कब सुधरेंगे ये प्रतिबद्धता के मसीहा?
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

कब सुधरेंगे ये प्रतिबद्धता के मसीहा?

by
Aug 22, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 22 Aug 2016 13:18:14

इन दिनों देश के कई बड़े अंग्रेजी पत्रकारों में पाकिस्तान को लेकर कुछ अतिरिक्त मोह बल्कि कहें अतिरंजित पक्षपात नजर आता है। इस बात की विवेचना होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों है? ये अग्रगण्य अगर कभी किसी मुद्दे पर पाकिस्तान को लेकर  'अप्रिय' लिखते भी हैं तो नियमों और शतोेर्ें के उल्लेख के साथ। इनका कई बार तो लगता है कि इनका काम किसी मुद्दे पर पाकिस्तान के दृष्टिकोण को लोगों तक पहुंचाने जैसा होकर रह गया है।
15 अगस्त के दिन जब बाकी अखबार आजादी के रंगों में पगे थे, हिंदुस्तान टाइम्स पर पाकिस्तान और आतंक का रंग छाया हुआ था। अखबार ने पहले पेज पर बुरहान वानी और उसकी बगल में पाकिस्तानी झंडा लेकर खड़े एक नकाबपोश की तस्वीर छापी। यह साबित करने के लिए कि कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस 'धूमधाम' से मनाया गया। कोई सामान्य व्यक्ति भी इस तस्वीर को देखकर यह बता सकता है कि यह तस्वीर स्वाभाविक नहीं थी। हालांकि यह प्रत्येक अखबार की स्वतंत्रता है कि वह देशविरोधी तत्वों को प्रमुखता दे या न दे, लेकिन हर भारतीय की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह ऐसे अखबारों और पत्रकारों के छिपे हुए एजेंडे को उजागर करे और सामने लाए। सुखद बात यह है कि सोशल मीडिया पर लोगों ने इस काम को बखूबी किया।
 यहां इस बात का उल्लेख जरूरी है कि पिछले कुछ वक्त से लगभग सभी न्यूज चैनलों पर हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकवादियों के लंबे-लंबे बयान सुनाए जा रहे हैं। इनके हर दृष्टिकोण को बिना किसी सोच-विचार के दिखाया जा रहा है। जबकि खुद न्यूज चैनलों के अपने दिशानिर्देश के मुताबिक वे इनके बयान नहीं दिखा सकते। यह बहुत खतरनाक चलन है। क्योंकि अगर सरकार ने कभी ऐसी हरकतें करने वाले चैनलों  को नोटिस जारी कर दिया तो फिर से वही रोना शुरू हो जाएगा कि सरकार मीडिया की आजादी को कुचलना चाहती है।
15 अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान का जिक्र कर कई पत्रकारों को नाराज कर दिया। अचानक अखबारों और वेबसाइटों पर ऐसे लेखों की बाढ़ आ गई कि मोदी की इस रणनीति से भारत को नुकसान होगा। ऐसा कोई भी लेख पढ़ लें, समझ में आ जाएगा कि इन पत्रकारों की नीयत क्या है या वे किसका एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। जिन्हें फलस्तीन से लेकर म्यांमार तक मानवाधिकारों की चिंता होती है, वे चाहते हैं कि भारत के विभाजन से जुड़े बलूचिस्तान के मुद्दे पर चुप रहा जाए।
मीडिया कैसे एक बयान का मतलब बदलकर उससे नकली सवाल पैदा करता है, इसकी मिसाल आजतक चैनल ने दिखाई। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने टीवी पर कहा कि तिरंगा यात्रा को तब तक पूरा नहीं माना जा सकता जब तक हम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी इसे नहीं फहरा देते। चैनल के मुताबिक उन्होंने कहा कि अगले साल पीओके में तिरंगा फहराएंगे जबकि उन्होंने अगले साल का जिक्र कहीं नहीं किया था। लेकिन इस चैनल ने अपनी तरफ से यह शब्द जोड़ दिया। अब एक साल बाद के लिए उनका सवाल तैयार है। ठीक उसी तरह जैसे हर किसी के एकाउंट में 15 लाख रुपये डालने के वादे के झूठ को मीडिया ने इतने दिनों तक जोर-सोर से फैलाया।
