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लंबे समय से (कोई 15-16 वर्ष ) दीपा करमाकर के साथ कड़ी मेहनत कर रहे उनके कोच बिशेश्वर नंदी आज अपनी शिष्या के प्रयासों से गर्व महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनका लक्ष्य हासिल करना अभी शेष है। राष्ट्रपति से द्रोणाचार्य सम्मान हासिल करने के बाद नंदी ने कहा कि दीपा की उपलब्धि को जिस तरह से सराहा गया, वह देश के खेल परिदृश्य को बदलने में सहायक साबित होगा। उन्हें भी तमाम खेलप्रेमियों की तरह रियो में दीपा के पदक से चूक जाने का काफी मलाल है, लेकिन वे अपने लक्ष्य से भटके नहीं हैं। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश :
आपने दीपा जैसी नायाब जिम्नास्ट तैयार कर हम खेलप्रेमियों में उम्मीद की एक नई किरण जगा दी है। उसे कैसे कायम रखेंगे?
सबसे पहले तो मैं देशवासियों, सरकार, साई और खेल संघ का धन्यवाद करना चाहूंगा जिनकी मदद से दीपा ने एक मुकाम हासिल किया है। दीपा को एक शीर्षस्थ जिम्नास्ट बनाने के लिए हमने (कोच व अभिभावक) न केवल कड़ी मेहनत की, बल्कि उसमें विश्वस्तरीय जिम्नास्ट बनने का विश्वास भी लगातार जगाया। दीपा ने रियो में शानदार प्रदर्शन करते हुए उम्मीद जगायी है। अब मेरी जिम्मेदारी उसे और बेहतर जिम्नास्ट बनाकर देश के लिए एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और ओलंपिक खेलों में पदक जीतना है। अगर दीपा ने ये उपलब्धियां हासिल कर लीं तो भारतीय खेल जगत में जिम्नास्टिक एक नई राह खोलेगा और खेलप्रेमियों का हम पर विश्वास और बढ़ेगा।
दीपा में आप एक चैंपियन खिलाड़ी बनने का कौन-सा गुण देखते हैं ?
दीपा बेहद मेहनती और अनुशासित खिलाड़ी है। उसे शुरू से ही चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है। वह अपने प्रदर्शन में हर दिन कुछ न कुछ सुधार करना चाहती है। यह (निरंतर सीखना) एक सफल खिलाड़ी का सबसे बड़ा गुण होता है। उसके अलावा दीपा की हार न मानने की जिद ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। उसने अब तक अपने करिअर में कुल 77 पदक जीते हैं जिनमें 67 स्वर्ण पदक हैं। यह उपलब्धि इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि वह हमेशा नंबर बनने पर विश्वास करती है। मुझे दीपा से भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने की इसलिए उम्मीद है क्योंकि वह चुनौती लेने और बेहतर करने की सीख लेने से कभी पीछे नहीं भागती। वह हर दिन लगभग आठ घंटे अभ्यास करती है और बेहतर करने की उसकी भूख कभी खत्म नहीं होती।
एक कोच के तौर पर आपकी शिष्या ने आपको काफी खुशी दी ?
मैं दीपा के प्रदर्शन से गौरवान्वित हूं। उसकी प्रतिभा पर मुझे पूरा भरोसा है। लेकिन एक कोच के तौर पर मैं अभी खुश नहीं हो सकता। मेरा जो लक्ष्य (ओलंपिक पदक) है, वह जब तक पूरा नहीं हो जाता, तब तक मैं खुश नहीं हो सकता। दीपा एक चैंपियन खिलाड़ी है, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आपकी उपलब्धि पदक जीतने पर ही दर्ज होती है।
क्या आपको लगता है कि भारत में खासकर जिम्नास्टिक में प्रतिस्पर्धा कम है जिसका दीपा की तैयारी पर असर पड़ेगा ?
नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। यह एक व्यक्तिगत स्पर्धा है और इसमें आपका प्रदर्शन ही मायने रखता है। कोई भी जिम्नास्ट जितना अपने प्रदर्शन की डिग्री ऑफ डिफिकल्टी बढ़ाएगा, उसे उतने ही ज्यादा अंक मिलेंगे। हालांकि रियो में दीपा के शानदार प्रदर्शन के बाद कई लड़कियां जिम्नास्टिक में अपनी रुचि दिखा रही हैं। देश में जिस तरह से कुश्ती, बैडमिंटन और मुक्केबाजी के प्रति खिलाडि़यों का रुझान बढ़ रहा है, मुझे लगता है जिम्नास्टिक के भी वैसे ही दिन बदलेंगे और प्रतिभाशाली खिलाड़ी सामने आएंगे। दिल्ली के आईजी स्टेडियम में तमाम सुविधाएं मौजूद हैं। मेरी पूरी कोशिश होगी कि दीपा को निरंतर अभ्यास कराते हुए उसे ओलंपिक पदक मंच पर खड़ा होने के काबिल बना सकूं। इसके लिए अभ्यास के साथ अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में ज्यादा से ज्यादा भाग लेना काफी होगा।
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