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कश्मीरी अलगाववादी और उपद्रवी जम्मू संभाग को भी अशांत करने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए बड़ी संख्या में मदरसों और मस्जिदों का निर्माण किया गया है और अभी भी किया जा रहा है। इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों का इस्तेमाल सुरक्षाकर्मियों पर पत्थर फेंकने में किया जाता है।
कश्मीर घाटी की तरह जम्मू संभाग को भी सुलगाने के लिए अनेक तरह की चालें चली जा रही हैं और साजिशें रची जा रही हैं। इनमें एक साजिश है इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मस्जिदों और मकतबों का निर्माण। ऐसा ही कश्मीर घाटी में भी हुआ था। घाटी को आतंकवाद की आग में झोंकने से पहले मस्जिदों और मदरसों का जाल बुना गया था। जानकारों का कहना है कि इसके लिए खूब विदेशी मदद मिलती है। अब इन लोगों की बुरी नजर जम्मू संभाग पर टिकी हुई है। हालांकि जम्मू संभाग में पहले भी बड़ी संख्या में मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ है। बीच में निर्माण कार्य में कुछ कमी आई थी, पर अब फिर से यह कार्य बहुत ही तेजी से चल रहा है। हालांकि इनमें से कई ऐसे मदरसे हैं, जिनका निर्माण केन्द्र सरकार की मदद से हो रहा है। उल्लेखनीय है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए केन्द्र सरकार शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण में मदद कर रही है। लेकिन जिस संख्या से मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हो रहा है वह चौंकाने वाला है। बड़ी संख्या में कट्टरवादी तत्व भी मस्जिदों और मदरसों का निर्माण कर रहे हैं। उनका एक ही मकसद है जम्मू क्षेत्र को अशांत करना। यहां यह भी बता दें कि 1989-90 से पूर्व जमाते इस्लामी ने जम्मू-कश्मीर में मजहबी शिक्षा देने के बहाने सैकड़ों मदरसों और मकतबों का निर्माण किया था। कहा जाता है कि घाटी में आतंकवाद को बढ़ाने में इन मदरसों की अहम भूमिका रही थी। स्थिति को संभालने के लिए 1990 में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया तो राज्यपाल जगमोहन ने जमाते इस्लामी के सभी 900 शिक्षण संस्थानों को बंद करवा दिया और उसके शिक्षकों को सरकारी विद्यालयों में तैनात कर दिया था और कुछ की छुट्टी कर दी गई थी। लगभग 10 वर्ष पूर्व कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाली संप्रग सरकार ने मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर उनके लिए विशेष राशि आवंटित की थी। यह राशि जम्मू-कश्मीर के लिए भी दी गई थी। इस रकम के मिलने के बाद राज्य में प्रतिवर्ष अनेक मदरसे बनाए गए। अब इनकी संख्या सैकड़ों में हो गई है।
बड़ी बात यह है कि इन मदरसों में कौन लोग पढ़ा रहे हैं और उनकी क्या गतिविधियां रहती हैं, इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि सुरक्षा बलों और पुलिसकर्मियों पर पथराव करने वालों में इन मदरसों के छात्र भी शामिल हैं। यह भी कहा जाता है कि इन छात्रों का इस्तेमाल देशद्रोही गतिविधियों और भारत विरोधी नारे लगाने लगवाने में भी किया जाता है। घाटी और कुछ अन्य स्थानों पर तो ये छात्र अपनी हरकतों से लोगों को बंधक-सा बना लेते हैं। इन छात्रों के दिमाग मेंे मजहबी पागलपन इस कदर भर दिया गया है कि ये लोग बड़े-बूढ़ों को पीटने भी लगते हैं। अलगाववादियों की हड़ताल आदि कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए भी इन छात्रों का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी उम्र 10 से लेकर 20-25 वर्ष तक है। जब सुरक्षाकर्मी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग करते हैं तो कहा जाता है कि छोटे-छोटे बच्चों को मारा जा रहा है, मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
इससे सुरक्षाकर्मियों के सामने यह प्रश्न खड़ा हो रहा है कि इस तरह के आंदोलनों से कैसे निबटा जाए, खास कर तब जब इन बच्चों की आड़ में सशस्त्र आतंकवादी शामिल होने लगे हैं। पुलिस और सुरक्षाकर्मियों को कहा गया है कि वे संयम से काम लें। इसका नतीजा यह हो रहा है कि उपद्रवी कम घायल हो रहे हैं और सुरक्षाकर्मी ज्यादा। एक रपट के अनुसार बीते डेढ़ महीने में 8,000 लोग घायल हुए हैं। इनमें 4,600 पुलिस वाले और अन्य सुरक्षाकर्मी हैं। यह संख्या चिन्ता बढ़ाने वाली है।
जम्मू-कश्मीर के वे लोग, जो राज्य की बिगड़ती हालत से परेशान हैं, पूछनेे लगे हैं कि संयम की कोई सीमा है या फिर उपद्रवियों की मनमानी यूं ही चलती रहेगी? विशेष प्रतिनिधि
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