गोरक्षकों पर प्रधानमंत्री के बयान के बाद से अचानक बहस का रुख घूम गया है। जो संपादक कल तक गोमांस खाने को 'बुनियादी अधिकार' बता रहे थे, वे गायों की भलाई की फिक्र करने लगे। हर चैनल ने देश भर में गोशालाओं की चिंता की। लेकिन यह भी ध्यान रखा कि खबर सिर्फ उन राज्यों की दिखाई जाए जहां भाजपा की सरकार है।  सही है कि देश में गोशालाओं के रख-रखाव के नाम पर काफी गड़बडि़यां हो रही हैं। इसके लिए सरकारों को जवाबदेह बनाना जरूरी है। लेकिन मीडिया जिस तरह से एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है, उससे गायों की भलाई कम, राजनीति की गुंजाइश ज्यादा बन रही है। प्रधानमंत्री के बयान की सही समीक्षा के बजाए कुछ हिंदी न्यूज चैनलों ने इस मुद्दे पर बहस में ऐसे असमाजिक तत्वों को भी मौका दिया जिनका गोरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। इस तमाशे में उन असली गोपालकों और गोरक्षकों की कहानियां गायब रहीं जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। देश भर में अच्छी बारिश और अच्छी खेती के साथ-साथ कई जगहों पर बाढ़ की स्थिति है। लेकिन तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया से इस मानवीय त्रासदी की खबरें सिरे से गायब हैं। कुछ चैनल तो बाढ़ की तस्वीरों को 'मनोरंजन के दृष्टिकोण' से दिखा रहे हैं। जैसे कि अगर कहीं कोई पानी में बह गया तो उसका वीडियो बार-बार लूप करके दिखाया जाता है। 15 अगस्त से पहले तमाम चैनलों पर बम के अलर्ट की खबरें खूब चलीं। इतने साल में भारतीय टीवी चैनलों में इतनी भी परिपक्कता नहीं आ सकी है कि बम की अफवाह, सुरक्षा के लिए मार्क ड्रिल और असली अलर्ट का अंतर समझ सकें। सुरक्षा एजेंसियां अपनी तैयारी जांचने के लिए अक्सर ऐसे अलर्ट करती रहती हैं। बिना किसी पुष्टि या सच्चाई का इंतजार किए ऐसी खबरें ब्रेकिंग न्यूज की तरह चला ये चैनल लोगों में डर ही पैदा कर रहे हैं। फिलहाल मीडिया के मठाधीशों और कर्ता-धर्ताओं की प्राथमिकताओं को देखते हुए लगता नहीं कि उनका ध्यान कभी इस कमी की तरफ जाएगा।    
कब सुधरेंगे ये प्रतिबद्धता के मसीहा?
इन दिनों देश के क
ई बड़े अंग्रेजी पत्रकारों में पाकिस्तान को लेकर कुछ अतिरिक्त मोह बल्कि कहें अतिरंजित पक्षपात नजर आता है। इस बात की विवेचना होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों है? ये अग्रगण्य अगर कभी किसी मुद्दे पर पाकिस्तान को लेकर  'अप्रिय' लिखते भी हैं तो नियमों और शतोेर्ें के उल्लेख के साथ। इनका कई बार तो लगता है कि इनका काम किसी मुद्दे पर पाकिस्तान के दृष्टिकोण को लोगों तक पहुंचाने जैसा होकर रह गया है।
15 अगस्त के दिन जब बाकी अखबार आजादी के रंगों में पगे थे, हिंदुस्तान टाइम्स पर पाकिस्तान और आतंक का रंग छाया हुआ था। अखबार ने पहले पेज पर बुरहान वानी और उसकी बगल में पाकिस्तानी झंडा लेकर खड़े एक नकाबपोश की तस्वीर छापी। यह साबित करने के लिए कि कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस 'धूमधाम' से मनाया गया। कोई सामान्य व्यक्ति भी इस तस्वीर को देखकर यह बता सकता है कि यह तस्वीर स्वाभाविक नहीं थी। हालांकि यह प्रत्येक अखबार की स्वतंत्रता है कि वह देशविरोधी तत्वों को प्रमुखता दे या न दे, लेकिन हर भारतीय की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह ऐसे अखबारों और पत्रकारों के छिपे हुए एजेंडे को उजागर करे और सामने लाए। सुखद बात यह है कि सोशल मीडिया पर लोगों ने इस काम को बखूबी किया।
 यहां इस बात का उल्लेख जरूरी है कि पिछले कुछ वक्त से लगभग सभी न्यूज चैनलों पर हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकवादियों के लंबे-लंबे बयान सुनाए जा रहे हैं। इनके हर दृष्टिकोण को बिना किसी सोच-विचार के दिखाया जा रहा है। जबकि खुद न्यूज चैनलों के अपने दिशानिर्देश के मुताबिक वे इनके बयान नहीं दिखा सकते। यह बहुत खतरनाक चलन है। क्योंकि अगर सरकार ने कभी ऐसी हरकतें करने वाले चैनलों  को नोटिस जारी कर दिया तो फिर से वही रोना शुरू हो जाएगा कि सरकार मीडिया की आजादी को कुचलना चाहती है।
