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24 जुलाई, 2016
आवरण कथा 'उन्मादी उबाल' से यह बात सामने आई है कि घाटी में आतंकियों के समर्थकों की कमी नहीं है। एक आतंकी के मारे जाने के बाद जिस तरह से अलगाववादियों और पाकिस्तानपरस्त लोगों ने हिंसा की आग में घी डालने का काम किया, उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए, कम है। मौजूदा समय में घाटी में जो हो रहा है, वह मजहबी उन्माद और क्रूरता की पराकाष्ठा है। आज जब भारत विश्व में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है तो घाटी में बैठे कुछ चंद आतंकियों के पैरोकार भारत के माथे पर बदनुमा दाग लगाने पर तुले हैं। भारत सरकार ऐसे उन्मादियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे, क्योंकि बिना भय के प्रीत नहीं होने वाली, यह बिल्कुल सच है।
—रानू जायसवाल,जयपुर (राज.)
ङ्म छोटी-छोटी बातों पर हो-हल्ला मचाने वाले मानवाधिकार संगठन कश्मीर में आतंकियों द्वारा सेना पर जो हमले किये जा रहे हैं, उन पर मौन क्यों हैं? क्या सेना के कोई मानवाधिकार नहीं हैं? वहीं कश्मीर में उग्र प्रदर्शन कर रहे और सेना पर प्राणघातक हमला करने से भी न चूकने वालों पर जब सेना बल प्रयोग करती है तो ये आसमान सिर पर उठा लेते हैं। मानवाधिकार संगठनों के अलावा सेकुलर मीडिया का भी यही रुख रहता है। आतंकी बुरहान वानी को मारकर सेना ने सराहनीय कार्य किया है।
—मनोहर मंजुल,प. निमाड़(म.प्र.)
ङ्म घाटी में अधिकतर पत्थरबाज और हिंसा को उकसाने वाले पढ़े-लिखे मुस्लिम नवयुवक हैं। अगर पढ़ा-लिखा वर्ग जिहाद और आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहा है तो यह बड़ा गंभीर विषय है। देश ही नहीं, विश्व में जितनी भी आतंकी घटनाएं घट रही हैं, उसमें जितने भी मुसलमान आतंकी पकड़े गए हैं, वे सब पढ़े-लिखे हैं। आखिर यह पड़ताल की जानी चाहिए कि उन्हें किस तरह की शिक्षा दी जा रही है ? कहीं मजहबी शिक्षा तो उन्हें कट्टर नहीं बना रही? शिक्षा का काम तो दानव से मानव बनाना होता है, लेकिन यहां तो उलटा हो रहा है। बहरहाल भारत सहित विश्व में इस्लामी आतंक के बादल मंडरा रहे हैं। इस आतंक के फन को कड़ाई से कुचलने की जरूरत है।
—अनुप्रिया कठेरिया, मेल से
ङ्म देश के स्वतंत्र होने के 69 साल बाद भी कश्मीर में आतंक का माहौल कायम है। घाटी में आए दिन रक्त रंजित रहती है। इसमें पाकिस्तान की एक अहम भूमिका है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीके-तालिबान जैसे अनेक आतंकी संगठनों की जन्मभूमि पाकिस्तान ही है। यहीं इनके प्रशिक्षण केन्द्र हैं। जिहादी सोच बाले मदरसे हैं। फिर भी वह कहता है कि हम आतंक नहीं फैला रहे। अब कितना और झूठ बोलेगा पाकिस्तान? विश्व को सभी देशों मिलकर आतंकवाद को समाप्त करने के लिए एक सोची-समझी रणनीति बनानी चाहिए। क्योंकि पहले ही बहुत देर हो चुकी है, अब और देर नहीं करनी चाहिए, नहीं यह आतंक का दानव एक न एक दिन सभी के लिए काल बन जाएगाा।
—कृष्ण बोहरा, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म कश्मीर में एक आतंकी के मरने के बाद भी जो हिंसा हो रही है, उसमें पाकिस्तान बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। पैसे से लेकर अन्य जरूरत के सभी साजोसमान सीमापार से उपलब्ध कराये जा रहे हैं, इस बात से बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता। सेना ने हाल ही के दिनों में चुन-चुन कर आतंकियों को मार गिराया है, जिससे पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के हुक्ममरान परेशान हैं। इसलिए इस बार वे आतंकी बुरहान वानी के बहाने घाटी के ही मुस्लिम लड़कों को उकसाने में लगे हुए हैं और मकसद काफी हद तक अपने काम में सफल भी हुए हैं। पर सेना उनकी अच्छी खातिरदारी कर रही है।
—डॉ. खी.जवलगेकर, सोलापुर (महा.)
