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नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) आजकल शैक्षणिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों, बलात्कार और अश्लीलता जैसे कुकर्मों के लिए ज्यादा चर्चित हो रहा है। 20 अगस्त को विश्वविद्यालय से पीएच डी (प्रथम वर्ष) कर रही एक छात्रा के साथ आइसा के दिल्ली प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अनमोल रत्न ने कथित बलात्कार किया। इन दिनों वह न्यायिक हिरासत में है। पीडि़ता द्वारा पुलिस को दिए बयान के अनुसार उसने अपनी फेसबुक पर दो महीने पहले मराठी फिल्म 'सैराट' देखने की इच्छा जाहिर की थी और पूछा था कि किसी के पास यह फिल्म है? अनमोल ने उसे संदेश दिया कि वह फिल्म दे सकता है। फिर 20 अगस्त को रात्रि 10:30 बजे, यह छात्रा जब ब्रह्मपुत्र हॉस्टल में अनमोल के कमरे पर पहुंची तो उसने बताया कि उसके पास फिल्म नहीं है। छात्रा के बयान के अनुसार अपने कमरे पर उसे कुछ नशीली चीज पिलाकर अनमोल ने बलात्कार को अंजाम दिया और उसके बाद छात्रा को अपनी बाइक से उसके हॉस्टल तक छोड़ने की बात भी कही, लेकिन छात्रा ने सुबह 2:30 बजे अपने एक मित्र को फोन किया और उसके साथ अपने कमरे तक पहुंची। बयान के अनुसार वह जब तक कथित बलात्कारी कॉमरेड के साथ रही, वह बार-बार इस घटना का जिक्र कहीं नहीं करने के लिए छात्रा को धमकाता रहा। ऐसा उसने एक दर्जन से अधिक बार किया।
इस घटना के बाद आइसा के एक समर्पित कैडर रहे कॉमरेड सुबीर राणा की फेसबुक पर की गई यह टिप्पणी पढ़ने लायक है, ''वामपंथ को पहले अपने अंदर झांकने की जरूरत है। सिर्फ दलित-मुस्लिम, चे गुवेरा की तस्वीर वाली टी-शर्ट और चादर लपेटने से एवं लोक-हित के नारों से अब काम नहीं चलेगा। …जहां तक व्यक्तिगत अनुभव का सवाल है तो मैंने तो यहां तक देखा है कि कथनी और करनी, आचार और विचार में जमीन-आसमान को पाटने वाली बात चरितार्थ मिलती है। सुर्खियों में हमेशा बने रहने की अत्यंत अकुलाहट है।
अनमोल द्वारा अपनी एक महिला साथी का एक 'क्रान्ति' वाली फिल्म दिखाने के नाम पर किया गया कथित बलात्कार, वास्तव में जेएनयू में आइसा के चरित्र को उजागर करता है, जहां क्रांति देह की मुक्ति से प्रारंभ होकर महिला कॉमरेड के शारीरिक शोषण पर खत्म होती है। पिछले दिनों इसी संगठन की एक वरिष्ठ महिला कॉमरेड 'फ्री सेक्स' की वकालत कर चुकी हैं। जेएनयू के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फ्री सेक्स की वकालत करने वाली महिला कॉमरेड के एक रिश्तेदार वामपंथी छात्रों के यौन शोषण से लेकर बलात्कार तक के 70 फीसदी मामले अपने स्तर पर कंगारु कोर्ट लगाकर सुलझा देते हैं। इसके बाद जो 30 फीसदी मामले सामने आ पाते हैं, उनमें भी 70 फीसदी मामलों को जीएस कैश (जेन्डर सेन्सटाइजेशन कमिटी अगेन्स्ट सेक्सुअल हरासमेन्ट) में दबा दिया जाता है, पीडि़ता की पहचान छुपाने के नाम पर। जबकि नाम अपराधी का छुपाना होता है। बचे मामलों में यदि कोई गैर कॉमरेड का मामला हुआ तो उसके विरुद्ध फौरन कार्रवाई कर दी जाती है। इस तरह जेएनयू की सारी व्यवस्था, सारा तंत्र स्त्रियों का शोषण करने वाले कम्युनिस्टों के पक्ष में खड़ा मिलता है।