15 अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान का जिक्र कर कई पत्रकारों को नाराज कर दिया। अचानक अखबारों और वेबसाइटों पर ऐसे लेखों की बाढ़ आ गई कि मोदी की इस रणनीति से भारत को नुकसान होगा। ऐसा कोई भी लेख पढ़ लें, समझ में आ जाएगा कि इन पत्रकारों की नीयत क्या है या वे किसका एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। जिन्हें फलस्तीन से लेकर म्यांमार तक मानवाधिकारों की चिंता होती है, वे चाहते हैं कि भारत के विभाजन से जुड़े बलूचिस्तान के मुद्दे पर चुप रहा जाए।
मीडिया कैसे एक बयान का मतलब बदलकर उससे नकली सवाल पैदा करता है, इसकी मिसाल आजतक चैनल ने दिखाई। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने टीवी पर कहा कि तिरंगा यात्रा को तब तक पूरा नहीं माना जा सकता जब तक हम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी इसे नहीं फहरा देते। चैनल के मुताबिक उन्होंने कहा कि अगले साल पीओके में तिरंगा फहराएंगे जबकि उन्होंने अगले साल का जिक्र कहीं नहीं किया था। लेकिन इस चैनल ने अपनी तरफ से यह शब्द जोड़ दिया। अब एक साल बाद के लिए उनका सवाल तैयार है। ठीक उसी तरह जैसे हर किसी के एकाउंट में 15 लाख रुपये डालने के वादे के झूठ को मीडिया ने इतने दिनों तक जोर-सोर से फैलाया।
गोरक्षकों पर प्रधानमंत्री के बयान के बाद से अचानक बहस का रुख घूम गया है। जो संपादक कल तक गोमांस खाने को 'बुनियादी अधिकार' बता रहे थे, वे गायों की भलाई की फिक्र करने लगे। हर चैनल ने देश भर में गोशालाओं की चिंता की। लेकिन यह भी ध्यान रखा कि खबर सिर्फ उन राज्यों की दिखाई जाए जहां भाजपा की सरकार है।  सही है कि देश में गोशालाओं के रख-रखाव के नाम पर काफी गड़बडि़यां हो रही हैं। इसके लिए सरकारों को जवाबदेह बनाना जरूरी है। लेकिन मीडिया जिस तरह से एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है, उससे गायों की भलाई कम, राजनीति की गुंजाइश ज्यादा बन रही है। प्रधानमंत्री के बयान की सही समीक्षा के बजाए कुछ हिंदी न्यूज चैनलों ने इस मुद्दे पर बहस में ऐसे असमाजिक तत्वों को भी मौका दिया जिनका गोरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। इस तमाशे में उन असली गोपालकों और गोरक्षकों की कहानियां गायब रहीं जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। देश भर में अच्छी बारिश और अच्छी खेती के साथ-साथ कई जगहों पर बाढ़ की स्थिति है। लेकिन तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया से इस मानवीय त्रासदी की खबरें सिरे से गायब हैं। कुछ चैनल तो बाढ़ की तस्वीरों को 'मनोरंजन के दृष्टिकोण' से दिखा रहे हैं। जैसे कि अगर कहीं कोई पानी में बह गया तो उसका वीडियो बार-बार लूप करके दिखाया जाता है। 15 अगस्त से पहले तमाम चैनलों पर बम के अलर्ट की खबरें खूब चलीं। इतने साल में भारतीय टीवी चैनलों में इतनी भी परिपक्कता नहीं आ सकी है कि बम की अफवाह, सुरक्षा के लिए मार्क ड्रिल और असली अलर्ट का अंतर समझ सकें। सुरक्षा एजेंसियां अपनी तैयारी जांचने के लिए अक्सर ऐसे अलर्ट करती रहती हैं। बिना किसी पुष्टि या सच्चाई का इंतजार किए ऐसी खबरें ब्रेकिंग न्यूज की तरह चला ये चैनल लोगों में डर ही पैदा कर रहे हैं। फिलहाल मीडिया के मठाधीशों और कर्ता-धर्ताओं की प्राथमिकताओं को देखते हुए लगता नहीं कि उनका ध्यान कभी इस कमी की तरफ जाएगा।  नारद / चौथा स्तंभ

