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विरासत-लहरों में घुलती सांस्कृतिक धरोहर

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Sep 5, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 05 Sep 2016 14:29:52

समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को थामे मिट्टी का अनूठा द्वीप माजुली…। इसे विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति के अनुपम प्रतीक एवं पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता था। पर ब्रह्मपुत्र में समाता, खत्म होता माजुली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है

माजुली-असम से लौटकर अश्वनी मिश्र

विकास सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है। इसी क्षेत्र से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने माजुली द्वीप के साथ न्याय नहीं किया, जबकि यह क्षेत्र देश में गौरवपूर्ण स्थान रखता है। अगर असम में भाजपा सत्ता में आती है तो माजुली के लोगों की संपर्क और विकास सहित सभी आकांक्षाओं को पूरा किया जाएगा।'' ये बातें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मार्च-2016 में माजुली क्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान कही थीं। समय बीता और भाजपा ने पहली बार असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में सरकार बनाई। माजुली ने इस जीत में अहम योगदान करते हुए अपने विधानसभा प्रत्याशी सर्बानंद सोनोवाल के सिर जीत का सेहरा बांधा तो वहीं असम के मुख्यमंत्री के नाते पद ग्रहण करने के बाद सोनोवाल ने माजुली के लोगांे को इस जीत के लिए ह्दय से धन्यवाद दिया था। दशकों बाद फिर से माजुलीवासियों के चेहरे पर प्रसन्नता और आशा के भाव स्पष्ट देखे जा सकते हैं। लोगों में आशा है कि अब इस क्षेत्र का विकास जरूर होगा और यहां की जो प्रमुख समस्याएं हैं, उनसे अब छुटकारा मिलेगा।

गुवाहाटी से जोरहाट की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 312 किमी.है। जोरहाट से 20 किमी. की दूरी पर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है विश्व के बड़े द्वीपों में से एक माजुली। यह लखीमपुर,धेमाजी,शिवसागर,गोलाघाट एवं शोणितपुर जिलों से घिरा हुआ है। दुनिया के बड़े नदी द्वीपों में शुमार माजुली अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। अपनी विविधता और अनेक विशेषताओं के चलते दुनिया भर में मशहूर माजुली का अस्तित्व साल दर साल आने वाली बाढ़ और भूमि कटाव के चलते खतरे में है। कभी इस द्वीप का क्षेत्रफल 1278 वर्ग किमी. हुआ करता था लेकिन ब्रह्मपुत्र के लगाातर बढ़ते रूप और उससे होते भूमिकटाव के कारण यह घटकर महज 400 वर्ग किलोमीटर से भी कम रह गया है। वर्तमान में द्वीप के 243 गांवों में लगभग 1,50,000 लोग रह रहे हैं।

माजुली के बाली सपोरी कथौनी अति हाईस्कूल विद्यालय के अध्यापक जयंत कुमार बड़ा कहते हैं,''हर साल बरसात के मौसम में ब्रह्मपुत्र में उफान आ जाता है। माजुली को बाढ़ और भूमि कटाव से बचाने के लिए कुछ सरकारी मशीनरी है, लेकिन वे नाकाफी हैं। कुछ प्रयासों को छोड़ दें तो किसी ने भी आज तक इस दिशा में कोई गंभीर पहल नहीं की। यही वजह है कि माजुली का काफी हिस्सा नदी में समाता जा रहा है।'' जयंत जब बाढ़ की विभीषिका और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे थे तो उनके चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव स्पष्ट तौर से दिखाई दे रहे थे।

वैसे माजुली को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने के तमाम प्रयास अभी तक बेनतीजा रहे हैं। जानकार कहते हैं कि माजुली को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने के लिए पूर्ववर्ती राज्य सरकार ठीक ढंग से इसकी पैरवी नहीं कर सकी। आधी-अधूरी जानकारी के कारण यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा देने का अनुरोध ठुकरा दिया है। असम की पूर्ववर्ती सरकार ने द्वीप को बचाने के लिए कुछ साल पहले 'माजुली लैंडस्केप मैनेजमेंट अथॉरिटी' का गठन किया था। बावजूद इसके इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ है और यह अथॉरिटी सफेद हाथी साबित हुई।

