काम करने के लिए प्रेरित करना होगा। इसके बाद ही इस्लाम की छवि में कुछ परिवर्तन आ सकेगा।
—श्रेया वशिष्ठ, रायपुर (छ.ग.)
ङ्म जब-जब हिंदुत्व कमजोर हुआ है, हमें पराजय मिली। भूभाग छिनता रहा, समाज टूटता रहा और स्वाभिमान लुटता रहा। कभी अफगान टूटा तो कभी भूटान। कभी म्यांमार हमसे अलग हुआ तो कभी बंगलादेश और पाकिस्तान। यह सब हुआ हिन्दुओं के कमजोर होने से। आपस में इतनी ईर्ष्या और भेदभाव की भावना भर गई है कि हम अपनों से ही लड़ने पर आमादा हो जाते हैं। जिसका फायदा आततायी उठाते हैं। आज देश के कई प्रदेशों में मुस्लिम और ईसाइयों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है। देखते ही देखते वे ईसाई बहुल राज्य होते जा रहे हैं। रही बात जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बंगाल और असम की तो यहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और हिन्दू घट रहे है। ऐसे में एक दो दशक में इन प्रदेशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। अभी भी समय है कि आपस में लड़ना छोड़कर सभी हिन्दू एक हों और आततायियों से मिलकर लड़ें।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)
रखना होगा जीवंत
रपट 'ये आकाशवाणी है (7 अगस्त, 2016)' अच्छी लगी। आकाशवाणी के गौरवपूर्ण अतीत के साथ आज इसका चुनौतीपूर्ण भविष्य सामने दिखाई देता है। लेकिन इसकी गंूज ऐसी ही देश के लोगों तक पहुंचती रहे इसलिए इसमें समय के अनुसार जो भी परिवर्तन करने हों, करने चाहिए और इसे जीवंत रखना चाहिए। आज भी लाखों लोग आकाशवाणी के चहेते हैं और यह सेवा उन्हें मनोरंजित करती है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा(म.प्र.)
अलगाववादी फैलाते आग
रपट 'असंभव है वाजपेयी नीति का एकतरफा अनुपालन' में सही विश्लेषण किया गया है। घाटी में आज जो भी कुछ हो रहा है, वह सब अलगाववादियों द्वारा भड़काई जा रही आग का नतीजा है। वे बेरोजगार युवकों को कुछ पैसे या अन्य किसी चीज का लालच देते हैं। इस सबके कारण कुछ युवा इनके बहकावे में आ जाते हैं और अपने ही देश और सेना के खिलाफ सड़क पर उतर कर पत्थरबाजी करते हैं। असल में अलगाववादी यही चाहते हैं कि घाटी में हिंसा भड़कती रहे ताकि वे इसकी आड़ में अपनी सियासत चमकाते रहें। राज्य सरकार का दायित्व बनता है कि यह घाटी में ऐसे अराजक और देशद्रोही तत्वों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। इसके लिए उसे किसी भी हद तक जाना पड़े, जाना चाहिए।
—कमलेश कुमार ओझा, पुष्प विहार (नई दिल्ली)
ङ्म कुछ लोगों द्वारा जान-बूझकर कश्मीर की समस्या को ऐसा रूप दिया जा रहा है जैसे संपूर्ण राज्य आग में जल रहा हो और वहां के सभी लोग भारत विरोध में उतर आए हों। असल में सचाई यह है कि राज्य के कुछ चार-पांच जिले ही अलगाववादियों के बहकावे में हैं और वे ही घाटी में हिंसा का वातावरण बनाए हुए हैं। जबकि बाकी दर्जनों जिलों में शांति और सद्भाव का वातावरण है। इन सभी क्षेत्रों के लोगों की भारत और भारत के संविधान में पूरी आस्था है।
—संजय सिंह,धनबाद(झारखंड)
ङ्म घाटी में आज जहां-जहां भी हिंसा की घटनाएं हो रही हैं,वहां सैकड़ों ऐसे युवा हैं जो बहक गए हैं। इन क्षेत्रों में हर घर में कई-कई बुरहान वानी हैं। जब एक आतंकी बुरहान के मारे जाने
के बाद घाटी में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है तो ऐसे सैकड़े बुरहान से
निपटना थोड़ा कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं। बस इन्हें इनकी ही भाषा में उत्तर चाहिए।
—जमालपुरकर गंगाधर, नीलकंठनगर (आंध्र प्रदेश)
सपा राज में बढ़ता अपराध
रपट 'बेटी को पढ़ाए या बचाएं(21 अगस्त, 2016)' समाजवादी सरकार की पोल-पट्टी खोलती है। एक तरफ सरकार महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी बड़ी-बड़ी बातें करती दिखाई देती है वहीं जब जमीनी हकीकत पर नजर जाती है तब 'डोल में पोल' ही दिखाई देता है। बरेली में ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। लंबे समय से उन्मादी मुसलमान हिन्दू बहन-बेटियों को परेशान करते रहे हैं। आस-पास के छोटे-छोटे गांवों में इस तरह की खबरें आए दिन आती रहती हैं, लेकिन शिकायत करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती, या फिर पुलिस कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करके इतिश्री कर देती है। आखिर ऐसे में बेटियां
कैसे पढ़ंेगी?