जेएनयू प्रकरण पर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र व्यालोक पाठक का मानना है, ''पूरे जेएनयू में खतरनाक और असहज चुप्पी फैली हुई है। कोई भी इस मसले पर बात तक करने को तैयार नहीं है़.़। क्यों? डर, धमकी, लोभ, लालच, खौफ़.़.आखिर वजह क्या है? वजह है वामपंथियों का लज्जा की सारी हदों को पार करने वाला तरीका, जिसे जानना हो तो कभी शोभा मांडी को पढि़ए। जिनको ये कॉमरेड कहते हैं, जो इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं, उन्हें ही ये वामपंथी झिंझोड़ डालते हैं, नोच डालते हैं। पर इन कॉमरेड को शर्म नहीं आती।''
पाठक कहते हैं, ''अब देखिए जो लड़की इनके साथ थी। मिलकर जंतर-मंतर पर नारे लगाती थी, इनके पोस्टर ब्वॉय कन्हैया के तिहाड़ से छूटकर आने पर जो गुलाल और अबीर उड़ाती थी, उसे भी इन्होंने नहीं बख्शा, अपनी हवस का शिकार बना लिया।''
यहां बताते चलें कि शोभा मांडी बड़ी माओवादी नेता रही हैं। उन्होंने 'एक माओवादी की डायरी' किताब लिखी है। उनका नाम शिखा और उमा भी रहा है। 2010 में उन्होंने आत्मसमर्पण किया। उन्होंने अपनी किताब में माओवादियों द्वारा महिलाओं पर किए जाने वाले अत्याचार की कहानी लिखी है। शोभा की कहानी रूह को कंपा देने वाली है। शोभा के साथ सात वर्ष तक लगातार बलात्कार किया जाता रहा। माओवादियों के बीच महिलाओं पर अत्याचार, सेक्स के लिए पत्नी बदलना आम बात है। शोभा ने इस दर्द को अपनी किताब में शब्द दिए हैं।
बलात्कार के इस मामले पर फेसबुक पर किन्हीं फकीर जय की टिप्पणी गौरतलब है, ''जेएनयू ऐसा नहीं है लेकिन अपने अनुभव से कह सकता हूं कि आइसा ऐसा ही गिरा हुआ संगठन है। वहां ऐसी घटना आम है। मिथिलेश यादव से लेकर गायक झा, सबको करीब से जानता हूं, कम्युनिस्ट खोल में छुपे ये सभी सामंती भेडि़ए हैं।''
इन दोनों घटनाओं ने वामपंथियों के चरित्र का एक बार फिर से उजागर कर दिया है। ल्ल
देवी सरस्वती का अपमान
जेएनयू का ही एक दूसरा मामला वामपंथियों के चरित्र को उजागर करता है। विश्वविद्यालय की कॉमरेड छात्रा शुभमश्री ने अपनी एक अश्लील तुकबंदी में देवी सरस्वती के लिए अपमानजक टिप्पणी की है, जिसे कॉमरेड कविता कहकर प्रचारित कर रहे हैं। इतना ही नहीं, शुभमश्री को हिन्दी के कॉमरेड साहित्यकार उदय प्रकाश ने भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से नवाजा है। उल्लेखनीय है कि पुरस्कार वापसी गिरोह की सदस्यता सबसे पहले उदय प्रकाश ने अपना साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा करके ली थी। इसका तात्पर्य यही है कि कॉमरेडों की नजर में हिन्दू देवी-देवताओं का कोई सम्मान नहीं होता। मोहम्मदजी को लेेकर कुछ कहने से उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार की तरह जरूर कॉमरेड भी इसमें असहिष्णुता का पुट देखते हैं। याद है न, पिछले वर्ष दिसंबर में उत्तर प्रदेश में रहने वाले कमलेश तिवारी ने मोहम्मद जी पर एक टिप्पणी की थी और उसके बाद कई राज्यों में उत्पात मचा था। कमलेश इन दिनों जेल में है। लेकिन ठीक इसी तरह के मामले में शुभमश्री को सम्मानित किया जा रहा है।