ङ्म भारत को पाकिस्तान के साथ दो-टूक बात करनी चाहिए, क्योंकि घाटी में हो रही हिंसा पूरी तरह से प्रायोजित है। पाकिस्तान जिस दिवास्वप्न को लिए बैठा है, वह कयामत के दिनों तक भी पूरा नहीं होने वाला। यह उसकी शह का ही परिणाम है कि पत्थरबाजों ने हमारे दो हजार से ज्यादा सैन्यकर्मियों को चोटें पहुंचाईं, जिनमें कई की हालत चिंताजनक है। इस पर न कोई सेकुलर नेता बोलता है और न ही सेकुलर मीडिया। पत्थरबाजों का दुख-दर्द ही क्यों दिखाई देता है इन्हें?
—रामामोहन चन्द्रवंशी, मेल से
ङ्म कुरान की आयतों से जिंदगी और मौत का निर्णय लेने वाले मानव नहीं, दानव हैं। ये लोग किसी भी मत-पंथ के नहीं हैं और न ही ये उसका अर्थ समझते हैं। इनका एक मात्र कार्य आतंक मचाना है। आज इसी कारण इस्लामी आतंक की पूरे विश्व में आलोचना हो रही है। मानवाधिकार संगठन इस घृणित कर्म को देखकर भी चुप्पी साधे बैठे हैं। क्या इस पर कुछ नहीं बोलेंगे? जिहाद और इस्लाम के नाम पर जो हो रहा है, वह किसी भी सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग ही कहा जाना चाहिए। आश्चर्य है कि असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार लौटाने वाले कश्मीर में आतंकी समर्थकों द्वारा की जा रही हिंसा पर अपना मुंह सिले बैठे हैं? क्या इसके विरोध में वे कोई पुरस्कार वापस करेंगे।
—जयंती वर्मा, मेल से
ङ्म एक आतंकी के मारे जाने के बाद कश्मीरी मुसलमान उसके जनाजे में शामिल होते हैं, देशविरोधी बयानवाजी होती है, आतंकवादी गोलियां दागकर मारे गए आतंकी को सलामी देते हैं, फिर पाकिस्तानी झंडे में लपेटकर उसे सुपुर्दे खाक किया जाता है। यह दृश्य कितना भयावह है। इसे देश की जनता ने अभी कुछ दिन पहले अपनी आंखों से देखा। सवाल ये उठता है कि भारत चंद अलगाववादियों और आतंकवादियों के आगे इतना मजबूर क्यों है? कुछ दहशतगर्द खुलेआम आतंक का माहौल घाटी में बनाते हैं, और हम देखते रहते हैं? क्यों इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई नहीं होती? कट़्टरपंथी भीड़ कहीं पर भी एकत्र होकर सेना और यहां के हिन्दुओं पर हमला कर दे, यह अधिकार इन्हें किसने दे दिया? नमाज के बहाने एकत्र होना और फिर हमला करना, इनके चरित्र में आता जा रहा है। इस पर कब कार्रवाई होगी?
—कुमुद कुमार, बिजनौर (उ.प्र.)
फ्रांस के नीस शहर में मुस्लिम आतंकियों ने बड़ी ही बेरहमी से दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार डाला। बंगलादेश में भी इसी तरह से इन्होंने कहर बरपाया। हाल ही में कश्मीर में एक आतंकी के मारे जाने के बाद अभी तक हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। क्या ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी नहीं हैं कि अलगाववादियों के अंदर मजहबी उन्माद की आग धधक रही है। ये विश्व को इस्लाम के झंडे के नीचे लाना चाहते हैं। झूठे जिहाद और इस्लाम के नाम पर निर्दोष मानवता पर हमला अपने आप में पागलपन की हद को पार करने जैसा है। ये यह बात क्यों भूलते हैं कि इनकी हिंसा से विश्व इस्लाम की ओर नहीं झुकने वाला। पर सभी देशों का रुख एक सा होना चाहिए। क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति या देश के लिए खतरा नहीं है बल्कि सभी के लिए खतरा है।
—मुकेश घनघोरिया, ग्वालियर (म.प्र.)
ङ्म हिंसा और जिहाद के नाम पर इस्लाम मजबूत होगा नहीं बल्कि निंदा को प्राप्त होगा। यह बात मुल्ला-मौलवियों को अच्छे से समझ आनी चाहिए। जाकिर नाइक जैसे आतंक के पैरोकार इस्लाम को प्रेम का नहीं बल्कि भय का मजहब बना रहे हैं। कोई भी ईश्वर हिंसा को पसंद नहीं करता। निर्दोषों को सरेआम सड़कों पर रौंदकर, बदंूकों से लोगों को मारकर, जिहाद के नाम पर हिंसा फैलाकर वे अगर समझते हैं कि इससे इस्लाम का नाम हो रहा है, तो यह उनकी भूल है।
—दयाशंकर चौरसिया, ऊंचाहार (उ.प्र.)