—श्यामाचरण कनौजिया, रामपुर (उ.प्र.)
ङ्म उत्तर प्रदेश में अराजकता का वातावरण है। जहां एक तरफ प्रदेश में मुसलमानों के हौसले बुलंद हैं तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी की छत्र छाया में अपराधी और गंुडे मस्त हैं। इसलिए आए दिन राज्य में हर गलत काम फल-फूल रहा है। जिस प्रशासन पर इस पर अंकुश लगाने का जिम्मा है, वह कार्रवाई करने से बचता है। पर ऐसे सैकड़ों क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम आक्रांताओं और मनचलों के कारण बेटियां विद्यालय नहीं जा पा रही हैं। अगर कोई इनका विरोध करके विद्यालय जाता भी है तो अनहोनी होने का डर रहता है। अब ऐसे में कोई कैसे अपनी बेटियों को कहीं भेजगा।
—उमेदुलाल उमंग, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)
तुष्टीकरण की बिषवेल
रपट 'सेकुलर ठंडे, अमन में आग (21 अगस्त, 2016)' तुष्टीकरण राजनीति का उदाहरण है। बिहार और उत्तर प्रदेश में हुईं घटनाएं वहां की सरकारों की विफलता और तुष्टीकरण को दिखाती हैं। पाखंड और दोहरे मूल्यों में आकंठ डूबे नेताओं को उन्मादियों के ये कार्य नहीं दिखाई देते। सेकुलर नेताओं का यह रवैया जब तक ठीक नहीं होगा तब तक उन्मादियों का आतंक कम नहीं होगा, उल्टे बढ़ता ही जाएगा।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड (म.प्र.)
छटपटाता पाकिस्तान
गिलगित-बाल्टिस्तान के मुद्दे ने बंगलादेश के विभाजन की तस्वीर को सजीव कर दिया है। लेख 'कश्मीर पर निर्णायक फैसले का वक्त' से एक बात स्पष्ट होती है कि जिस तरह से भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान का जिक्र करके कूटनीतिक पहल की है, वह पाकिस्तान को नागवार गुजरी है। भारत के इनका नाम लेते ही पाकिस्तान परेशान है। स्वाभाविक है कि अवैध कब्जा किये गए हिस्सों को उसने आतंक का अड्डा बना रखा है। आज जब वहां से पाकिस्तान के विरोध की आवाजें आ रही हैं तो वह वहां के लोगों की आवाज दबाने की कोशिश कर रहा है। दूसरी ओर भारत से अपनी खीज उतारने के लिए वह घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे भारत को अशांत कर रहा है। आज जब गिलगित क्षेत्र के लोगों का दुख-दर्द पूरी दुनिया महसूस कर रही है, ऐसे में देश के प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से उनके दुख को पूरी दुनिया के सामने रखा है। यह बिल्कुल सच है कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर का सदैव से दुरुपयोग करता आया है। सामरिक रूप से यह स्थान भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन दुख है कि पिछली सरकारों ने कभी भी न तो इस अतिमहत्वपूर्ण स्थान के बारे में सोचा और न ही यहां के लोगों के दुख-दर्द को दुनिया के सामने पेश किया। अब पाकिस्तान अपने ही बिछाये जाल में फंसता जा रहा है। वह अर्से से घाटी में अशांति फैलाकर भारत को परेशान करता रहा है लेकिन अब गिलगित-बाल्टिस्तान का नाम लेते ही छटपटा रहा है। संपूर्ण विश्व भी पाकिस्तान की कारगुजारियों से अब अच्छी तरह से परिचित होने लगा है। आखिर कब तक झूठ का बाना ओढे रहेगा पाकिस्तान।
—यशवतंी कुमारी, 263,सैय्यर गेट,झांसी (उ.प्र.)
अब फंसा पाकिस्तान
मांग रहे स्वाधीनता, सिन्ध बलूचिस्तान
अपनी साजिश में फंसा, खुद ही पाकिस्तान।
खुद ही पाकिस्तान, ढूंढता फिरता पानी
याद आ रही उसको अपनी दादी-नानी।
कह 'प्रशांत' है निश्चित पाक देश टूटेगा
तब जा करके भारत का सिरदर्द मिटेगा॥
—प्रशांत
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