राष्ट्रवादी कवि मदन मोहन समर कहते हैं, ''आजकल हमारे प्रतीकों पर प्रहार करने का चलन हो गया है। प्रगतिवाद के नाम पर ये लोग देवी-देवताओं के लिए कुछ भी लिख या बोल देते हैं। हिन्दुओं की सहनशीलता का खूब फायदा उठाते हैं। जो लोग छोटी-छोटी बातों पर किसी की जान लेने के लिए कूद पड़ते हैं, उन पर ये लोग कुछ नहीं बोलते। इनका प्रगतिवाद कहीं छुप जाता है।''
इस संबंध में युवा अनुवादक एवं कथाकार सोनाली मिश्र कहती हैं, ''शुभमश्री से जुड़े हंगामे ने निहायत ही स्तरहीन कविताओं को कुछ दिनों के लिए प्रकाश में ला दिया। पर इनका कोई भविष्य नहीं है।''
यहां सवाल वैसे बहस के स्तरीय और स्तरहीन होने का नहीं है, बल्कि सवाल उस लोगों की मानसिकता को प्रोत्साहित करने का है, जो हिन्दू रीति-परंपराओं को अपमानित करने में सुख पाते हैं।
सोशल मीडिया पर सक्रिय कवयित्री भारती ओझा कहती हैं, ''जिन मां-बाप ने अपनी बेटी का नाम भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत शुभमश्री रखा होगा, वे जरूर भारतीय पंरपरा में विश्वास रखने वाले होंगे। लेकिन अफसोस वे अपना यह संस्कार अपनी बेटी को नहीं दे पाए।''
कम्युनिस्ट पत्रकारों के बीच पिछले दिनों सबसे बड़ी चिन्ता यह थी कि सोशल मीडिया पर उनके घर की महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणी की जा रही है। इन कॉमरेड पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर मौजूद अपशब्द कहने की प्रवृत्ति पर खूब लिखा और खूब बोला। चूंकि वे इस प्रवृत्ति के शिकार हो रहे थे। उनके परिवार की महिलाओं के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल हो रहा था तो वे उस पीड़ा को समझ पाए, जिस पीड़ा से करोड़ों भारतीय उस वक्त गुजर रहे थे, जब मकबूल फिदा हुसैन ने देवी सरस्वती की अपमानजनक तस्वीर बनाई थी। उस वक्त इन्ही कॉमरेड पत्रकारों ने हुसैन के पक्ष में खबरें लिखी थीं, बयान दिया था।
पूर्वांचल मोर्चा की संपादक रश्मि चतुर्वेदी इस पूरे विवाद पर कहती हैं, ''कुछ वामपंथियों ने कविता की एक नई शैली अपनाई है, जिसमें अश्लील और अपमानित करने वाले शब्दों के माध्यम से मन के भाव को प्रस्तुत किया जाता है। इस शैली को लोकप्रिय बनाने के लिए वामपंथी मठाधीशों ने कुछ नए लोगों को अपनी टोली में शामिल किया है।'' -विशेष प्रतिनिधि
वामपंथ को पहले अपने अंदर झांकने की जरूरत है। सिर्फ दलित-मुस्लिम, चे गुवेरा की तस्वीर वाली टी-शर्ट और चादर लपेटने एवं लोक-हित के नारों से अब काम नहीं चलेगा। …
-कॉमरेड सुबीर राणा, पूर्व कार्यकर्ता, आइसा
जो लड़की इनके साथ थी, मिलकर जंतर-मंतर पर नारे लगाती थी, इनके पोस्टर ब्वॉय कन्हैया के तिहाड़ से छूटकर आने पर जो गुलाल और अबीर उड़ाती थी, उसे भी इन्होंने नहीं बख्शा, अपनी हवस का शिकार बना लिया।
-व्यालोक पाठक, पूर्व छात्र, जेएनयू
जेएनयू ऐसा नहीं है लेकिन अपने अनुभव से कह सकता हूं कि आइसा ऐसा ही गिरा हुआ संगठन है। वहां ऐसी घटना आम है। मिथिलेश यादव से लेकर गायक झा, सबको करीब से जानता हूं, कम्युनिस्ट खोल में छुपे ये सभी सामंती भेडि़ए हैं।
-फकीर जय, फेसबुक पर की गई टिप्पणी
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