ङ्म बुरहान वानी के मारे जाने के बाद गद्दारों का कोलाहल चालू हो गया है। जनाजे में हजारों की भीड़ अलगाववादियों के शक्ति परीक्षण का जरिया बन गई। पूरे घटनाक्रम को स्वत:स्फूर्त गुस्साये लोगों की प्रतिक्रिया नहीं कहा जा सकता। यह अलगावादियों और आतंकियों की पूर्व नियोजित चाल थी, बस उन्हें ऐसी ही किसी घटना का इंतजार था, जो बुरहान के सेना की तरफ से मारे जाने के बाद उन्हें मिल गई। इस बार जो त्वरित कार्रवाई हुई उससे पत्थरबाजों के हौसले पस्त हुए हैं। हमारी सेना पर पत्थर फेंकने जैसा कृत्य करने वालों के विरोध में देश के बुद्धिजीवियों ने कुछ नहीं कहा और वे अभी भी चुप्पी साधे हैं।
—इन्दु मोहन शर्मा, राजसंमद (राज.)
बढ़ती ताकत
आवरण कथा 'ताकत का नया तेज (17 जुलाई, 2016' से स्पष्ट है कि भारतीय वायु सेना के बेड़े में तेजस के शामिल होने से रक्षा क्षेत्र में भारत की शक्ति बढ़ी है। यह जानकर संतुष्टि हुई कि मोदी सरकार स्वदेश में ही आयुध उत्पादन की नीति को बढ़ावा दे रही है और निजी क्षेत्र को हथियार निर्माण का लाइसेंस देने जा रही है। इस कदम से मेक इन इंडिया अभियान का प्रभाव सभी क्षेत्रों में दिखना शुरू हो गया है।
—श्रीकृण सिंह, पटना (बिहार)
पाक का उतरता नकाब
कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकी बुरहान वानी को जब से सेना ने मार गिराया है तब से समूची घाटी में कुछ पाकिस्तानपरस्त लोगांे ने घाटी को अशांत कर रखा है। इसमें कई दर्जनों लोग मारे गए। आवरण कथा 'उन्मादी उबाल' से एक बात स्पष्ट है कि वानी के मारे जाने के बाद अलगावादियों व पाकिस्तानपरस्त लोगों ने हिंसा को हवा देने में कोई कसर नहीं रखी। पर घाटी के युवाओं और यहां के प्रबुद्ध लोगों को समझना चाहिए कि वानी को सेना ने इसलिए मारा ताकि जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंक से निजात मिल सके। सेना के वीर जवान अपने परिवार की चिंता छोड़ देश सेवा में अपना सब कुछ अर्पण कर देते हैं। वे यह सब करते हैं बस घाटी और यहां लोगों की सलामती के लिए। आज जो भी लोग आतंकी के मारे जाने के बाद हिंसा कर रहे हैं वह बहुत ही कम लोग हैं, इसलिए समूचे कश्मीर को और यहां के लोगों को अलगाववादी समझना भूल है। घाटी में लाखों की तादाद में देशभक्त मुसलमान हैं, जो देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे लोगों को बहके हुए युवाओं को समझाना चाहिए कि वह सेना के साथ हिंसात्मक रवैया अपनाने के बजाय सहयोगात्मक रवैया अपनाएं। पाकिस्तान का चेहरा इस घटना के बाद फिर से एक बार उजागर हुआ है। दुनिया ने देखा कि कैसे उसने एक आतंकी के पक्ष में खड़े होकर आतंक को बढ़ावा दिया। लेकिन पाकिस्तान चाहे कितनी बार कोशिश करें, भारत के खिलाफ उसकी साजिश कभी सफल नहीं होने वाली।
—शुभम वैष्णव, मकान न.-11,हम्मीर नगर-द्वितीय,टोंक रोड खेरदा, सवाई माधोपुर (राज.)
कैसे होगा बेड़ा पार ?
कांग्रेसी नेतृत्व है, थका और बीमार
कैसे यू़पी़ राज्य में, होगा बेड़ा पार ?
होगा बेड़ा पार, बिचारी मैडम-शीला
जरा परिश्रम से शरीर हो जाता ढीला।
कह 'प्रशांत' ये पिटे हुए मोहरे हैं सारे
इनके बल पर नहीं लगेगी नाव किनारे॥ —प्रशांत
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