मुश्किल जीवन

इस द्वीप पर रहने वाले डेढ़ लाख लोग हर रोज नदी की धार पर नजर टिकाए रहते हैं। कब, क्या हो जाए, किसी को कुछ नहीं पता। हर साल बरसात के मौसम में कई गांवों में कमर तक पानी भर जाता है। एक गांव से दूसरे गांव जाने का रास्ता टूट जाता है। माजुली के एसडीओ सिविल नरसिंह पवार बताते हैं,''यह द्वीप नदी के बीचोबीच है। बाढ़ और भूमि कटाव की वजह से इसका एक बड़ा हिस्सा हर साल नदी के साथ बह जाता है जिसके कारण साल दर साल यह द्वीप सिकुड़ता जा रहा है। ऐसा ही रहा तो बहुत जल्द इसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। कुल मिलाकर बाढ़ और कटाव यहां की प्रमुख समस्या है और इस समस्या का समाधान प्रकृति के ही हिसाब से ही करना होगा।''

वे कहते हैं,''यहां बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान पशुओं का होता है। लगभग 5 लाख से ज्यादा छोटे-बड़े पशु हैं। द्वीप के कुल 243 गांवों में बाढ़ के समय 160 गांव प्रभावित और 66 अत्यधिक प्रभावित होते हैं। पर अब सरकार बदलने के बाद इस पर युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। ब्रह्मपुत्र बोर्ड एवं जल संसाधन विभाग यहां की समस्या का स्थायी समाधान निकालने के लिए रिपोर्ट पर काम कर रहे हैं।''

ख्ेाती-किसानी कर रहे लोग हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलते हैं। रमेश फूकन जो वर्षों से खेती करते आ रहे हैं, कहते हैं,''इस द्वीप पर रहने वाले अधिकतर लोग खेती पर ही निर्भर हंै। लेकिन हर बार बाढ़ से हमारे ज्यादातर खेत पानी में डूब जाते हैं,जिसकी वजह से हमारी फसल नष्ट हो जाती है। ऐसे में हमें जिसका सहारा होता है वह ही हमसे दूर हो जाता है। पता नहीं, हम पूरे साल अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे।'' मोनी सैकिया भी एक किसान हैं और यही बेहाली बयान करते हैं। वे कहते हैं,''हर साल बाढ़ आती है लेकिन हमारी इस समस्या की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन इस बार कुछ उम्मीद जरूर है खुद मुख्यमंत्री इस सीट से चुनाव जीतें हैं। हमारे दर्द को वे जरूर समझेंगे।''

माजुली का प्रमुख आकर्षण

माजुली का सत्रीय नृत्य देश ही नहीं, दुनिया में विख्यात है। नृत्य माटी अखारा (एक प्रकार का विश्ष नृत्य), ड्रम, गायन-वादन परंपरा से चले आ रहे हैं। प्राचीन

काल की तरह गुरुकुल में रहकर शिक्षा हासिल करने की परंपरा अभी भी यहां जारी है। द्वीप अपने वैष्णव सत्रों के अलावा रास उत्सव, टेराकोटा और नदी पर्यटन के लिए विख्यात है।

श्री कृष्ण रासलीला- माजुली के प्रमुख उत्सवों में श्रीकृष्ण रासलीला का खास स्थान है। अक्तूबर-नबंवर के मध्य होने वाले इस उत्सव में सत्रों के कलाकारों के अलावा देश-दुनिया के ख्याति प्राप्त कलाकार हिस्सा लेते हैं। सत्रों में जो बच्चे सीख रहे हैं, उनके प्रदर्शन के लिए यह सुनहरा मंच होता है जहां वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। यह उत्सव सभी सत्रों के साथ ही माजुली के करीब 40 से ज्यादा स्थानों पर होता है। होली, पालनाम, जन्माष्टमी, बिहु, गुरुकीर्तन एवं अली आई लीगंग यहां के प्रमुख उत्सवों में एक हैं।

अन्य विशेषताएं

द्वीप अपने पारंपरिक शिल्प के लिए विख्यात है। यहां के लोग खेती के अलावा हस्तशिल्प पर भी मुख्य रूप से निर्भर रहते हैं। टेराकोटा (मिट्टी की बनी कलाकृति) यहां की एक ऐसी कलाकृति है जो अलग-अलग रूपों में माजुली में देखने को मिलती है। इसके अलावा मुखौटा निर्माण, चित्रकारी, लकड़ी से बनी विभिन्न आकृतियां एवं सजावट के कार्य हर किसी को लुभाते हैं। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि इन कलाकारों को उचित मंच न मिल पाने से इनकी कला एक सीमित क्षेत्र में दब कर रह जाती है, जबकि आज के समय शहरों में इन्हीं कलाकृतियों की भारी मांग है और लोग इन्हें मुंहमांगी कीमत पर खरीदते हैं। मिसिंग, देउरी, सोनोवाल, कोच, कलिता, नाथ, अहोम, नेराली और अन्य जातियों की मिली-जुली आबादी वाले माजुली को छोटा असम कहा जाता है। यहां फूलों और वनस्पतियों की कई दुर्लभ किस्में पाई जाती हैं जो कहीं और नहीं दिखतीं। साथ ही साथ द्वीप में 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों का आश्रय स्थल होने के अलावा ब्रह्मपुत्र से घिरा यह द्वीप जलचरों से भी समृद्ध है। दुख की बात यह है कि इतना समृद्ध पर्यटन होने के बावजूद किसी ने कभी आधारभूत ढांचा तैयार करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि समय गुजरने के साथ-साथ इस द्वीप की जीवन शैली भी प्रभावित हुई है। बच्चों के लिए काम करने वाली एक सामाजिक संस्था की प्रमुख सुनीता दत्ता कहती हैं,''यहां धीरे-धीरे सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विघटन हो रहा है। पहले पूरा द्वीप एक परिवार की तरह था, लेकिन अब यह बिखर रहा है।''

क्या है प्रमुख समस्या

माजुली तक पहुंचना आसान नहीं है। जोरहाट से 13 किमी. दूर निमताघाट से दिन में पांच बार माजुली के लिए बड़ी नावें चलती हैं। हर दिन सैकड़ों लोग इससे ही माजुली पहुंचते हैं। इस सफर में करीब 2 घंटे लगते हैं। सुबह 8 बजे पहली फेरी होती है तो शाम के 3 बजे आखिरी फेरी। उसके बाद आपका माजुली जाना या वापस आना लगभग असंभव ही है। लगभग 10 वर्षों से फेरी चला रहे नूतन सैकिया कहते हैं,''मैं वर्षों से फेरी चला रहा हूं। यहां की जो प्रमुख समस्या है वह यह कि आप अगर स्वस्थ हैं तब तो आप दो घंटे जाया करके भी माजुली जा और आ सकते हैं। लेकिन जब कोई गंभीर समस्या हो तो फिर एक-एक मिनट भारी पड़ता है और उस दौरान बस दम ही निकलना बाकी रह जाता है। कई बार दम भी निकल जाता है।'' वे भावुकतापूर्ण लहजे में बताते हैं,'' हमने कई बार ऐसे मंजर देखें हैं,जब किसी का बच्चा या किसी की पत्नी बहुत बीमार थी और उसे तत्काल उचित चिकित्सा की जरूरत थी। पर जोरहाट तक पहुंचते-पहुंचते उसका दम निकल गया।''

दरअसल राज्य की भाजपा सरकार ने द्वीप को आवागमन की सुविधा और प्रमुख धारा से जोड़ने के लिए पुल बनाने का फैसला किया है। फेरी पर सवार एक स्कूल शिक्षक अमन पेगू कहते हैं,''इस द्वीप पर समुचित सुविधाओं का भारी अभाव है। मूलभूत चीजें सड़क, शिक्षा, रोजगार, चिकित्सालय सभी यहां की प्रमुख जरूरतें हैं। भाजपा की जीत से अब आशा बंधी है।''

स्वास्थ्य समस्या से जूझते लोग

आप माजुली में हैं और रात दस बजे अचानक आपका स्वास्थ्य ज्यादा खराब हो जाए तो आपको विशेष चिकित्सा नहीं मिलने वाली। ऐसे में बस आपका दम ही छूटेगा। माजुली के लोग हर दिन ऐसी समस्या से दो-चार होते हैं। माजुली के पास गढ़मूल में 100 बिस्तर का एक छोटा अस्पताल है, जहां प्राथमिक इलाज की सिर्फ व्यवस्था है। अस्पताल के उप चिकित्साधिकारी डॉ. निरंजनदास कहते हैं,''हम बराबर यहां अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधा देने का प्रयास करते हैं। हां, अत्यधिक गंभीर इलाज के लिए बाहर जाना होता है। विभाग ने दो मोटर बोट इस कार्य के लिए लगा रखी हैं जो गंभीर अवस्था में मरीज के होने पर उसे रात में ही पास के जिलों मे लेकर जाती हैं।'' लेकिन माजुली के लोग चिकित्सा विभाग की इस दलील से इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं,'' इतनी बड़ी आबादी के लिए दो मोटर बोट कहां से काफी हैं? …हमारे पास भी इतना पैसा कहां कि हम रात में एक बड़ी नाव को पैसे देकर ले जाएं। हमारी जान तो हर तरफ से जानी तय है।'' किसी तरह जीवनयापन कर रहे यहां के लोगों के पास खेती के सिवाय कोई दूसरा रोजगार का साधन नहीं है। जिसके कारण उनके पास इतना पैसा नहीं होता कि एक व्यक्ति नाव को जोरहाट तक ले जाए। क्योंकि एक बार की फेरी का दसियों हजार रुपये खर्च आता है। इसलिए न उनके पास इतना पैसा होता है और न ही वे नाव को जारेहाट ले जा पाते हैं। आखिर में वे दम ही तोड़ते हैं।

