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16 अगस्त 2016 को 89 वर्ष की आयु में श्री चरती लाल गोयल ने देह छोड़ दी। वे रा. स्व.संघ के स्वयंसेवक और भाजपा के वरिष्ठ नेता थे। वे अनेक वषार्े तक दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष रहे। 70 वर्ष की आयु होने पर उन्होंने घोषणा की कि वे आगे चुनाव नहीं लड़ेंगे। स्व. गोयल किसी भी भूमिका में रहे, कोई भी जिम्मेवारी संभाली, उन सब में वे संयुक्त परिवार के सर्वमान्य बुजुर्ग की तरह रहे। वे सभी से प्रेम करते थे, सब वगार्े का उन पर विश्वास था। दिल्ली की सब पार्टियों के नेताओं और समाज के विभिन्न वगोंर् के प्रमुख लोगांे से उनका गहरा सम्बन्ध था। वे सब जगह बड़े माने जाते थे और सब स्थानों पर एक आदरणीय वरिष्ठ के नाते उनका आदर होता था।
1927 में एक छोटे से गांव आनंदपुर झरोठ में उनका जन्म हुआ। कक्षा चार तक की पढाई गाँव की चौपाल में टाट के पट्टे पर बैठकर की। आठवीं की पढ़ाई गांव से तीन मील की दूरी पर स्थित खरखोदा के एक सरकारी स्कूल में हुई। मैट्रिक से आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने दिल्ली के कॉलेज ऑफ कॉमर्स (वर्तमान में श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स) में दाखिला लिया।
1943 में वह दरियागंज की संघ शाखा में स्वयंसेवक बने और अपना पूरा जीवन इसी कार्य में लगा दिया। उनके पिता कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे, वह गांव के सरपंच भी थे, और अपने पास बहुत अच्छी घोड़ी रखते थे। उनके पास बंदूक और रिवॉल्वर दोनों के लाइसेंस थे। उनकी राजनैतिक गतिविधियों और स्थानीय कारणों से विरोधियों के हमले की आशंका बनी रहती थी। बंदूकधारियों ने एक बार गोलियों से उन पर हमला किया, जिसमें वे बाल-बाल बचे पर बाद में उनकी हत्या कर दी गयी।
संघ का काम करते-करते चरती लाल जी ने लॉ की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने टैक्सेशन की प्रेक्टिस शुरू की। खारी बावली में उनका दफ्तर था। कड़ी मेहनत और विश्वास के कारण उनकी वकालत चल निकली। शहर की नामी-गिरामी सभी फमार्े में उनके मुवक्किल थे। उन्हें सेल्स टैक्स बार एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। 1951 में जनसंघ की स्थापना के समय उन्हें संस्थापक सदस्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वे कई बार जेल गए। हिंदी आन्दोलन, गोरक्षा आन्दोलन और दूसरे बहुत से संगठनों द्वारा चलाये गए आन्दोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वे वैश्य मानव सेवा संघ के अध्यक्ष रहे। 1975 में वह और उनके पुत्र श्री विजय गोयल (वर्तमान केंद्रीय खेल व युवा मामलो के मंत्री) दोनों जेल में थे।
1967 में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा। वे अनेक वषार्े तक नगर निगम के सदस्य रहे। उन्होंने महानगर परिषद् का चुनाव लड़ा और जीते। 1993 में दिल्ली की पहली विधानसभा के अध्यक्ष रहे। यह सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उनके अनन्य योगदान का परिणाम था कि 2007 में 80 वर्ष के होने पर एक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कु़ सी. सुदर्शन और वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री राजनाथ सिंह, श्री वेंकैया नायडू, श्री रामलाल, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, केंद्रीय मंत्री श्री कपिल सिब्बल और सैंकड़ों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। 1993 में जब वे विधानसभा के अध्यक्ष बने तो मुझे उपाध्यक्ष की जिम्मेवारी दी गयी। मैंने उनके स्नेह का तब से निरंतर अनुभव किया। वे हर विषय में मुझे विश्वास में लेते थे और मुझे सीखने व करने के मौके देते थे। उनका जाना मेरा और मेरे जैसे अनेक लोगों का एक व्यक्तिगत नुकसान है उनकी कमी को लम्बे समय तक पूरा नहीं किया जा सकेगा। -आलोक कुमार
(लेखक रा.स्व संघ के दिल्ली प्रांत के सहसंघचालक हैं)
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