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कुछ दिन पहले मैं एक प्रतिनिधिमंडल के साथ इस्रायल गया था। आज तक इस्रायलियों के राष्ट्रवाद और उनकी देशभक्ति के बारे में सुनता और पढ़ता आ रहा था। इस बार उनकी देशभक्ति को आंखों से देखने और समझने का मौका मिला। उनकी देशभक्ति की मिसाल दुनियाभर में दी जाती है। इसको मैंने नजदीक से अनुभव भी किया। इस लेख में मैं कुछ प्रसंगों को सहारे यह बताने का प्रयास करता हूं कि इस्रायलियों की देशभक्ति किस किस्म की है।
हमारा हवाई जहाज इस्तांबुल (तुर्की) हवाई अड्डे से उड़कर इस्रायल के बेनगुरियन हवाई अड्डे पर जब उतरा तो उस समय दोपहर का वक्त था। हवाई जहाज के अगले दरवाजे से बाहर निकला तो वहां खड़े इस्रायल के एम़ डी़ ए़ (रेडक्रास संस्था) के दो बड़े ही आकर्षक व्यक्तित्व के अधिकारियों ने हमारा स्वागत किया। वे हमारे साथ एयर ब्रिज पर चलने लगे और जब हम अंतरराष्ट्रीय मुसाफिरों के जांच केन्द्र पर पहुंचे तो वे चुपचाप हमारे पीछे खड़े हो गए। सुरक्षाकर्मी हम सबकी जांच करते रहे और वे अधिकारी वहां चुपचाप खड़े रहे। यद्यपि इन अधिकारियों को बेनगुरियन हवाई अड्डे पर सभी लोग भलिभांति जानते थे और उनकी प्रमाणिकता से सभी परिचित थे। इसके बावजूद उन अधिकारियों ने सुरक्षा व्यवस्था को अपने तरीके से चलने दिया और किसी भी मुकाम पर न तो हमारे लिए कोई छूट मांगी और न ही सुरक्षा जांच में किसी तरह का हस्तक्षेप किया। सुरक्षा जांच की प्रक्रिया पूरी करने के बाद जब हम बाहर आए तो इन अधिकारियों ने बड़े विनम्र भाव से कहा, ''क्षमा करिएगा हमारे देश में सुरक्षा व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं करता।''
खैर, इसके बाद वे अधिकारी अपनी कार से हमें होटल ले जाने लगे। रास्ते में मैंने उनसे पूछा कि क्या आप लोगों का इस्रायली सेना में भी कोई दायित्व है? उन्होंने बड़े ही गर्व से बताया कि नियमित सेना में तो कोई दायित्व नहीं है, लेकिन यहां की पैदल सेना में वे प्लाटून कमांडर हैं। यह भी बताया कि जब कभी युद्ध की स्थिति बनती है तो वे लोग अपने निर्धारित स्थान पर ही चार घंटे से भी कम समय में मोर्चा संभाल लेते हैं।
इन अधिकारियों ने हमें यह भी बताया कि वे वहां की आपातकालीन सेवाओं में ''फर्स्ट रिस्पांडर'' यानी पहले हरकत में आने वालों में शामिल हैं। उनमें से एक अधिकारी ने बताया कि एक बार जब वे अपने परिवार के साथ एक निकट संबंधी की शादी में जा रहे थे तो अचानक आपातकालीन सेवा करने की सूचना मिली। इसके बाद उन्होंने अपने बच्चों को वहीं छोड़ दिया और ड्यूटी में चले गए।
इन प्रसंगों को सुनते हुए कुछ देर में हम लोग तेल अबीब के एक होटल में पहुंचे। होटल के द्वार पर ही एक हथियारबंद संतरी ने हमारा स्वागत किया। मैंने उसके बगल में लटकी हुई पिस्तौल पर निगाह डाली और अपने फौजी मिजाज से पूछा, ''क्या आपकी यह पिस्तौल उजी पिस्तौल है, जो आपके देश में बनती है और विश्व में सबसे अच्छी पिस्तौल मानी जाती है?'' उसने सिर ऊंचा करके बड़े ही आत्मविश्वास से कहा ''नहीं यह एक दूसरी पिस्तौल है, यह भी हमारे ही देश में बनती है और यह भी विश्व की सबसे अच्छी पिस्तौलों में से एक है।''