सांस्कृतिक रूप से समृद्ध माजुली आज अपने संरक्षण की आस लगाए हुए है। सरकार बदलने के बाद यहां के लोगों में एक उत्साह जगा है कि अब यहां का कुछ कायाकल्प होगा। उन्हें असम के मुख्यमंत्री और अपने क्षेत्र के विधायक सर्बानंद सोनोवाल से पूरी आशा है कि वह यहां की समस्याओं को तो दूर ही करेंगे, साथ ही यहां की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को भी सहेजने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।  

अद्वितीय विरासत संजोए विशाल द्वीप

अधिकतर लोग माजुली को पर्यटन की दृष्टि से देखते हैं। यहां की हरियाली, विभिन्न तरह के पेड़-पौधे, कमल से भरे हुए तालाब, तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षियों की प्रजातियां एवं यहां का वनवासी रहन-सहन हर आने वाले पर्यटक को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। लेकिन माजुली की वास्तविक पहचान क्या है? शायद कम लोग ही इसे जानते हैं। जबकि यहां के वातावरण में सनातन संस्कृति रची-बसी है। वैष्णव संस्कृति का प्राण केंद्र होने के साथ ही इस द्वीप को सत्रों (पूजास्थल) की धरती भी कहते हैं। असम में फैले लगभग 600 सत्रों में 65 सत्र अकेले माजुली में ही थे, जिसमें आज 35 सत्र सुरक्षित रूप से बचे हुए हैं। माजुली पिछली पांच सदियों से असम का सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इतिहास और संस्कृति को अपने दामन में समेटे यह एक आध्यात्मिक जगह है। हालांकि इस द्वीप के बनने का ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिलता। माजुली के ऐतिहासिक पक्ष को सामने रखती एक पुस्तक 'माजुली ए ट्रेजर हाउस आफ हैरिटेज' में असम के इतिहासवेत्ता डॉ. तीर्थनाथ शर्मा के हवाले से लिखा है कि माजुली द्वीप लगभग 1559 ई. के करीब बना। 17वीं शताब्दी के मध्य इसका क्षेत्र काफी विशाल हो गया था। हालांकि इतिहासवेत्ता और माजुली पर शोध कर रहे लोग इसके बनने के पीछे किसी प्राकृतिक घटना, बाढ़, भूकंप आदि बताते हैं। माजुली का पर्यटन थोड़ा छोटा हो सकता है, पर है यह बेहद जीवंत। एक ओर जहां ब्रह्मपुत्र नदी इसकी प्राकृतिक सुंदरता में बढ़ोतरी करती है, वहीं दूसरी ओर सत्र इसे सांस्कृतिक पहचान दिलाते हैं। अनेक प्राकृतिक समस्याओं के बावजूद यहां का जीवन उमंगों से भरा हुआ है। आज हम माजुली को जिस रूप में देख रहे हैं, वह यहां के धर्म और संस्कृति के कारण ही संभव हो पाया है। 15वीं शताब्दी में असमिया संत श्रीमंत शंकरदेव ने यहां वैष्णव संस्कृति को स्थापित किया था। उनके शिष्य माधव देव ने आगे चलकर इसे बढ़ाया। सत्रों में आज भी गुरुकुल पद्धति से गुरु श्रीमंत शंकरदेव के वैष्णव धर्म के बारे में शिक्षा दी जाती है। यहां के हर सत्र की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं और अलग-अलग चीजें सिखाई जाती हैं, जो कि असमिया संस्कृति और परंपराओं के बारे में होती हैं। ये सत्र केवल धार्मिक संस्थान नहीं हैं बल्कि सभ्यता और सामाजिक जागरूकता को आगे बढ़ाने के केंद्र हैं। यहां के 7 सत्र बड़े ही प्रभावशाली सत्रों में गिने जाते हैं। उसमें भी उत्तर कमलाबाड़ी सत्र और औनिआती सत्र बड़े ही प्रभावशाली सत्रों में हैं। औनिअति सत्र जहां पालनाम और नृत्य के लिए तो वहीं उत्तर कमलाबाड़ी सत्र सत्रीय नृत्य और गायन-वादन,ड्रामा,संस्कृति से संबंधित शिक्षा के लिए प्रसिद्ध है। अक्तूबर-नवंबर के अंत में हर साल श्रीकृष्ण रासलीला का उत्सव होता है,जो देश-दुनिया में विख्यात है। विशाल पंडाल और राधा-कृष्ण की मनमोहक झांकियों के साथ पारंपरिक नृत्य, वादन और संगीत बड़ा ही मोहक होता है। औनिअति सत्र के सत्राधिकारी श्री पीतांबर देव गोस्वामी बताते हैं,''सदियों से यहां एक परंपरा के अनुरूप कार्य हो रहा है। हम श्रीमंत शंकरदेव जी के बताए हुए मार्ग पर चल रहे हैं। बच्चों को भारतीय और वैष्णव संस्कृति के अनुसार शिक्षा दे रहे हैं। समय-समय पर होने वाले उत्सव यहां की विशेषता और विविधता को दर्शाते हैं।'' वे कहते हैं, ''यह आध्यात्मिकता का केंद्र है। लेकिन जिस प्रकार कटाव हो रहा है, वह बड़ा ही चिंतित करने वाला है। अगर माजुली खत्म हो जाएगा तो असम की संस्कृति खत्म हो जाएगी।'' औनिअति सत्र के सत्राधिकारी की चिंता सही है, क्योंकि जिस प्रकार कुछ सालों में इसका कटाव बढ़ा है, वह उनकी चिंता पर मुहर लगाता है। उत्तर कमलाबाड़ी सत्र के सत्राधिकारी श्री जनार्दनदेव गोस्वामी सत्रों के संरक्षण की बात कहते हैं। वे कहते हैं,''यहां की सत्रीय सभ्यता हमारी धरोहर है। लेकिन हर साल बाढ़ की विभीषिका से यहा बहुत अधिक नुकसान होता है। इसी बाढ़ ने कई सत्रों के अस्तित्व को जड़ से ही समाप्त कर दिया है जो कि माजुली के ह्दय का नुकसान है। बढ़ती समस्या और खत्म होती विविधता से करीब 35 सत्रों के इतिहास के संरक्षण की जरूरत है।''

 

प्रमुख सत्र

औनिअति सत्र- इस सत्र की स्थापना 1653 ई. में अहोम राजा के शासनकाल में हुई थी। यह सत्र माजुली में स्थित सत्रों में सबसे बड़ा है। सत्र समाज में भक्ति भाव जाग्रत करने एवं देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए कार्य करता है। नामघर (पूजा स्थल), मोनीकुट, गुरुगृह (सत्राधिकारी के रहने का स्थान), संग्रहालय यहां के प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं। साथ ही यहां गुरुकुल पद्धति से करीब 400 छात्र शिक्षा ले रहे रहे हैं। वर्तमान में श्री पीतांबर देव गोस्वामी सत्राधिकारी हैं।

कमलाबाड़ी सत्र- श्रीमंत शंकरदेव के शिष्य माधवदेव ने इसे स्थापित किया था। इस सत्र के बारे में कहा जाता है कि यहां श्रीकृष्ण ने रुक्मणी जी को एक कमल पुष्प दिया था, जो उनसे यहां गिर गया। इसके बाद ही इसका नाम कमलाबाड़ी सत्र पड़ा। यहां गुरुकुल परंपरा से शिक्षा दी जाती है। बच्चों को गायन-वादन और नृत्य सिखाया जाता है। इसे माजुली की संस्कृति का केन्द्र सत्र भी माना जाता है। यहां पर विविध रूप में ऐतिहासिक सामग्री संरक्षित है। साथ ही साहित्य, शास्त्रीय अध्ययन प्रमुख रूप से इसकी पहचान है। इसकी एक शाखा उत्तर कमलाबाड़ी सत्र प्रमुख रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देश-दुनिया के सामने लाने और यहां कला उकेरने के लिए कार्य करती है।

शमगुड़ी सत्र – यह सत्र अपने मुखौटों के लिए देश-दुनिया में विख्यात है। दिलचस्प मुखौटों के अलावा अन्य शिल्प कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। लोग यहां सदियों से इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजते चले आ रहे हैं।

दक्षिणपात सत्र- सत्र में प्रमुख रूप से रासलीला को सिखाया जाता है। खास उत्सव इस सत्र की निगरानी में ही संपन्न होते हैं।

गर्मुर सत्र- यह अपनी पारंपरिक रासलीला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

 

 

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