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गत 20-21 अगस्त को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ब्रजप्रांत द्वारा आगरा में महाविद्यालीय व विश्वविद्यालीय शिक्षक सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत प्रमुख रूप से उपस्थित थे। सम्मेलन के प्रथम सत्र में समूचे ब्रजप्रांत के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों,तकनीकी व प्रौद्योगिकी और प्रबंधकीय शिक्षण संस्थाओं के 1665 से अधिक शिक्षकगण, कुलपति, कुलसचिवों ने मुक्त चर्चा में भाग लेते हुए मंच के समक्ष अपने विचार व प्रश्नों को पटल पर रखा। सम्मेलन के पहले दिन श्री मोहनराव भागवत ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान शिक्षण पद्धति की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए, तब काम ठीक होगा। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भात पकाने के लिए पानी और भाप की आवश्यकता होती है, केवल धूप से काम नहीं चलता, उसी प्रकार व्यवस्था बनानी है या बदलनी हैं तो पहले स्वयं को बदलना पडे़गा और उसका माध्यम बनेगी हमारी मजबूत इच्छाशक्ति। उन्होंने कहा कि मनुष्य यह मानता है कि मैं जो कहता हूं या करता हूं, वह उत्तम है और मैं कभी गलती नहीं करता। मनुष्य का यह मानना ही पहले अपने दु:ख और बाद में समाज के दु:ख का कारण बन जाता है। आज देश की शिक्षा व्यवस्था सौ प्रतिशत ठीक है ऐसा हम भी नहीं मानते और जो शिक्षा नीति बनाते हैं वह भी इस बात से सहमत नहीं हैं। आज व्यवस्था का पुनर्निरीक्षण होना चाहिए। समाजवाद, पूंजीवादी व्यवस्था को हमने देखा, लेकिन देश में कोई परिवर्तन नहीं आया। व्यवस्था से कुछ नहीं बदला, इसलिए क्यों ना व्यक्ति से यह काम शुरू करें। संघ ने प्रयोग किया व्यक्ति और व्यक्तित्व को बदलने का और इस प्रयोग से परिवर्तन भी दिखाई दिया। लोग जात-पात के भेद को भुलाकर एक सूत्र में बंधे और धीरे-धीरे समाज जाग्रति की ओर अग्रसर हुआ। श्री भागवत ने कहा कि गलती अंग्रेजांे व मुगलों की नहीं, बल्कि हमारी स्वयं की नादानी हैं। इसलिए समाज को बदलो व्यवस्था अपने आप बदल जाएगी।
अंत में उन्होंने कहा कि शिक्षा द्वारा शिक्षकों को इस प्रकार का प्रयत्न करना चाहिए कि हमारा राष्ट्र शोषण मुक्त व समरस समाज की सृष्टि करने वाला बने। जैसे इस्रायल पर पांच बार विदेशी विद्रोहियों ने आक्रमण किया लेकिन, मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिए वहां के निवासियों ने ना केवल विद्रोहियों को परास्त किया बल्कि पांचों युद्ध में विजय के साथ अपनी सीमा का विस्तार भी किया। उन्होंने कहा कि इस्रायल निवासियों की दृढ़ इच्छाशक्ति ने रेगिस्तान वाले देश को आनंदवन बना दिया। – प्रतिनिधि
बच्चो को दें संस्कारों की शिक्षा
ब्रज प्रांत के अपने प्रवास पर सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने 23 अगस्त को परिवार प्रबोधन के एक कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान में समाज परिवर्तन की आवश्यकता है और यह परिवर्तन समाज में सम्यक् आचरण और बंधुत्व की भावना का आत्मीयता के प्रबोधन के साथ उत्पन्न होगा। अत: हम सभी को कुटुम्ब को आधार बनाकर संघर्ष करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिवाजी ने कुटुम्ब को आधार बनाकर संघर्ष किया था और यही वजह थी कि वे संस्कारवानों की फौज खड़ी कर सके। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास सबसे पुराना है। जब हमने आंख खोलीं तभी भी हम परम वैभव सम्पन्न राष्ट्र थे। सभ्यता समय के अनुसार बदलती है, नहीं बदलती तो केवल संस्कृति। एक बच्चे को यह सिखाने की जिम्मेदारी परिवार की होनी चाहिए कि वह दूसरों के लिये कैसे जिये। उन्होंने कहा कि पश्चिम में बाजार का भाव समाज को प्रभावित करता है। भारतीय समाज में जरूरतमंद की आवश्यकताओं को पूरा करने की सीख मिलती है। उस बाजार भाव का कोई मतलब नहीं है, जहां आत्मीयता, अनुशासन, पूर्वजों की दी गयी सीख को किनारे कर दिया जाए। हमें पूर्वजों की दी हुई सीख से ही आगे बढ़ना है। श्री भागवत ने जोर देकर कहा कि देश को दिशा देने के लिए कुटुम्ब को मजबूत करना होगा और बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देनी पड़ेगी, तभी देश को आगे बढ़ाने में नवदम्पतियों का सहयोग पूरा होगा। अपनी पहचान देश से होनी चाहिये। सम्मेलन में प्रमुख रूप से क्षेत्र संघचालक श्री दर्शनलाल, प्रांत संघचालक श्री जगदीश, जीएलए विवि. के कुलपति श्री दुर्ग सिंह चौहान सहित अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे।
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