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मेहता के जरिए फिर दिखा सेकुलर बौद्धिक आडंबर

by
Sep 5, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Sep 2016 12:05:01

नेहरू लाइबे्ररी के बहाने देश के स्वनामधन्य बद्धिजीवी लामबंद होने की कोशिश करते दिखे। संस्थानों के स्थापित कायदों के अनुसार काम होता देखकर भी उसमें अड़चनें पैदा करना ही मकसद रहता है
 
गुरुप्रकाश

दिल्ली का अभिजात्य बुद्धिजीवी वर्ग फिर एक बार सुर्खियों में छाया था, अपने सकारात्मक वैचारिक कार्य के लिए नहीं अपितु नकारात्मक प्रचार को लेकर। 'सामाजिक न्याय व दलित विषय' उठाने वाला वर्ग एक बार फिर अपने उठापटकी क्रियाकलापों के कारण चर्चाओं के केंद्र में रहा। हाल में ऐसे ही एक तथाकथित बुद्धिजीवी द्वारा निदेश पद पर शक्ति सिन्हा की नियुक्ति को लेकर नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी (एनएमएमएल) प्रशासन को एक खुला इस्तीफा भेजा गया। इन तथाकथित बुद्धिजीवी श्री पी.बी. मेहता ने वर्तमान केंद्र सरकार को मिले जनादेश की सत्यनिष्ठा पर बारंबार प्रश्नचिह्न लगाया है और हमारे राष्ट्रीय हितों के विरोधियों के साथ खड़े दिखे हैं।
यह पूर्णतया बौद्धिक अवसरवाद और अवांछित अहं का प्रदर्शन मात्र ही तो है। हमारे नागरिक और सार्वजनिक संस्थान भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के द्वारा अधिशासित हैं। राष्ट्रीय महत्व के किसी संस्थान के विरुद्ध महज एक खुला पत्र प्रकाशित करने का कृत्य व्यक्ति का अभिमान और सांस्थानिक अनुशासन के प्रति असम्मान दिखाता है।
वर्तमान मामले में निदेशक पद पर नियुक्ति के लिए एनएमएमएल द्वारा जारी किए गए नियम, विनियम एवं अधिसूचना के अनुसार एक साक्षात्कार आयोजित किया जा रहा था। पूरी प्रक्रिया में सक्षम अधिकारियों द्वारा कहीं भी किसी प्रक्रियात्मक आवश्यकता की न तो अनदेखी की गई और न ही उसे नजरअंदाज किया गया। कथित प्रतिभागी, जिसे बुद्धिजीवी द्वारा अपने गुस्से के प्रगटीकरण का कारण बताया जा रहा है, वह हैं श्री शक्ति सिन्हा, जिन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव की जिम्मेदारी संभालने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में भी सचिव के रूप में कार्य किया है। ईमानदार प्रशासनिक अनुभव के अलावा उन्होंने विविध और कठिन कार्यों को भी अंजाम दिया है जो सुरक्षा और रणनीति के साथ ही आर्थिक और सामाजिक कार्यों से भी संबंधित हैं। सिन्हा ने कई पुस्तकों में अपना प्रभावी योगदान दिया है और अनेक पुस्तकें संपादित की हैं, विश्व बैंक में भी कार्य किया है एवं अपेक्षित अनुभव तथा ज्ञान होने के साथ-साथ विद्वान एवं प्रशासक, दोनों तरह से उनकी छवि बेदाग रही है।
जब रामचन्द्र गुहा को नजरअंदाज करते हुए मुदुला मुखर्जी को एनएमएमएल का निदेशक नियुक्त किया गया था तो  उस चयन समिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री नटवर सिंह और श्री सुमन दुबे सरीखे लोग शामिल थे। यह उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि इसमें किसी असहमति की गुंजाइश नहीं थी। वर्तमान सरकार ने श्री पी.बी. मेहता को एनएमएमएल की कार्यकारी समिति में नियुक्त किया और उन्हें चयन समिति का भी सदस्य बनाया। लेकिन समिति को लोकतांत्रिक रूप से कार्य करना होता है, कोई भी सदस्य वीटो शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता है जैसे कि वर्तमान मामले में किया गया।
मेरा मानना है कि तर्क और कारण की व्यावहारिकता पर आधारित न होकर यह विरोध सैद्धांतिक प्रकृति का है। इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान केंद्र सरकार ने विदेशी पैसे के संदिग्ध स्रोतों से निर्बाध रूप से पनप रहे एनजीओ, स्वयं सहायता समूहों एवं स्वैच्छिक संगठनों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की है। इस चीज से हमारे पूर्वाग्रही बुद्धिजीवियों एवं सेकुलर वर्ग को तकलीफ हो रही है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एवं जीमखाना में होने वाली शाम की चर्चाएं इस समस्या से निजात पाने पर केंद्रित हो गई हैं। कथाकार एवं बहसों के संचालक केंद्र सरकार के विरुद्ध दुष्प्रचार करने में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि इन दुष्प्रचारकों ने अब तक कांग्रेस या सेकुलरों से बाहर के किसी व्यक्ति को इस देश के प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं किया है।
राजनीतिक प्रेक्षक के रूप में सेकुलर बुद्धिजीवियों की बेचैनी को महसूस करना कठिन नहीं है। बौद्धिकता को राजधानी के लुटियन जोन में रहने वाले किसी खास रंग के विचारक वर्ग तक सीमित नहीं किया जा सकता है। कोई भी विचार व्यक्ति की दूरदर्शिता एवं कल्पना से उत्पन्न होता है।
मेहता का वह पत्र हमारे संविधान निर्माताओं के प्रयासों की अवहेलना है जिन्होंने एक ऐसे भारत की परिकल्पना की थी जहां सिद्धांत, विचार और व्यक्ति जात, पात, लिंग और संबद्धताओं से ऊपर उठकर पनपेंगे। उन्हें लोकतांत्रिक संस्थान का अनादर करने के   लिए शीघ्रातिशीघ्र सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।

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