वहां के लोगों ने एक और प्रसंग सुनाया, जो बहुत ही प्रेरक है। इस्रायल के सुदूर दक्षिणी सीमा पर इलाट में एक बंदरगाह है। इस बंदरगाह पर पड़ोसी देशों की तरफ से हमेशा आतंकवादी हमले होते रहते हैं। आतंकवादियों से निपटने के लिए वहीं के नागरिकों का एक दस्ता बनाया गया है जो बखूबी आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। एक बार की बात है कि इलाट से उत्तर की तरफ जाती हुई एक बस पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। उसमें कई लोग मारे गए और एक सैनिक घायल हो गया। इस सैनिक के शरीर से बुरी तरह से खून बह रहा था तथा खून को रोकने के लिए टोर्निके (रक्तबंध) की आवश्यकता थी। बस में रक्तबंध नहीं था। उसी बस में सफर करने वाली एक महिला ने अपनी चोली निकाली और उसका इस्तेमाल रक्तबंध के रूप में किया। इस तरह सैनिक के खून का बहाव रुक गया। बाद में इस्रायल के सेनाध्यक्ष ने उस महिला को उसके घर जाकर सम्मानित किया।
एक और प्रेरक प्रसंग बताते हुए हर्ष हो रहा है। हम लोग 10 जुलाई, 2016 को इस्रायल पहुंचे थे। उसी दिन येरूशलम में एक नागरिक कार्यक्रम था, जिसमें वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी पधारे थे। यह कार्यक्रम 1976 में इस्रायली कमांडो दस्ते द्वारा की गई उस कार्रवाई की याद में आयोजित किया गया था, जिसमें 100 इस्रायली बंधकों को छुड़ाया गया था। उल्लेखनीय है कि इन इस्रायलियों को युगाण्डा में एण्टबे हवाई अड्डे पर बंधक बनाया गया था।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि उस कमांडो कार्रवाई के बाद सभी बंधक यात्री और एक कमांडो को छोड़कर सभी सैनिक सुरक्षित इस्रायल लौट आए थे। जो सैनिक नहीं लौटा था, उसका नाम था यूनाथन। यूनाथन अपहरणकर्ताओं से तब तक लड़ते रहे जब तक कि सारे यात्री और सैनिक हवाई जहाज पर सवार नहीं हो गए। इसके बाद वह हवाई जहाज वहां से उड़कर इस्रायल पहुंचा था। आखिर में यूनाथन अपहरणकर्ताओं की गोली से वीरगति को प्राप्त हो गए थे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यूनाथन प्रधानमंत्री नेतन्याहू के बड़े भाई थे। कार्यक्रम में नेतन्याहू ने बड़े गर्व से यह भी कहा कि इस्रायल की सुरक्षा के लिए यहां के लोग कभी भी और कहीं भी इसी वीरता और दृढ़ता के साथ काम करत रहेंगे।
एक दिन हमारे मेजबान खाने के लिए हमें एक रेस्टोरेंट में ले गए। वहां पर हमसे एक युवक का, जो हमारे मेजबान के साथ था, परिचय कराया गया। परिचय के तुरंत बाद उन्होंने हमसे कहा कि यह हमारा भांजा है और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। पढ़ाई के बाद यह इस्रायल की सेना में जाना चाहता है। इसका एक ही उद्देश्य है कि यह अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता, एकता, और अखण्डता के लिए काम आए।
हमारी इस यात्रा के दौरान इस्रायल के कई अधिकारी हमारे सम्पर्क में आए और सबमें एक ही भावना दिखाई पड़ रही थी कि उनके लिए इस्रायल सब कुछ है और उनको ईश्वर ने इस्रायल की सुरक्षा के लिए ही उस धरती पर पैदा किया है। जब हम लोग इस्रायल से वापस लौट रहे थे तो हवाई अड्डे पर छोड़ने आए एक अधिकारी ने मुझे इस्रायल के राष्ट्रगान की एक प्रति दी। इसका शीर्षक है ''होप''। इस राष्ट्रगान की अंतिम पंक्ति पढ़कर उन्होंने मुझे सुनाई, जिसका अर्थ है, ''हम अपनी 'जीयान' और 'जेरूशलम' की धरती पर सदैव स्वतंत्र रहें।''
इस्रायलियों की इस देशभक्ति से सबको प्रेरणा लेने की जरूरत है। -ब्रिगेडियर (से.नि.) डा़ॅ बी़ डी़ मिश्रा
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