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

Uttarakhand Illegal Majars

हरिद्वार: टिहरी डैम प्रभावितों की सरकारी भूमि पर अवैध मजार, जांच शुरू

Pushkar Singh Dhami ped seva

सीएम धामी की ‘पेड़ सेवा’ मुहिम: वन्यजीवों के लिए फलदार पौधारोपण, सोशल मीडिया पर वायरल

Britain Schools ban Skirts

UK Skirt Ban: ब्रिटेन के स्कूलों में स्कर्ट पर प्रतिबंध, समावेशिता या इस्लामीकरण?

Aadhar card

आधार कार्ड खो जाने पर घबराएं नहीं, मुफ्त में ऐसे करें डाउनलोड

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Ajit Doval

अजीत डोभाल ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के झूठे दावों की बताई सच्चाई

Pushkar Singh Dhami in BMS

कॉर्बेट पार्क में सीएम धामी की सफारी: जिप्सी फिटनेस मामले में ड्राइवर मोहम्मद उमर निलंबित

Uttarakhand Illegal Majars

हरिद्वार: टिहरी डैम प्रभावितों की सरकारी भूमि पर अवैध मजार, जांच शुरू

Pushkar Singh Dhami ped seva

सीएम धामी की ‘पेड़ सेवा’ मुहिम: वन्यजीवों के लिए फलदार पौधारोपण, सोशल मीडिया पर वायरल

Britain Schools ban Skirts

UK Skirt Ban: ब्रिटेन के स्कूलों में स्कर्ट पर प्रतिबंध, समावेशिता या इस्लामीकरण?

Aadhar card

आधार कार्ड खो जाने पर घबराएं नहीं, मुफ्त में ऐसे करें डाउनलोड

जब केंद्र में कांग्रेस और UP में मायावती थी तब से कन्वर्जन करा रहा था ‘मौलाना छांगुर’

Maulana Chhangur Hazrat Nizamuddin conversion

Maulana Chhangur BREAKING: नाबालिग युवती का हजरत निजामुद्दीन दरगाह में कराया कन्वर्जन, फरीदाबाद में FIR

केंद्र सरकार की पहल से मणिपुर में बढ़ी शांति की संभावना, कुकी-मैतेई नेताओं की होगी वार्ता

एक दुर्लभ चित्र में डाॅ. हेडगेवार, श्री गुरुजी (मध्य में) व अन्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ @100 : उपेक्षा से समर्पण तक

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies