रामगढ़ समझौता-विरोधी सम्मेलन में नेताजी सुभाष बोस, जैसा मैंने देखा
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

रामगढ़ समझौता-विरोधी सम्मेलन में नेताजी सुभाष बोस, जैसा मैंने देखा

by
Aug 16, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 16 Aug 2016 13:25:04

 

बाल चौपाल/क्रांति-गाथा-15
पाञ्चजन्य ने सन् 1968 में क्रांतिकारियों पर केन्द्रित चार विशेषांकों की शंृखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित करेगा ताकि लोग इनके बारे में जान सकें। प्रस्तुत है 29 अप्रैल ,1968 के अंक में प्रकाशित सुभाष चंद्र बोस के साथी रहे श्रीमती माया गुप्त का आलेख:-

–माया गुप्त–
सुभाषचंद्र बोस कांग्रेसी नेता के रूप में आम तरह से परिचित हैं। सरकारी इतिहास में उनका सार्वजनिक परिचय यही है, पर उनका असली रूप बहुत पहले से ही एक क्रांतिकारी के रूप में मिलता है। असल में बंगाल में किसी राजनीतिक नेता को उन दिनों क्रांति आंदोलन से दूर रहना कतई संभव नहीं था क्योंकि बंग-भंग के समय से ही बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन कांग्रेस से ज्यादा जोरदार और व्यापक था।
प्रेरणा-स्रोत
राजनीतिक नेता होने के नाते सुभाषचंद्र ने उन दिनों साहित्यकारों से अनुप्रेरणा अवश्य ली थी। वह केवल उनके लिए ही सही नहीं थी, सारे भारत के क्रांतिकारियों के लिए यह बात लागू होती है। दुनिया के अन्य क्रांतिकारियों से भी ये लोग प्रेरणा लेते थे। रवीन्द्रनाथ की यह कविता बहुत ही प्रसिद्ध हो चुकी है।
'यदि तोर डाक शूने केउ ना आसे तबे एकला चलो रे' (यदि तेरी पुकार सुनकर कोई न आए, तो अकेले ही चल)
शरतचन्द्र का 'पाथेर दावी' बंगाल का क्रातिकारी मंत्री था जो सरकार द्वारा जब्त होने के बावजूद भी हाथोंहाथ एक दूसरे के पास पहुंंच जाता था।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, सुभाष क्रांतिकारी रूप में 1924 के 24 अक्तूबर को विशेष आर्डिनेंस के अनुसार गिरफ्तार किए गए थे और इसी नजरबंदी के बहाने माण्डले जेल को भेज दिये गए थे। वहां वे बहुत अधिक बीमार पड़े, और इस कारण जो आंदोलन हुआ, उससे सरकार ने उन्हें 1927 की 16 मई को छोड़ दिया।
सुभाष यूरोप गये
रिहा होने के बाद सुभाष ने जोरों से पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य का प्रचार शुरू किया। कांग्रेस ने भी 1927 में पूर्ण स्वराज्य को अपना लक्ष्य घोषित किया। इस प्रकार गरम दल वालों की विजय रही। सन 1930 में सत्याग्रह छिड़ा, पर वह जल्दी ही गांधी-इर्विन समझौते की चट्टान से टकराकर समाप्त हो गया। जनता के दबाव के कारण बल्कि यह कहना चाहिए कि ब्रिटिश सरकार की बेईमानी के कारण फिर से आंदोलन छिड़ा। पर अब की बार आंदोलन में वह दम नहीं था। सुभाष गिरफ्तार कर लिये गये, पर स्वास्थ्य खराब होने के कारण पुन: एक बार 1933 में छोड़ दिए गए कि वे फौरन ही स्वास्थ्य सुधारने यूरोप चले जाएं। इस बार की यूरोप यात्रा में सुभाष हिटलर, मुसोलिनी और आयरलैंड के नेता डी. वेलरा से मिले। वे देख रहे थे कि कौन सी शक्तियां ऐसी हैं जो भारत से ब्रिटिश शासन को हटाने में दिलचस्पी रखती हैं और उन्हें मदद दे सकती हैं। ब्रिटिश सरकार को सुभाष के इन कार्यों का पता लगता रहा। सुभाष लौटकर यह प्रचार करने लगे कि जल्दी ही भयानक युद्ध छिड़ने वाला है और उस समय भारत को अपनी बेडि़यों को खोल फेंकने का एक मौका मिलेगा। 1939 में यह लड़ाई छिड़ भी गई, पर कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं थी। घटनाएं फिर भी प्रबल सिद्ध हुई और गांधीजी को आंदोलन छेड़ना पड़ा, किंतु उससे पहले ही देश्र े बाहर के क्रांतिकारी फिर से ब्रिटिश सरकार को उखाड़ने में लग गए।
सुभाष बनाम गांधीजी
ऊपर से कांग्रेसी नेता के रूप में प्रतिष्ठित होने पर भी सुभाषचंद्र को कभी भी अहिंसा का पुजारी तथा गांधीवादी नहीं कहा जा सकता। धीरे-धीरे यह बात काफी साफ हो गई जब कि त्रिपुरा कांग्रेस में उन्हें साफ-साफ कांग्रेस के पुराने नेताओं से नाता तोड़ना पड़ा। इससे पहली बार जब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वह चुने गये थे तो शायद गांधीजी ने सोचा था कि इसमें नये नेताओं की सराहना होगी और वह अपनी शक्ति के बारे में आस्थावान थे। गांधीजी को भरोसा था कि वह उन्हें उनके हासपास के अन्य नेताओं की तरह अपनी तथाकथित अहिंसावादी धारा में शामिल कर लेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। वह बस दूसरी बार त्रिपुरा में गणतंत्रवादी ढंग से फिर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये और पट्टाभि सीतारमैया हार गये तो गांधीजी ने साफ-साफ कह दिया था कि पट्टाभि की पराजय मेरी पराजय है। कहना न होगा कि यह सुभाष के साथ सहयोग न करने का ही इशारा था। कार्यसमिति का गठन करते समय यह बात सुभाष समझ गये क्योंकि तथाकथित गांधीवादी नेताओं ने उनका साथ नहीं दिया। उनको अध्यक्ष पद का त्याग कर देना पड़ा। त्रिपुरा कांग्रेस के समय से ही सुभाष फिर से बीमार रहने लगे थे। पदत्याग के पश्चात दूसरा महायुद्ध छिड़ने में अधिक विलम्ब नहीं था। क्रांतिकारी होने के नाते उन्होंने इस आने वाले युद्ध से फायदा उठाने के लिए तैयारी की। उनके सामने भारत को स्वतंत्र कराने की बात सबसे महत्वपूर्ण थी।
गांधीजी की जिद
वह फिर से कांग्रेस के नेताओं के साथ विचार-विमर्श करते रहे। पर बात साफ थी कि गांधीजी तथा उनके प्रिय शिष्यों ने ब्रिटेन के कुसमय में उस पर दबाव डाल कर भारत को स्वतंत्र कराना उचित नहीं समझ और जिद के कारण वे इसी समझौते पर उतारू थे कि वे लड़ाई में मदद भी न करेंगे, न खास कोई आंदोलन ही छेड़ेंगे।
अब सुभाष बाबू पूरी तरह से कांग्रेस से अलग हो गए। 1940 में रामगढ़ समझौता विरोधी सम्मेलन का उद्देश्य यही था।
और अब सुभाषजी ने कहा था
रामगढ़ सम्मेलन की स्वयंसेविकाओं की कप्तान होने के नाते सुभाष बाबू से व्यक्तिगत रूप से परिचित होने का सोभाग्य मुझे उन्हीं दिनों मिला। रामगढ़ समझौता विरोधी सम्मेलन से पहले भी वह दो एक बार हजारीबाग पधारे थे। उन दिनों रामगढ़ उजाड़खंड था और कांग्रेस तथा समझौता-विरोधी सम्मेलन के मौके पर जो जंगल साफ किया गया था, उस पर लड़ाई के जमाने में रामगढ़ कैंटोनमेंट तैयार हुआ। हजारीबाग में कामकाज से सुभाष बाबू आते थे। साथ में अन्य नेता भी होते थे। पटना, कलकत्ता तथा दूसरे और स्थानों के समझौता-विरोधी नेता भी उनके साथ होते थे। पटना, कलकत्ता तथा दूसरे और स्थानों के समझौता-विरोधी नेता भी उनके साथ होते थे। उन्हीं दिनों मुझे महिला स्वयंसेविकाओं को तेयार करने का आदेश दिया गया था। लगभग तीन हफ्ते तक मैं प्रतिदिन सुबह रामगढ़ जाती थी और शाम को हजारीबाग लौट आती थी। करीब 30 मील की दूरी थी। अक्सर पिताजी  श्री द्विजेन्द्रनाथ गुप्त मुझे लेने के लिए आते थे। मेरे साथ स्थानीय छात्राएं तथा कुछ महिलाएं जाती थीं। बहुत उत्साह और चेष्टा के बाद भी महिला स्वयंसेविकाओं को परेड तथा कामकाज में चुस्ती की कमी रहती थी। एक दिन मैं कुछ उदास थी। मुझे याद है कि सुभाष बाबू किसी काम से पास से निकल रहे थे। वह शायद बात समझ गए। खुद ही आगे बढ़कर बोले थे- 'इन लोगों ने काफी अच्छा काम सीख लिया है। गांव से आई हैं और इतने थोड़े दिन की ट्रेनिंग…।'
बात सही थी। मैंने इन महिलाओं में ऐसा त्याग और जोश देखा था जो कॉलेज तथा स्कूल की छात्राओं में देखेने को नहीं मिलता था। इन स्वयंसेविकाओं में एक बात मैंने देखी थी कि लीडर बनने की धुन इन पर कतई सबार नहीं हुई थी।
सुभाष जी का वह व्यक्तित्व
रामगढ़ समझौता-विरोधी सम्मेलन के कई कार्यकर्ता अभी तक हमारे बीच में हैं। मैं सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तिगत गुणों के बारे में, जो उन दिनों हमलोगों ने तथा आसपास वालों ने अनुभव किया था, कुछ कहना चाहूंगी। लंबा-चौड़ा कद, गोरा और गोल चेहरे में एक ऐसा ओजस्वी व्यक्तित्व था जो उनके उठने-बैठने, चलने-फिरने, सभी कार्यों में व्यक्त होता था। बातचीत का ढंग पूर्णरूप से सुमार्जित था जो कि आम नेताओं में शायद ही देखने को मिलता है। सुभाष बाबू को कभी मैंने क्रोधवश आपे से बाहर होते नहीं देखा और न कोई अशोभन बात कहते सुना।
साज-पोशाक में एकदम साधारण, धोती-कुर्ता और शाल या चद्दर होती थी और उसमें वह बहुत ही व्यक्तित्वपूर्ण दीखते थे। साज-पोशाक का ढंग ऐसा था जो इस इलाके में जनप्रिय था। रामगढ़ समझौता-विरोधी सम्मेलन के अपने कैंप में जब कभी उन्हें एकाध साथी के साथ बैठे देखा तो न जाने क्यों मुझे यह लगता था कि वह कुछ उदास रहते हैं। फिर भी जब कभी किसी विषय में निर्देश प्राप्त करने के लिए मैं जाती थी तो हमेशा बैठाकर धीरे-धीरे एक दो बात करते थे। फर्श पर तकिया लगाकर सब बैठते थे। पहले दूसरों की बात चुपचाप सुनने की आदत थी। सुनते थे ज्यादा और बोलते कम। मैंने कभी उन्हें किसी को आदेश के ढंग से बात करते नहीं सुना था। छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं की त्रुटियों पर कठोर आलोचना नहीं करते थे। लेकिन उनकी दृष्टि से उनका मनोभाव व्यक्त हो जाता था। लोगों पर आस्था रखते थे और यह आस्था, बाद के आजाद हिन्द फौज के इतिहास से सही साबित हुई।
सुभाष बाबू की प्रकृति में राजनेता की धूर्त राजनीति कभी भी नहीं थी, बल्कि एक त्यागी नेता का व्यक्तित्व प्रकट होता था। व्यक्तिगत रूप से जब उन्हें जानने का मौका मिला तो मेरा मन इस तरह के नेता की ओर खिंच गया था और शायद अब भी यह बात सही है, जबकि नेताओं को आदर्शवाद के बल पर नहीं, बल्कि धूर्तता के सहारे कार्यकर्ताओं से काम लेते देखती हूं। अगर कोई काम नहीं बन पाता तो सुभाष बाबू विरुद्ध मंतव्य नहीं देते थे, बल्कि किसी और से वह करवाने का निर्देश देते थे। सुभाष बाबू की प्रकृति में एक बौद्धिकता तथा आवेग का संतुलन देखने को मिलता था। वह कितना सही है, यह बात अंतिम दिनों में विदेश से बेतार द्वारा प्रसारित सुभाष बाबू के भाषण, जो सुनने को मिलते थे उनसे प्रमाणित हो जाती है। विषय समिति की बैठक में जब हम जाकर पीछे बैठती थीं तो यह चीज देखने को मिलती थी कि अनेक कार्यकर्ता उत्साह के कारण कुछ ऐसी बातें करते थे जो बहुत कम उम्र होने के बावजूद भी हमलोग उसकी संभावनाओं पर अविश्वास करते थे। कभी कोई व्यंग्य प्रकट करता था पर सुभाष बाबू के चेहरे पर कभी इस तरह की अवज्ञा मैंने नहीं देखी। हम में से दो चार लोग दूसरेां की आलोचना किया करते थे, तब भी मैंने उन्हें चुपचाप शांत ढंग से थोड़ी से थोड़ी देर बाद सुनकर विषय को बदलते देखा है। उनके गंभीर व्यक्तित्व के सामने सभी इज्जत से झुक जाते थे।
यद्यपि कांग्रेस ने उन्हें निकाला था
उनमें कितना धैर्य था यह तो उन दिनों के कांग्रेस के प्रत्यक्षदर्शी तथा इतिहास की गहराई में जाने वाले सभी को मालूम है और तो और स्वयं गांधीजी ने भी सुभाष बाबू के साथ अन्याय किया था। पर कभी इस विषय को लेकर सुभाष जी ने अशोभन या कटु अभियोग नहीं किया। न तो वह क्रुद्ध हुए, ऐसा केवल खुलेआम बड़ी सभाओं में नहीं सर्वत्र, यही रुख रहा। जब कभी आपस में भी बातचीत करते सुना, तो उनमें यह निर्लिप्तता देखी। कांग्रेसी नेताओं की वे सदा बहुत इज्जत करते थे, यद्यपि उन्होंने उन्हें कांग्रेस से निकाला था और यह चाहा था कि उनका राजनीति के क्षेत्र में कोई महत्व न रहे।
छोटी सी बात याद आ रही है। महिला स्वयंसेविकाओं के साथ एक अधिक उम्र वाली महिला नेता का व्यवहार अच्छा नहीं था। यह बात सुभाष बाबू तक पहुंच गयी थी। उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा- 'आप लोगों का कामकाज सब ठीक चल रहा है न?'
मैंने जवाब दिया- 'जी हां, ठीक चल रहा है।'
थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले- 'हां, पुराने नेता की आदतों से आपलोगों को दूर रहना ही ठीक है।'
मैंने कहा- 'जी हां, दो दिन की ही तो बात है।'
फिर दूसरी बात होने लगी। उस दिन उस कैंप में स्वामी सहजानंद सरस्वती बैठे थे। वे दोनों आपस में बात करते रहे और मैं वहां से चली गई।
जब सुभाष बाबू ने अपना भोजन भेजा
सम्मेलन के दूसरे दिन रात को भारी वर्षा हुई थी। महिला स्वयंसेविकाएं खाने के कँप तक पहुंच नहीं सकती थीं और रसोई भी शायद जारी नहीं रखी जा सकी थी। अपने कैंप में हम सब लोग बैठे बातचीत कर रहे थे। कलकत्ता की एक स्वयंसेवक छात्रा बहुत संंुदर गाती थी, संगीत जारी था। इस बीच में किसी ने एक छोटा सा कागज लाकर मुझे पकड़ा दिया जिसमें मेरा नाम लिखा था। उसके पीछे एक व्यक्ति दो बड़े-बड़े टिफिन कैरियर लोकर कैंप के अंदर पहुंचा। पता चला कि यह खाना हमलोगों के लिए सुभाष बाबू ने खुद भेजा है। यह उनका अपना तथा अपने परिवार का खाना था जो रोज कलकत्ता से आता था।
रामगढ़ का समझौता-विरोधी सम्मेलन बहुत सफलता के साथ संपन्न हुआ था। लोगों का कहना था कि कांग्रेस की सफलता से भी यह कहीं अधिक महत्वपूर्ण था। इतिहास भी इस बात को प्रमाणित करेगा।
रामगढ़ में ही शीलभद्र याजी, स्वामी सहजानंद सरस्वती, श्री हरिविष्णु कामत, श्री अंसार हरवानी तथा और बहुत से नेताओं से मेरा परिचय हुआ था। सहजानंद जी और सुभाष बाबू में बड़ी गहरी श्रद्धा का संपर्क था।
यहीं पर मेरा श्री मन्मथनाथ गुप्त से परिचय हुआ था जो उन दिनों काकोरी केस में पेरोल पर छूटे हुए थे। सात साल के बाद जब वह उत्तर प्रदेश के आखिरी नजरबंद गुट के साथ कारावास से मुक्त हुए, तब उनके साथ मेरा विवाह हुआ।
वह रहस्य की बात
रामगढ़ कांग्रेस के बाद सुभाष बाबू गिरफ्तार हुए और जब वह भारत से बाहर जाने के लिए तैयारियां कर रहे थे तथा अपने घर में नजरबंद थे, उन दिनों एक शाम पिताजी की हजारीबाग की कोठी में दो सज्जन आकर मुझसे मिले थे। वे निश्चय ही किसी और काम से हजारीबाग आए थे और संभवत: वह काम हजारीबाग जेल के अंदर से संदेश भेजना था। मुझसे कहा था कि बहुत जल्दी ही एक अजीब बात होने जा रही है। बहुत पूछने के बाद भी उन्होंने मुझसे नहीं बताया। इसके बाद लगभग सात दिन बाद ही यह खबर फैल गई कि सुभाष बाबू छद्म-वेष में उत्तराखंड होकर भारत से बाहर चले गए और तब मैंने उनकी बातों का रहस्य समझा। इसके बाद का इतिहास सब कोई जानते हैं जो कि एक कहानी से भी ज्यादा आश्चर्यजनक है, जिसके कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा, क्यांकि साम्राज्यवाद भारतीय सेना के विश्वास पर ही जिंदा रह सकता था। सुभाष बाबू तथा उनकी आजाद हिंद फौज ने उस विश्वास को जड़ से काट दिया था।
मैं रवीन्द्रनाथ की वह पंक्तियां जब भी याद करती हूं- हे महाजीवन, हे महामरण- तो मेरे मानस पटल पर दो चित्र सामने आ जाते हैं- एक स्वामी विवेकानंद और दूसरा सुभाषचंद्र बोस का। विवेकानंद के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए ही तो सुभाषचंद्र बोस आगे बढ़े थे। त्याग, धैर्य और ओजस्विता की ऐसी मूर्ति शायद ही देखने को मिले। भारत की स्वतंत्रता में आजाद हिंद फौज की सेवा अंतिम कड़ी है।   –

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

fenugreek water benefits

सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से दूर रहती हैं ये बीमारियां

Pakistan UNSC Open debate

पाकिस्तान की UNSC में खुली बहस: कश्मीर से दूरी, भारत की कूटनीतिक जीत

Karnataka Sanatan Dharma Russian women

सनातन धर्म की खोज: रूसी महिला की कर्नाटक की गुफा में भगवान रूद्र के साथ जिंदगी

Iran Issues image of nuclear attack on Israel

इजरायल पर परमाणु हमला! ईरानी सलाहकार ने शेयर की तस्वीर, मच गया हड़कंप

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

fenugreek water benefits

सुबह खाली पेट मेथी का पानी पीने से दूर रहती हैं ये बीमारियां

Pakistan UNSC Open debate

पाकिस्तान की UNSC में खुली बहस: कश्मीर से दूरी, भारत की कूटनीतिक जीत

Karnataka Sanatan Dharma Russian women

सनातन धर्म की खोज: रूसी महिला की कर्नाटक की गुफा में भगवान रूद्र के साथ जिंदगी

Iran Issues image of nuclear attack on Israel

इजरायल पर परमाणु हमला! ईरानी सलाहकार ने शेयर की तस्वीर, मच गया हड़कंप

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies